मूलनिवासी और मूलवासी शब्द के अर्थ में अंतर ? लेखक:-प्रकाश गौतम
‘’भारतीय मूलनिवासी संगठन’’ द्वारा गाँव-गाँव में केडर केम्प लगाकर एक नई ‘’वैचारिक क्रांति’’ के माध्यम से भारत के मूलनिवासियों को संगठित करने का काम किया जा रहा है ! संगठन द्वारा तेजी से चलाई जा रही इस मुहीम से प्रभावित होकर मूलनिवासी (शब्द) के नाम पर बड़े पैमाने पर लोग संगठित हो रहे हैं तथा देश का 90% बहुजन समाज एकजुट हो रहा है ! यदि यह मुहीम कामयाब हो जाती है, तो शीघ्र ही देश की सामाजिक व्यवस्था में बहुत बड़ा परिवर्तन देखने को मिलेगा ! जब बहुत बड़ा सामाजिक परिवर्तन होगा, तो निश्चित है कि तब देश में राजनैतिक व्यवस्था में भी बहुत बड़ा परिवर्तन आएगा ! जब राजनैतिक परिवर्तन होगा, तो देश में बहुत बड़ा धार्मिक परिवर्तन होना भी तय है !
‘’भारतीय मूलनिवासी संगठन’’ के माध्यम से तेजी से बढ़ रही यह सामाजिक एकजुटता आरएसएस (राष्ट्रीय सुलभ शौचालय) के लोगो को कतई भी पसंद नहीं है ! इस मुहीम को आरएसएस अभी से खतरा मानने लगा है ! इसी क्रम में आरएसएस के लोग जो काम बहुत पहले से करते आये हैं, अपने उसी काम में वह अभी से तेजी से जुट गए है ! इसी क्रम में पूर्व की भांति आरएसएस के लोग हमारे ही बीच के विभीषणवादियों की तलाश में जुट गए है !
हमारे बीच के ही एक-दो-चंद लोग ऐसे पैदा भी हो गए हैं, जो स्वयं को बहुत बड़े विद्धवान (बाबा साहेब डॉ0 आंबेडकर से भी बड़े विद्धवान) समझने लगे हैं ! ये चन्द लोग कुछ किताबों का हवाला देकर मूलनिवासी और मूलवासी शब्द में ही अन्तर बता रहे है। इनका कहना है कि देश में जिन लोगो के मूलनिवास प्रमाण-पत्र बने हुए है, वे सब भारत के मूलनिवासी है अर्थात ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र तथा धार्मिक अल्पसंख्यक सभी भारत के मूलनिवासी है। दूसरी तरफ इनका कहना है कि आदिवासी ही केवल भारत के मूलवासी है। यानी ये चंद लोग केवल 7.50 % आदिवासियों को ही भारत के मूलवासी बता रहे हैं ! ये तथाकथित बड़े विद्धवान लोग केवल किताबों में जो लेखको ने अपने मन से कुछ लिख दिया, उनके तर्कों को आधार मानकर मूलवासी और मूलनिवासी शब्द में भेदकारी मनगढ़ंत नया अर्थ बनाकर मूलनिवासी और मूलवासी शब्द की नई परिभाषा काल्पनिक रूप से गढ़ रहे है। तीसरी तरफ यदि इनसे यह पूछा जाये कि भारत में पैदा होते ही किसी भी बच्चे का मुलनिवास प्रमाण-पत्र नहीं बनता है- तो क्या वे तब तक विदेशी होते हैं जब तक कि उनका मुलनिवास प्रमाण-पत्र नहीं बन जाता ? या ऐसे सब लोग विदेशी हैं जिन लोगो के मुलनिवास प्रमाण-पत्र अभी तक नहीं बन सके हैं ? इनके पास इस बात का भी कोई जवाब नहीं कि जो लोग पूरी जिन्दगी मुलनिवास प्रमाण-पत्र नहीं बनवाते, क्या वे सभी लोग विदेशी हैं ?
वैज्ञानिकता को भी ये कतई नजरअंदाज कर रहे हैं। अर्थात DNA रिपोर्ट पढ़ने को ये तैयार नही हैं। जबकि DNA ऐसी वैज्ञानिक शोद्ध विधि है, जिससे किसी भी व्यक्ति की अनुवांशिकता का प्रमाणिक रूप से पता चलता है। जिसे संभवतः भारत का सर्वोच्च न्यायालय भी प्रमाणिक तथ्थ मानता है। फिर भी कुछ विभेदनकारी लोग sc/st/obc/minority समाज में विभेद पैदा कर मूलनिवासी शब्द के नाम पर बड़े पैमाने पर संगठित हो रहे लोगों में भेद कर फूट पैदा करने काअसफल प्रयास करने में जुट गए हैं। ये अपनी विभीषणवादी नीति को अंजाम देने में लग चुके हैं।
ऐसे तथाकथित विद्धवान लोग अपने समाज के साथ गद्दारी कर सदा आरएसएस के इशारे पर काम करते आये हैं। जिसके कारण हमारी एकता में सदैव बाधा उत्पन्न हुई है। जिसका पूरा लाभ आरएसएस ने सदैव उठाया है। यह भी सच है कि हमारे बीच के ऐसे विभीषणवादियों को आरएसएस (राष्ट्रीय सुलभ शौचालय) के लोगों ने रोटी का एक टुकड़ा दिखाकर पालतू कुत्तो की तरह सदैव रखा है।
इस सम्बन्ध में हमारा कहना है कि जिस प्रकार बाप और पिता शब्द का अर्थ एक ही है, ठीक इसी प्रकार मूलनिवासी और मूलवासी शब्द का अर्थ भी एक ही है। अर्थात दोनों शब्द एक-दूसरे के प्रयायवाची शब्द हैं। इसके आलावा अब तो वैज्ञानिकता के आधार पर अर्थात् DNA रिपोर्ट से भी साबित हो गया है कि भारत में रहने वाले 99.99 % ब्राह्मण, क्षत्रिय, और वैश्य विदेशी हैं और शेष अर्थात sc/st/obc/minority समाज के सभी लोग भारत के मूलनिवासी हैं। यहाँ यह स्पष्ट करना समीचीन होगा कि आदिवासियों को वर्तमान भारतीय संविधान में अनुसूचित जनजाति (st) कहा गया है जो कि उक्तानुसार भारतीय मूलनिवासी ही हैं और हम भी उनको भारतीय मूलनिवासी ही मानते हैं और हमरे भाई हैं !
अतः अनुसूचित जाति/जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग तथा धार्मिक अल्पसंख्यक (sc/st/obc/minority) समाज के लोगो अर्थात सभी भारतीय मूलनिवासियों से अनुरोध है कि वे सावधान रहे और किसी भी विभीषणवादी (राष्ट्रीय सुलभ शौचालय के कुत्तो) के बहकावे में न आये।
जय भीम, जय भारतीय मूलनिवासी
प्रकाश गौतम, भारतीय मूलनिवासी संगठन।