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शनिवार, 19 अक्टूबर 2019

अंधविश्वास और हम


सूचना क्रांति और आधुनिकता के इस दौर में हम भले ही चांद पर घर बसाने की सोच रहे हैं, हर दिन नए कीर्तिमान रच रहे हैं, लेकिन समाज का बहुत बड़ा हिस्सा आज भी ऐसा है, जो अंधविश्वास और झूठी परंपराओं के जाल में फंसा हुआ है। ताज्जुब की बात यह है कि इन अंध-परंपराओं के भंवर मे बहुत बड़ा शिक्षित समाज भी है। हम बहुत-सी परंपराओं और अंधविश्वासों को बिना कुछ विचार किए ज्यों का त्यों स्वीकार किए जा रहे हैं। हम यह भी नहीं देख रहे हैं कि इन परंपराओं, अंधविश्वासों का कोई आधार, कोई अस्तित्व है भी, या नहीं। हमारी बहुत-सी मान्यताएं ऐसी हैं, जो विज्ञान व आधुनिक ज्ञान की कसौटी पर खरी नहीं उतरती हैं। वैज्ञानिक युग के बढ़ते प्रभाव के बावजूद अंधविश्वास की जड़ें समाज से नहीं उखड़ी हैं। अंधविश्वास, आडंबर और झूठी परंपराओं का ज्यादा असर हमारे ग्रामीण क्षेत्रों मे दिखाई दे रहा है। धर्म का झूठा चोला पहने कई पाखंडियों द्वारा आज भी लोगों को जादू-टोने, भूत-प्रेत, तंत्र विद्या से बीमारियों का उपचार, भभूत से उपचार और न जाने किन-किन झूठी मान्यताओं द्वारा गुमराह किया जा रहा है, जबकि इन चीजों का कुछ औचित्य है ही नहीं।

नैतिकता का नाटक ፨
कुरसी सुख का आधार है, सिर्फ स्वरूप ही बदला है। देश की जनता के सामने आदर्शों की दुहाई देकर, नैतिकता का ढोल पीट-पीटकर अनैतिक कार्यों के आगे सत्ता का प्रभावशाली परदा डाल दिया जाता है। एन-केन-प्रकारेण कुरसी से चिपके रहना आज की राजनीति में नियति बन चुकी है, वह भी तमाम मूल्यों की धज्जियां उड़ाकर। काश! इस द्वंद्व से निकल पाने की कोई राह दिखाई देती।

चीन की हरकत ፨
चीन को लेकर बार-बार यह बात दोहराई जाती है कि चोर चोरी से जाए, मगर हेराफेरी से न जाए। लेकिन  लगता है कि हमारा देश चीन को लेकर अब भी खुशफहमी पाले हुए है। हमारे शीर्ष नेता चीन के दौरे पर जाते हैं, तो चीन बड़ी गर्मजोशी से उनका स्वागत करता है। चीनी नेता द्वारा प्रोटोकॉल तोड़कर किए गए स्वागत को हमारे नेता भी बड़ा महत्व देते हैं। लेकिन हकीकत में चीन के वैमनस्य में कोई कमी नहीं आई है। उसके द्वारा की जा रही छोटी-छोटी हरकतों के बड़े अर्थों को समझने में लगता है कि हम कहीं चूक रहे हैं। अपनी नवीनतम ओछी हरकत के रूप में चीन ने अप्रत्याशित रूप से भारत की संयुक्त राष्ट्र में मुंबई हमले के मुख्य कर्ता-धर्ता आतंकी जकी-उर-रहमान लखवी पर कार्रवाई के प्रस्ताव को वीटो कर दिया और कारण यह गिनाया कि इस संदर्भ में भारत के पास कोई ठोस सुबूत नहीं है। अपने इस कदम से चीन ने एक तरह से भारत में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को समर्थन दिया है। चीन को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए भारत को भी तिब्बत की आजादी की मांग को हवा देनी चाहिए, क्योंकि लगातार दुश्मनी निभाते चीन से व्यापक संबंध बनाए रखने का कोई पुख्ता आधार शेष नहीं रह गया है।
किसिम-किसिम के बाबा ፨
सारथी बाबा, राधे मां, बिल्डर बाबा, इन आधुनिक बाबाओं के कारण ही समाज में संतों की छवि को नुकसान पहुंचा है। कुछ लोग इनके मोह-जाल में फंस जाते हैं, जिसके चलते इन आधुनिक बाबाओं की दुकान चल निकलती है। लोग ऐसे बाबाओं व कथावाचकों के पीछे भागते हैं, जिनके आश्रमों में अच्छी सुविधाएं हों। धनी वर्ग के कई सारे लोग इन बाबाओं को खुलकर दान देते हैं।  जब इन बाबाओं को अपनी करनी  की सजा मिलती है, तब जाकर इनकी पोल खुलती है। श्रद्धालुओं को ऐसे आधुनिक बाबाओं से बचकर रखना चाहिए, तभी इनका मनोबल टूटेगा और ये धर्म-कर्म में पाखंड-आडंबर को बंद करेंगे।

።።።። अनूप चीचाम , मध्य प्रदेश ።።።።

शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2019

आदिवासी समस्याओं पर हो नजर

आजादी के 62 साल बाद भी भारत के आदिवासी उपेक्षित, शोषित और पीड़ित नजर आते हैं। राजनीतिक पार्टियाँ और नेता आदिवासियों के उत्थान की बात करते हैं, लेकिन उस पर अमल नहीं करते। यह 2009 के आम चुनाव में साफ दिख रहा है। किसी भी राजनीतिक दल ने न तो अपने घोषणा-पत्र में आदिवासियों से जुड़े मुद्दे उठाए और न ही चुनाव अभियान में उनके हित की बात उठा रहे हैं।आदिवासी किसी राज्य या क्षेत्र विशेष में नहीं हैं, बल्कि पूरे देश में फैले हैं। ये कहीं नक्सलवाद से जूझ रहे हैं तो कहीं अलगाववाद की आग में जल रहे हैं। जल, जंगल और जमीन को लेकर इनका शोषण निरंतर चला आ रहा है। ऐसे में राष्ट्रीय मुद्दे- आतंकवाद, स्विस बैंक से काला धन वापस लाने, महँगाई, स्थिर और मजबूत सरकार के नाम पर जनता से वोट बटोरने की नीति को महज राजनीतिक स्टंट ही कहा जाएगा। देश के लगभग 7 करोड़ आदिवासियों की अनदेखी कर तात्कालिक राजनीतिक लाभ देने वाली बातों को हवा देना एक परंपरा बन गई है।
यह तो नींव के बिना महल बनाने वाली बात हो गई। राजनीतिक पार्टियाँ अगर सचमुच में देश का विकास चाहती हैं और 'आखिरी व्यक्ति' तक लाभ पहुँचाने की मंशा रखती हैं तो आदिवासी हित और उनकी समस्याओं को हल करने की बात पहले करना होगी। भारत में मिजोरम, नगालैंड व मेघालय जैसे छोटे राज्यों में 80 से 93 प्रतिशत तक आबादी आदिवासियों की है। बड़े राज्यों में मध्यप्रदेश, उड़ीसा, महाराष्ट्र, बिहार, गुजरात, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में 8 से 23 प्रतिशत तक आबादी आदिवासियों की है।
देश में अभी भी आदिवासी दोयम दर्जे के नागरिक जैसा जीवन-यापन कर रहे हैं। नक्सलवाद हो या अलगाववाद, पहले शिकार आदिवासी ही होते हैं। उड़ीसा के कंधमाल में धर्मांधता के शिकार आदिवासी हुए। छत्तीसगढ़, उड़ीसा और झारखंड में आदिवासी नक्सलवाद की त्रासदी झेल रहे हैं। मेघालय, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश और कुछ आदिवासी बहुल प्रांतों में यह समुदाय अलगाववाद का शिकार समय-समय पर होता रहता है। नक्सलवाद की समस्या आतंकवाद से कहीं बड़ी है।
आतंकवाद आयातित है, जबकि नक्सलवाद देश की आंतरिक समस्या है। यह समस्या देश को अंदर ही अंदर घुन की तरह खोखला करती जा रही है। इनके संबंध श्रीलंका के लिट्टे सहित कई प्रतिबंधित संगठनों से होने के संकेत मिल चुके हैं। नक्सली अत्याधुनिक विदेशी हथियारों और विस्फोटकों से लैस होते जा रहे हैं। नक्सली प्रजातंत्र को मजबूती के साथ आँख भी दिखा रहे हैं। इसका नमूना लोकसभा चुनाव के पहले चरण में हिंसक घटनाओं से दिखाई दिया। बिहार, झारखंड, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ में 18 मतदान और सुरक्षाकर्मियों की जान चली गई।
नक्सली वारदातों के चलते छत्तीसगढ़ में बस्तर इलाका एक 'टापू' बन गया है। वहाँ के आदिवासी न चाहते हुए भी नक्सलियों को सहयोग करने को विवश हैं। बस्तर का कुछ इलाका ऐसा है, जहाँ फोर्स भी नहीं घुस सकती। पिछले साल हैदराबाद से रायपुर आ रहे एक हेलिकॉप्टर के दुर्घटनाग्रस्त होने पर उसकी तलाश महीनों तक नहीं की जा सकी। बाद में ग्रामीणों के सहयोग से पायलट और इंजीनियरों का कंकाल मिला।
राजनीतिक पार्टियों को बाहरी ताकतों से लड़ने की बातें छोड़कर पहले देश की समस्याओं को सुलझाने का प्रयास और रणनीति बनाना चाहिए। उनके वादे देश को आंतरिक रूप से मजबूत करने के होने चाहिए। अन्यथा चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों को देश को अस्थिर करने का मौका मिलता रहेगा। केंद्र सरकार आदिवासियों के नाम पर हर साल हजारों करोड़ रुपए का प्रावधान बजट में करती है। इसके बाद भी 6 दशक में उनकी आर्थिक स्थिति, जीवन स्तर में कोई बदलाव नहीं आया है। स्वास्थ्य सुविधाएँ, पीने का साफ पानी आदि मूलभूत सुविधाओं के लिए वे आज भी तरस रहे हैं।
भारत को हम भले ही समृद्ध विकासशील देश की श्रेणी में शामिल कर लें, लेकिन आदिवासी अब भी समाज की मुख्य धारा से कटे नजर आते हैं। इसका फायदा उठाकर नक्सली उन्हें अपने से जोड़ लेते हैं। कुछ राज्य सरकारें आदिवासियों को लाभ पहुँचाने के लिए उनकी संस्कृति और जीवन शैली को समझे बिना ही योजना बना लेती हैं। ऐसी योजनाओं का आदिवासियों को लाभ नहीं होता, अलबत्ता योजना बनाने वाले जरूर फायदे में रहते हैं। महँगाई के चलते आज आदिवासी दैनिक उपयोग की वस्तुएँ भी नहीं खरीद पा रहे हैं। वे कुपोषण के शिकार हो रहे हैं। अतः देश की करीब आठ फीसद आबादी (आदिवासियों की) पर विशेष ध्यान देना होगा।
आम चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे गौण होते जा रहे हैं। स्थानीय मुद्दे और प्रत्याशियों की छवि ज्यादा असरकारक हो रही है। यही वजह है कि कई राज्यों में क्षेत्रीय दल मजबूती के साथ उभर कर सामने आ रहे हैं। सरकार बनाने के लिए कांग्रेस और भाजपा जैसी बड़ी पार्टियों को उनके साथ गठबंधन के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। इस चुनाव में भी कोई लहर या ऐसा कोई बड़ा मुद्दा नहीं है, जो देश के नागरिकों को उद्वेलित करे।
गरीबी उन्मूलन की बात वर्षों से की जा रही है। इसके बावजूद समाज में आर्थिक विषमता ज्यों-की-त्यों बनी हुई है। बेरोजगारी की समस्या यथावत है। मुद्रास्फीति घटना के बाद भी महँगाई लगातार बढ़ती जा रही है। हर नागरिक इससे त्रस्त है। आदिवासी भी इस महँगाई से अछूते नहीं हैं। जनता के दिल को छूने वाले मुद्दे राष्ट्रीय परिदृश्य में नहीं आने का प्रभाव मतदान पर भी साफ दिखाई देने लगा है।
अब तक तीन चरण के मतदान का प्रतिशत अपेक्षाकृत कम रहा। छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में विधानसभा चुनाव के दौरान 45 से 50 फीसद और कुछ सामान्य इलाकों में 70 फीसद तक मतदान हुआ था, वहीं लोकसभा चुनाव में आदिवासी इलाकों में 30 से 40 फीसद और सामान्य इलाकों में केवल 55 प्रतिशत मत पड़े। अब समय आ गया है कि शिक्षा, स्वास्थ्य और जनता की मूलभूत सुविधाओं को राष्ट्रीय स्तर पर उठाना होगा।
देश की आंतरिक समस्या से राजनीतिक पार्टियों को सीधा वास्ता रखना होगा। जाति समीकरण और व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप की बदौलत न तो कोई लहर पैदा की जा सकती है और न ही मतदाताओं में जोश जगाया जा सकता है। आदिवासियों, आम नागरिकों से जुड़े मुद्दे राजनीतिक पार्टियों को घोषणा-पत्र और भाषणों में शामिल करना होगा। तभी जनता की आस्था लोकतंत्र पर बढ़ेगी और घरेलू समस्याओं का खात्मा किया जा सकेगा।