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गुरुवार, 10 जून 2021

कौन सी फिल्में भारत के गाँवों को अच्छी तरह दर्शाती हैं?

 कडवी हवा

  • आज के भारत की इस बदलती आबोहवा की असली मार तो किसानों पर पड़ती है।
  • बारिश- बाढ़ और सूखे से जूझते एक किसान परिवार की ये दर्द भरी कहानी आपको अंदर तक हिला कर रख देगी।

पंचायत :-

  • यह एक वेब सिरीज़ है जो पूरी तरह गाँव पर आधारित है। इसकी कहानी एक अच्छे ढंग से तैयार की गई है। इसकी रेटिंग भी बहुत अच्छी है।आप इसे ज़रूर देखना चाहेंगे।

पीपली लाइव

  • 2010 में आमिर खान के प्रोडक्शन की एक और फिल्म आई जिसमें गरीबी से जूझते किसानों पर देश की मीडिया की फूहड कवरेज पर व्यंयग किया गया था।
  • ये फिल्म भी आमिर खान की बेहतरीन फिल्म रही।

मंथन

  • 1976 में आई फिल्म मंथन में भारत में सफेद आंदोलन के दौरान की हालत दर्शाई गई है। इस फिल्म में दिखाया गया है कि किस तरह एक-एक करके 500,000 किसान 2-2 रुपए जमा करते हैं और इस आंदोलन को क्रांति बनाते हैं।
  • इस फिल्म 1977 में बेस्ट फिल्म का नेशनल अवार्ड मिला था।

किसान

  • 2009 में आई इस फिल्म में किसानों की आत्महत्या के भयंकर सच को उकेरा गया था।
  • फिल्म में अरबाज खान और सोहेल खान मुख्य भूमिका में थे।

पंचलेट

रविवार, 23 मई 2021

कुत्ते का रात में रोना किस बात की ओर संकेत करता है?

कुत्ते का रात में रोना-:

कुत्तों को रोता सुनकर सबकी हालत खराब हो जाती है, सब ये सोचकर परेशान हो जाते हैं कि कुछ अनिष्ट होने वाला है। कुत्तों का रोना हम बहुत अशुभ मानते है बिना कारण जाने की कुत्तों के रोने का कारण क्या है? बहुत सी भ्रांतियां हमारे समाज में कुत्तों के रोने से जुड़ी हुई हैं। ऐसा माना जाता है कि अगर कुत्ता रात में घर के सामने रोए तो घर या रिश्तेदार में किसी की मृत्यु होने वाली है। कुत्ते का रात में रोने का कारण बहुत से लोग यह भी मानते है कि कुत्ते को रात में भूत या पिशाच दिखाई देता है जिससे वो रोते है और इन्हीं सब कारणों से कुत्तों का रोना बहुत खराब माना जाता है।

कुत्ते हमारे समाज में हमारे मित्र की तरह ही माने जाते है और इसलिए इनको सबसे विश्वसनीय कहा जाता है और कई बार यहां तक कहा जाता है कि कुत्तों का विश्वास करना चाहिए परन्तु मनुष्य का नहीं। फिर कुत्तों का रोना अपशगुन जैसे है गया?

कुत्ते के रोने का मतलब-:

आज हम आपको कुत्तों के रात में रोने की असली वजह बताते है जिससे कि आप ये जान सके कि कुत्तों के रोने से शकुन या अपशकुन नहीं होता बल्कि यह एक अंधविश्वास है और ये पड़ने के बाद आप भी कुत्तों के रोने को गलत नहीं मानेंगे।

वास्तव में जिसे हम कुत्तों का रोना मानते है वह रोना नहीं howl करना कहलाता है जिसका मतलब होता है कि वो अपनी मदत के लिए किसी को पुकार रहे होते हैं।

जब कुत्ते अपने समूह से अलग हो जाते है या कोई खतरा महसूस करते हैं या भूखे होते है तो वो howl करते हैं ताकि अपने मालिक अथवा अपने साथियों तक ये खबर पहुंचा सके और इसका शुभ या अशुभ से कोई लेना देना नहीं है। हम उनकी इसी आवाज़ को उनका रोना समझ लेते हैं।

कई बार उनको चोट लगने, अकेले होने या कोई खतरा महसूस करने पर भी कुत्ते howl करते हैं।

तो ये है असली वजह कुत्तों की रात में रोने की।

आशा करते है कि अगली बार कुत्तों के रोने पर आप घबराएंगे नहीं बल्कि उसकी असली वजह जानने कि कोशिश करेंगे।

बुधवार, 14 अप्रैल 2021

🙏 जय भीम🙏

भारत रत्न और भारतीय संविधान के रचयिता और दलितों को समानता का अधिकार दिलाने वाले डॉ. बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के 130 वें जन्म दिवस पर उनको शत शत नमन।

शनिवार, 3 अप्रैल 2021

मोदी सरकार आने के बाद सरकारी कर्मचारी भी बड़ी मेहनत और लगन से काम करने लगे हैं. इस तथ्य को साबित करने के लिए क्या आप कोई ज्वलंत उदाहरण साझा कर सकते हैं?

 


ये लीजिए, इससे बढ़कर और क्या ज्वलंत उदाहरण होगा?😜😀😀

चित्र गूगल से साभार

सोमवार, 22 मार्च 2021

व्यंग्य रचना : बदलते देश की तारीफ में कुछ कसीदे

 


WD|
पंकज प्रसून 
बदल रहा है। तो विलुप्त होने के कगार पर है। सरकार नहीं चाहती, आने वाली पीढ़ी महंगाई देखने म्यूजियम जाए, इसलिए इसके संरक्षण और संवर्धन के लिए मजबूरीवश दाम बढ़ाने पड़ रहे हैं। वरना महंगाई की हालत भी कहीं चील और गिद्ध वाली न हो जाए।
 
देखो न रुपया कितना ऊपर उठ गया है। गरीबों को नजर नहीं आ रहा। हमें रूपये पर गर्व भी हो रहा है, क्योंकि हमारे देश का रुपया विदेशी बैंकों का सरताज बन गया है। कुछ देशों की अर्थव्यवस्था इसी धन के वजह से चल रही है। हम ठहरे वसुधैव कुटुम्बकम की सोच वाले। अगर स्विट्जरलैंड हमारी वजह से तरक्की कर रहा है, तो हमारा सीना और भी चौड़ा हो जाना चाहिए की नहीं?
 
देश की जीडीपी भी आसमान छू रही है। देश में जो भी 70-80 करोड़ गरीब बचे हैं, वह मात्र जीडीपी न देख पाने की वजह से बचे हैं। लोन, तेल लकड़ी में उलझी रहने वाली आम जनता को जीडीपी दिखाई जाएगी, फिर सब लाइन पर आ जाएगा।
 
शिक्षा मंत्री को बदल कर साबित कर दिया गया है कि शिक्षा व्यवस्था बदल रही है। शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है। शिक्षितों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हो रही है, बढ़ती बेरोजगारी इस बात का प्रमाण है। जब एक क्लर्क की पोस्ट के लिए हजार पीएचडी कैंडीडेट लाइन लगाकर खड़े होते हैं तो वहीं स्टैंड अप इंडिया हो जाता है।
 
पहले हम बेरोजगारी के मामले में हम आत्म निर्भर थे। अब हम अमेरिका को आयात कर रहे हैं। प्रतिभाएं आयातित हो रही हैं। विपक्षी इसको पलायन का नाम दे रहे हैं। पलायन तो सिर्फ हिंदुओं का हो रहा है। कुछ दशक पहले जब भारतीय प्रधानमंत्री विदेश जाते थे, तो प्रेक्षागृह ही भर पाता था। अब तो पूरा स्टेडियम भी कम पड़ जाता है। यह गौरव हमारी प्रतिभाओं ने दिलाया है। अगर उनको भारत में ही नौकरी मिल जाती तो पराए देश में तालियों की गूंज और नारे कहां नसीब होते? यह अभूतपूर्व उपलब्धि न तो अमेरिका को मिल पाई है और न ही ब्रिटेन को। अरे काहे के विकसित, वहां की प्रतिभाएं,वहीं तक सीमित रह जाती हैं।
 
हम पुरातन संस्कृति और सरोकारों की ओर लौट रहे हैं। मन की बात से रेडियो की दशा सुधरी है। ऑल इंडि‍या रेडियो पुनर्स्थापित हो रहा है। बदलाव यह आया है कि अब रेडियो पर बोलने वाला दिखाई भी पड़ने लगा है। युवा की आस्था प्रियंका चोपड़ा से होते हुए पतंजलि तक पहुंची है। पतंजलि स्टोर गांव-गांव में खुल रहे हैं। जहां काला धन च्यवनप्राश के रूप में बिक रहा है। योग(जोड़)का राजनीति पर सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। पूंजी पतियों को जोड़ते-जोड़ते अब नेता हाथ भी शास्त्रीय अंदाज में जोड़ने लगे हैं।
 
आतंकवाद तो दुसरे देशों में शिफ्ट हो चुका है। यहां जो भी आतंक के अवशेष बचे हैं, वो देशभक्ति को बचाने के लिए जरूरी हैं। पिछली सरकार में वीर रस के कवियों पर संकट आ गया था। अब उनके पास कविता लिखने के लिए अनेकों विषय हैं। सिंहनाद और तालि‍यां बटोरने के असीमित अवसर हैं। 
 
यह देश इस कदर बदला है कि गांधी के सिद्धांतों पर चलने लगा है। न तो दिल्ली  सरकार केंद्र का सहयोग करती है न केंद्र सरकार दिल्ली का। न तो एलजी मुख्यमंत्री को सहयोग करते हैं न मुख्यमंत्री का। केंद्र और राज्य सरकारों, पक्ष-विपक्ष के बीच असहयोग को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि 1920 के बाद सबसे बड़ा असहयोग आंदोलन इस समय हो रहा है। गांधी जी ने कहा था की कोई एक गाल पर तमाचा मारे तो दूसरा गाल उसकी ओर हाजिर कर देना चाहिए। आज सीमा के एक छोर पर पाकिस्तान सीज फायर उल्लंघन करता है, तो भारत दूसरा छोर उसके हवाले कर देता है। फर्क इतना है की गांधी का सत्याग्रह अब सत्तागृह में बदल चुका है।
 
बदलते देश की तस्वीरें लगातार विज्ञापन देकर छपवाईं जा रही हैं। कमबख्त आलोचक  हंसते हुए किसान की तस्बीर देखकर भी नहीं समझ रहे कि देश बदल रहा है। किसान की भूमि पथरीली होती जा रही है तो ये खुशी की बात है। पत्थर में तो भगवान् होता है न। खुशहाली का आलम यह है कि अन्नदाता अब दुखी मन के बजाए खुशी मन से आत्महत्या करता है।
 
देश बदल रहा है और विपक्ष आरोप लगाता है कि सरकार दो साल से देश को डुबो रही है। फिर सरकार के प्रवक्ता को मजबूरन यह कहना पड़ता है कि आप ने तो 65 साल तक डुबोया है। अर्थात अभी इस सरकार को 63 साल और मौका देना चाहिए, फिर कहीं जाकर विपक्ष सवाल पूछने योग्य होगा। वैसे भी हमारे प्रधानमंत्री जी जब जहाज में बैठ कर दूसरे देश पहुंचते हैं तो देश बदल ही तो जाता है।


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