आज की जनरेशन के नसीब में अब ऐसे किचन जिसे हम रसोई घर बोलते थे देखने को नसीब नही होगा
असल में इसे रसोई घर इस लिए बोलते थे क्यों की ये अपने आप में पूरा घर था, एक घर को संपन्नता से चलाने के लिए जो भी चीज की जरूरत होती, वो इस घर में मिलती थी
लोग अलग अलग नही बल्कि एक साथ मिल कर खाना बनाते थे जिनसे मां चाची दादी सभी का सहयोग होता
और काम करने की हैरारकी डिसाइड होती जिसमे सबसे छोटे को सब मेहनत का काम दिया जाता जिसमे आटा गूंथने का काम काम चाची करती और सबको आर्डर देने का काम दादी करती थी
इस दौर की सबसे खास बात ये होती थी की इस समय घर में कोई डाइनिंग एरिया नही होता था
चूल्हे के बगल में बैठ कर बच्चे खाना खाया करते थे
और रसोई के बाहर बैठ कर घर के आदमी
वही घर के मुख्य कमरे में बैठ कर दादा लोगो को खाना परोसा जाता था
इस समय बने खाने की सबसे खास बात ये होती थी की प्रेम से बनाया गया खाना इतना टेस्टी होता था की इसके लिए कुछ अलग से खाने की जरूरत नही पड़ती थी
कुछ खाने के कॉम्बिनेशन है थे
दाल चावल के साथ प्याज या चटनी
रोटी सब्जी के साथ गुड
खिचड़ी के साथ पापड़ और अचार
पराठा सब्जी के साथ दही
हलुवा के साथ पापड़ चिप्स
चाय के साथ लाई (मुरमुरा)
आप के यहां खाने के साथ क्या परोसा जाता था हमे जरूर बताइए