Powered By Blogger

मंगलवार, 25 फ़रवरी 2020

ट्रम्प की भारत यात्रा से भारत को क्या फायदा होगा?

विश्व के दो सबसे चर्चित नेता,अपने2 देशों में सर्वाधिक लोकप्रिय डोनाल्ड ट्रंप एवम मोदी जी की तस्वीर देख कर यह अहसास होने लगा है कि अब भारत विकासशील से विकसित देशों की श्रेणी में आने वाले वर्षों।में गिना जाना जायगा,भारत की परंपरा संस्कृति सभ्यता एवम तहजीब की पूरी दुनिया कायल है,उम्मीद है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भी प्रभावित जरूर हुए होंगे,आदरणीय मोदी जी ने साबित किया है कि वे देश ही नही विदेशों में भी सबसे अधिक लोकप्रिय हैं,उनकी ट्रम्प के साथ दोस्ती देखते ही बनती है,भारत देश की महानता आज और देखने को मिली जिससे खुशी महसूस हो रही है,जय हिंद जय भारत
910 बार देखा गया
अपवोट देने वालों को देखें

क्या आप कुछ छविया साझा कर सकते हैं जो दस हजार अपवोट के लायक हो?

प्रकृति की कुछ अद्भुत तस्वीरें साझा करना चाहूंगा।
धन्यवाद;)
फोटो स्रोत; सोशल मीडिया

सोमवार, 24 फ़रवरी 2020

भविष्य में किस तरह के व्यापार ज्यादा सफल होंगे?

भविष्य में किस तरह के व्यापार ज्यादा सफल होंगे?-भाई भविष्य का व्यापर है—बकरी पालन
किसान भाई इसको आराम से कर सकते हैं
लखपति बनना या करोड़पति आपके हाथ में है
बकरी पालन कैसे शुरू करें?
खेती पर निर्भर रहने की वजह से अभी तक भारत का किसान आर्थिक मोर्चे पर काफी पिछड़ चुका है. जिसकी मुख्य वजह किसान का जागरूक ना हो पाना है. आज अगर सामान्य रूप खेती के साथ साथ पशुपालन पर ध्यान दिया जाए तो इसका व्यापार बहुत ही ज्यादा लाभ देने वाला बन सकता है. क्योंकि खेती के साथ साथ किसान भाई पशुओं को शुरुआत से ही पालता आया है. लेकिन इसको एक बड़े अवसर के रूप में नही बदल पाया. जबकि पशुपालन को व्यापार के तौर पर करने से किसान भाई अच्छीखासी कमाई कर सकता है.
माना की पशुपालन को शुरू करने के लिए शुरुआत में थोड़ी अधिक पूंजी की जरूरत होती है. लेकिन वर्तमान में सरकार द्वारा काफी ऐसी योजनायें चलाई जा रही हैं. जिनके माध्यम से सरकार किसान भाइयों को आर्थिक मदद प्रदान करती है. आज हम आपको पशुपालन में ही बकरी के पालन के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं. जो वर्तमान में किसान भाइयों के लिए बहुत ही लाभदायक और आर्थिक मजबूती देने वाला व्यापार बन सकता है.
बकरी पालन उद्योग
बकरी पालन का व्यवसाय भारत में दुनिया में सबसे ज्यादा किया जाता है. बकरी पालन के माध्यम से किसान भाई एक व्यापार में कई तरह से कमाई करता हैं. बकरी पालन करने के दौरान किसान भाई इसके बाल, दूध और इसके अपशिष्ट से जैविक खाद बनाकरअतिरिक्त लाभ कम सकता हैं. बकरी पालन के व्यवसाय में किसान भाई को शुरुआत में अधिक खर्च करना पड़ता है. लेकिन शुरू करने के बाद किसान भाई इसके माध्यम से बार बार कमाई करता है. बकरी पालन में मुनाफा दो से तीन गुना तक मिलता है. बकरी पालन को किसान भाई खेती के साथ साथ छोटे पैमाने पर भी शुरू कर सकता हैं.
बकरी पालन को शुरू करने में अनुमानित लागत
बकरी पालन वैसे तो सामान्य तौर पर शुरू किया जा सकता है, लेकिन इसको व्यापारीक तौर पर शुरू करने के लिए पहले इसके बारें में सम्पूर्ण जानकारी हासिल कर लेना ज्यादा बेहतर होता है. क्योंकि इसके बारें में उचित जानकारी हासिल कर किसान भाई कम खर्च में अधिक लाभ कमा सकता है. बकरी पालन के दौरान पशुओं में कई तरह की बीमारियाँ बहुत तेजी से फैलती हैं.
पशुओं में होने वाले रोगों की रोकथाम के लिए पालक का अनुभवी होना जरूरी है. क्योंकि अगर पालक उचित समय पर पशुओं में दिखाई देने वाली बिमारियों के लक्षणों के बारें में पता नहीं लगा पायेगा तो उसे इसमें अधिक नुक्सान उठाना पड़ सकता है. इसके अलावा पालक को पशुओं को दिया जाने वाला चारा और उनके रख-रखाव संबंधित पूरी जानकारी का होना जरूरी होता है. ताकि पशु स्वस्थ रहे और अच्छे से विकास करें. इन सभी की जानकारी किसान भाई अपने नजदीकी बकरी पालन करने वाले किसान भाई से ले सकता है या वर्तमान में काफी संस्थाएं हैं जो इसकी जानकारी देती हैं.
बकरी पालन के व्यवसाय को शुरू करने के लिए शुरुआत में अधिक पूँजी की भी जरुरत नही पड़ती. इसे किसान भाई घर पर लगभग 10 के आसपास पशु रखकर भी शुरुआत कर सकता हैं. जिसमें अनुमानित 50 से 70 हजार का खर्च आता है. लेकिन थोड़े बड़े पैमाने पर इसे शुरू करने के लिए अनुमानित चार से पांच लाख तक की जरूरत होती है. जिसमें पशुओं की खरीद के साथ साथ उनके रहने और खाने का सम्पूर्ण खर्च शामिल होता है.
बकरी पालन के लिए सरकारी अनुदान
बकरी पालन के व्यवसाय को शुरू करने के लिए अलग अलग राज्यों की सरकारों के द्वारा अलग अलग योजनाएँ चलाई जा रही हैं. जिनके माध्यम से सरकार अलग अलग तरह से बकरियों की राशि पर अनुदान देती है. उदाहरण के तौर पर राजस्थान की बात करें जहाँ सबसे ज्यादा बकरी पालन का काम किया जाता है, ऐसे में राजस्थान में बकरी पालन के लिए सरकार की तरफ से 50 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जाती है. जैसे की कोई किसान भाई एक लाख रुपये लगाकर इसका व्यवसाय शुरू करता है. ऐसे में किसान भाई 50 हजार तक की सब्सिडी सरकार की तरफ से दी जाती है. इसके अलावा राजस्थान में इसको शुरू करने के लिए लोन की व्यवस्था भी दी गई है. जिसके माध्यम से किसान भाई को कुल राशि का 10 प्रतिशत भरना होता है. जिसके बाद बाकी की राशि किसान भाई बैंकों से लोन के माध्यम से ले सकता हैं. जिसमें से कुल राशि की 50 प्रतिशत सब्सिडी किसान भाई को मिल जाती है.
बकरी पालन के लिए आवश्यक चीजें
बकरी पालन व्यवसाय को शुरू करने के लिए कुछ मूलभूत सुविधाओं की जरूरत होती हैं.
जमीन
किसी भी व्यवसाय को शुरू करने के लिए जमीन की जरूरत सबसे पहले होती है. छोटे पैमाने पर बकरी पालन शुरू करने के लिए लगभग एक हजार वर्ग फिट के आसपास जमीन की जरूरत होती हैं. ऐसे में अगर जमीन खुद की है तो कोई दिक्कत नही होती. लेकिन अगर खुद की जमीन ना हो तो किसान भाई जमीन किराए पर लेकर भी इसका व्यवसाय शुरू कर सकता है.
बकरियों के लिए उपयोगी चारा :
झाड़ियाँ : बेर, झरबेर
पेड़ की पत्तियाँ : नीम, कटहल, पीपल, बरगद, जामुन, आम, बकेन, गुल्लड, शीशम
चारा वृक्ष की पत्तियाँ : सू-बबूल, सेसबेनिया
सदाबहार घास : दूब, दीनानाथ, गिनी घास
हरा घास : लोबिया, बरसीम, लूसर्न आदि।
बकरियों के दाने का यह है मानक
बकरियों के पोषण के लिए प्रतिदिन दाने के साथ सूखा चारा होना चाहिए। दाने में 57 प्रतिशत मक्का, 20 प्रतिशत मूंगफली की खली, 20 प्रतिशत चोकर, 2 प्रतिशत मिनरल मिक्चर, 1 प्रतिशत नमक होना चाहिए। सूखे चारे में गेहूं का भूसा, सूखी पत्ती, धान का भूसा, उरद कर भूसा या अरहर का भूसा होना चाहिए। ठंड के मौसम में गन्ने का सीरा जरूर दें। इन सबको चारे में बकरियों को खिलाया जाएगा तो बकरी में मांस के साथ-साथ दूध में वृद्धि होगी और किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी।
पशुओं के रखने का स्थान
बकरियों को रखने के लिए मौसम में अनुसार हवादार मकान की जरूरत होती हैं. इसके लिए किसान भाई लोहे की जाली और कंकरीट के माध्यम से टीन सेड बनवाकर रहने की व्यवस्था बनवा सकता है. जिसमें मौसम के आधार पर परिवर्तन भी आसानी से किया जा सकता है. और पशुओं को भी मौसम परिवर्तन के दौरान किसी तरह की दिक्कत नही होती हैं.
पशुओं का खान पान
पशुओं के विकास के लिए भोजन सबसे मुख्य स्रोत होता है. अगर किसान भाई के पास खाली खेत हैं तो उन्हें खेतों में छोड़कर खाना खिला सकता हैं. लेकिन व्यापार के तौर पर घर पर रखने के दौरान उन्हें उचित मात्रा में पोषक तत्व देना होता है. जिसे हरे चारे और सूखे चरें के रूप में दिया जाता है. इसके अलावा दुधारू पशुओं को अनाज दाना भी दिया जाता हैं.
बकरी पालन के दौरान कुछ महत्वपूर्ण बातें
बकरी पालन को शुरू करने के दौरान कई महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना सबसे जरूरी है. जिससे किसान भाई बकरी पालन के दौरान अधिक लाभ कमा सकता है.
उत्तम नस्ल का चुनाव
बकरी पालन के दौरान सबसे पहले पशु की नस्ल का चुनाव करना जरूरी होता है. ताकि उन्नत नस्ल का चयन कर किसान भाई कम समय में अधिक लाभ अर्जित कर सके. उन्नत नस्ल में बकरी की बारबरी, सिरोही, ब्लैक बंगाल, सोजत, जमनापरी और बीटल जैसी नस्लें शामिल हैं. इन सभी नस्ल की बकरियों से दूध और मॉस अच्छी मात्रा में प्राप्त होता है. और इन नस्ल की बकरियां प्रजनन के दौरान दो से तीन बच्चों को जन्म देती हैं. ये सभी नस्ल की बकरियां साल में लगभग दो बार प्रजनन की क्षमता रखती है. इन सभी नस्लों में सिरोही ब्रीड में सबसे ज्यादा मास की मात्रा पाई जाती है.
भारत में बकरियों की प्रमुख नस्लें इस प्रकार है :
1. ब्लैक बंगालः
इस प्रजाति की बकरियाँ पश्चिम बंगाल, झारखंड, असम एवं उड़ीसा में पायी जाती है। इनके शरीर पर काला, भूरा तथा सफेद रंग के छोटे बाल होते हैं हालांकि अधिकतर बकरियों में काले बाल होते हैं। इसका कद छोटा होता है। नर का दैहिक भार लगभग 20 किलोग्राम तथा मादा का भार 15-18 किलोग्राम होता है। इनमें 3-4 इंच आगे की ओर निकला हुआ सीधा सींग पाया जाता है। इसका शरीर गठीला होता है तथा आगे से पीछे की ओर ज्यादा चौड़ा व बीच में मोटा होता है। इसका कान छोटा, एवं आगे की ओर निकला रहता है।
इसकी प्रजनन क्षमता बहुत अच्छी है। यह लगभग 2 वर्ष में 3 बार बच्चा देती है तथा एक ब्यांत में 2 या 3 बच्चों को जन्म देती है। कुछ बकरियाँ एक वर्ष में दो बार भी बच्चे पैदा करती है तथा एक बार में 4-4 बच्चे देती है। मादा मेमना 8-10 माह की उम्र में वयस्क हो जाता है तथा यह लगभग 15-16 माह की उम्र में पहली बार बच्चे पैदा करती है। ब्लैक बंगाल बकरियाँ मांस उत्पादन हेतु बहुत उपयोगी तथा इनकी खाल भी उत्तम होती है। परन्तु ये बकरियाँ बहुत कम दूध (ब्यांत में 15-20 किलोग्राम) उत्पादित करती है। जन्म के समय बच्चों का औसत भार 1.0-1.2 किलोग्राम होता है।
2. जमुनापारीः
जमुनापारी भारत में पायी जाने वाली सबसे उँची तथा लम्बी बकरी है। यह उत्तर प्रदेश के इटावा जिला एवं गंगा, यमुना तथा चम्बल नदियों से घिरे क्षेत्र में पायी जाती है। एंग्लोनुबियन बकरियों के विकास में जमुनापारी नस्ल का विशेष योगदान रहा है। इसकी नाक उभरी हुई होती है जिसे ‘रोमन’ नाक कहते हैं। सींग छोटा एवं चौड़ा होता है। इसका कान 10-12 इंच लम्बा मुड़ा हुआ तथा लटकता रहता है। इसकी जाँघ के पीछे की ओर लम्बे घने बाल होते हैं। इसके शरीर पर सफेद एवं लाल रंग के लम्बे घने बाल पाये जाते हैं। नर का औसत दैहिक भार 70-90 किलोग्राम तथा मादा का भार 50-60 किलोग्राम तक हो सकता है। जन्म के समय बच्चों का औसत भार 2.5-3.0 किलो ग्राम होता है। ये बकरियाँ प्रतिदिन लगभग 1.5 से 2.0 किलोग्राम दूध देती है। यह नस्ल दूध तथा मांस उत्पादन दोनों के लिए ही ठीक है। बकरी साल में एक बार ब्याती है तथा आमतौर पर केवल एक ही बच्चा उत्पन्न करती है। यह प्रजाति मुख्यतः झाड़ियों एवं वृक्षों के पत्तों पर निर्भर रहती है। जमुनापारी बकरों का प्रयोग देश के विभिन्न स्थानों पर पायी जाने वाली अन्य बकरियों की नस्ल सुधारने हेतु किया जाता है।
3. बीटलः
बीटल नस्ल की बकरियाँ पंजाब के गुरदासपुर तथा इसके आस-पास के क्षेत्रों में उपलब्ध है। इसका शरीर भूरे रंग का होता है जिस पर सफेद काले रंग के धब्बे होते हैं। यह देखने में जमुनापारी जैसी लगती है परन्तु ऊँचाई एवं दैहिक भार की तुलना में यह जमुनापारी से छोटी होती है। इसका कान लम्बा तथा लटकता हुआ होता है। नाक उभरा हुआ है। इसके कान की लम्बाई एवं नाक का उभरापन जमुनापारी की तुलना में कम होता है। सींग बाहर एवं पीछे की ओर मुड़े रहते हैं। बकरे का दैहिक भार 55-65 किलोग्राम तथा बकरी का भार 45-55 किलोग्राम होता है। जन्म के समय वच्चों का भार 2.5-3.0 किलोग्राम होता है। इसका शरीर गठीला होता है तथा जाँघ के पिछले भाग पर अपेक्षाकृत कम घने बाल होते हैं। ये बकरियाँ प्रतिदिन लगभग 1.25-2.0 किलोग्राम दूध देती है। यह बकरी वर्ष में केवल एक बार ही बच्चे पैदा करती है तथा 60% बकरियाँ एक बार में केवल एक ही बच्चा देती है। बीटल बकरों का प्रयोग अन्य बकरियों की नस्ल सुधारने हेतु किया जाता है। बीटल बकरियाँ लगभग सभी प्रकार की जलवायु में उपयुक्त उपयुक्त पाई गई हैं।
4. बारबरीः
बारबरी उत्तर प्रदेश के आगरा, मथुरा एवं इसके आस-पास के क्षेत्रों में पाई जाती है। यह बकरी छोटे कद की होती है परन्तु इसका शरीर काफी गठीला होता है। शरीर पर छोटे-छोटे बाल पाये जाते हैं। शरीर पर सफेद के साथ भूरे या काले रंग के धब्बे पाए जाते हैं। कान बहुत छोटे होते हैं। नर का दैहिक भार 35-40 किलोग्राम तथा मादा का भार 25-30 किलो ग्राम होता है। अपने छोटे आकार के कारण यह आमतौर पर घर में ही रखी जा सकती है। इसकी प्रजनन क्षमता अत्यधिक है। यह 2 वर्ष में तीन बार बच्चों को जन्म देती है तथा एक ब्यांत में 2 या 3 बच्चों को जन्म देती है। इसका बच्चा करीब 8-10 माह की उम्र में वयस्क हो जाता है। इस नस्ल की बकरियाँ मांस तथा दूध उत्पादन हेतु उपयोगी हैं। बकरियाँ प्रतिदिन औसतन 1.0 किलोग्राम दूध देती है।
5. सिरोही
ये बकरियाँ राजस्थान के सिरोही जिले में पायी जाती है। यह गुजरात एवं राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्रों में भी मिलती हैं। इस नस्ल की बकरियाँ दूध उत्पादन हेतु पाली जाती है लेकिन मांस के लिए भी उपयोगी हैं। इसका शरीर गठीला एवं रंग सफेद, भूरा या इन दोनों रंगों का मिश्रण लिए हुए होता है। इसका नाक छोटा परन्तु उभरा हुआ है। कान लम्बा किन्तु पूंछ मुड़ी हुई होती है। पूंछ के बाल मोटे तथा खड़े हुए होते हैं। शरीर के बाल मोटे एवं छोटे आकार के होते हैं। यह वर्ष भर में एक ब्यांत द्वारा औसतन 1.5 बच्चे उत्पन्न करती है। इस नस्ल की बकरियों को चरागाहों के बिना भी पाला जा सकता है।
गर्भित कराने का समय
बकरी के अंदर साल में दो बार प्रजनन की क्षमता पाई जाती है. बकरी के बच्चे की उचित देखभाल की जाये तो बच्चा डेढ़ साल बाद प्रजजन के लिए तैयार हो जाता है. बकरी के प्रजनन के दौरान इसके बच्चों की मृत्यु दर ज्यादा पाई जाती है. जिसे पशुओं की उचित देखभाल कर कम किया जा सकता है. इसके लिए बकरियों का सही समय पर गर्भित होना जरूरी होता है.
बकरियों को सर्दी के मौसम में गर्भित कराने का सबसे उपयुक्त टाइम मध्य सितम्बर से नवम्बर और गर्मियों में मध्य अप्रैल से जून के शुरुआत तक का होता है. इस दौरान गर्भित कराने से बच्चों की मृत्यु दर में कमी देखने को मिलती है. क्यों इस दौरान गर्भित कराने पर पशुओं का प्रजजन उचित समय पर होता जिस दौरान तापमान सामान्य बना रहता हैं. और बच्चे अच्छे से विकास करते हैं. इसके बच्चों में ज्यादातर बारिश के मौसम में अधिक बीमारियाँ देखने को मिलती है. जबकि इस दौरान पशु के गर्भित होने पर उनका प्रजनन बारिश के मौसम में नही होता है.
प्रजनन के दौरान सुरक्षा
बकरी के पशुओं की मृत्यु दर को कम करने के लिए उनके प्रजनन के दौरान शुरुआत में बच्चों को पहला दूध जिसे खीस बोलते हैं. वो बच्चों को अच्छे से पिलाना चाहिए. इससे बच्चों में रोगों से लड़ने की क्षमता बढ जाती है. और उनका विकास अच्छे से होता है.
पशुओं का टीकाकरण
बकरी पालन के दौरान पशुओं में मुंहपका, पेट के कीड़े, खुरपका और खुजली का रोग प्रमुख रूप से देखने को मिलता है. पशुओं में ये सभी रोग बारिश के मौसम में अधिक देखने को मिलते हैं. जो पशुओं में बहुत ही तेजी से विकास करते हैं. इन सभी तरह के रोगों की रोकथाम के लिए पशुओं का टीका करण करवाना चाहिए. जो पशुओं की उम्र के हिसाब से अलग अलग वक्त पर किए जाते हैं.
पीपीआर
बारिश के मौसम के दौरान पीपीआर का टीका पशुओं को अगस्त के माह में लगवाना चाहिए. जो पशुओं को हर तीन से चार माह बाद लगता है. यह पशुओं में कई तरह की बिमारियों से बचाता है. अगर पशुपालक बकरी को खरीदता है तो ये पता कर लें की अभी तक पशु को पीपीआर का टिका लगा है या नही. अगर पशु को पीपीआर का टिका नही लगाया गया है तो पशु को तुरंत पीपीआर का टिका लगवा दें.
एफएमडी
पशुओं को एफएमडी का टीका साल में एक बार लगया जाता हैं. जिससे पशुओं में मुहपका और खुरपका की बीमारी देखने को नही मिलती. और पशुओं का विकास अच्छे से होता हैं.
डीवार्मिंग
पशुओं को दी जाने वाली डीवार्मिंग कोई टीका नही है, बल्कि ये एक दवा है जो पशुओं को खाने के साथ दी जाती है. इससे पशुओं के शरीर में पाए जाने वाले कीड़े नष्ट हो जाते हैं. इसका इस्तेमाल पशुओं के डॉक्टर की राय के अनुसार ही करना चाहिए.
एफ.एम.डी और एच.एस
एफ.एम.डी और एच.एस का टीका पशुओं को शुरुआत में ही लगाया जाता है. यह जब पशु की उम्र तीन महीने के आसपास होती है, तब पशु को दिया जाता है. उसके बाद दूसरी बार फिर से तीन से चार महीने बाद दिया जाता है. इसके लगवाने से पशु अच्छे से विकास करता है. और उसमें बीमारी की संभावना भी कम देखने को मिलती है.
बकरी पालन का लाभ
बकरी पालन के काफी लाभ देखने को मिलते हैं. जो सभी प्रत्यक्ष रूप से किसान भाई को फायदा पहुँचाते हैं. बकरी पालन के साथ साथ दुग्ध और ऊन (बकरी के बाल) की प्राप्ति होती है. जिनको बाजार में बेचकर किसान भाई बकरियों पर होने वाले खर्च आसानी से निकाल लेता है. इनके अलावा बकरी साल में दो बार बच्चों को जन्म देती है. और ये बच्चे डेढ़ साल बाद बच्चे देना शुरू कर देते हैं. इस तरह इनकी संख्या में काफी तेजी से बढ़ोतरी होती हैं. जिससे किसान भाई कुछ समय में ही कम पशुओं से बड़ा व्यवसाय शुरू कर सकता है.
बकरी का बाजार भाव दो सो से चार सो रूपये किलो के बीच पाया जाता हैं. अगर एक बकरी का वजन 10 किलो भी माना जाए तो एक बकरी की कीमत दो से चार हजार तक पाई जाती है. अगर किसान भाई साल भर में 30 बकरी बेचता हैं तो साल में एक लाख के आसपास आसानी से कमाई कर लेता है.
बकरी पालन के दौरान रखी जाने वाली सावधानियां
बकरी पालन के दौरान अधिक उत्पादन लेने के लिए कई तरह की सावधानियां रखनी होती हैं. ताकि पशुओं का जल्दी से विकास हो सके.
1-बकरियों को बेचने के दौरान कभी भी वजन का अंदाजा नही लगाना चाहिए. इसलिए जानकारी के अभाव में किसान भाई अपने पशु को बिना वजन किये ही बेच देता है. इससे उसे काफी ज्यादा आर्थिक हानि उठानी पड़ जाती है. इसलिए पशु की बिक्री वजन करवाकर ही करनी चाहिए.
2-बकरियों के रहने का स्थान ऊंचाई पर बनाए ताकि बारिश के वक्त पशुओं के बाड़े में पानी का भराव ना हो पाए.
3-बाड़े के निर्माण के दौरान उसे खुला और हवादार बनाना चाहिए. ताकि गर्मी के मौसम में पशुओं को परेशानी का सामना ना करना पड़े.
4-बड़े की साफ़ सफाई रोज़ करनी चाहिए. इससे पशुओं में बीमारी काफी कम देखने को मिलती है. और पशुओं पर खर्च भी कम आता है.
5-पशुओं को हमेशा पौष्टिक भोजन देना चाहिए. इससे पशुओं का विकास अच्छे से होता है.
6-पशुओं में किसी तरह की बीमारी ना फैले इसके लिए समय समय पशुओं का टीकाकरण करवाना चाहिए.
7-पशुओं को उनकी उम्र के हिसाब से अलग अलग रखना चाहिए. इससे उन्हें दिया जाने वाला भोजन उचित पशु को उचित मात्रा में मिलता रहे.
8-बकरी के छोटे बच्चों को जंगली जानवरों से बचाकर रखा जाना जरूरी है. इसके बच्चों को कुत्ते भी खा जाते हैं.
9-किसी पशु में कोई ख़ास रोग दिखाई दे तो उसकी सलाह तुरंत पशु चिकित्सक से लेनी चाहिए. इसके अलावा रोगग्रस्त पशु को बाकी पशुओं से अलग कर दें ताकि अन्य पशुओं में रोग का प्रसार अधिक ना हो सके. अगर पशु मर जाये तो उसे दूर ले जाकर मिट्टी में दबा दें
गांव में बकरी पालन करके हर महीने कमाता है 10 लाख रुपए...
महाराष्ट्र में एक शख्स है, जो बकरी पालकर लाखों रुपये कमा रहा है. खास बात ये है कि इस शख्स ने यह काम करने के लिए अमेरिका में लगी नौकरी भी छोड़ दी है. आइए जानते हैं इस शख्स की कहानी और कैसे ये शख्स बकरियों से लाखों रुपये कमाता है.
भारत में पढ़ाई करने के बाद लोग बाहर चले जाते हैं और वहां हमेशा के लिए बस जाते हैं. हालांकि एक शख्स ने इसके विपरीत काम किया. इस शख्स ने अमेरिका में वैज्ञानिक की नौकरी छोड़ भारत आने का फैसला किया और खुद का व्यापार शुरू किया.
महाराष्ट्र के बुलढाड़ा जिले के रहने वाले डॉ. अभिषेक भराड ने अमेरिका में प्रतिष्ठित नौकरी छोड़कर गांव लौटकर बकरी पालने का काम शुरू किया और आज लाखों रुपये का कारोबार करते हैं.
अभिषेक ने पंजाबराव देशमुख कृषि विद्यापीठ से 2008 में बीएससी करने के बाद अमेरिका से लुइसियाना स्टेट यूनिवर्सिटी से मास्टर्स (एमएस.) और फिर वहीं से अपनी पीएचडी पूरी की.
पीएचडी के बाद उन्हें वैज्ञानिक के तौर पर अमेरिका में ही नौकरी मिल गई, हालांकि उन्होंने 2 साल बाद नौकरी छोड़ दी. अमेरिका से अपने गांव लौटकर उन्होंने बकरी पालन का काम शुरू किया.
अभिषेक ने 120 बकरियों के साथ इस एग्री बिजनेस की शुरुआत की और धीरे-धीरे ये संख्या दोगुना हो गई. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक आज उनके पास 350 से भी ज्यादा बकरियां हैं.
उन्होंने बकरियों के चारे के लिए 6 एकड़ की जमीन पर मक्का और बाजरा जैसी फसलें भी बोई हैं. ताकि बकरी को अच्छा चारा मिल सके. उन्हें एक बकरी बेचने पर करीब 10 हजार रुपये की कमाई होती है और इस तरह वो हर महीने 10 लाख रुपये से अधिक कमा लेते हैं.
साथ ही अभिषेक गांव के लोगों को शिक्षित करने के लिए प्रयास कर रहे हैं
और एक ग्रुप बनाकर वैज्ञानिक तरीके से खेती कराने पर जोर दे रहे हैं.
आपका दिन शुभ हो ---और कोई सवाल हो तो टिप्पणी करें --ध्न्यावाद

शनिवार, 22 फ़रवरी 2020

भारत में सिक्का ना लेने पर क्या सजा हो सकती है?

वर्तमान में भारत में सिक्का बनाने का काम सिक्का अधिनियम, 2011 के अनुसार किया जाता है. ध्यान रहे कि भारत में नोटों को प्रिंट करने का काम भारतीय रिज़र्व बैंक; भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के प्रावधानों के अनुसार करता है जबकि सिक्के वित्त मंत्रालय के द्वारा बनवाए जाते हैं. सिक्का अधिनियम, 2011 जम्मू-कश्मीर सहित पूरे भारत में लागू है. भारत में कुछ राज्यों में दुकानदार और लोग सिक्के लेने से मना कर रहे हैं. आइये जानते हैं कि क्या ऐसा करना अपराध की श्रेणी में आता है?
JUL 19, 2019 15:56 IST
facebook Iconfacebook Iconfacebook Icon
Indian coins
Indian coins
दरअसल रिज़र्व बैंक और वित्त मंत्रलाय के पास पूरे देश से ख़बरें आ रहीं हैं कि दुकानदार और ग्रहकों के साथ बैंक भी सिक्के लेने से मना कर रहे हैं. इस तरह लोग जाने अनजाने एक जुर्म कर रहे हैं जो कि अपराध की श्रेणी में आता है.
भारतीय रिजर्व बैंक भारत का सर्वोच्च मौद्रिक प्राधिकरण है. यह 2 रुपये से लेकर 10,000 रुपये तक के नोटों को प्रिंट करने के लिए अधिकृत है. एक रुपये का नोट आरबीआई के बजाय वित्त मंत्रालय द्वारा मुद्रित किया जाता है और उस पर वित्त सचिव के हस्ताक्षर होते हैं.
यदि कोई व्यक्ति किसी भी सिक्के (यदि सिक्का चलन में है) को लेने से मना करता है तो उसके खिलाफ एफआइआर दर्ज कराई जा सकती है. उसके खिलाफ भारतीय मुद्रा अधिनियम व आइपीसी की धाराओं के तहत कार्रवाई होगी. मामले की शिकायत रिजर्व बैंक में भी की जा सकती है.
सिक्का ना लेने पर सजा और जुर्माना
सिक्का अधिनियम, 2011 की धारा 6 के तहत रिजर्व बैंक द्वारा जारी सिक्के भुगतान के लिए वैध मुद्रा हैं बशर्ते कि सिक्के को जाली नहीं बनाया गया हो.
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 489ए से 489इ के तहत नोट या सिक्के का जाली मुद्रण, जाली नोट या सिक्के चलाना और सही सिक्कों को लेने से मना करना अपराध है. इन धाराओं के तहत किसी विधिक न्यायालय द्वारा आर्थिक जुर्माना, कारावास या दोनों का प्रावधान है.
अगर कोई व्यक्ति वैध सिक्के को लेने से मना करता है तो आप तुरंत उसका वीडियो बनायें और पास के थाने में शिकायत दर्ज कराएँ. पुलिस को उस व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाही करनी ही पड़ेगी.
अफवाह फ़ैलाने की सजा;
जो लोग सही सिक्के को भी नकली बताकर अफवाह फैलाते हैं उनके लिए भी सजा का प्रावधान है. अफवाह फैलाने वालों पर आरबीआई के नियम के अलावा आईपीसी की धारा 505 के तहत भी मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई की जा सकती है. इसमें अधिकतम 3 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है जबकि सिक्के को गलाना एक अपराध है जिसमें 7 साल की सजा हो सकती है.
कौन से सिक्के बंद हो गये हैं;
भारत सरकार के वित्त मंत्रालय ने 30 जून 2011 से बहुत ही कम वैल्यू के सिक्के जैसे 1 पैसे, 2 पैसे, 3 पैसे, 5 पैसे, 10 पैसे, 20 पैसे और 25 पैसे मूल्यवर्ग के सिक्के संचलन से वापस लिए गए हैं. इसलिए ये वैध मुद्रा नहीं हैं और कोई भी दुकानदार और बैंक वाला इन्हें लेने से मना कर सकता है.
नोट: ध्यान रहे कि 50 पैसा अभी भारत में वैध सिक्का है और दुकानदार और पब्लिक उसको लेने से मना नहीं कर सकते हैं.
तो आप समझ गये होंगे कि वैध सिक्कों को ना लेना एक अपराध है क्योंकि सिक्का भारत सरकार के द्वारा जारी किया गया आदेश होता है. यदि कोई व्यक्ति या संस्था सिक्कों को लेने से मना करती है तो इसका सीधा मतलब है कि वह सरकार के आदेश को मानने से इंकार कर रहा है. इसलिए उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जाएगी.
NEXT STORY

प्राचीन भारतीय मुद्राओं का क्या इतिहास है और इनकी वैल्यू कितनी होती थी?

FEB 22, 2020 12:58 IST
Indian Currency History
Indian Currency History
मनुष्य के बहुत से अविष्कारों में से एक है, रुपये या मुद्रा का अविष्कार. इस अकेले अविष्कार ने पूरी दुनिया का नक्सा ही बदल दिया है. रुपये के विकास ने ना केवल पूरी दुनिया में आर्थिक और सामाजिक तत्रों का विकास किया है बल्कि लोगों के जीने के तरीकों को ही बदल दिया है.
इसी मुद्रा को लेकर समाज में कई तरह की कहावतें भी प्रचलित हुईं हैं जैसे, सोलह आने सच, मेरे पास फूटी कौड़ी भी नहीं है, मेरा नौकर एक धेले का भी काम नहीं करता है और चमड़ी जाए पर दमड़ी ना जाये.
लेकिन क्या आजकल की पीढ़ी यह जानती है कि कौड़ी, दमड़ी, धेला, पाई और सोलह आने की वैल्यू कितनी होती थी? यदि नहीं तो आइये इस लेख में इसके बारे में पूरी जानकारी लेते हैं.
आइये जानते हैं कि रुपये का अविष्कार कैसे हुआ? (History of Indian Currency)
मानव सभ्यता के विकास के प्रारंभिक चरण में वस्तु विनिमय चलता था लेकिन बाद में लोगों की जरूरतें बढ़ी और वस्तु विनिमय से कठिनाइयाँ पैदा होने लगीं जिसके कारण कौड़ियों से व्यापार आरम्भ हुआ जो कि बाद में सिक्कों में बदल गया.
वर्तमान में जो रुपया चलता है दरअसल यह कई सालों के बाद रुपया बना है. सबसे पहले चलन में फूटी कौड़ी थी जो बाद में कौड़ी बनी. इसके बाद;
A. कौड़ी से दमड़ी बनी   
B. दमड़ी से धेला बना 
C. धेला से पाई बनी  
D. पाई से पैसा बना 
E. पैसे से आना बना 
F. आना से रुपया बना और अब क्रेडिट कार्ड और बिटकॉइन का जमाना आ गया है.
प्राचीन मुद्रा की एक्सचेंज वैल्यू इस प्रकार थी;
256 दमड़ी =192 पाई=128 धेला =64 पैसा =16 आना =1 रुपया 
अर्थात 256 दमड़ी की वैल्यू आज के एक रुपये के बराबर थी.
History-indian-coins
अन्य मुद्राओं की वैल्यू इस प्रकार है; (Exchange Value of Old Indian Currency)
I. 3 फूटी कौड़ी (Footie Cowrie) =1 कौड़ी 
II.10 कौड़ी (Cowrie) =1 दमड़ी 
III. 2 दमड़ी (Damri) =1 धेला 
IV. 1.5 पाई (Pai) =1 धेला 
V. 3 पाई =1 पैसा (पुराना)
VI. 4 पैसा =1 आना 
ek-anna
VII.16 आना (Anna)=1 रुपया 
VIII.1 रुपया =100 पैसा 
इस प्रकार ऊपर दिए गये पुराने समय की मुद्राओं की वैल्यू से स्पष्ट है कि प्राचीन समय में मुद्रा की सबसे छोटी इकाई फूटी कौड़ी थी जबकि आज के समय में यह इकाई पैसा है. 
भारत में कौन से सिक्के चलन से बाहर हो गये हैं?
भारतीय वित्त मंत्रालय ने 30 जून 2011 से बहुत ही कम वैल्यू के सिक्के जैसे 1 पैसे, 2 पैसे, 3 पैसे, 5 पैसे, 10 पैसे, 20 पैसे और 25 पैसे मूल्यवर्ग के सिक्के संचलन से वापस लिए गए हैं अर्थात अब ये सिक्के भारत में वैध मुद्रा नहीं हैं. इसलिए कोई भी दुकानदार और बैंक वाला इन्हें लेने से मना कर सकता है और उसको सजा भी नहीं होगी.
नोट: ध्यान रहे कि भारत में 50 पैसे का सिक्का अभी वैध सिक्का है इस कारण बैंक, दुकानदार और पब्लिक उसको लेने से मना नहीं कर सकते हैं. यदि कोई 50 पैसे का सिक्का लेने से मना करता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है.
उम्मीद है कि इस लेख में पढ़ने के बाद वर्तमान पीढ़ी के बहुत से बच्चे अब प्राचीन मुद्राओं को मुहावरों से हटकर भी पहचान सकेंगे.