AK-47 राइफल से तो आप ठीक से परिचित होंगे, लेकिन आप शायद ही जानते होंगे कि आखिर इसके पीछे की कहानी क्या है? इसे किसने बनाया होगा और क्यों बनाया? दरअसल जितनी शानदार AK-47 राइफल है उतनी ही रोचक उसके इजात होने की कहानी है। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि 106 देशों की सेना की ओर से इस्तेमाल की जाने वाली AK-47 का ब्लू प्रिंट किसी प्रयोगशाला और कई वैज्ञानिकों के बीच तैयार नहीं हुआ था, जबकि अस्पताल के बैड पर पड़े बीमार व्यक्ति के दिमाग में तैयार हुआ था। कई सेनाओं के लिए एक स्तंभ का काम करने वाली AK-47 का आविष्कार मिखाइल कलाश्निकोव ने किया था, जिनके देहांत को हाल ही में दो साल हो गए हैं।
मिखाइल कलाश्निकोव के नाम से ही इस स्वचालित रायफल का नाम रखा गया है, और यह दुनिया का सबसे ज्यादा प्रचलित और व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला हथियार है। तुलनात्मक रूप से इसका निर्माण भी अन्य बंदूकों के मुकाबले सस्ता है, इसके साथ ही यह विश्वसनीय है और इसकी मरम्मत भी आसान है। बताया जाता है कि मिखाइल ने कई सालों तक इसका पेटेंट भी नहीं करवाया था और ना ही इससे ज्यादा पैसे कमाए थे।
मिखाइल कलाश्निकोव का जन्म 10 नवम्बर 1919 को रूस (USSR) में अटलाई प्रांत के कुर्या गांव में एक बड़े परिवार में हुआ था। 1938 में विश्व युद्ध की आशंका के चलते उन्हें “लाल-सेना” से बुलावा आ गया, और कीयेव के टैंक मेकेनिकल स्कूल में, उन्होंने काम किया और इसी दौरान उनका तकनीकी कौशल उभरने लगा था। साल 1941 में एक भीषण युद्ध के दौरान कलाश्निकोव बुरी तरह घायल हुए और उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। अस्पताल के बिस्तर पर बिताए 6 महीनों में कलाश्निकोव ने अपने दिमाग में एक सब-मशीनगन का रफ डिजाइन तैयार कर लिया था। वह वापस अपने डिपो में लौटे और उन्होंने उसे अपने नेताओं और कामरेडों की मदद से मूर्तरूप दिया।
जून 1942 में कलाश्निकोव की सब-मशीनगन वर्कशॉप में तैयार हो चुकी थी, इस डिजाइन को रक्षा अकादमी में भेजा गया। हालांकि इतनी आसानी से तकनीकी लोगों और वैज्ञानिकों ने कलाश्निकोव पर भरोसा नहीं किया और सन 1942 के अंत तक वे सेंट्रल रिसर्च ऑर्डिनेंस डिरेक्टोरेट में ही काम पर लगे रहे। 1944 में कलाश्निकोव ने एक “सेल्फ़ लोडिंग कार्बाइन” का डिजाइन तैयार किया, 1946 में इसके विभिन्न टेस्ट किए गए और अन्ततः 1949 में इसे सेना में शामिल कर लिया गया। इसके लिए उन्हें कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया।
AK-47 नाम के पीछे का रहस्य- ये मिखाइल का ऑटोमैटिक हथियार है, इसलिए इसका नाम दिया गया आवटोमैट कलाशनिकोवा, जिसे बाद में ऑटोमैटिक कलाश्निकोव कहा जाने लगा। शुरुआती मॉडल में कई दिक्कतें थीं, लेकिन साल 1947 में मिखाइल ने आवटोमैट कलाशनिकोवा मॉडल को पूरा कर लिया। बोलने में मुश्किल होने की वजह से इसे संक्षिप्त कर AK-47 कहा जाने लगा। AK के सिर्फ AK-47 मॉडल ही नहीं है अब तो इसके कई मॉडल बाजार में उपलब्ध है, जिसमें AK-74, AK-103 आदि शामिल हैं।
क्यों खास है एके-47: AK-47 वह हथियार है, जिससे पानी के अंदर से हमला करने पर भी गोली सीधे जाती है। गोलियों की गति इतनी तेज होती है, कि पानी का घर्षण भी उसे कम नहीं कर पाता है। यह बेहद सिम्पल राइफल है और बहुत आसानी से इसका निर्माण किया जा सकता है, इसलिए दुनिया में यह एक मात्र ऐसी राइफल है, जिसकी सबसे ज्यादा कॉपी की गई है। यह एक मात्र ऐसा हथियार है, जो हर प्रकार के पर्यावरण में चलाया जा सकता है और एक मिनट के अंदर इसे साफ किया जा सकता है। इस राइफल में पहले की सभी राइफल तकनीकों का मिश्रण है। अगर विस्तार से देखें तो इसके लोकिंग डिजाइन को एम1 ग्रांड राइफल से लिया गया है। इसका ट्रिगर और सेफ्टी लोक रेमिंगटन राइफल मॉडल8 से लिया गया है, जबकि गैस सिस्टम और बाहरी डिजाइन एस.टी.जी.44 से लिया गया है।