तब ना वेद थे, ना उपनिषद, ना मिस्र के देवता थे, ना पारसियों या मोहनजोदड़ो के, तब न संस्कृत थी न हिब्रू, दरअसल तब कोई मानवीय भाषा ही नहीं थी। अजी भाषा तो छोड़िये तब मानव ही नहीं था, और मानव के पूर्वज वनमानुष भी नहीं थे, यहाँ तक की वानर भी नहीं…
वे धर्म तब से हैं, आज भी है, और मानव रहे ना रहे वे ही धर्म है जो सनातन है — जिन्हें ना किसी वेद, पुराण, कुरान, बाईबल की जरुरत है, ना किसी ख़ुदा-भगवान की।
मातृधर्म
पितृधर्म
भ्रातृधर्म
प्रेमधर्म
राजधर्म
मित्रधर्म
धर्म ये ही काम के हैं
(अगर आप भी बहुतों की तरह अपने सम्प्रदाय को दूध का धुला और बाकी सब को आततायी समझने की बीमारी से ग्रसित हैं तो अन्यों के बारे में सोचकर ही निष्कर्ष निकालिये फिर ईमानदारी से उसे अपने वाले पर फिट कीजिये )
तो हवा-हवाई अप्रमाणिक बातों पर आधारित अंधविश्वासों की पोथियाँ दुनिया का क्या करवा रहीं हैं सो हम सभी जानते हैं।
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