सब्सिडी। 25 रुपये किलो पर बिकने वाले गेहूं पर 90% सब्सिडी दे कर सरकार उसे बेचती है 3 रुपये किलो पर।
यहां शुरू हो जाती है धांधली। अब इस 3 रुपये किलो वाले गेहूं मे से 90% से ज्यादा गेहूं मिल मे पहुंच जाता है। उसका आटा बना कर मिल मुनाफा कमा लेती है।
यदि सरकार इस धांधली को रोकने के लिए राशन दुकाने बंद कर दे तो जनता हल्ला मचाने लगती है। हम भी समझ लेते है के सरकार गरीबो के खिलाफ है।
होता क्या है कि रोज समाचारों को देख कर, उन्हें पढ़ कर जैसे टोन मे वो पढ़ा गया है उसे ही सच मानने लगते है।
किसी भी अच्छे संतुलित देश मे सब्सिडी दी नहीं जाती। जहा पर दी जाती है वहां की अर्थव्यवस्था लचर हो जाती है। वेनेजुएला, टर्की, रूस, आप एक बार खुद से पढ़ेंगे तो जानेंगे।
मेरा ये पर्सनली मानना है कि सब्सिडी देश को आगे बढ़ाने की बजाय पीछे ढकेलती है।
रायपुर के मित्र से कुछ समय पहले मिला। वहां पर खेत मे बुवाई करने के लिए मजदूर आसानी से मिल जाते थे। 200 रुपये प्रतिदिन पर वो मजदूर 5-6 घंटे काम करता।
फिर सरकार ने मनरेगा योजना मे उनकी दिहाड़ी 300 तक बढ़ा दी। और दाल चावल 2-3 रुपये किलो पर मुहैया कर दिया। अब उस मजदूर को काम करने की जरूरत ही नहीं रही। हफ्ते मे एक दिन काम करते और महीने भर का राशन घर पे। बचे हुए पैसे बचत मे नही बलके शराब मे जाने लगी। खेत के मालिक अब दवाई छिड़क कर खरपतवार नियंत्रित करने लगे और सब कामों के लिए मशीन आने लगी। 1-2% समझ दार मजदूर भले ही पैसे बचा रहे हो, 98% की यही कहानी है देश भर मे।
मेरा मानना है सब्सिडी कतई अच्छी नहीं। ये अंततोगत्वा देश को पीछे ही धकेलने वाली है।
अर्थव्यवस्था पर जो भी सामग्री है पढ़िए। आप को मेरा कहना शायद कुछ समझ आ जाए!
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