क्योंकि उनके यहां सरकारी अस्पतालों में जाने वाले मरीजों को वहां के स्टाफ की गालियां नहीं खानी पड़ती और स्टाफ के लोग से भी जो पूछते हैं अगर उनको पता होता है, तो बता देते हैं ना कि यह कहते हैं कि "हम यहां यही करने बैठे हैं?"।
वहां के अस्पतालों के जांच उपकरण भी ज्यादातर काम करने वाले होते हैं ऐसा नहीं होता कि जो सस्ती जाते हैं वहां हो जाती हैं और महंगी जांचे बाहर लिख दी जाती हैं।
उनके यहां सरकारी दफ्तरों में भी एक आम कर्मचारी के लिए और सबसे बड़े अधिकारी के लिए एक ही टॉयलेट होता है, यह नहीं कि बड़े अधिकारी का चमचम आता रहता है और बाकियों का गंध से भरा रहता है।
क्योंकि वहां नालियों के किनारे चुना केवल तब नहीं पड़ता जब कोई नेता आने वाला हो।
क्योंकि अमेरिका के सिस्टम में ज्ञानवान नौजवान किसी कोचिंग में ₹12000 के वेतन पर नहीं पढ़ात और हल्का ज्ञान रखने वाले सरकारी स्कूलों में 50000 वेतन नहीं पाते।
उनके यहां धार्मिक सहिष्णुता दिखाने के लिए किसी खास धार्मिक वर्ग के धर्मगुरुओं को जनता की गाढ़ी कमाई से वेतन नहीं दिया जाता और उसके बाद भी धर्मनिरपेक्षता का ढिंढोरा भी कोई नहीं पीटता।
उनके यहां अंडमान निकोबार द्वीपसमूह में अंग्रेजों से लड़कर हजारों कठोर यातनाएं सहने वाले किसी सावरकर को गालियां नहीं दी जाती और ना किसी लॉर्ड माउंटबेटन को आजादी के बाद भी पहला गवर्नर जनरल बनाया जाता है।
उनके यहां अगर किसी को बिजनेस करने के लिए लोन चाहिए होता है, तो उसके लिए उसे बैंक मैनेजर की जी हुजूरी नहीं करनी पड़ती।
उनके यहां उच्च पदों पर वह व्यक्ति पहुंचता है जिसके अंदर योग्यता ज्यादा होती है , ना कि वह व्यक्ति पहुंचता है जिसके पास पैसा ज्यादा होता है।
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