तस्वीर में आप एक टमाटर के पौधे को देख रहे होंगे, शायद किसी यात्री ने टमाटर के बीज को ट्रेन से फेंक दिया होगा। यह पौधा मिट्टी का छाती फार कर नहीं बल्कि पत्थरों को सीना चीरकर बाहर आया है।
जब यह और भी नन्हा सा होगा, तब शताब्दी और राजधानी जैसे तूफान से भी तेज दौड़ती ट्रेन के बिल्कुल पास से गुजरते हुए भी इसमें सिर्फ बढ़ना सीखा और बढ़ते बढ़ते आखिरकार इसने एक टमाटर को जन्म भी दे दिया।
इस पौधे के न हाथ है, न पाव, न है दिमाग है, और तो और जीवित रहने के लिए कम से कम मिट्टी और पानी तो मिलना चाहिए ही था जो इस का हक भी था। लेकिन इस पौधे ने बिना जल, बिना मिट्टी के, बिना किसी सुविधा के आपने आप को बड़ा किया और फला फूला, और जो इस पौधे के जीवन का उद्देश्य एक और फल को देना था, वो उपदेश इसने पूरा किया। हम इंसानों के पास तो हाथ है, पाव है, दिमाग भी है, उसके बाद भी यदि हम जीवन में अपने आप को कमजोर मानकर, जीवन को सही प्रकार से, जो हमारे जीवन का उद्देश्य है, इस प्रकार से नहीं जीते हैं इस जीवन में आने का कोई औचित्य बचता ही नहीं है।
जिन लोगों को लगता है कि जीवन में हम तो असफल हो गए हैं हम तो जीवन मैं कुछ नहीं कर सकते, हम तो बस अब बर्बाद हो ही चुके हैं, तो उन्हें इस टमाटर के पौधे से कुछ सीख लेनी चाहिए। असली जीवन का नाम ही लगातार संघर्षों की कहानी हैं
चल उठ बांध कमर क्यों डरता
है फिर देख खुदा क्या करता हैं✊
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