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बुधवार, 25 अक्टूबर 2023

ज़िंदगी से अपरिचित फिर भी जिंदगी

भाइयो और बहनों,

मेरी एक सलाह है कि कुत्तों से सावधान रहना । ये कुत्ते बड़े ताकतवर होते हैं । ऐसा मैं क्यों कह रहा हूं, इसके पीछे भी एक कारण है ।

आज सवेरे सवेरे एक बड़ा दुखद समाचार मिला । "बाघ बकरी" चाय के मालिक पराग देसाई का असामयिक निधन हो गया । वे मात्र 49 वर्ष के थे । जब समाचार विस्तार से सुना तो पता चला कि उनकी मौत का कारण ब्रेन हेमरेज था । अब आप कहेंगे कि इसका कुत्तों से क्या संबंध है जो आप खामखां कुत्तों को बदनाम कर रहे हैं । पर वास्तव में उनकी मौत का कारण आवारा कुत्ते ही हैं । मैं आपको समझाने का प्रयास करता हूं ।

15 अक्टूबर को वे सुबह सुबह घूमने निकले थे कि उन्हें मौहल्ले के कुछ कुत्तों ने घेर लिया । वैसे भी अभी कुत्तों का "सीजन" चल रहा है और ये आवारा कुत्ते अपनी लालची निगाहें गड़ाए अपने "शिकार" की फिराक में बीच चौराहे पर बैठे रहते हैं । उन्हें बस दो ही चीजों से प्यार होता है । एक तो सूखी हड्डी से जिसे वे चबा चबाकर अपना टाइम पास करते रहते हैं और दूसरी कुतिया से जिसके लिए वे अपने संगी साथियों से भी भिड़ जाते हैं । दूसरा वाला कारण तो दो पैर के कुत्तों में भी पाया जाता है क्योंकि वे छोटी छोटी बच्चियों तक को नोंच डालते हैं । पर हम अभी चार पैरों वाले कुत्तों की बात कर रहे हैं ।

तो जब कुत्ते को न तो सूखी हड्डी मिलती है और न कुतिया, तो वह हिंसक ही बनेगा , और क्या बनेगा ? इस देश में बहुत सारे लिबरल्स ने यह नैरेटिव गढ दिया है कि जब लोगों को रोजगार नहीं मिलता है , चिकन मटन नहीं मिलता है , तब वह आतंकवादी बनता है । इसमें उस व्यक्ति का कोई दोष नहीं है, सारा दोष सरकार का है । और वह भी धर्म निरपेक्ष सरकार का नहीं केवल साम्प्रदायिक सरकार का है । लिबरल्स की नजर में ये साम्प्रदायिक सरकार आतंकवादियों से भी अधिक बुरी हैं इसलिए वे इसे उखाड़ फेंकने के लिएकैसे कैसे हथकंडे अपना लेते हैं । यद्यपि जब उन्हें कहा जाता है कि बेचारे कश्मीरी पंडितों का तो सब कुछ छीन लिया गया और उन्हें मारकाट कर निर्वासित कर दिया गया पर वे तो कभी आतंकवादी नहीं बने , तब ये लिबरल्स बड़ी बेशर्मी से इसे प्रोपेगेंडा कह कर पतली गली से निकल लेते हैं । यही इनका दोगलापन है ।

तो, मौहल्ले के सभी आवारा कुत्ते आवारा लड़कों की तरह बीच चौराहे पर अपना अड्डा जमाकर बैठे हुए थे और मस्तियाँ कर रहे थे । इसी बीच में बाघ बकरी वाले पराग देसाई जी उधर से निकल रहे थे । इस देश की गजब परंपरा है कि जो उद्योगपति देश के हजारों लोगों को रोजगार देते हैं , सरकारों को करोड़ों रुपया कर के रूप में देते हैं , राजनीतिक दलों को करोड़ों का चंदा देते हैं , उन पर कुछ कुत्ते सदैव भौंकते ही रहते हैं । ये अलग बात है कि ये कुत्ते बाद में उनके मकान में जाकर उनके चरणों में लोटकर उनके तलवे चाटते रहते हैं पर पब्लिक में उनको गालियां निकालते रहते हैं । तो इसी की देखा देखी ये आवारा कुत्ते भी "सेठजी" को देखकर भौंकने लगे । कुत्तों को भौंकते देखकर सेठ जी घबरा गये और भागने लगे । कुत्तों की एक विशेषता यह भी होती है कि जब उनके भौंकने से कोई आदमी डरकर भागने लगता है तो ये कुत्ते उस पर टूट पड़ते हैं । मगर जब वह इंसान इन कुत्तों के सामने सीना तानकर खड़ा हो जाता है तो ये कुत्ते या तो दुम दबा लेते हैं या किसी कोर्ट में हलफनामा देकर माफी मांग लेते हैं ।

सेठ जी भागे तो कुत्तों में और अधिक जोश आ गया , वे भी उनके पीछे भागे । इससे सेठजी घबरा गये और घबराहट में वे वहीं पर गिर पड़े और उन्हें सिर में गंभीर चोटें आईं । ब्रेन हेमरेज से उनकी मृत्यु हो गई । उनकी मौत पर सभी कुत्तों ने ऐसे ही जश्न मनाया जैसे हमास के बर्बर हमले में महिलाओं और बच्चों की नृशंस हत्या पर कुछ कुत्तों ने जश्न मनाया था ।

कुत्तों को किसी का कोई भय नहीं है । जो बेशर्म है वह क्यों डरेगा ? डरता तो वह है जिसके पास खोने को कुछ हो । मजे की बात यह है कि देश के कानून , सुप्रीम कोर्ट के फैसले और पशु प्रेमियों के आंदोलन कुत्तों के ही पक्ष में हैं । कुत्ता चाहे तो इंसान को मार सकता है, उसका बाल भी बांका नहीं होगा क्योंकि कानून ऐसे ही हैं और कुत्ता प्रेमी भी उसके साथ खड़े नजर आते हैं । मगर इंसान कुत्ते का बाल भी बांका नहीं कर सकता है क्योंकि इंसान के साथ कोई इंसान खड़ा नजर नहीं आता है । लगता है कि सब लोग कुत्ते और कुत्ता प्रेमियों से डरते हैं ।

मजे की बात देखिये कि इस देश में पशु प्रेमी वे हैं जो रोज बीफ, चिकन, मटन खाते हैं । आतंकवाद के पैरोकार लोग मानवाधिकारों के संरक्षक बने हुए हैं । कट्टर मज़हबी लोग धर्म निरपेक्षता का चोला ओढ़कर बैठे हुए हैं । सैफई में बॉलीवुड की नचनिया बुलवाकर 300 करोड़ रुपए फूंकने वाले "समाजवादी" बने हुए हैं । "ला विटां" का पर्स जो लगभग 1.5 लाख रुपए का आता है , 50000 रुपए का स्कॉर्फ गले में डाले , 1 लाख रुपए के जूते पहनने वाली सांसद "गरीबों की राजनीति" करती पाई जाती है । सैकड़ों बार निर्वाचित सरकारों को बर्खास्त करने वाले "लोकतंत्र के रक्षक" करार दिये जाते हैं । अपने विरुद्ध एक भी शब्द नहीं सुनने वाले "अभिव्यक्ति के झंडाबरदार" समझे जाते हैं । चीन का माल खाकर पत्रकारिता करने वाले दलाल पत्रकार "निर्भीक, सच्चे और साहसी" कहे जाते हैं । और मजे की बात यह है कि इन पर उंगली उठाने वालों को "भक्त" का तमगा दे दिया जाता है ।

अब प्रश्न आता है कि इन आवारा कुत्तों का कोई क्या करे ? मेरा कहना है कि खबरदार जो इनके विरुद्ध कुछ विचार भी किया तो । हमारी कॉलोनी में भी आठ दस आवारा कुत्तों का एक "दल" बना हुआ है । जितने भी "कुत्ते" हैं वे सब "झुंड" या "दलों" में इकठ्ठे रहते हैं । उन्हें पता है कि वे अकेले जिंदा नहीं रह पायेंगे इसलिए वे झुंड में ही रहते हैं । उन आठ दस "कुत्तों" से पूरा मौहल्ला ही नहीं पूरा देश भी डरता है । इन कुत्तों को "पालने वाले" भी हमारे ही बीच में रहते हैं । एक दिन इन कुत्तों ने एक आठ दस साल की बेबी को काट लिया । इस पर जब उस बेबी के पापा ने ऐतराज जताया तो कुत्तों के बजाय उन्हें पालने वाली एक "कुत्ता प्रेमी औरत" भौंकी । पांच दिन बाद तो उन सज्जन के पास एक आदरणीया पशु प्रेमी सांसद का पत्र आ गया "खबरदार, मेरे कुत्तों को हाथ लगाया तो" । और नगर निगम जयपुर से एक नोटिस भी आ गया । बेचारे , कलेजे पर पत्थर बांधकर रह गये ।

मेरी तो आपसे एक ही सलाह है कि कुत्ते सर्वशक्तिमान होते हैं । अत: इनसे पंगा ना लें । कहने को तो संविधान "सुप्रीम" है पर इस संविधान की हमने संसद में और सुप्रीम कोर्ट में धज्जियां उड़ते देखी हैं । ये कॉलेजियम सिस्टम क्या संविधान में है ? तो फिर कौन संविधान की धज्जियां उड़ा रहा है ? इसी तरह इन कुत्तों के पक्ष में बहुत सारे लोग खड़े मिल जायेंगे पर इंसानों के पक्ष में कोई खड़ा नहीं मिलेगा । अत: कुत्तों से सदैव सावधान रहें और उनसे बचकर ही चलें । कुत्तों का कुछ नहीं बिगड़ेगा, पर आपका बहुत कुछ बिगड़ सकता है । पराग देसाई की तरह जान भी जा सकती है ।

हरिशंकर गोयल "श्री हरि"

24.10.23

शुक्रवार, 13 अक्टूबर 2023

शराब के साथ आपका रिश्ता कैसा है? 🤣

कभी शराब से गहरी दोस्ती थी आजकल मन मुटाव तो नहीं पर पूरा पूरा तलाक हो चुका है सन२००६के बाद से।नफरत भी नहीं है परन्तु दोस्ती तो करके खत्म दी ।

प्रेम भी नहीं, नाराजी भी नहीं। वह अपनी जगह खुश हैं हम अपनी जगह खुशहै ।

शुक्रवार, 6 अक्टूबर 2023

कोई ऐसी तस्वीर है जिसे कोई भी उपवोट किए बिना न जाएं?

सुबह से जब खेत में काम कर रहे हों और ऐसे घर वाले रोटियां लेकर आते दूर से दिख जाएं तब कितनी खुशी होती है ये सिर्फ वही समझ सकता है जो सुबह से खेत में मेहनत कर रहा हो। उस खुशी को शब्दों में बयान करना मुश्किल है। चाहे चटनी रोटी ही क्यों ना मिल जाएं लेकिन खेत में सुबह से काम कर रहे इंसान के लिए वो किसी मिठाई से कम नहीं होती हैं।

बच्चा पैदा करने के लिए क्या आवश्यक है..??

पुरुष का वीर्य और औरत का गर्भ.!!!

लेकिन रुकिए ...सिर्फ गर्भ ???

नहीं... नहीं...!!!

एक ऐसा शरीर जो इस क्रिया के लिए तैयार हो ।।

जबकि वीर्य के लिए 13 साल और 70 साल का

वीर्य भी चलेगा।

लेकिन गर्भाशय का मजबूत होना अति आवश्यक है,

इसलिए सेहत भी अच्छी होनी चाहिए।

एक ऐसी स्त्री का गर्भाशय

जिसको बाकायदा हर महीने समयानुसार

माहवारी (Period) आती हो।

जी हाँ.!!

वही माहवारी जिसको सभी स्त्रियाँ

हर महीने बर्दाश्त करती हैं ।।

बर्दाश्त इसलिए क्योंकि

महावारी (Period) उनका Choice नहीं है ।।

यह कुदरत के द्वारा दिया गया एक नियम है ।।

वही माहवारी जिसमें शरीर पूरा अकड़ जाता है,

कमर लगता है टूट गयी हो,

पैरों की पिण्डलियाँ फटने लगती हैं,

लगता है पेड़ू में किसी ने पत्थर ठूँस दिये हों,

दर्द की हिलोरें सिहरन पैदा करती हैं ।।

ऊपर से लोगों की घटिया मानसिकता की वजह से

इसको छुपा छुपा के रखना अपने आप में

किसी जंग से कम नहीं ।।

बच्चे को जन्म देते समय

असहनीय दर्द को बर्दाश्त करने के लिए

मानसिक और शारीरिक दोनो रूप से तैयार हों ।।

बीस हड्डियाँ एक साथ टूटने जैसा दर्द

सहन करने की क्षमता से परिपूर्ण हों ।।

गर्भधारण करने के बाद शुरू के 3 से 4 महीने

जबरदस्त शारीरिक और हार्मोनल बदलाव के चलते

उल्टियाँ, थकान, अवसाद के लिए

मानसिक रूप से तैयार हों ।।

5वें से 9वें महीने तक अपने बढ़े हुए पेट और

शरीर के साथ सभी काम यथावत करने की शक्ति हो ।।

गर्भधारण के बाद कुछ

विशेष परिस्थितियों में तरह तरह के

हर दूसरे तीसरे दिन इंजेक्शन लगवानें की

हिम्मत रखती हों ।।

(जो कभी एक इंजेक्शन लगने पर भी

घर को अपने सिर पर उठा लेती थी।)

प्रसव पीड़ा को दो-चार, छः घंटे के अलावा,

दो दिन, तीन दिन तक बर्दाश्त कर सकने की क्षमता हो । और अगर फिर भी बच्चे का आगमन ना हो तो

गर्भ को चीर कर बच्चे को बाहर निकलवाने की

हिम्मत रखती हों ।।

अपने खूबसूरत शरीर में Stretch Marks और

Operation का निशान ताउम्र अपने साथ ढोने को तैयार हों । कभी-कभी प्रसव के बाद दूध कम उतरने या ना उतरने की दशा में तरह-तरह के काढ़े और दवाई पीने का साहस

रखती हों ।।

जो अपनी नींद को दाँव पर लगा कर

दिन और रात में कोई फर्क ना करती हो।

3 साल तक सिर्फ बच्चे के लिए ही जीने की शर्त पर गर्भधारण के लिए राजी होती हैं।

एक गर्भ में आने के बाद

एक स्त्री की यही मनोदशा होती है

जिसे एक पुरुष शायद ही कभी समझ पाये।

औरत तो स्वयं अपने आप में एक शक्ति है,

बलिदान है।

इतना कुछ सहन करतें हुए भी वह

तुम्हारें अच्छे-बुरे, पसन्द-नापसन्द का ख्याल रखती है।

अरे जो पूजा करनें योग्य है जो पूजनीय है

उसे लोग बस अपनी उपभोग समझते हैं।

उसके ज़िन्दगी के हर फैसले,

खुशियों और धारणाओं पर

अपना अँकुश रख कर खुद को मर्द समझते हैं।

इस घटिया मर्दानगी पर अगर इतना ही घमण्ड है

तो बस एक दिन खुद को उनकी जगह रख कर देखें

अगर ये दो कौड़ी की मर्दानगी

बिखर कर चकनाचूर न हो जाये तो कहना।

याद रखें

जो औरतों की इज्ज़त करना नहीं जानते🙏🙏🙏

वो कभी मर्द हो ही नहीं सकतें🙏🙏🙏