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नमस्कार, मैं Anoop Chicham Foundation For Ecological Security Mandla में MIS ऑपरेटर, हूँ इसी तरह अपना सहयोग देते रहिये और हम आपके लिए नईं-नईं जानकारी उपलब्ध कराएंगे
शनिवार, 28 नवंबर 2020
आज के समय की कुछ अनमोल तस्वीरें नीचे प्रस्तुत हैं जो हमें आईना दिखती हैं:-
शुक्रवार, 27 नवंबर 2020
बिरसा मुंडा के बारे में ऐसी और कौन सी बात है जो इंटरनेट पर उपलब्ध नहीं है?
सामंती राजव्यवस्था के विरुद्ध स्वराज की बलिदानी उद्घोषणा करने वाली ऐसी वनवासी आवाज जिसे गोरी हुकूमत अपने अथाह सैन्य बल से कभी झुका न सकी। जिन महान उद्देश्यों को लेकर इस हुतात्मा ने प्राणोत्सर्ग किया, वनवासी समाज मे राष्ट्रीय चेतना की स्थापना की।
बिरसा मुंडा की एक फाइल फोटो
आदिवासियों का संघर्ष अट्ठारहवीं शताब्दी से चला आ रहा है. 1766 के पहाड़िया-विद्रोह से लेकर 1857 के ग़दर के बाद भी आदिवासी संघर्षरत रहे. सन 1895 से 1900 तक बीरसा या बिरसा मुंडा का महाविद्रोह ‘ऊलगुलान’ चला. आदिवासियों को लगातार जल-जंगल-ज़मीन और उनके प्राकृतिक संसाधनों से बेदखल किया जाता रहा और वे इसके खिलाफ आवाज उठाते रहे।
1895 में बिरसा ने अंग्रेजों की लागू की गयी ज़मींदारी प्रथा और राजस्व-व्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ाई के साथ-साथ जंगल-ज़मीन की लड़ाई छेड़ी थी। बिरसा ने सूदखोर महाजनों के ख़िलाफ़ भी जंग का ऐलान किया। ये महाजन, जिन्हें वे दिकू कहते थे, क़र्ज़ के बदले उनकी ज़मीन पर कब्ज़ा कर लेते थे। यह मात्र विद्रोह नहीं था बल्कि यह आदिवासी अस्मिता, स्वायतत्ता और संस्कृति को बचाने के लिए संग्राम था।
आदिवासी इलाकों के जंगलों और ज़मीनों पर, राजा-नवाब या अंग्रेजों का नहीं जनता का कब्ज़ा था। राजा-नवाब थे तो ज़रूर, वे उन्हें लूटते भी थे, पर वे उनकी संस्कृति और व्यवस्था में दखल नहीं देते थे। अंग्रेज़ भी शुरू में वहां जा नहीं पाए थे। रेलों के विस्तार के लिए, जब उन्होंने पुराने मानभूम और वर्तमान में संथाल परगना के इलाकों के जंगले काटने शुरू कर दिए और बड़े पैमाने पर आदिवासी विस्थापित होने लगे, आदिवासी चौंके और मंत्रणा शुरू हुई। ‘अंग्रेजों ने ज़मींदारी व्यवस्था लागू कर आदिवासियों के वे गांव, जहां व सामूहिक खेती किया करते थे, ज़मींदारों, दलालों में बांटकर, राजस्व की नयी व्यवस्था लागू कर दी। इसके विरुद्ध बड़े पैमाने पर लोग आंदोलित हुए और उस व्यवस्था के ख़िलाफ़ विद्रोह शुरू कर दिए।
जो जंगल के दावेदार थे, वही जंगलों से बेदख़ल कर दिए गए।यह देख बिरसा ने हथियार उठा लिए। उलगुलान शुरू हो गया था ।
अपनों का धोखा
संख्या और संसाधन कम होने की वजह से बिरसा ने छापामार लड़ाई का सहारा लिया. रांची और उसके आसपास के इलाकों में पुलिस उनसे आतंकित थी। अंग्रेजों ने उन्हें पकड़वाने के लिए पांच सौ रुपये का इनाम रखा था जो उस समय बहुत बड़ी रकम थी। बिरसा मुंडा और अंग्रेजों के बीच अंतिम और निर्णायक लड़ाई 1900 में रांची के पास दूम्बरी पहाड़ी पर हुई। हज़ारों की संख्या में मुंडा आदिवासी बिरसा के नेतृत्व में लड़े। पर तीर-कमान और भाले कब तक बंदूकों और तोपों का सामना करते?
अंग्रेज़ जीते तो सही पर बिरसा मुंडा हाथ नहीं आए। लेकिन जहां बंदूकें और तोपें काम नहीं आईं वहां पांच सौ रुपये ने काम कर दिया। बिरसा की ही जाति के लोगों ने उन्हें पकड़वा दिया!
हालात तो आज भी नहीं बदले हैं। आदिवासी गांवों से खदेड़े जा रहे हैं, दिकू अब भी हैं। जंगलों के संसाधन तब भी असली दावेदारों के नहीं थे और न ही अब हैं। आदिवासियों की समस्याएं नहीं बल्कि वे ही खत्म होते जा रहे हैं। सब कुछ वही है जो नहीं है तो आदिवासियों के ‘भगवान’ बिरसा मुंडा……
फोटो स्त्रोत - गूगल
गुरुवार, 26 नवंबर 2020
दुनिया का सबसे ख़तरनाक हैकर कौन है? Most Dangerous Hackers In The World:
3. Albert Gonzalez अल्बर्ट गोंज़ालेज़
दोस्तों इस लिस्ट में तीसरे नंबर पर अल्बर्ट गोंजालेज हैं जिनका जन्म 1981 को कैरेबियन आईलैंड नेशन क्यूबा में हुआ था गोंजालेज ने पहली बार 12 साल की उम्र में अपना कंप्यूटर खरीदा और सिर्फ 14 साल की उम्र में नासा के कंप्यूटर को हैक कर लिया अभी तो शुरुआत थी गोंजालेज ने आगे चलकर 2005 से 2007 तक 170 मिलियन से भी ज्यादा क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड के डिटेल्स को हैक किया और इस डाटा को उन्होंने बेचना शुरू कर दिया और इस घटना को दुनिया की इतिहास का सबसे बड़े ऑनलाइन फ्रॉड माना जाता है और इस हैकिंग से कमाए हुए पैसों से गोंजालेज बिल्कुल ऐसो आराम की जिंदगी जी रहे थे लेकिन 2008 में पकड़े जाने के बाद आगे चलकर 25 मार्च 2010 को उन्हें 30 साल की सजा सुनाई गई और इस तरह से आज भी वो जेल में अपनी सजा काट रहे हैं ।
2. Kevin Mitnick केविन मिटनिक
दोस्तों दुसरे नंबर पर केविन मिटनिक का नाम आता है जिनका जन्म 6 अगस्त 1963 को कैलिफोर्निया में हुआ था बचपन से ही केविन को हैकिंग में काफी दिलचस्पी थी और कम उम्र में ही उनकी काबिलियत का अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि सिर्फ 13 साल की उम्र में उन्होंने बस कार्ड सिस्टम को बाईपास कर दिया था जिसकी मदद से वो किसी भी बस में फ्री में सफर कर सकते थे इसके अलावा 16 साल की उम्र में वो किसी भी कंप्यूटर के नेटवर्क में गैरकानूनी तरीके से घुसना सीख लिया था और फिर डिजिटल इक्विपमेंट कारपोरेशन के नेटवर्क में घुस कर उन्होंने एक सॉफ्टवेयर को कॉपी किया लेकिन यहां पर वो पकड़े गए फिर 1988 में इस हैकिंग के लिए उनको 1 साल की सजा मिली और साथ ही 3 साल तक उन्हें निगरानी में रखने का भी आदेश दिया गया और फिर 1 साल की सजा काटने के बाद से वो बाहर आए लेकिन निगरानी रखने वाले पीरियड में ही उन्होंने एक और हैकिंग कर ली जब टेलीकॉम सर्विस कंपनी पसिफिक बेल के वॉइस मेल कंप्यूटर को उन्हों हैक कर लिया और इस तरह से उनके ऊपर एक बार फिर से अरेस्ट वोरेंट जारी कर दिया गया लेकिन इसी दौरान गिरफ्तारी से बचने के लिए केविन ढाई साल तक फरार रहे और बहुत सारे अलग अलग साइबर क्राइम करते रहे लेकिन आखिरकार 1995 में उन्हें पकड़ लिया गया और 46 महीने की सजा सुनाई गई जेल से छूटने के बाद अब केविन मिटनिक सुधर चुके हैं और फिलहाल वो कंप्यूटर सिक्योरिटी कंसलटेंट और एक राइटर है और उनके ऊपर कई सारी फिल्म भी बनाई जा चुकी है ।
1.Gary Mckinnon गैरी मैकीनॉन
दोस्तों दुनिया के सबसे खतरनाक हैकर्स की लिस्ट में पहले नंबर पर गैरी मैकीनॉन का नाम आता है जिनका जन्म 10 फरवरी 1966 को स्कॉटलैंड में हुआ था और शुरू से ही उन्हें टेक्नोलॉजी से काफी लगाव था और उनके जन्म के समय ही सही मायने में कंप्यूटर की शुरुआत हुई थी और बचपन से ही कंप्यूटर में इंटरेस्ट होने की वजह से बहुत ही जल्द उन्होंने इस फील्ड में महारत हासिल कर ली और फिर साल 2001 में गैरी ने लंदन में अपनी गर्लफ्रेंड की आंटी के घर से बैठकर फरवरी 2001 से मार्च 2002 तक यानी की पूरे 13 महीने में नासा और यूनाइटेड स्टेट के अलग अलग 97 सिस्टम हैक किये और हैक करने के लिए उन्होंने नाम इस्तेमाल किया आई एम सोलो और इसका हिंदी मतलब होता है की मैं अकेला हूं इसके अलावा उन्होंने बहुत से कंप्यूटर के ऑपरेटिंग सिस्टम को भी डिलीट कर दिया इस वजह से वाशिंगटन के मिलिट्री नेटवर्क के कंप्यूटर 24 घंटों के लिए बंद हो गए और इस तरह से गैरी की वजह से करीब 70 लाख डॉलर का नुकसान हुआ और इस हैकिंग को अमेरिका के इतिहास की सबसे बड़ी हाइकिंग माना जाता है लेकिन बाद में पुलिस ने गैरी को गिरफ्तार कर लिया और पिछले बीते हुए सालों से वो आज भी मुकदमा लड़ रहे हैं और इन सबके अलावा मैकिनॉन ने दावा किया की उन्होंने हैकिंग के दौरान एलियन स्पेसशिप की इमेज भी ली थी लेकिन उनका कनेक्शन इतना धीमा था की वो फोटो डाउनलोड नहीं कर सके ।
फ़ोन पर कौन से 3 एप्लीकेशन जरूर रखने चाहिए, जो मुश्किल समय में हमारी जान बचा सकते हैं?
आपका प्रश्न है कि ऐसे कौन से पर्सनल सेफ्टी एप हैं जो हमारे फोन में होने चाहिए.
आज हम तीन ऐसे पर्सनल सेफ्टी एप के बारे में बात करेंगे जो कि मुश्किल समय में आपके बहुत काम आएंगे.
1.Go Suraksheit
Go Surakshit दिल्ली की महिलाओं द्वारा बनाया गया एक पर्सनल सेफ्टी एप है, जिसका उपयोग कर आप अपने कॉन्टैक्ट लिस्ट में से उन्हें emergency call लगा सकते हैं जिन्हें आप ट्रस्ट करते हैं।
ऐसा करने के लिए आपको एप डाउनलोड कर ओपन करना है और Get Help का चयन करना है।
एप automatically आपकी सहायता करेगा।
- यह एप पांच लोगों को फोन और एसएमएस करेगा जिसमें आपके लोकेशन की जानकारी भी होगी.
- एक कस्टमाइज पोस्ट के साथ आपका स्टेटस update करेगा।
- आसपास के लोगों से सहायता के लिए आपके फोन में एक लाउड alarm बजेगा।
- यह alarm pin के द्वारा बंद किया जा सकेगा।
फेसबुक और एसएमएस में आपकी लाइव लोकेशन होगी जिसे ट्रैक कर आप तक पहुंचा जा सकेगा, यह एप आपके 5 कॉन्टैक्ट को तब तक कॉल करेगा जब तक कि कोई आपका फोन attend नहीं कर लेता है।
2. Ridesafe
Ridesafe एप एक safety app है जो यह सुनिश्चित करता है कि ट्रैवल करते समय आप सुरक्षित हो, यह एप आपके लोकेशन और डेस्टिनेशन को मॉनिटर करता रहता है और यदि ड्राइवर द्वारा किसी भी प्रकार से कुछ सस्पेसियस एक्टिविटी होती है तो यह एप आपके कॉन्टैक्ट लिस्ट में से सेलेक्ट किए गए कॉन्टैक्ट को आपकी सहायता के लिए sms send कर देता है।
इस आप का उपयोग करना बहुत ही सरल है आपको इस एप में अपनी डेस्टिनेशन लोकेशन डालनी होती है और यह एप स्मार्टली यह detect कर लेता है कि रूट सही है या आपको कहीं गलत स्थान पर तो नहीं ले जाया जा रहा है।
इसे IIT और BITS Pilani Alumni द्वारा डेवलप किया गया है और यह दुनिया के हर कोने में कार्य करता है।
3.I Feel Safe
यह एप Nirbhaya Jyoti Trust and Mobile Standards Alliance of India के द्वारा डेवलप किया गया है, यह एप एक virtual panic button प्रदान करता है जिसका उपयोग कर आप alarm एक्टिवेट कर सकते हैं।
इस एप की खास बात यह है कि आपका मोबाइल लॉक होने पर या मोबाइल में डेटा और सिम कार्ड ना होने पर भी alarm एक्टिवेट किया जा सकता है यह इंडिया में कहीं भी उपयोग किया जा सकता है।
यह एप आपके कॉन्टैक्ट से selected friends और family members को emergency के समय आपकी लोकेशन सेंड करता है और 100 नंबर पर automatically call करता है, जिससे आपकी सुरक्षा का ध्यान रखा जा सके।
बुधवार, 25 नवंबर 2020
कम लागत में शुरु होने वाला सबसे अच्छा व्यापार कौन सा है?
12 BEST SMALL BUSINESS LIST IN HINDI
- सजावट का काम (Decoration business)
- आइसक्रीम बनाने का व्यवसाय (Ice-cream making)
- पॉपकॉर्न बनाने का व्यवसाय (Popcorn making)
- मुर्गी पालन का व्यवसाय (Poultry farming)
- घर में ट्यूशन पढ़ाने का व्यवसाय (Home tuition)
- कपड़ों में कढ़ाई का व्यवसाय (Embroidery)
- पुराना सामान खरीदने एवं बेचने का व्यवसाय (Buying & selling household goods)
- हेयर सैलून खोलकर (Saloon)
- मछली पालन का व्यापार (Fish farming)
- इवेंट मैनेजमेंट (Event management)
- डीजे साउंड (DJ sound business)
- वाहन धोने का व्यवसाय (Vehicle washing business)
धन्यवाद
शनिवार, 7 नवंबर 2020
"विकास की आड़ में असंतुलित होता पर्यावरण" को आप कैसे समझाएंगे?
मानव शरीर पंचतत्व से निर्मित है- पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश, तथा वायु। यही तत्व मिलकर प्रकृति एवं पर्यावरण का निर्माण करते हैं। मनुष्य के स्वस्थ एवं दीर्घायु रहने के लिए इन तत्वों में संतुलन होना आवश्यक है। दुर्भाग्य से हमारी भागीदारी प्रवृत्ति ने इस प्राकृतिक सन्तुलन को अस्थिर कर दिया है। संसाधनों का दोहन करते समय हम पूँजी-लाभ में इतना उलझे कि जीवन-चक्र ही असंतुलित हो गया।
विश्व में प्रकृति एक विशिष्ट आवरण एवं आकृति है, जो प्राकृतिक सुन्दरता, विभिन्नता एवं विषमता के रूप में यत्र-तत्र सर्वत्र विद्यमान है। हम अपने चारों तरफ के विहंगम एवं विभिन्नता से परिपूर्ण दृश्यों को प्राकृतिक सौन्दर्य कहते हैं, जो ब्रह्म स्वरूप है, स्वतः व्याप्त हैं। इसमें कृत्रिमता का समावेश नहीं है। भू-मंडल में फैले मैदान, पठार, रेगिस्तान, चट्टान, हिमाच्छादित पर्वत, नदी-नाले, झील और जंगल आदि सभी प्रकृति का फैला हुआ साम्राज्य है। प्रकृति ने मानव को जीवन की आवश्यकतानुसार अथाह प्राकृतिक संसाधन दिए हैं और उनका दोहन कर उपभोग करने का अधिकार भी। चूंकि मनुष्य बुद्धिजीवी है, इसलिए एक बुद्धिजीवी प्राणी होने के कारण उसका यह अधिकार है कि वह प्रकृति के असीमित भंडार का दोहन एवं उपभोग करे। इसके साथ ही उसका यह कर्तव्य है कि वह दोहन किए संसाधनों की भरपाई के लिए निरन्तर प्रयास करता रहे, किन्तु ऐसा हुआ नहीं। संसाधनों का दोहन तो खूब हुआ, किन्तु उनकी भरपाई नहीं की गई। मानवाधिकारों का ढोल पीटने वाले विकसित देशों ने इसकी आड़ में सबसे ज्यादा प्राकृतिक संसाधनों की लूट की। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पहली और दूसरी दुनिया के देशों की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो गई थी कि उन्हें अपनी आर्थिक जरूरतों को पूरा करना मुश्किल हो गया। इसके लिए इन देशों ने तीसरी दुनिया के देशों के प्राकृतिक संसाधनों पर नजरें गड़ाईं। इन देशों में घुसने के लिए विकसित देशों ने मानवाधिकार का झुनझुना बजाया। गरीब देशों में मानवाधिकार के नाम पर गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) खोले और प्राकृतिक संसाधनों का दोहन प्रारम्भ कर दिया। खाड़ी देशों में तेल और अफ्रीका में खनिजों का मानवाधिकार की आड़ में दोहन किया गया। भारत की वन सम्पदा को सबसे ज्यादा नुकसान भोगवादी मुनाफिकों ने पहुँचाया। एनजीओ की आड़ में कन्वर्जन भी जमकर हुआ। उद्योगों के द्वारा सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करने वाले देश खुद अपने प्रदूषण पर लगाम लगाने के स्थान पर गरीब देशों को प्रताड़ित करते रहते हैं। एक तरफ विकसित देश गरीब देशों की सम्पदा लूटते रहे, वहीं दूसरी तरफ पर्यावरण दिवस मनाकर कर्तव्यों की खानापूर्ति करते रहे।
पर्यावरण संतुलन
गाय, गंगा और गाँव भारत की संस्कृति का आधार रहे हैं। हमने जैसे-जैसे विकास के नाम पर इन तीनों को दरकिनार करना शुरू किया, हमारा पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ गया। हर चीज में मुनाफा देखने वाली पाश्चात्य संस्कृति ने मुनाफे के खेल में भारतीय संस्कृति पर सीधा हमला किया। उसने हर उस चीज को निशाना बनाया जिसके द्वारा उनके मुनाफे को नुकसान हो सकता था। गाय भी उसी का शिकार हुई। गाय का पर्यावरण सन्तुलन में बड़ा योगदान है। गाय के पूजनीय पशु होने के पीछे कई वैज्ञानिक कारण निहित हैं। गाय को देवी मानने वाले देश का गोमांस निर्यात में पहले स्थान पर होना पर्यावरण असंतुलन का प्रथम आधार बना। इसको ऐसे समझा जा सकता है। गाय के गोबर एवं गोमूत्र में असंख्यक जीवाणु होते हैं। गोमूत्र एवं गोबर आधारित खेती में जल की आवश्यकता बहुत कम होती है। भारत के परिवेश में सिर्फ वर्षा जल ही खेती के लिए पर्याप्त होता रहा है। आज रसायनों के इस्तेमाल से भू-जल समाप्ति की ओर है। जमीन के अन्दर तीन परतों में पानी पाया जाता है। प्रथम और द्वितीय परतों का पानी हम खत्म कर चुके हैं। इस समय हम तीसरी परत का पानी पी रहे हैं। इसको ऐसे समझा जा सकता है। आज से 30 साल पहले 10 से 20 फिट पर पानी मिल जाता था। तब हम पहली परत का पानी पीते थे, उसके बाद 60-80 फिट पर पानी मिलने लगा। वह दूसरी परत का पानी था। वर्तमान में 100 फिट से नीचे जाकर पानी के लिए बोरिंग करते हैं। यह तीसरी परत का पानी है। यह अन्तिम परत है जिसके 2030 के बाद खत्म होने की सम्भावना है। भारत के नौ राज्यों में भूजल का स्तर खत्म होने के खतरनाक स्तर पर है। उपलब्ध जल का 90 प्रतिशत इस्तेमाल हो चुका है। सरकारी आंकड़ों को देखें तो 1947 में भारत के प्रति व्यक्ति के पास जल उपलब्धता 6,042 घन मीटर थी। 2011 में यह घटकर 1,545 घन मीटर रह गई है। भारत में सिंचाई में 80 प्रतिशत हिस्सा नदी, नहरों और भूजल से पूरा होता है। बाकी 20 प्रतिशत में वर्षा जल, तालाब जल एवं अन्य उपलब्ध संसाधन हैं।
चैपट पर्यावरणीय संतुलन
भारत में जब हरित क्रान्ति की शुरुआत हुई थी, उस समय रासायनिक खादों और कीटनाशकों के प्रयोग के द्वारा उत्पादन बढ़ाना समय की माँग थी। कुछ समय के बाद इस बात का आभास होने लगा कि जिन रसायनों को हम लाभकारी मान रहे हैं, वह भूमिगत जल का अनावश्यक दोहन कर रहे हैं और सामान्य से 10 गुने से ज्यादा पानी का प्रयोग करा रहे हैं। यह ठीक उसी तरह है जैसे हम जब एलोपैथी की दवाई खाते हैं तो प्यास ज्यादा लगती है। इसके साथ ही ये रसायन जमीन की उर्वरा शक्ति को भी नष्ट कर रहे हैं। जबसे कृषि का मशीनीकरण प्रारम्भ हुआ तबसे बैलों से खेत जोतने के स्थान पर ट्रैक्टर से खेतों की जुताई प्रारम्भ हो गई। लोगों ने बैल रखने बन्द कर दिए। बैल कम होने का प्रभाव गायों के पालन पर पड़ा। गोवंश आधारित खेती से ध्यान हटने के कारण इन पशुओं का कटना बढ़ गया। मांसाहार की प्रवृत्ति बढ़ी। विचारों में आक्रामकता बढ़ी। झगड़े-फसाद बढ़े। यानी कि सम्पूर्ण पर्यावरणीय चक्र दूषित हो गया। जो गाय, गंगा और गाँव भारतीय सभ्यता का आधार रहे थे, वह चैपट हो गया। इस चैपट व्यवस्था का केन्द्र-बिन्दु जलचक्र प्रभावित होता चला गया।
शहरीकरण से घटा जल स्तर
जैसे-जैसे देश में कारपोरेट संस्कृति का बढ़ना शुरू हुआ, वैसे-वैसे शहरीकरण प्रारम्भ हुआ। एक ओर रसायनों ने जल स्तर नीचे किया तो अनियंत्रित औद्योगीकरण ने ग्लोबल वार्मिंग कर दी। वर्षा चक्र अनियमित हो गया। हमने प्राकृतिक खेती को छोड़ा। प्रकृति ने हमारा साथ छोड़ दिया। जल स्त्रोतों के कम होते रहने के कारण गरीब किसान शहरों की तरफ रोजगार की तलाश में पलायन कर गए। ग्रामीण जनसंख्या का पलायन शहरों की तरफ हुआ। इसके द्वारा धीरे-धीरे ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों का संतुलन चरमराने लगा। पिछले सात दशक में ग्रामीण शहरों की तरफ आकर्षित हुए। ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में पलायन के द्वारा यह औसत अब लगभग दोगुना होने के कगार पर है। पिछले 70 साल के जनसंख्या औसत की तुलना करें तो 1951 में शहरों में रहने वाली जनसंख्या 17.3 प्रतिशत थी। 2011 में यह सत 31.16 प्रतिशत तक पहुँच गया। अमेरीका एवं पश्चिम यूरोप के देशों में शहरी जनसंख्या अब गाँव का रुख कर रही है, वहीं भारत में इसका उलटा हो रहा है। ग्लोबल मैनेजमेंट कंसल्टेंसी फर्म की रपट के अनुसार 2015 से 2025 के बीच के दशक में विकसित देशों के 18 प्रतिशत बड़े शहरों में आबादी प्रतिशत 0.5 प्रतिशथ की दर से कम होने जा रही है। पूरी दुनिया में 8 प्रतिशत शहरों में प्रतिवर्ष 1.15 प्रतिशत शहरी जनसंख्या कम होने का रुझान होना सम्भावित है।
शहरी क्षेत्रों में बढ़ी आबादी एवं उद्योगों के कारण भारी मात्रा में जल प्रदूषित हुआ। जो जल शेष रहा वह भारी जनसंख्या बोझ के कारण अपर्याप्त रहा। अमीरी और गरीबी की खाई बढ़ती चली गई। 1990 में असमानता का इंडेक्स 45.18 था जो 2013 आते-आते बढ़कर 51.36 हो गया। सामाजिक विद्रूपता में हमने कृषि भूमि को विकास के नाम पर पहले अधिग्रहीत किया, फिर उस पर बड़ी-बड़ी इमारतें बनाकर उसे विकास का नाम दिया। रियल इस्टेट को औद्योगिक विकास का माध्यम एवं उद्योगों का पर्याय बना दिया गया। इसमें हमने बड़े-बड़े बोरिंग से पानी निकालकर जमीन को खाली करना शुरू कर दिया। योजनाओं को संस्थागत रूप देने के लिए औद्योगिक विकास प्राधिकरण गठित किए गए। रसायनों के इस्तेमाल एवं विकास के नाम पर हम भूमिगत जल का लगातार दोहन करते रहे। हमने जितने जल का दोहन किया, उतना जल भूमि में वापस नहीं पहुँचाया। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि पर्यावरण असंतुलित होता चला गया। जल स्तर नीचा होने से घरेलू और कारपोरेट के जल की आपूर्ति तो निर्बाध हुई। जंगल और जानवरों के लिए जल की किल्लत ने पर्यावरण प्रभावित कर दिया।
प्रकृति संरक्षण का समाधान
इस समस्या के समाधान के क्रम में कुछ छोटी-छोटी बातें महत्त्वपूर्ण हैं। हम रसायनों के इस्तेमाल की धीरे-धीरे कम करते हुए परंपरागत कृषि की तरफ बढ़ें। इसके द्वारा जल का दोहन कम होगा। भूमि में वापस जल स्रोतों को भरने के लिए तालाबों को प्रोत्साहित करें। शहरी और ग्रामीण इलाकों में जिन तालाबों पर लोगों ने अतिक्रमण कर लिया है, उन्हें खाली कराकर उनमें वर्षा जल संचय सुनिश्चित किया जाए। वर्षा जल को तालाबों में संरक्षित करके उसका न सिर्फ कृषि में उपयोग करें, बल्कि इसके द्वारा भूमि में वापस जल भंडारण को सुनिश्चित करें। अधिक-से-अधिक पौधारोपण करें। तुलसी, पीपल, नीम जैसे वृक्षों का ज्यादा-से-ज्यादा रोपण करें। यह अन्य पेड़ों की तुलना में ज्यादा औषधीय गुण रखते हैं और पर्यावरण में ऑक्सीजन की मात्रा नियंत्रित करते हैं। जैसे लोग कर्तव्य परायण होते हैं, वैसे ही हमें स्वयं को प्रकृति-परायण बनाने पर विचार केन्द्रित करना चाहिए। जैसे-जैसे हम उत्पत्ति के स्रोत को स्वीकृति एवं सम्मान देते हैं। भावनाएँ एवं ब्रह्माण्ड की शक्तियाँ आशीर्वाद के रूप में प्राकृतिक सम्पदाओं से हमें फलीभूत करने लगती हैं। यह एक प्रकार का प्राकृतिक चक्र है जो यदि नियंत्रित है तो सर्वत्र खुशहाली है और अगर एक बार यह अनियंत्रित हो गया तो इसके भयावह परिणाम की कल्पना करना आसान नहीं है। क्योंकि, प्रकृति अपने साथ हुई क्रूरता का बदला क्रूरतम तरीके से लेती है। क्रंकीट के जंगलों में विचरण करते-करते हममें से कुछ लोगों की भावनाएँ भी कंक्रीट जैसी हो गई हैं। किन्तु आज भी कुछ ऐसे लोग समाज में मौजूद हैं जिनके सत्कर्म के कारण प्राकृतिक संतुलन बरकरार है।
बीज मंत्र का करें इस्तेमाल
मनुष्य स्वभाव सदैव सौन्दर्य की ओर आकर्षित होता रहा है। हर नैसर्गिक सौन्दर्य के निर्माण में कुछ समय लगता है। जिस सुन्दरता को हम अभी देख रहे हैं, उसके निर्माण में भी बरसों का समय लगा है। जो हम नष्ट कर रहे हैं, उसकी भरपाई भी बरसों में ही सम्भव है। यदि आज से हम प्रकृति परायण बनेंगे, तब आने वाली पीढ़ियों के लिए मनभावन नैसर्गिक सुन्दरता का अस्तित्व रह पाएगा। जो हम पाना चाहते हैं, उसके बीज बोने का आरम्भ आज से ही प्रारम्भ करना होगा। आज हम जिन पेड़ों के फल खा रहे हैं, क्या हमने इन्हें लगाया था ? ये पेड़ हमारे पुरखों द्वारा रोपे गए। उनके द्वारा ही अभिसिंचित किए गए। हम तो उनके प्रयास को प्रसाद के रूप में पा रहे हैं। अब यह हमारा कर्तव्य है कि अपने आने वाले वंश के लिए वन-वनस्पतियों एवं जड़ी-बूटियों को बोना चाहिए। ये पेड़-पौधे ही जड़ी-बूटियाँ हैं। रोग-निवारण का स्तम्भ हैं। प्राकृतिक संसाधनों को भी समय≤ पर नवसृजन की आवश्यकता होती है, अन्यथा दोहन के द्वारा शनैः-शनै बड़े भंडार भी समाप्त हो जाते हैं। मैंने कहीं पढ़ा था कि हमारे पास संसाधनों के संरक्षण का बीज मंत्र है। इस मंत्र को समझने की आवश्यकता है। धन तथा संसाधनों को हम अर्जित करते हैं। वह स्वोपार्जित होता है।
पूर्वजों के द्वारा पूर्व संचित धन-संसाधन भी हमें उत्तराधिकार में मिलते हैं। प्राकृतिक संसाधनों के मामले में आज हम स्वोपार्जित से विमुख हुए हैं। हम संसाधनों को उत्तराधिकार में अधिकता से पा रहे हैं, किन्तु हम इनका मूल्य नहीं समझ पा रहे हैं। तभी तो अपने कर्तव्य से विमुख है और संसाधनों की बर्बादी कर रहे हैं। यदि हम पेड़ों को काटते रहे, वनों का विनाश करते रहे, और नए पौधे नहीं रोपे तो एक ऐसी रिक्तता आ जाएगी जिसकी भरपाई बहुत मुश्किल होगी। इसलिए जरूरी है कि हम संसाधनों का समय≤ पर मूल्यांकन और अंकेक्षण करते रहें। हमारी जीवन शैली दो चक्रों पर आधारित है। एक चक्र है परम्परा, जिसमें आस्था-विश्वास रहता है। दूसरा चक्र है वैज्ञानिक सोच, जिसमें विकास रहता है। शायद हम विकास एवं विनाश की सही विभाजक रेखा का निर्धारण नहीं कर पा रहे और यही वर्तमान समस्या का कारण है। हमें इन सभी दर्शनों में सामंजस्य बिठाना है। बौद्धिकता तथा नैतिकता से तालमेल साधना है। जैसे जीवन में स्पर्श का बड़ा महत्व है। माँ का स्पर्श बच्चे का दर्द खत्म कर देता है। कष्टों को हरने में सहायक होता है। हमें अपने आने वाले वंश के लिए प्रकृति माँ को संरक्षित करना चाहिए। अगर बच्चा बिगड़ जाए तो भी माँ समय समय पर कुछ नसीहत देकर सचेत अवश्य करती है। प्रकृति का स्पर्श मानवता को संतुलित रखता है। मनुष्यों के कार्यों से प्रकृति माँ नाराज तो अवश्य है किन्तु माँ तो आखिर माँ है। मान ही जाएगी। हमें सिर्फ एक कोशिश ही तो करनी है।
यह जवाब waterportel
विकास की आड़ में असंतुलित होता पर्यावरण
वेबसाइट से लिया कॉपी लिया गया है।।।
१६ वर्षीय स्कूली छात्रा 'ग्रेटा थन्बर्ग' चर्चा का विषय क्यों बनी हुई हैं?
16 साल की उम्र में बच्चे क्या करते हैं? वो खेलते हैं, पढ़ाई करते हैं और अपने करियर में सोचते हैं। इस उम्र के बच्चों को पता नहीं होता है कि दुनिया में क्या चल रहा है? वो तो बस अपनी ही दुनिया में खोए रहते हैं और माता-पिता को भी लगता है कि बच्चों को अपना बचपन जीना चाहिए। जो सही भी है क्योंकि एक बार बचपन गया तो फिर वापस लौटकर नहीं आता। लेकिन वही बच्चे अपने बचपन को छोड़कर बड़ों से भी ज्यादा समझदारी भरी बातें करने लगे तो ये चिंताजनक है और सोचने लायक भी है कि क्या सच में हालात इतने बदतर हो चुके हैं?
ग्रेटा कहती है कि बिजली, बल्ब बंद करने से लेकर पानी की बर्बादी को रोकने और खाने का न फेंकने जैसी बातें मैं हमेशा से सुनती आई थी। जब मैंने इसी वजह पूछी तो मुझे बताया गया कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ऐसा किया जा रहा है। अगर हम जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को रोक सकते हैं, तो हमें इसके बारे में बात करनी चाहिए। मुझे यह जानकर हैरानी हुई कि लोग इसके बारे में कम ही बात करते हैं।
16 साल की ग्रेटा थनबर्ग पूरे दुनिया के नेताओं से अपील कर रही है कि हमें अपनी धरती को बचाना होगा और ये तभी होगा जब अपनी जरूरतें कम करेंगे। ऐसा कोई भी काम नहीं करेंगे जो हमारी पृथ्वी को, हमारे पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता हो। हाल ही में ब्रिटेन क्लाइमेट इमरजेंसी लगाने वाला पहला देश बना। ब्रिटेन की संसद को ये फैसला इसलिए लेना पड़ा क्योंकि लाखों लोग ब्रिटेन की सड़कों पर इसकी मांग कर रहे थे। उन्हीं अच्छे लोगों के बीच खड़ी थी 16 साल की ये लड़की।
जागरूकता फैला रही है ग्रेटा
ब्रिटेन में ग्रेटा थनबर्ग ने खुले मंच पर विश्व के कई बड़े नेताओं को आमंत्रित किया था और वहां ग्रेटा ने पर्यावरण के लिए चेताया। ग्रेटा कहती है कि मैं भी स्कूल जाना चाहती हूं लेकिन जब मैं देखती हूं कि हम ही अपने दुश्मन बन रहे हैं तो मुझे बहुत दुःख होता है। 5 जून को पूरे विश्व ने पर्यावरण दिवस मनाया। सभी ने पर्यावरण को सुधारने की बात कही लेकिन क्या बात करने से सब कुछ सही हो जाएगा? इस बार विश्व पर्यावरण दिवस की थीम थी- बीट एयर पाॅल्यूशन। यूएन ने एक रिपोर्ट जारी करते हुए बताया है कि दुनिया भर के 10 लोगों में से 9 लोग जहरीली हवा लेने को मजबूर हैं। हर साल 70 लाख मौतें वायु प्रदूषण की वजह से होती है। इन 70 लाख लोगों में 40 लाख का आंकड़ा एशिया से आता है।
जहरीली हवा को पूरी तरह से साफ नहीं किया जा सकता लेकिन उसे सांस लेने लायक तो बनाया ही जा सकता है। पृथ्वी दिनों दिन गर्म हो रही है इसके लिए हमें ग्रेटा थनबर्ग की बातों पर ध्यान देना होगा। ग्रेटा थनबर्ग ने हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को वीडियो संदेश भेजकर जलवायु परिवर्तन पर गंभीर कदम उठाने की मांग की। इस समय पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन के गंभीर संकट से जूझ रही है। पर्यावरणविदों का मानना है कि अगर सही समय पर कार्बन उत्सर्जन को कम करने के प्रयास नहीं किए गए तो पृथ्वी के सभी जीवों का अस्तित्व खतरे में आ जाएगा। धरती को बचाने के लिए दुनिया भर में कई तरह के आंदोलन चल रहे हैं। उसी कड़ी में महज 16 साल की ग्रेटा थनबर्ग का भी नाम है।
स्वीडिश पर्यावरण एक्टिविस्ट ग्रेटा को हाल ही में नोबल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया गया है। आज 16 साल की ग्रेटा थनबर्ग को हर कोई जानता है और उनकी बात को गंभीरता से सुनता है लेकिन ग्रेटा पहले स्कूल जाती थी और वही सब करती जो बाकी सब बच्चे करते थे। ग्रेटा थनबर्ग का जन्म 2003 में स्वीडन की राजधानी स्टाॅकहोम में हुआ। ग्रेटा के पिता अभिनेता और लेखक है जबकि मां आपेरा गायिका हैं। ग्रेटा ने एक बार देखा कि फ्लोरिडा के मर्जरी स्टोनमैन डगलस हाईस्कूल के कुछ बच्चे हथियारों पर नियंत्रण के लिए मार्च कर रहे थे। ग्रेटा को वहां से प्रेरणा मिली और पर्यावरण को बचाने के लिए वे भी ऐसा ही कुछ करना चाहती थीं।
स्कूल छोड़ा, संसद के सामने दिया धरना
9 सितंबर 2018 को ग्रेटा थनबर्ग ने आम चुनाव होने तक स्कूल न जाने का फैसला किया और अकेले ही जलवायु परिवर्तन के लिए संसद के सामने हड़ताल शुरू कर दी। ग्रेटा ने स्वीडन सरकार से मांग की थी कि वो पेरिस समझौते के अनुसार कार्बन उत्सर्जन कम करे। ग्रेटा ने अपने दोस्तों और स्कूल वालों से भी इस हड़ताल में शामिल होने की अपील की, लेकिन सभी ने इसमें शामिल होने से इंकार कर दिया। यहां तक कि ग्रेटा के माता-पिता ने ऐसा कुछ करने से रोकने की भी कोशिश की, लेकिन ग्रेटा नहीं रूकी। ग्रेटा ने स्कूल स्ट्राइक फॉर क्लाइमेट मूवमेंट की स्थापना की। ग्रेटा ने खुद अपने हाथ से बैनर पैंट किया और स्वीडन की सड़कों पर घूमने लगीं। कुछ लोगों ने ग्रेटा को देखा और पर्यावरण के प्रति सचेत हुए।
बाद में हालात बदलने लगे और कई देशों के बच्चे ग्रेटा थनबर्ग के साथ आ गए। दिसंबर 2018 तक दुनिया भर के 270 शहरों से 20,000 बच्चों ने इस हड़ताल का समर्थन किया। ग्रेटा पर्यावरण की वजह से हवाई यात्रा नहीं करती है, वो सफर के लिए ट्रेन का इस्तेमाल करती हैं। ग्रेटा ने अपने माता-पिता को यकीन दिलाया कि वे सही रास्ते पर हैं। इसके बाद माता-पिता और दोस्त सहयोग कर रहे हैं। ग्रेटा की मां तो इस अभियान बहुत प्रेरति हुईं और विमान सफर करना छोड़ दिया है, ताकि वायु प्रदूषण करने में उनकी भूमिका न हो। ग्रेटा के माता-पिता ने मासांहार को त्याग दिया है। जिन लोगों ने पहले इस अभियान में जुड़ने से इंकार किया था, वे सभी अब इसके हिस्सा हैं। विभिन्न देशों के लाखों बच्चे इसका हिस्स बन रहे हैं।
ग्रेटा कहती है कि बिजली, बल्ब बंद करने से लेकर पानी की बर्बादी को रोकने और खाने का न फेंकने जैसी बातें मैं हमेशा से सुनती आई थी। जब मैंने इसी वजह पूछी तो मुझे बताया गया कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ऐसा किया जा रहा है। अगर हम जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को रोक सकते हैं, तो हमें इसके बारे में बात करनी चाहिए। मुझे यह जानकर हैरानी हुई कि लोग इसके बारे में कम ही बात करते हैं। 16 वर्षीय ग्रेटा थनबर्ग ने एमनेस्टी इंटरनेशनल का “एम्बेसडर ऑफ कॉनसाइंस” अवार्ड 2019 जीता। उन्हें यह सम्मान ग्लोबल वार्मिंग के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए दिया जा रहा है।
नोबेल पुरस्कार के लिए नामित
ग्रेटा जगह-जगह जाकर मंच पर भाषण देती हैं और लोगों को जागरूक करती हैं। आज का समय सोशल मीडिया का जमाना है। ग्रेटा सोशल मीडिया से भी लोगों तक अपनी बात पहुंचाती हैं, इसके लिए उन्होंने ट्विटर को चुना। ग्रेटा अपने भाषण में चेताते हुए कहती हैं, हम दुनिया के नेताओं से भीख नहीं माग रहे हैं। आपने हमें पहले भी नजरअंदाज किया है और आगे भी करेंगे। लेकिन अब हमारे पास वक्त नहीं है। हम आपको बताने आए हैं कि पर्यावरण खतरे में है। सही समय पर कार्बन उत्सर्जन को कम करने के प्रयास नहीं किए गए तो पृथ्वी के सभी जीवों का अस्तित्व खतरे में आ जाएगा।
स्वीडिश एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग को नोबले शांति पुरस्कार के लिए नामित किया गया है। अगर उनको नोबेल पुरस्कार मिलता है तो वे सबसे कम उम्र में नोबेल पुरस्कार जीतने वाली शख्सियत बन जाएंगी। ग्रेटा थनबर्ग को नोबेल पुरस्कार मिले या न मिले लेकिन 16 साल की ये लड़की बहुत साहसिक और प्रेरणादायी काम कर रही है। जबकि लाखों लोग पर्यावरण के बारे में सोच ही नहीं रहे हैं, वे बस सरकार को कोसने का काम कर रहे हैं। हमें ग्रेटा थनबर्ग जैसे और भी लोगों की जरूरत है जो अपनी जिद पर अड़ जाएं और पर्यावरण को बचाने के लिए आगे आएं।
स्रोत : 16 साल की ग्रेटा थनबर्ग पर्यावरण को लेकर हमसे ज्यादा समझदार है
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मंगलवार, 3 नवंबर 2020
बहुत काम की websites कौन सी है ?
इतने काम की 10 वेबसाइट, कोई नहीं बताएगा
आज मैं आपको १० ऐसी यूज़फुल वेबसाइट के बारे में बताऊंगा जो आपके बहुत ज्यादा काम आने वाली हैं।
1. Office. com
कई बार ऐसा होता है हम जिस कंप्यूटर पर काम कर रहे हों उस कंप्यूटर में माइक्रोसॉफ्ट वर्ड, एक्सेल, पॉवरपॉइंट जैसे Softwares इंस्टाल नहीं होते तो ऐसे में इस वेबसाइट की मदद से आप Microsoft Word, Excel, Power Point, Onenote जैसे प्रोग्राम को फ्री में यूज़ कर सकते हैं।
2. Photopea. com
ये एक ऑनलाइन फोटो एडिटर है, ये ऐसा वेबसाइट है, जिस पर आपको फ्री में फोटोशॉप के लगभग सारे टूल्स मिल जाते हैं।
3. Cvmkr. com
अगर आपको अपना CV या रिज्यूम बनाने में परेशानी हो रही हो तो आप इस वेबसाइट की मदद ले सकते हैं।
4. Virustotal. com
इंटरनेट से कोई फाइल जैसे सॉफ्टवेयर, मूवीज या और कोई ज़िप फाइल डाउनलोड करते होंगे, लेकिन आपको नहीं पता की उस फाइल में वायरस भी हो सकता है, इस वेबसाइट की हेल्प से आपको पता चल जायेगा की आपकी डाउनलोड की हुयी फाइल यूज़ करने लायक है या नहीं।
6. Newocr. com
अगर आप किसी PDF फाइल या इमेज फाइल यानी JPEG फाइल को टेक्स्ट में बदलना चाहते हैं तो Newocr. com पर जा सकते हैं।
7. Bugmenot. com
किसी भी वेबसाइट को यूज़ करने के लिए जब आपसे लॉगिन करने के लिए पूछा जाता है और आप Sign Up नहीं करना चाहते हों तो आप Bugmenot. com के जरिये किसी भी वेबसाइट का लॉगिन आईडी और पासवर्ड पा सकते हो।
8. Freeonlinetricks. com
इसी तरह की और उपयोगी वेबसाइट के बारे में जानने के लिए या कंप्यूटर, मोबाइल, इंटरनेट, बैंकिंग, सोशल मीडिया, टिप्स & ट्रिक्स से जुड़ी जानकारी पाने के लिए आप Freeonlinetricks. com पर जा सकते हैं।