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शुक्रवार, 29 सितंबर 2023

आरक्षण व्यवस्था पर आपके क्या विचार हैं ?


पात्र, योग्य व सक्षम लोग हर जगह अच्छी स्थिति में मिलेंगे और मिलने भी चाहिए।

अपात्र, अयोग्य व अक्षम लोग आपको पिछड़े ही नजर आएंगे। यदि इनको शक्ति मिल भी गई तो यह उसका दुरुपयोग ही करेंगे।

लालू यादव, मुलायम सिंह और बहन जी का उदाहरण सबके सामने है।



समाज की उच्च जातियों ने जिन निम्न जातियों के लोगों को एक षड़यंत्र के तहत हजारों वर्षों तक आगे बढ़ने से रोका, तो आज ये उसी उच्च जति की सामाजिक जिम्मेदारी है की वो खुद कष्ट सहकर दलितों,वंचितों को आगे बढ़ाए .इसी व्यवस्था को दूसरे शब्दों में आरक्षण कहते हैं.आरक्षण हमारे देश में मनु स्मृति जैसे ग्रंथो के साथ ही प्रारम्भ हो गया था.ब्राम्हण को ही पुरोहित,शिक्षक,पुजारी बनने और क्षत्रिय को शासक,सैनिक बनने का १००% आरक्षण था. ये वर्ण की जन्मना प्रथा थी जिसमे शूद्र और पशु के बीच,पशु ही ज्यादा अच्छी स्थिति में था. शूद्र अगर धोखे से वेद वाक्य भी सुन ले तो उसके कानो में गरम सीसा डालने का प्रावधान था.रामायण में शम्बूक प्रसंग इस शोषण का ही एक रूप है.अछूत लोग गांव में घुसने से पहले बाजा बजाके संकेत करते थे की हम आ रहे हैं,उनके पीछे एक झाड़ू बंधी होती थी जिससे उनकी गन्दगी साफ हो सके.वो अपने कंधे में एक डब्बा टांगते थे ताकि उसमे थूक सकें.वो इसका ध्यान रखते थे की उनकी छाया किसी को अपवित्र ना करे इसीलिए केवल दोपहर को ही घर से बाहर निकलते थे जब परछाई सबसे छोटी बनती है.ये सब उनकी उन्हें जबरदस्ती करवाया जाता था.अछूतों के जीवन को जानने के लिए बाबा साहब की जीवनी पढ़के देखिये,आँखों से आंसू बहने लगता है.
आजादी के बाद हमने समानता के साथ साथ समाज के सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की जिसमे दलित और आदिवासियों को आरक्षण दिया गया.आदिवासी मुख्यधारा के समाज से अलग थे.उनके लिए भारत देश जैसी कोई चीज ना थी.उनका अपना गांव ही उनके लिए देश के सामान था या है.आदिवासियों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए आबादी के अनुपात में आरक्षण दिया गया.उस समय आरक्षण इन वर्गों की स्थिति सुधारने का एक उपकरण था एकमात्र नही.
आज समाज की उच्च जति के लोग ये तर्क देते हैं की उच्च जति में भी तो लोग गरीब हैं,हमारे पूर्वजों के कर्मो की सजा हम क्यों भोगें,हमने तो किसी का शोषण नही किया इत्यादि.आरक्षण उन लोगों के लिए है जिन्हे समाज ने आगे बढ़ने से रोका और इसके कारण वो आजतक गरीब हैं.अगर कोई उच्च जति का व्यक्ति गरीब है तो अपनी गरीबी का दोषी वो खुद है,उसका आलस्य है,उसकी अकर्मण्यता है क्योंकि समाज ने कभी उसे आगे बढ़ने से नही रोका.अगर हम अपने पूर्वजों की संपत्ति,जमीन,घर,सम्मान इत्यादि पूरे हक़ से लेते हैं और उसका आनंद उठाते हैं. तो उनके कुकर्मों का थोड़ा कष्ट हमें सहना ही होगा.ब्राम्हणो को मंदिर के पुजारी बनने या पंडित बनने के लिए लगभग १००% आरक्षण आज भी है.क्या कभी कोई दलित,आदिवासी या महिला शंकराचार्य बन सकती है?
आरक्षण प्रारम्भ में वंचित वर्गों को ऊपर उठाने का एक सामाजिक उपकरण था परन्तु अब तो ये एकमात्र राजनीतिक उपकरण बन चूका है.राजनीतिक वर्ग के लिए आरक्षण ही एकमात्र चुनावी मुद्दा है जिससे आरक्षित वर्ग का विकास हो सकता है.अगर ये सच होता तो आजादी के ६८ वर्षों बाद भी अधिकांश वंचित वर्ग दयनीय गरीबी की स्थिति में नही रहते. इन लोगों को गुणवत्ता युक्त शिक्षा देनी चाहिए,सामान्य बच्चों की तरह शैक्षणिक माहौल देना चाहिए,स्वास्थ्य की देखभाल होनी चाहिए,पौष्टिक आहार देना चाहिए. वंचित वर्गों के बच्चों को इतनी सुविधा देनी चाहिए जिससे उन्हें आरक्षण की जरूरत ही ना पड़े.
ब्राम्हणवाद एक सोच का नाम है,प्राचीन समय में योग्य ब्राम्हणों ने अपने अयोग्य बच्चों को भी अपने जैसे ही विशेषाधिकार देने के लिए जन्म आधारित वर्ण और जति व्यवस्था का सृजन किया.आज यही सोच आरक्षण प्राप्त करके सरकारी नौकरियों में आए अफसरों,नेताओं,शिक्षकों,डॉक्टरों इत्यादि के मन में भी आ गई है.आखिर उनके बच्चों को अब आरक्षण की कौन सी आवश्यकता है?क्या वे अपना आरक्षण किसी गरीब दलित,आदिवासी के लिए छोड़ नही सकते?आखिर क्यों दलित,आदिवासी आरक्षण में क्रीमी लेयर की कोई व्यवस्था नही है? एक बार जिस परिवार ने आरक्षण का लाभ ले लिया उस परिवार को दोबारा आरक्षण का लाभ नही मिलना चाहिए.ताकि इसके सही हकदारों को इसका लाभ मिल सके.आज भी हमारे गाँव के दलित,आदिवासी दिनभर मजदूरी करते हैं,शाम को उस पैसे से देशी शराब पीते हैं,अन्धविश्वास और त्योहारों में खूब खर्च करते हैं और पांच साल बाद पैसा,कपडा,दारू,जति,धर्म के नाम पर वोट दे देते हैं. ये ६८ साल पहले भी ऐसे ही थे और कुछ नई किया गया तो १००० साल तक ऐसे ही रहेंगे.पुरे भारत की यही तस्वीर है.इससे हमारे नेता भी खुश,अफसर भी खुश. इसी ब्राम्हणवादी सोच को अब ख़त्म करने की जरूरत है.
गुजरात के पटेल या हरियाणा के जाट पिछड़ा बनने की होड़ में लगे हैं, और जिस देश में पिछड़ा बनने की दौड़ लगी हो वो देश आगे कैसे बढ़ सकता है? आज की भारतीय राजनीति में वोट लेने का सबसे अच्छा साधन जति ही है और राजनेता या अभिजन वर्ग इसे और ज्यादा बढ़ाते रहना चाहते हैं. बाबा साहब अम्बेडकर ने खुद जति प्रथा को नष्ट करने की बात की थी,बढ़ने की नहीं.आज वक्त की जरूरत है की हमें आरक्षण जैसी नीतियों पर पुनर्विचार करके इसे गरीब वंचित समाज के हित में बदलना होगा. सरकार और समाज को ऐसी नीतियां बनानी होंगी जिससे आने वाली शताब्दियों में आरक्षण की जरूरत ही ना पड़े और हम इसके गुलाम होकर ना रह जाएं. शहीद भगत सिंह ने लिखा था की "जब तक समाज में एक आदमी भी भूखा है तो दोषी वो सब हैं जो खा रहे हैं.भूखे को रोटी का सहारा समाज से मिलना चाहिए". दलित,आदिवासियों के मुद्दे को भी हमें जातिगत संकीर्णताओं से ऊपर उठकर वृहत परिप्रेक्ष्य में देखना होगा. हर एक वर्ग और जति के विकास के बिना भारत विश्वशक्ति कभी नही बन सकता.

छोटे बच्चों को अंग्रेजी सिखाने के लिए क्या तरीके अपनाना चाहिए ?

अंग्रेजी वर्णमाला सिखाने का अभिनव तरीका

जितनी सुविधा JNU के छात्रों को मिलती है अगर उस सुविधा का 5% भी गांव के सरकारी स्कूलों में दे दी जाए तो सरकारी स्कूल के बच्चों का भविष्य कैसा होगा?

अध्ययन, अनुसंधान और अपने संगठित जीवन के उदाहरण और प्रभाव द्वारा ज्ञान का प्रसार तथा अभिवृद्धि करना। उन सिद्धान्तों के विकास के लिए प्रयास करना, जिनके लिए जवाहर लाल नेहरू ने जीवन-पर्यंत काम किया। जैसे - राष्‍ट्रीय एकता, सामाजिक न्याय, धर्म निरपेक्षता, जीवन की लोकतांत्रिक पद्धति, अन्तरराष्‍ट्रीय समझ और सामाजिक समस्याओं के प्रति वैज्ञानिक दॄष्‍टिकोण।

जे एन यू , नई दिल्ली के दक्षिणी भाग में स्थित केंद्रीय विश्वविद्यालय है। यह मानविक , समाजिक विज्ञान , विज्ञान अंतरराष्ट्रीय अध्ययन आदि विषयों में उच्च स्तर की शिक्षा और शोध कार्य में संलग्न भारत के अग्रणी संस्थानों में से है। जेएनयू को राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (NACC) ने जुलाई 2012 में किये गए सर्वे में भारी का सबसे अच्छा गुणवत्ता वाली विश्वविद्यालय माना है। NACC ने विश्वविद्यालय को 4 में से 3.9 ग्रेड दिया है, जो कि देश में किसी भी शैक्षणिक संस्थान को प्रदत उच्चतम ग्रेड है।

इनको स्थापना भी इसिलए किया गया था कि जो गरीब वर्ग के बच्चें हैं वह फीस, आवास,भोजन, आर्थिक, कपड़े की वजह से पढाई न छोड़े।

अब आपके सवाल पर आता हूं। गांव के सरकारी स्कूलों के लिए अपने हमने कितनी आंदोलन की हैं?

गांव के स्कूल के लिय हमने कितनी धरणा दिया?

उसके लिए सरकार को सोचने और करने पर मजबूर करना होगा।

ये देश आजाद आंदोलन, धरने के वजह से हुई।

देखिये अच्छा शिक्षक, कॉपी ,पेन सब मुफ्त हैं।

खराब है सिस्टम और जनता।

कमीशन के चक्कर मे घटिया स्कूल भवन निर्माण, घटिया सामग्री, घटिया खाना।

जनता भी तमाशबीन बनी रहती हैं जब तक बड़ा हादसा न हो।

सरकार जितना सरकारी स्कूलों का बजट रखी हैं उतने का सदुपयोग हो जाये तो भी सरकारी स्कूलों की शिक्षा सुधर जाएगी।

जरूरत ही हैं तो सरकार को बेहतर करने आंदोलन करने का। 5% मील चाहे 100% भर्स्ट सिस्टम को ठीक करना, जिम्मेदार बनना पहले जरूरी हैं।

अपने माता-पिता के सामने खुलकर बात करना क्यों महत्वपूर्ण है और इसे कैसे करें?

अपने माता-पिता के सामने खुलकर बात करना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि:

भावनात्मक समर्थन: माता-पिता एक ऐसे स्रोत होते हैं जिनसे आपको भावनात्मक समर्थन प्राप्त होता है। वे आपको बचपन से जानते हैं और आपके भले की देखभाल करने में गहराई से रुचि रखते हैं। जब आप खुलकर उनसे बातें करते हैं, तो आपको उन्हें अपनी भावनाओं को समझने और समस्याओं का समाधान प्राप्त करने का मौका मिलता है।

बंधन मजबूत करना: अपने विचारों और भावनाओं को माता-पिता के साथ साझा करने से आपके रिश्ते में मजबूती आती है। इससे आपके बीच विशेष भावनात्मक जुड़ाव बनता है और आपके रिश्ते में एक गहरा भावनात्मक संबंध बनता है।

तनाव को कम करना: भावनाओं को दबाए रखने से तनाव और चिंता हो सकती है। माता-पिता के साथ खुलकर बात करने से आपको राहत मिलती है और आपका मन हल्का होता है।

समझौतों से बचना: कभी-कभी, माता-पिता और उनके बच्चों के बीच समझौते हो सकते हैं जो भाषा में अस्पष्टता या भ्रम के कारण होते हैं। खुलकर बात करके, आप उन संबंधों को स्पष्ट करते हैं और अनावश्यक झगड़े रोकते हैं।

प्रतिस्थापन बढ़ाना: आपके माता-पिता के पास जीवन में अधिक अनुभव और ज्ञान होता है, जिससे वे आपके लिए मूल्यवान मार्गदर्शन के स्रोत होते हैं। खुलकर बात करके आप उनके साथ विचारविमर्श कर सकते हैं और अपनी परेशानियों का समाधान निकाल सकते हैं।

अब, चलिए देखें कि आप माता-पिता के साथ खुलकर बात कैसे कर सकते हैं:

सही समय और स्थान चुनें: एक ऐसे समय और स्थान का चयन करें जहां आप निजी और बिना अवरोधित बातचीत कर सकें। सुनिश्चित करें कि आपके माता-पिता एक शांत अवस्था में हैं और दूसरे कामों में व्यस्त नहीं हैं।

ईमानदार और खुले रहें: जब आप खुलकर उनसे बातें करें, तो ईमानदार और खुले होने का प्रयास करें। हृदय से बात करें और अपनी भावनाओं को सच्चाई से व्यक्त करें।

धीरे-धीरे शुरुआत करें: अगर आपको खुलकर बात करने में कठिनाई हो रही है, तो छोटे-छोटे विषयों से शुरुआत करें। जब आप आराम से बात करना सीख जाएंगे, तो धीरे-धीरे बड़े मुद्दों को साझा करने के लिए भी तैयार हो जाएंगे।

"मैं" बोलें: अपने विचारों को व्यक्त करते समय "मैं" कथन का प्रयोग करें। उदाहरण के लिए, "मैं अपने स्कूल में बहुत परेशान हूँ" या "मैं अपनी कैरियर के बारे में चिंतित हूँ।"

सुनने की कौशल सिखें: खुले बातचीत के समय, अपने माता-पिता की बातें ध्यान से सुनें। वे भी आपसे विचारविमर्श करने के लिए तैयार हो सकते हैं और उनकी सलाह और समर्थन आपके लिए मूल्यवान हो सकते हैं।

प्रतिक्रिया के प्रति सजग रहें: खुले बातचीत के बाद, आपके माता-पिता की प्रतिक्रिया पर सजग रहें। कभी-कभी, उनकी प्रतिक्रिया आपकी उम्मीदों से भिन्न हो सकती है, लेकिन धैर्य रखें और उन्हें समझने का प्रयास करें।

प्रार्थना और समर्थन का अनुरोध करें: अगर बातचीत करते समय आपको जरूरत महसूस होती है, तो धैर्य से अपने माता-पिता से प्रार्थना और समर्थन का अनुरोध करें। यह आपको और अधिक संबंधित और सुरक्षित महसूस कराएगा।

अधिक सहायता के लिए पूर्ववत पायें: कभी-कभी, कुछ विषय ऐसे होते हैं जिन्हें आप माता-पिता के साथ साझा करने में कठिनाई महसूस करते हैं। ऐसे समय में, आप किसी विशेषज्ञ या साथी द्वारा प्राथमिक सहायता प्राप्त कर सकते हैं जो आपको बातचीत के लिए तैयार कर सकते हैं और संबंधों को समझने में मदद कर सकते हैं।

खुलकर अपने माता-पिता के साथ बात करना एक प्रक्रिया है और यह जीवनभर के लिए बेहद मूल्यवान रिश्ते बनाने में मदद कर सकता है। इसे स्थायी संबंध और विशेष समर्थन का संबंधी महसूस करने के लिए दिनचर्या में शामिल करें।

सुने अनसुने किस्से कहानि!!

एक गांव में दो बुजुर्ग बातें कर रहे थे....

पहला :- मेरी एक पोती है, शादी के लायक है... BA किया है, नौकरी करती है, कद - 5"2 इंच है.. सुंदर है कोई लडका नजर मे हो तो बताइएगा..

दूसरा :- आपकी पोती को किस तरह का परिवार चाहिए...??

पहला :- कुछ खास नही.. बस लडका MA/M.TECH किया हो, अपना घर हो, कार हो, घर मे एसी हो, अपने बाग बगीचा हो, अच्छा job, अच्छी सैलरी, कोई लाख रू. तक हो...

दूसरा :- और कुछ...

पहला :- हाँ सबसे जरूरी बात.. अकेला होना चाहिए.. मां-बाप,भाई-बहन नही होने चाहिए.. वो क्या है लडाई झगड़े होते है...

दूसरे बुजुर्ग की आँखें भर आई फिर आँसू पोछते हुए बोला - मेरे एक दोस्त का पोता है उसके भाई-बहन नही है, मां बाप एक दुर्घटना मे चल बसे, अच्छी नौकरी है, डेढ़ लाख सैलरी है, गाड़ी है बंगला है, नौकर-चाकर है..

पहला :- तो करवाओ ना रिश्ता पक्का..

दूसरा :- मगर उस लड़के की भी यही शर्त है की लडकी के भी मां-बाप,भाई-बहन या कोई रिश्तेदार ना हो... कहते कहते उनका गला भर आया..

फिर बोले :- अगर आपका परिवार आत्महत्या कर ले तो बात बन सकती है.. आपकी पोती की शादी उससे हो जाएगी और वो बहुत सुखी रहेगी....

पहला :- ये क्या बकवास है, हमारा परिवार क्यों करे आत्महत्या.. कल को उसकी खुशियों मे, दुःख मे कौन उसके साथ व उसके पास होगा...

दूसरा :- वाह मेरे दोस्त, खुद का परिवार, परिवार है और दूसरे का कुछ नही... मेरे दोस्त अपने बच्चो को परिवार का महत्व समझाओ, घर के बडे ,घर के छोटे सभी अपनो के लिए जरूरी होते है...

वरना इंसान खुशियों का और गम का महत्व ही भूल जाएगा, जिंदगी नीरस बन जाएगी...

पहले वाले बुजुर्ग बेहद शर्मिंदगी के कारण कुछ नही बोल पाए.

शनिवार, 16 सितंबर 2023

क्या आपने कभी कुछ ऐसा देखा है जिसे देख कर आप स्तब्ध रह गए?

बात मेरे बचपन की है। उस समय मैं पांचवीं कक्षा में पढ़ता था। आज भी मुझे यह घटना अच्छी तरह याद है।

मेरा स्कूल बगल के गांव इंद्रा में था । और आते जाते, उस गांव की सारी गतिविधियों का पता चलता था। स्कूल से कुछ ही दूरी पर जो घर था, उसमें हमेशा किच -किच ,लड़ाई -झगड़े की आवाजे आती रहती थी। एक दिन तो हद ही हो गई ।उस घर से औरतों के रोने -धोने और चिल्लाने की काफी आवाजे आ रही थी। भीड़ भी इकट्टा हो गई। बचाओ बचाओ की आवाजें आने लगी।

हमारे मास्टर जी स्कूल गेट से ना निकलने की हिदायत देकर उस जगह पहुंचे। एक आदमी दो औरतों को मोटी रस्सी और लात -घुसा से बुरी तरह पीट रहा था,जो उनकी मां और पत्नी थी। स्कूल गेट के अंदर से ही इस भयावह दृश्य को देखकर हम सभी बच्चे काफी सहम गए। कुछ औरतें उसे छुड़ा रही थी ।किंतु, वह दानव रुपी आदमी अपनी मां और पत्नी को मारे जा रहा था।

पास ही उसका बैल बंधा था, जो घटना देखकर जोर-जोर से उछल रहा था। उसकी पत्नी बैल के आगे जा गिरी। वह आदमी फिरअपनी पत्नी को मारने बैल की तरफ दौड़ा तभी बैल ने उसे अपनी सींग से गिरा दिया। और इसके बाद गांव के कुछ लोगों ने उसे पकड़ लिया।

(फोटो सोर्स- jagran.com)

तब तक दोनों औरतों की स्थिति काफी नाजुक हो गई थी।बैल को इस तरह देख कर पास खड़ी एक औरत बोली ,यह आदमी जानवर से भी बेकार है।

उस आदमी से इस घटना का कारण पूछा गया तो पता चला कि खाना स्वादिष्ट नहीं होने के कारण ऐसा हुआ और दोनों सास बहू हमेशा बातें ही करती रहती हैं ।

इस घटना के बाद हमारे मास्टर जी गांव वालों को बुलाये और बोले जो आदमी औरतों के साथ छोटी-छोटी बात पर इस तरह का क्रूर ‌व्यवहार करते हैं, यह एक सभ्य पुरुष कि पहचान नहीं है।आप लोग इस पर पाबंदी लगाइए ।नहीं तो , हमें पुलिस की मदद लेनी होगी । ऐसे सब लोगों की वजह से गांव समाज का माहौल खराब होता है।

धन्यवाद

सोमवार, 11 सितंबर 2023

जेल के अंदर कैदी कैसे रहते हैं, क्या खाते हैं, कैसे अपने दिन गुजारते हैं?

दो प्रकार के केदी जेल में बंद होते हैं। पहला जिनको किसी अपराध में बन्द किया है और जिनका अभियोजन जारी है। दूसरे वे जिनका अभियोजन पूरा हो गया है और वे दोषी होकर सजा काट रहे हैं। पहले वाले कैदी कुछ नहीं करते हैं। दूसरे वाले कैदियों को जेल से सफेद यूनिफॉर्म पहनने को मिलती है। ये सुबह से शाम तक काम करते हैं। सुबह शाम की चाय बनाना, नाश्ता, दोपहर का भोजन फिर रात्रि भोजन बनाना व वितरित करना। जो यह नहीं कर सकते हैं उन्हें अन्य काम जैसे दरी बनाना, लकड़ी की सामग्री बनाना व अन्य घरेलू उत्पाद बनाना सिखाया जाकर यह सब बनवाया जाता है। प्रत्येक कैदी को उसके द्वारा किए गए कार्य के एवज में धन दिया जाता है जो उसके लिए एकत्रित होता रहता है और सजा पूरी होने पर यह राशि उसे मिलती है। इस प्रकार इनकी प्रतिदिन की दिनचर्या होती है। कुछ सामाजिक संगठन कभी कभी कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित करते हैं।

रविवार, 10 सितंबर 2023

क्या आप कुछ बेहतरीन साझा कर सकते हैं ?

ये कहानी सन् 1849 की है, जब अमेरिका के न्यूयॉर्क मार्टिसबर्ग में रहने वाले "वाल्टर हंट" नाम का एक आदमी बेहद गरीबी में जीवन यापन कर रहा था । लाख मेहनत करने के बावजूद भी वाल्टर अपने पूर्वजों द्वारा लिया गया भारी क़र्ज़ नहीं चुका पा रहे थे, जिसके कारण वे बेहद तनाव में अपना जीवन गुजार रहे थे।

वाल्टर बचपन से ही अपने पिता के साथ लोहे के व्यसाय से जुड़े हुए थे। उनमें कुछ नया करने का उत्साह कम उम्र से ही था । वे हमेशा कुछ नया और विचित्र कार्य करने के बारे में सोचा करते थे।

बहुत सोच-विचार के बाद वाल्टर ने महिलाओं की ज़रूरत को समझते हुए सबसे पहले सेफ्टी पिन का निर्माण किया । कहा जाता है कि वाल्टर ने मात्र तीन घंटे के अंतराल में ही सेफ़्टी पिन का अविष्कार कर दिया था। इस पिन को वाल्टर ने सबसे पहले ‘डब्लू आर एंड कम्पनी’ को बेचा।बाद में कम्पनी ने उन्हें एक बड़ी संख्या में सेफ्टी पिन बनाने का ऑर्डर दिया । अपने इस अविष्कार से वाल्टर ने 400 $ कमाएं और अपना पूरा कर्जा वापस कर दिया। सेफ्टी पिन के आविष्कार के बाद भी वाल्टर को ऐसा नहीं लगा था कि उन्होंने कुछ बड़ी खोज की है।

वाल्टर ने सबसे पहले सेफ्टी पिन को तकरीबन 8 इंच के ताम्बे के तार से बनाई थी । ये पहली पिन थी, जिसमे पिन को रीकने के लिए बक्कल लगा हुआ था ।

सेफ्टी पिन के आविष्कार के बाद वाल्टर ने सिलाई मशीन, ट्राम घंटी, स्पिनर और सड़क साफ़ करने की मशीन का भी आविष्कार किया । वैसे तो वाल्टर के अनेक अविष्कार उनके नाम पर पेटेंट है लेकिन वे अपने सिलाई मशीन के आविष्कार को कतई पेटेंट नहीं कराना चाहते थे क्योंकि उनका मानना था कि इससे मशीन की कीमत बढ़ जाएगी, जिससे ग़रीब लोगों को इसे ख़रीदने में मुश्किलें होगी जो बाद में बेरोजगारी का भी कारण बन सकती है । 62 वर्ष की उम्र में 8 जून 1859 को उनका निधन हो गया लेकिन वे अपने जीवन के माध्यम से पूरी दुनिया को बताने में सफल हुए कि परिस्थितियां चाहे कितनी भी बुरी हो, कुछ न कुछ करने की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है।

उनके हौसले और ज़ज़्बे को सलाम......!!🙏🎯

शनिवार, 9 सितंबर 2023

विज्ञान हमारे दैनिक जीवन के लिए कैसे उपयोगी है?

  1. एक बुढ़िया एक दिन हाथ मे एक रुपया लेकर सेठ की दुकान पर गयी ,और काफी देर तक आते जाते ग्राहकों को देखती रही,
  2. जब सेठ की नजर उस बुढ़िया पर पड़ी ,तो उसने पूछा तुम क्या देख रही हो I
  3. बुढ़िया बोली सेठ जी तुम कितना कमा लेते हो ,सेठ ने चश्मा ऊपर करते हुए उसे पूरी तरह निहारा ,और विश्वास जम जाने पर कहा साल मे दुगने हो जाते हैं , पर तुम यह क्यों पूछ रही हो,
  4. बुढ़िया बोली सेठ जी मै बहुत गरीब हूँ ,जैसे तैसे कर यह एक रुपया बचाकर लायी हूँ ,
  5. सोच रही हूँ ,कि यदि आप इसे अपने व्यापार मे लगा लो तो मेरा भी कुछ भला हो जाए I
  6. सेठ को दया आ गयी ,उसने अपने मुनीम को बोला इस बुढ़िया का एक रुपया बही खाते मे जमा कर लो I
  7. बुढ़िया बहुत खुश हुई ,और जाते जाते बोली सेठ जी मै 25 साल बाद आऊँगी और अपनी अमानत लाभ सहित आपसे ले लूँगी I सेठ ने भी कहा ठीक है I बात आयी गयी हो गयी I
  8. 25 साल बाद बुढ़िया सेठ से अपने रुपए वापिस लेने आई , सेठ जी ने मुनीम को बोला कि इसे 10 रूपे दे दो,
  9. बुढ़िया बोली नहीं सेठ जी ,जो मेरा हिसाब हो सो दे दो I सेठ ने बात को ख़त्म करने के अंदाज मे कहा मुनीम जी इसे 100 रूपे देकर छुट्टी करो I
  10. लेकिन बुढ़िया इस बार भी बोली कि नहीं सेठ जी, जो मेरा हिसाब बना हो सो दो I हारकर सेठ ने मुनीम को हिसाब लगाने को कहा ,
  11. हिसाब लगाने के बाद मुनीम का सिर चकराया और उसने सेठ जी के कान मे कुछ कहा ,सुनकर सेठ के होश फाख्ता हो गए

अब आप सभी के लिए यह प्रश्न है, कि मुनीम ने कितने रूपे का हिसाब बताया I हाँ आपको ईमानदारी से पोस्ट पढ़ते ही बिना हिसाब लगाए अपनी अनुमानित राशि बतानी है ,बाद मे हिसाब लगाकर सही राशि पोस्ट के उत्तर मे दे सकते हो, ताकि सभी को मनी वैल्यू पता लगे I।

1=2

2=4

3=8

4=16

5=32

6=64

7=128

8=256

9=512

10=1024

11=2048

12=4096

13=8192

14=16384

15=32768

16=65536

17=131072

18=262144

19=524288

20=1048576

21=2097152

22=4194304

23=8388608

24=16777216

25=33554432( तीन करोड़ पैतीस लाख चौवन हजार चार सौ बत्तीस) रुपया मात्र 🙏❤

मूल सोर्स है गूगल इमेज।

गाँव में एक किसान रहता था जो दूध से दही और मक्खन बनाकर बेचने का काम करता था..

एक दिन बीवी ने उसे मक्खन तैयार करके दिया वो उसे बेचने के लिए अपने गाँव से शहर की तरफ रवाना हुवा..वो मक्खन गोल पेढ़ो की शकल मे बना हुआ था और हर पेढ़े का वज़न एक kg था..

शहर मे किसान ने उस मक्खन को हमेशा की तरह एक दुकानदार को बेच दिया,और दुकानदार से चायपत्ती,चीनी,तेल और साबुन वगैरह खरीदकर वापस अपने गाँव को रवाना हो गया..

किसान के जाने के बाद -.. .दुकानदार ने मक्खन को फ्रिज़र मे रखना शुरू किया.....

उसे खयाल आया के क्यूँ ना एक पेढ़े का वज़न किया जाए, वज़न करने पर पेढ़ा सिर्फ 900 gm. का निकला, हैरत और निराशा से उसने सारे पेढ़े तोल डाले मगर किसान के लाए हुए सभी पेढ़े 900-900 gm. के ही निकले।

अगले हफ्ते फिर किसान हमेशा की तरह मक्खन लेकर जैसे ही दुकानदार की दहलीज़ पर चढ़ा..

दुकानदार ने किसान से चिल्लाते हुए कहा: दफा हो जा, किसी बे-ईमान और धोखेबाज़ शख्स से कारोबार करना.. पर मुझसे नही।900 gm.मक्खन को पूरा एक kg. कहकर बेचने वाले शख्स की वो शक्ल भी देखना गवारा नही करता..

किसान ने बड़ी ही "विनम्रता" से दुकानदार से कहा "मेरे भाई मुझसे नाराज ना हो हम तो गरीब और बेचारे लोग है, हमारी माल तोलने के लिए बाट (वज़न) खरीदने की हैसियत कहाँ" आपसे जो एक किलो चीनी लेकर जाता हूँ उसी को तराज़ू के एक पलड़े मे रखकर दूसरे पलड़े मे उतने ही वज़न का मक्खन तोलकर ले आता हूँ।

जो हम दुसरो को देंगे,

वहीं लौट कर आयेगा...

चाहे वो इज्जत,

सम्मान हो,

या फिर धोखा...

सोमवार, 4 सितंबर 2023

रोचक बातें

चाहिए सबको गाय का शुद्ध देशी घी लेकिन पालेंगे लोग घर घर पर कुत्ता !!

अब यह बताओ कि घी मिलेगा कहाँ से ??

या तो केमिकल डाल कर बनाया जाएगा नहीं तो कुत्ते से निकाला हुआ घी खाओ ।

क्यों माँग करते हो गाय का "शुध्द" घी की ??

आजकल पशु प्रेमी या Animal Lover उन्हें ही बोला जाता है जो कुत्ते के साथ जीभ से जीभ डालकर फ़ोटो खिंचायें ,उन्हीं के साथ सोएं और भोजन करें ।

मतलब पहले सब पशु हत्यारे थे मानो !!!! 😑

पहले के समय में एक गरीब से गरीब व्यक्ति के घर चार पाँच गायें आसानी से मिल जाती थी ।

आजकल के लोग शादी विवाह लड़के और लड़की की Salary देखकर और यह देखकर कि माँ बाप से अलग रह रहा हो , करते हैं ।

लेकिन पहले कोई उस व्यक्ति के दरवाजे तक नहीं जाता था जिसके घर पशु धन न हो ।

पहले के समय में यह देखकर शादी विवाह टाल दिया जाता था या नहीं करते थे कि उसके दुवारे मात्र 10 पूँछें दिखी , मतलब उसके घर मात्र 10 ही गाय भैंस हैं ।

जिसके घर कम से कम 50 गायें होती थी , उसे सम्पन्न और वैभवशाली समझा जाता था ।

पहले के समय में किसी के घर का आकलन उसके दुवारे पड़े हुए अनाज और दलान में भरे हुए अनाज की बोरियों से की जाती थी ।

तब दालें और चावल पैकेटों में दरिद्रों की तरह नहीं आते थे ।

बड़े बड़े ओसार बरामदा दालों , तिलहनों , बोरियों में भरे अनाजों से पटा रहता था ।

पहले किसी को कोई भी आवश्यकता होती थी तो Barter system चलता था ।

जैसे किसी ने चावल बोया है और किसी ने दाल । तो जिसको जो चाहिए वह चावल देकर दालें , बाजरा , जौ , ज्वार ,सरसों इत्यादि लेता था ।( गेहूँ तब इतना नहीं बोया जाता था )

मुझे याद है सुबह सुबह हम 4 बजे जब भोर में जागते थे तो हर घरों से दूर दूर तक बस बाल्टियों में दूध के छंन्नं छन्न दुहने की आवाज़ें आती थी ।

हमने वह जमाना देखा है जब भरी भरी ताजे ताजे दूध की 6 से 10 बाल्टियाँ घर के मुख्य दरवाजे पर रखी रहती थी ।

आजकल के लोग क्या जानें दूध और दही क्या होता है ।

बोरसी में आग सुलगा कर कच्चा दूध पूरे पूरे दिन भर मटके में खौलता रहता था । लाल हो जाता था पूरा । किसी के भी घर में घुस जाओ बस जलते दूध की महक , घी , दही , मट्ठे की महक से पूरा घर महकता रहता था ।

सुबह , दिन दोपहर शाम हर वक्त घी दूध दही से सब डूबे रहते थे ।

ओहहः !!! हाय !! क्या दिन थे वह । तब उस समय यह कभी नहीं सोचा था कि यह दिन गूलर के फूल के समान दूभर हो जाएगा और जब हम अपने बच्चों को यह बताएँगे कि ऐसा था तो वह यह सब बातें गप्प मानेंगे !!

जाने कहाँ गए वह दिन !!

कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन !!

हम सोच तक नहीं सकते थे कि कभी गाय के घी के आगे भी "शुद्ध" लिखने की आवश्यकता भी पडेगी ।

कभी सोचा भी नहीं था कि दूध के आगे भी "शुद्ध" लिखने की आवश्यकता पड़ेगी ।

अरे घी का मतलब ही शुद्ध होता है । दूध तो स्वयं में ही शुद्ध है ।

फिर यह "शुद्ध" लिखने की बीमारी कैसे आयी ????

और इसी को हम विकास कहते हैं !!

गज़ब हमारी मानसिकता बन गयी है ।। अरे विकसित तो हम पहले थे कि हम स्वयं आत्म निर्भर थे और वैभव धन धान्य से परिपूर्ण थे । न ज्यादा हाय हाय और न ही इतनी मानसिक विपन्नता ।

देखिएगा ज्यों ज्यों हम विकसित होते जायेंगे , कुत्ते हमारे बेड पर आते जायेंगे और गायों का विनाश होता जाएगा और वह बाहर घूमेंगी ।

यही कलियुग के विकास का द्योतक है ।

जितना हम कुत्ते के साथ हम बिस्तरी करने लगेंगे उतना हम विकसित होते जाएंगे । देखना एक दिन हम उस विकास के मुहाने पर होंगे जब अपने पालतू कुत्ते से अपना बच्चा पैदा करने को आधुनिकता की सर्वोच्च निशानी मानी जायेगी औरहम उसको सगर्व स्वीकार करेंगे ।

विदेशों में तो चल पड़ा है , लोग अपने कुत्ते के Sperms को सहेज कर रखवाते हैं ताकि उसको कभी उपयोग में ला सकें ।

सब होगा , देखते जाईयेगा ।

कलियुग अपना वर्चस्व अवश्य दिखायेगा ।

शुक्रवार, 1 सितंबर 2023

जय जोहार

उसने कहा - कौन सी जाति से हो ?

मैंने कहा :- अपनी बताओ ? वह अकड़कर बोला :- मैं ब्राह्मण हूँ।

मैंने भी सीना फुलाकर कहा :- मैं [आदिकिसान/आदिवासी] हूँ।

उसकी अकड़ ढीली हो गई बोला :- शूद्र (आदिवासी) तो जाति नहीं वर्ण है।

मैंने कहा :- तुमने भी तो अपनी जाति नहीं वर्ण बताया है।जाकर पहले अपने बाप से अपनी जाति पूछकर आओ,फिर मेरी जाति पूछना।

दूसरे दिन फिर मिला बोला :- मेरा वर्ण और जाति दोनों ब्राह्मण ही है।

मैंने कहा :- फिर मेरी जाति और वर्ण अलग कैसे हो सकते हैं ?

उसने कहा :- हम सर्वश्रेष्ठ हैं।

मैंने कहा :- कैसे समाज के लिए आपके पूर्वजों ने क्या किया आपके पूर्वजों ने हवाई जहाज बनाए रेल बनाई मिक्सी बनाई टेलीविजन बनाया रेडिओ बनाये नाव बनाई साइकिल बनाई कार बनाई कया बनाया जिससे तुम श्रेष्ठ हो गए क्या किया सामाजिक स्तर पर .

उसने कहा :- बो बोला ऐसा तो कुछ नहीं किया .

मैंने कहा :- अन्न पैदा किया हमने,पशुपालन किया हमने,घर से लेकर खुरपी फावड़ा कुदाल,बाल्टी लोटा,खटिया कुर्सी मेज कपड़ा लत्ता रजाई बिस्तर बनाया हमने और सर्वश्रेष्ठ तुम कैसे हो गए ?

समाज के लिए तुमने किया क्या है कि जो सर्वश्रेष्ठ हो गए ?

उसने कहा :- हमने सत्यनारायण कथा करवाया,रामायण महाभारत का घर-घर पाठ करवाया,जन्म से मरण तक का कर्मकांड पूजा-पाठ करवाया,मंदिरों में ईश्वर की सेवा में लगे रहते हैं,लोगों को तीर्थयात्रा के लिए प्रोत्साहित करते हैं शुभ-अशुभ मुहूर्त बताते हैं,लोगों का भविष्य बताते हैं,स्वर्ग नर्क पूर्वजन्म पुनर्जन्म मोक्ष आदि के बारे में लोगों को बताया समाज के हमीं मार्गदर्शक हैं इसलिए सर्वश्रेष्ठ हैं।

हमने कहा :- यह नहीं बताया की सूरज किसने निगल लिया था समुन्द्र पी गए धरती बगल मैं दबा लिए कहीं लिखा की खड्डी मैं छुपा दिए खड्डी कहाँ रखी थी समुन्दर पीने बाला कहाँ खड़ा था सूरज निगलने बाला कहाँ खड़ा था ये मानव हित है या जनता को डरा रखा है .आजकल भी नहीं चूक रहे बुलबुल के परों पर सावरकर को बिठा कर दुनिया भृमण करा रहे हो ?

यह नहीं बताया कि यह सब करने के लिए दक्षिणा के रूप में मोटी रकम भी वसूल करते हैं और उसी से तुम्हारा जीवन यापन होता है।तुम अपना काम बंद कर दोगे तो समाज पर क्या फरक पड़ने वाला है ?

समाज सुचारू रूप से चलता रहेगा और हम अपना काम बंद कर देंगे तो....

समाज को छोड़ो तुम्हारे लिए रोटी कपड़े के लाले पड़ जायेंगे तो श्रेष्ठ कौन हुआ जीवनावश्यक वस्तुओं का उत्पादन व निर्माण करने वाला या काल्पनिक भाग्य,भगवान,देवी-देवता,आत्मा परमात्मा,पूर्वजन्म,पुनर्जन्म,शुभ-अशुभ मुहूर्त बताकर समाज में पाखंड अंधविश्वास फैलाने वाला ?

उसके होंठ सूखने लगे फिर भी बुदबुदाया :- आप हिन्दू धर्म का अपमान कर रहे हो आप एक ब्राह्मण का अपमान कर रहे हो आपको भयंकर पाप लगेगा।

हमने कहा :- जाकर किसी कायर अंधविश्वासी को डराना

जय #आदिकिसान ....जय #जोहार.....जय #किसान

..संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं ......

..आवाज दो हम एक हैं .........

#पाखंडमिटाओशासन_करो !

#शिक्षितबनोऔरशिक्षितकरो !!