[ टिप्पणी 1 : इस जवाब में तीन सेक्शन है। सेक्शन A में बताया गया है कि बेरोजगारी की मुख्य वजह क्या है, और रोजगार कैसे बढाया जा सकता है। सैक्शन Bबताता है कि किस इबारत को गेजेट में छापकर सरकार बेरोजगारी कम कर सकती है। सैक्शन C कम महत्त्वपूर्ण है, और इसमें उन गलत तरीको का संक्षेप है जिनका इस्तेमाल करके सरकारे रोजगार की समस्या को मेनेज करती है। ]
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सेक्शन – A
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रोजगार के अवसर 2 तरीके से पैदा हो सकते है :
- सरकारी नौकरियां
- स्वरोजगार और प्राइवेट नौकरियां
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(1) सरकारी नौकरियां : केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों को शामिल करते हुए लगभग 2 करोड़ पद है। फिलहाल सरकार मिशन India on OLX पर काम कर रही है और इस वजह से सरकारी कम्पनियां एवं विभागो का दायरा तेजी से सिकुड़ रहा है। अगले 4 साल में मोदी साहेब देश की आधी संपत्तियां और सार्वजनिक उपक्रम बेच चुके होंगे, और उन सभी विभागों को निजी कम्पनियों को दे चुके होंगे जो दिए जा सकते है। कुछ 10 वर्षो में सरकार का आकार ही आधा रह जाएगा। अत: मेरे दृष्टिकोण में रोजगार पाने का यह रास्ता बहुत तेजी से सिकुड़ रहा है, और जल्दी ही बंद भी हो जाएगा। सरकार सिर्फ 3 विभाग अपने पास रखेगी -
- टेक्स - क्योंकि यह विभाग पैसा वसूलने का काम करता है
- पुलिस - क्योंकि प्रतिद्वंदियों और पब्लिक को जूत लगाने के काम में आता है
- अदालतें - जज वैसे भी सरकार के नियन्त्रण में नहीं है, तो अदालतें बेचना सरकार के अख्तियार में नहीं है।
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अत: मैं जब रोजगार की बात करता हूँ तो सरकारी नौकरियों को पहले ही साइड में कर देता हूँ। हालांकि सरकार चाहती है कि ज्यादा से ज्यादा युवा सरकारी नौकरियों के लिए तैयारी करें।
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(2) स्वरोजगार और प्राइवेट नौकरियां : सभी प्रकार के स्वरोजगार एवं प्राइवेट नौकरियों की धुरी कारखाने होते है। यदि किसी देश में ज्यादा छोटे-मझौले कारखाने अधिक होंगे तो ज्यादा माल बनायेंगे और इस माल को खपाने में रिटेल, होलसेल, ट्रेडिंग, ट्रांसपोर्टेशन, मार्केटिंग आदि के बहुत से सारे कारोबार शुरू होंगे, और तेजी से रोजगार के अवसर खुलेंगे। यदि आप 100 छोटी-मझौली फैक्ट्रियो की जगह पर 2 बड़ी कम्पनियां खड़ी कर देंगे तो रोजगार और इनोवेशन दोनों की बैंड बज जायेगी।
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तकनिकी विकास और रोजगार का मॉडल यह है कि यदि 100 फैक्ट्रियां चल रही हो तो इसमें से 80 फैक्ट्रियां छोटी हो, 15 मझौली हो, और 5 बड़ी हो। यदि पूरे बाजार में सिर्फ 2 भीमकाय कम्पनियां हुयी तो उनकी ताकत बेहद बढ़ जायेगी और वे एकाधिकार बना लेंगे। और तब दुसरे चरण में वे दाम बढ़ा देंगे। और इस तरह बेरोजगारी के साथ साथ महंगाई भी बढ़ जायेगी !!
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और सबसे बड़ी बात यह है कि जहाँ 95% छोटी और मझौली इकाइयां नहीं होगी वहां पर तकनिकी उत्पादन करने वाली 2 ताकतवर कम्पनियां भी खड़ी नहीं की जा सकती। क्योंकि तकनिकी उत्पादन करने वाली बड़ी कम्पनी का आधार छोटी-मझौली इकाइयाँ ही बनाती है। यदि आपके पास छोटे कारखाने नहीं है तो इनोवेशन नहीं आएगा और बड़ी कम्पनियां भी खड़ी नहीं हो पाएगी।
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भारत में तकनिकी रूप से समृद्ध छोटे कारखाने नहीं है, जबकि अमेरिका में है। और इसी वजह से अमेरिकी कम्पनियां भारत के बाजार को टेक ओवर कर रही है !! चीन में जूरी सिस्टम नहीं होने के कारण तकनिकी रूप से उत्कृष्ट प्रोडक्ट बनाने वाली भीमकाय कम्पनियां खड़ी नहीं हो पायी, किन्तु उनके पास छोटे-मझौले कारखानों के बेस होने के कारण उनका दखल भी भारत में लगातार बढ़ रहा है !!
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(2.1) अब 80 : 15 : 5 के इस मॉडल में लागू करने के लिए हमें निम्नलिखित 2 बिन्दुओ को सुनिश्चित करना होगा।
- हमें ऐसी व्यवस्था चाहिए कि ज्यादा से ज्यादा छोटे कारखाने लग सके।
- हमें यह व्यवस्था भी चाहिए कि बड़ी कम्पनियां छोटी और मझौले कारखानों को गलत वजह से निगल न जाए।
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जमीन ऐसी चीज है, जो कभी बढती नहीं है, और न ही इसका उत्पादन होता है। काम में आने लायक जमीन सीमित होती है। लोगो को रहने, फैक्ट्री चलाने, दुकान-ऑफिस आदि लगाने के लिए सबसे पहले जमीन की जरूरत होती है। आज जमीन इतनी महंगी है कि साधारण आदमी को शहरी क्षेत्र में जमीन का टुकड़ा खरीदने में आधी जिन्दगी निकल जाती है। तो कारखाना किधर लगाएगा आदमी, हवा में ? और जिनके पास मीलो के मील जमीने है उनने कुछ करना नहीं है, इस जमीन का। उनके पास पूरी उम्र बैठकर खाने के लिए पैसा है।
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उदाहरण के लिए, मुंबई की लगभग 40% भूमि कुछ 100 परिवारों के पास है और यह जमीन खाली पड़ी है। न तो वे इसका कोई इस्तेमाल करते है, और न ही इस पर कोई टेक्स देते है। अकेले गोदरेज के पास मुंबई की 10% जमीन है। और मुंबई के शीर्ष 10 भू संग्रहकर्ताओ के पास मुंबई की कुल जमीन का 20% हिस्सा है, और यह पूरी तरह अकार्यशील पड़ा है –
Nine landowners control a fifth of Mumbai's habitable area | Mumbai News - Times of India
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और किराए पर जमीन लेने जाओ तो दाम इतने ज्यादा है कि बन्दे को किराए का मीटर ही मार देता है। मेरी जानकारी में ऐसे सैंकड़ो उदाहरण है, जिन्होंने सिर्फ किराए का घाटा खाकर ही धंधा बंद कर दिया। और जब आपकी जमीन / किराए की लागत ही इतनी ज्यादा है तो आपका इन्वेस्टमेंट बढ़ गया और माल महंगा हो गया। तो खरीदेगा कौन आपका माल। चीन आपसे आधे दाम में आपके घर में आकर माल दे रहा है !!
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यदि हम जमीन की कीमतें 5 गुणा भी कम करने में कामयाब हो जाते है तो अगले 2 वर्ष के भीतर भारत में कारखानों की संख्या लगभग 2 गुणी हो जायेगी। और फिर जैसे जैसे कीमतें गिरेगी कारखानों की संख्या भी बढती जायेगी। यदि जमीन की कीमतें 10 गुना कम हो जाती है तो कारखानों की संख्या लगभग 5 गुना तक बढ़ जायेगी।
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( 2.2) यदि जमीन के दाम 10 गुना तक गिर जाते है तो निम्नलिखित परिवर्तन आयेंगे :
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(i) घर, दूकान, ऑफिस आदि लेना आसान हो जाएगा : जमीन की कीमतें 5 से 10 गुना तक गिरने के बाद साधारण नागरिक भी जमीन ले सकेगा। जमीन के दाम गिरने से किराया भी गिर जाएगा, और जो नागरिक किराए पर रह रहे है, उन्हें कम दाम चुकाने पड़ेंगे। इस तरह बिना किसी सरकारी सहायता के आवास की समस्या हल हो जायेगी। अभी ज्यादातर लोग सड़को पर ठेले, केबिन आदि पर अपना रोजगार चलाते है। इसकी एक वजह जमीन की ऊँची कीमतें है। जमीन सस्ती होने से उन्हें सस्ते किराए में जगह मिलने लगेगी।
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(ii) तकनिकी वस्तुओं की कीमतें गिरना एवं रोजगार का सृजन : यदि जमीन की कीमतें 10 गुणा कम हो जाती है, तो फैक्ट्रियो की संख्या भी कमोबेश इसी अनुपात में बढ़ेगी। जितनी ज्यादा फैक्ट्रियां लगेगी, उतना ही कम्पीटीशन भी बढेगा। इससे वस्तुओं की लागत भी गिरेगी और गुणवत्ता में भी सुधार आएगा। और इस वजह से तकनिकी वस्तुओं के दाम गिरने लगेंगे। और इन्हें चलाने के लिए कारखाना मालिको को लोगो की जरूरत होगी। इस तरह बिना किसी सरकारी योजना और सहायता के बड़े पैमाने पर रोजगार खुलने लगेगा। सभी प्रकार के कारोबार जैसे रिटेल, फुटकर, ट्रेडिंग, ट्रांसपोर्टेशन आदि कारखानो की संख्या पर निर्भर करते है। अत: कारखाने बढ़ने से सभी तरह का धंधा बढेगा।
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(iii) तकनिकी अविष्कार एवं विकास : जब किसी देश में छोटी छोटी इकाइयों का आधार बन जाता है तो नए नए आइडिया और अविष्कार सामने आने लगते है। इस तरह जल्दी ही भारत की स्वदेशी इकाइयां सस्ते दाम में बेहतर तकनिकी उत्पादन करने लगेगी, जो कि मझौली और बड़ी कम्पनियों को तकनिकी सपोर्ट उपलब्ध करवाएगी।
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(iv) आयात कम होगा और निर्यात बढ़ने लगेगा : अगले चरण में भारत के कारखाना मालिक चीन जैसे देशो से बेहतर और सस्ता माल बनाने की क्षमता जुटा लेंगे और तब चीन भारत में अपना बाजार खोने लगेगा। इससे एक तरफ आयात में कमी आएगी, और दुसरी तरफ भारत अपनी स्वदेशी वस्तुओं का निर्यात अन्य देशो में करने लगेगा। इस तरह भारत के कारोबारीयों के लिए बाजार विस्तृत होने लगेगा।
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(v) हुनरमंद तकनीशियनों का ट्रेनिंग ग्राउंड : नए तथा छोटे कारखाना मालिक कर्मचारियों की स्किल सुधारने और उन्हें व्यावसायिक रूप से प्रशिक्षित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते है। यदि किसी अर्थव्यस्था में छोटे कारखानों की संख्या घटेगी तो हुनरमंद कर्मचारियों की संख्या में कमी आएगी। शिक्षण संस्थाओ से जो डिप्लोमा धारी छात्र निकलते है उन्हें अपनी स्किल को सुधारने का अवसर छोटी इकाइयां ही देती है। कॉलेज एवं अन्य अकादमिक प्रशिक्षण संस्थानो की इसमें कोई प्रायोगिक भूमिका नहीं होती। असली स्किल बाजार में प्रतिस्पर्धा से आती है किताबें पढने से नही। अत: छोटी इकाइयों की संख्या बढ़ने से भारत में स्किल डेवलेपमेंट का आधार मजबूत होगा।
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पाठक इस बात को नोट करें कि चीन या अमेरिका वहां के लोगो को तकनिकी वस्तुएं बनाने कोई इंजेक्शन नहीं दे रहे है। न ही उनके लिए इन देशो ने कोई स्पेशल कोर्स शुरू किये हुए है। और R & D पेड मीडिया द्वारा चलायी गयी एक बकवास थ्योरी है। सरकार को सिर्फ इतना करना है कि जमीन सस्ती करने के कानून छापें। बाकी काम देश के नागरिक खुद कर लेंगे।
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टीवी पर आकर पोपाट करने से रोजगार नहीं आता है। रोजगार के लिए कारखाने चाहिए, और कारखानों के लिए जमीन !! मतलब, मुझे इन पेड अर्थशास्त्रियों / पेड मीडिया कर्मियों और बुद्धिजीवियों की यह बात आज तक समझ नहीं आई कि ये जमीन की कीमतों पर बात किये बिना रोजगार पर इतना लम्बा बकते-लिखते कैसे है ?
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अर्थव्यवस्था और रोजगार पर ये बुद्धिजीवी हजार पेज की किताब लिख देते है और उसमे जमीन का ज नही होता !! मुद्रा स्फीति, संकुचन, इन्फ्लेशन, ग्रोथ रेट, विकास, उदारीकरण, आंत्रप्रन्योर, जीडीपी, बिलियन डॉलर इकॉनोमी, ट्रिलियन डॉलर इकॉनोमी और न जाने क्या क्या ये लोग अपने थेले में से निकाल कर बेचते रहते है। रोजगार पर दुनिया भर की पंचायती कर लेंगे पर जमीन की कीमतों पर कुछ नहीं बोलेंगे।
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(2.3) चीन तकनीकी वस्तुओं का उत्पादन सस्ते में क्यों कर पा रहा है ?
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चीन में सभी जमीनों का स्वामित्व चीन की सरकार के पास है, और निजी व्यक्तियों को जमीन लीज पर दी जाती है। यदि आप कम कीमत में कोई छोटी मोटी वस्तु बनाने का प्रोजेक्ट बनाकर स्थानीय प्रशासन को देते हो तो आपको बेहद कम लीज पर जमीन मिल जायेगी। आपका धंधा चल रहा है तो लीज आगे बढा सकते है, वर्ना जमीन खाली कर सकते है। यदि आप एक्सपोर्ट कर रहे हो तो वे आपको और भी कम लीज पर इच्छित जमीन दे देते है। तो वहां बिना जमीन ख़रीदे व्यक्ति कम पैसे में फैक्ट्री शुरू कर लेता है। कम जोखिम होने से ज्यादा लोग नए विचार लेकर आते है और प्रयास करते है। ज्यादा लोगो की आसान एंट्री वहां पर प्रतिस्पर्धा को जन्म दे देती है, और चीन सस्ते में माल बना पाता है। दूसरी वजह चीन की अदालतें है। चीन की अदालतों में भ्रष्टाचार कम होने के कारण वहां जज भारत की तुलना में कम हफ्ता वसूलते है, और लागत नहीं बढती।
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[ टिप्पणी 2 : यदि आप भी छोटे मोटे टाटा-गोदरेज है और आपके पास भी अच्छी खासी जमीन रिजर्व में पड़ी है, और आपको लगता है कि जमीन की कीमतें कम होने से आपको नुकसान हो जाएगा तो आपके लिए यह जवाब ख़त्म हो चुका है। क्योंकि निचे उस ड्राफ्ट के बारे में बताया गया है जिसे गेजेट में छापने के सिर्फ 6 महीने में शहरी क्षेत्रो एवं उसके आस पास के इलाको की जमीन के दाम 10 गुना तक गिर जायेंगे। ]
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सेक्शन – B
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समाधान - रिक्त भूमि कर
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(1) प्रस्तावित रिक्त भूमि कर क्या है ?
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यह प्रस्तावित क़ानून अकार्यशील एवं अनुपयोगी जमीन को कर योग्य बनाता है। इस क़ानून के गेजेट में छपने के बाद जीएसटी रद्द हो जाएगा और इसकी जगह रिक्त भूमि कर लागू होगा। रिक्त भूमि कर की दर 1% सालाना होगी। इस कानून को प्रधानमन्त्री धन विधेयक के रूप में लोकसभा से पास कर सकते है, और इसे राज्यसभा से अनुमति की जरुरत नहीं है।
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(2) प्रस्तावित रिक्त भूमि कर क़ानून के मुख्य बिंदु :
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2.1. यह क़ानून जीएसटी की जगह लेगा, और यदि आप इस कर के दायरे आते है तो आपको साल में एक बार रिक्त भूमि कर चुकाना होगा। यह क़ानून भूमि पर कर नहीं लगाता, बल्कि अनुपयोगी एवं अकार्यशील पड़ी भूमि को कर के दायरे में लेता है। यदि आपके या आपके परिवार के पास अतिरिक्त भूमि नहीं है तो आपको यह कर नहीं चुकाना होगा। रिक्त भूमि कर से सरकार को इतना राजस्व आ जाएगा कि GST की जरूरत नहीं रह जायेगी।
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2.2. इस क़ानून के आने के बाद माल बनाने, माल खरीदने, माल बेचने, स्टॉक रखने, ट्रांसपोर्ट करने आदि पर न तो कोई टेक्स चुकाना होगा, और न ही कारोबारी को इसका हिसाब सरकार को देना होगा। करदाता साल में 1 बार सिर्फ रिक्त भूमि कर का रिटर्न भरेगा। यदि वह आयकर के दायरे में आता है, तो आयकर रिटर्न उसे अलग से भरना होगा। चुकाए गये आयकर को देय रिक्त भूमि कर में से घटा दिया जाएगा, ताकि करदाता को दोहरा टेक्स न चुकाना पड़े।
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2.3. प्रति व्यक्ति 500 वर्ग फुट आवासीय भूमि, 1000 वर्ग फुट निर्माण एवं 2 एकड़ कृषि भूमि कर मुक्त होगी। यदि किसी व्यक्ति के पास इस सीमा से अधिक भूमि है, तो यह भूमि कर योग्य होगी। यदि यह भूमि किसी काम नहीं आ रही है, मतलब न तो भू-स्वामी ने इसे किराये पर दिया है, न ही इस भूमि का वह स्वयं इस्तेमाल कर रहा है, तो यह अकार्यशील भूमि कर योग्य होगी। यदि भूमि इस्तेमाल में आ रही है, तो कम टेक्स चुकाना होगा। इससे उन नागरिको पर रिक्त भूमि कर नहीं आएगा, जिनके पास जो भूमि का इस्तेमाल कर रहे है।
यदि अमुक भूमि इन 10 महानगरो में से किसी में स्थित है, तो प्रति व्यक्ति छूट 500 न होकर 250 वर्ग फुट होगी :
- मुंबई
- दिल्ली
- कोलकाता
- चैन्नई
- बेंगलुरु
- हैदराबाद
- अहमदाबाद
- पुणे
- सूरत
- जयपुर
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2.4. सभी प्रकार के ट्रस्ट, सोसाईटीयां, सिमितियाँ, एनजीओ, न्यास, क्लब, राजनैतिक पार्टियाँ, धर्मार्ध संगठन, अस्पताल, स्कूल, मंदिर, मस्जिद, चर्च आदि सभी इकाइयां रिक्त भूमि कर के दायरे में होगी। यदि इनके पास अकार्यशील भूमि है, और इनका उपयोग नहीं किया जा रहा है तो ये कर योग्य होगी। किन्तु यदि कोई ट्रस्ट आदि चाहे तो जिन सदस्यों को वह सेवाए देता है प्रति सदस्य 500 रू सालाना की छूट प्राप्त कर सकता है।
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2.5. प्रत्येक नागरिक ऐसे 5 संगठनों को 500 रूपये की छूट दे सकता है। इस तरह जो संगठन वास्तविक अर्थो में सेवाए दे रहे है उन्हें सेवाग्राही सदस्य अपने हिस्से की छूट दे देंगे और उन पर प्रभावी कर कम हो जाएगा। उल्लेखनीय है कि भारत में कुल 33 लाख एनजीओ है। इनमे से ज्यादातर संगठन सरकारी अनुदान में भूमि लेते है और इन्हें अकार्यशील बना देते है। इस क़ानून के आने से इस प्रवृति में कमी आएगी।
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2.6. इस क़ानून की केन्द्रीय सरंचना यह है कि जिस जमीन का इस्तेमाल नहीं हो रहा है उस पर कर लिया जाए। जब भू-स्वामियों को अकार्यशील भूमि पर टेक्स देना पड़ेगा तो वे इसका इस्तेमाल करना शुरू करेंगे, या फिर टेक्स से बचने के लिए अपनी अकार्यशील भूमि को बेच देंगे। यदि वे इसका इस्तेमाल करते है तो उत्पादकता बढ़ेगी और यदि इन्हें बेचते है तो बाजार में जमीन की आवक बढ़ेगी और दाम गिरने लगेंगे। जमीन के दाम गिरने से ज्यादा लोग जमीन खरीद पायेंगे और इनका इस्तेमाल शुरू होगा।
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2.7. इस क़ानून के गेजेट में आने के 90 दिनों के भीतर भारत की सीमा में स्थित समस्त भू-स्वामित्व के विवरण इंटरनेट पर पारदर्शी रूप से सार्वजनिक किये जायेंगे। इसके अलावा सभी सरकारी कर्मचारी धारण की गयी अपनी समस्त संपत्ति की घोषणा करेंगे जिसमें जमीन, इमारतें, फ्लेट, सोना, कीमती धातुएं, शेयर, डिबेंचर, ट्रस्ट जिनमें वे जुड़े हए है, आदि शामिल है। न्यायाधीशो, प्रशासनिक अधिकारियों आदि को शामिल करते हुए सभी सरकारी कर्मचारियों के वेतन एवं उनके भू-स्वामित्व के सभी ब्यौरे इस तरह सार्वजनिक रूप से रखे जायेंगे कि कोई भी नागरिक इन्हें पारदर्शी ढंग से देख सके। कृपया पाठक ध्यान दें कि अपनी समस्त संपत्ति की घोषणा सिर्फ सरकारी कर्मचारियों को करनी होगी, सभी नागरिको को नहीं।
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सम्पादन सूचना — यह अंश बाद में जोड़ा गया
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(3) रिक्त भूमि कर के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न :
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3.1. रिक्त भूमि कर आने से जमीन की कीमतें कैसे कम होगी ?
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यदि 1% सालाना की दर से रिक्त भूमि कर लागू किया जाए तो इन भू संग्रहकर्ताओ को करोड़ो रूपये सलाना टेक्स के चुकाने होंगे और तब खाली पड़ी ये जमीने इनके लिए घाटे का सौदा बन जायेगी। जाहिर है, खाली पड़ी जमीन पर करोड़ो रूपये कोई चुकाना नहीं चाहेगा। लेंड होर्डर तब टेक्स से बचने के लिए निम्न में से कोई एक कदम या सभी कदम उठाएंगे:
- वे इन जमीनों पर व्यवसायिक कोम्प्लेक्स, दुकाने, फैक्ट्रियां, रिहाईश के लिए सोसायटी आदि बनायेंगे और इन्हें किराए आदि पर देने लगेंगे, ताकि उन्हें आय हो और वे टेक्स से बच सके।
- या फिर वे इस जमीन में से आंशिक हिस्सा बिल्डरों को बेचना शुरू कर देंगे।
इस तरह ये खाली पड़ी जमीन मार्केट में आएगी। रुकी हुयी 40% जमीन के मार्केट में आने से मुंबई में जमीनों की कीमतें धड़ाम हो जायेगी और जमीन लेना हर आदमी की पहुँच में आ जाएगा।
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उदाहरण के लिए , गोदरेज के पास मुंबई के शहरी क्षेत्र में 3,000 एकड़ यानी 15 करोड़ स्क्वायर फुट भूमि खाली पड़ी है !! यदि रिक्त भूमि कर लागू हो जाता है तो गोदरेज 1 से 2 वर्ष के भीतर इसमें से कम से कम 10 करोड़ वर्ग फुट जमीन मार्किट में डाल देगा। इस 10 करोड़ में से 40% भूमि को सड़को और सामुदायिक उपयोग के लिए छोड़ने के बाद 6 करोड़ वर्ग फुट भूमि बचती है जिस पर निर्माण किया जा सकता है। यदि FSI ( Flor Surface Index) 4 भी हो तो इस भूमि पर 4 लाख 1 Bhk और 1 लाख 2 Bhk के फ़्लैट बनाये जा सकते है !!
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मतलब मोटा मोटी यदि गोदरेज अपनी बेकार पड़ी जमीन को मार्केट में ले आता है और इसका इस्तेमाल शुरू हो जाता है तो लगभग 15 लाख लोगो के लिए आवास बनाए जा सकते है। और इतनी बड़ी मात्रा में जब जमीन बाजार में आएगी, तो मुम्बई में फ्लेट के दाम लगभग 4 गुना तक गिर जायेंगे। और किराए पर फ्लेट / दूकान लेना आदमी की पहुँच में आ जाएगा।
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गोदरेज ने यह जमीन 1940 में ली थी, और तब से यह अकार्यशील पड़ी है !! न तो वो इस पर कोई फैक्ट्री लगाता है, न ही कोई फ्लेट आदि सोसाइटी बनाता है, और न ही इसका कोई इस्तेमाल करता है !! अब हम गोदरेज को ये तो कह नहीं सकते कि वो अपनी जमीन का इस्तेमाल करे। क्योंकि जमीन उसकी है, जो उसकी मर्जी है वैसे इस्तेमाल करेगा। तो इसका तरीका है कि हम रिक्त भूमि पर 1% सालाना टेक्स लेना शुरू करें। गोदरेज की जब तक हैसियत है तब तक खाली पड़ी जमीन पर टेक्स चुकाएगा वर्ना इसका इस्तेमाल करना शुरू कर देगा। और पूरे देश में सब तरफ इसी तरह के गोदरेज ही गोदरेज है, और उनके पास किलोमीटरो के हिसाब से जमीन खाली पड़ी है !!!
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3.2. ट्रस्टो को रिक्त भूमि कर के दायरे में क्यों रखा गया है ? अब वे सेवा कार्य कैसे करेंगे ?
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यदि कोई ट्रस्ट वास्तव में लोगो को सेवा दे रहा है तो सेवा ग्राही नागरिको से दान सेवा अंक ले लेगा, और ट्रस्ट पर टेक्स नहीं आएगा। किन्तु यदि ट्रस्ट को सिर्फ जमीन रोकने के लिए ही बनाया गया है, और वह कोई सेवा नहीं दे रहा है तो उस पर टेक्स आएगा। उच्च आय वर्ग और भ्रष्ट अधिकारियों-जजों-नेताओं ने ट्रस्ट खोलकर किलोमीटरो के हिसाब से जमीने दबाकर रखी है। यदि ट्रस्टो को दायरे से बाहर रखा गया तो ये जमीने बाजार में नहीं आ पाएगी और कीमतें नहीं गिरेगी।
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3.3. क्या रिक्त भूमि कर से इतना राजस्व आ पायेगा जितना जीएसटी से आ रहा है ?
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हमारा अनुमान है कि, रिक्त भूमि कर जीएसटी से काफी ज्यादा राजस्व जुटा लेगा, और हमें जीएसटी की जरूरत नहीं रह जायेगी। इसीलिए हमने पहली धारा में ही इसे स्पष्ट रूप से लिखा है कि रिक्त भूमि कर मौजूदा जीएसटी की जगह लेगा। और वैसे भी न्यायपूर्ण यही है कि हमें आवश्यक कर जमीनों से ही इकट्ठा करना चाहिए। यदि कम राजस्व आता है, तो रिक्त भूमि कर की दरें रिवाईज की जा सकती है। वस्तुओं एवं सेवाओं पर कर लगाना एक अन्यायपूर्ण एवं बकवास प्रणाली है।
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3.4. जीएसटी बिना सरकार को मालूम कैसे होगा, कि कौन कितना माल बनाकर किसे बेच रहा है ?
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इस क़ानून के आने से वस्तुओ एवं सेवाओं पर कोई कर नहीं रह जाएगा, अत: सरकार को यह मालूम करने की जरूरत भी नहीं है कि, कौन व्यक्ति कितना माल बनाकर किसे बेच रहा है। यदि कोई व्यक्ति प्रतिबंधित वस्तु बनाता या बेचता है तो उसके लिए भारत में अलग से क़ानून बने हुए है, और सरकार उन कानूनों के आधार पर कार्यवाही कर सकती है। किन्तु यदि कोई व्यक्ति वैध वस्तुएं बना रहा है या बेच रहा है तो सरकार को इससे कोई सरोकार नहीं रहेगा।
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व्यक्ति के पास सिर्फ अपनी फर्म या कम्पनी का रजिस्ट्रेशन नंबर होना चाहिए, और वह इस नंबर के आधार पर बिल काट कर दे सकता है। कारोबारी साल में सिर्फ 2 रिटर्न भरेगा। यदि वह आयकर के दायरे में आता है, तो आयकर रिटर्न भरेगा, और यदि उसके पास अतिरिक्त भूमि है तो वह रिक्त भूमि कर भरेगा। यदि उसने आय के बारे में गलत जानकारी दी है तो आयकर विभाग, और यदि उसने अपनी जमीन के बारे में गलत जानकारी दी है तो, जिला रिक्त भूमि कर अधिकारी कार्यवाही कर सकता है। इन दो विभागों के अलावा कारोबारी को किसी भी कर अधिकारी के सामने अपने लेखे प्रस्तुत करने की जरूरत नहीं होगी।
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रिक्त भूमि कर का पूरा ड्राफ्ट यहाँ देखें - सम सामयिक खबरें पर Pawan Kumar Sharma की पोस्ट
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सम्पादन समाप्त
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सेक्शन – C
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राजनीती में बेरोजगारी सबसे ज्वलनशील मुद्दा साबित होता है। बेरोजगारी के सामने भ्रष्टाचार, राष्ट्रवाद, महंगाई, धर्म, विकास आदि चिल्लर मुद्दे है।
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वजह — यह मुद्दा युवाओ को सड़क पर धकेलता है। तो यदि बेरोजगारी पर कोई आन्दोलन खड़ा हो जाए तो यह हिंसक हो जाएगा, और सरकार इसे काबू नहीं कर पाएगी। इस प्रकार के आन्दोलन में बड़े पैमाने पर आगजनी, तोड़फोड़ , हत्याएं, जाम आदि होंगे और सरकार के हाथ से कंट्रोल निकल जाएगा। सरकार एक गाँधी वादी बुड्ढ़े के नेतृत्व में चल रहे 10 लाख लोगो के समूह को टेकल कर सकती है, किन्तु 50 हजार युवाओं का बेतरबीब हुजूम सरकार को चित कर देगा।
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21 साल की उम्र में छात्र की शिक्षा पूर्ण हो जाती है, और इस समय रोजगार शुरू हो जाना चाहिए। पर जमीन सस्ती नहीं होने के कारण उनके पास कोई अवसर नहीं होते। अब सरकार ने जमीन सस्ती करने के क़ानून छापने नहीं है, तो सरकार चाहती है कि ज्यादातर युवाओं को जहाँ तक हो सके किताबों में उलझाकर रखा जाए। तो वे छात्रों को किताबों में व्यस्त रखने के लिए कई प्रकार के तरीके इस्तेमाल करते है।
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आप यदि 70 से 80 के दशक की फ़िल्में देखेंगे तो आपको बहुधा फिल्मों में नायक अपनी फ़ाइल लेकर नौकरी की तलाश में घूमता नजर आएगा। और जब उसे नौकरी मिल जाती है तो वह झूमता हुआ आकर मिठाई बांटने लगता है !! फिल्मों में पढ़ने और सिर्फ पढ़ते रहने पर काफी जोर दिया जाता था, और सन्देश इस तरह का रहता था कि पढ़ने के बाद नौकरी ढूंढनी है, और नौकरी ही करनी है। नौकरी अंतिम पड़ाव है। जीवन का लक्ष्य और मुक्ति का मार्ग।
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तो उन्होंने बहुत ही सफाई से रोजगार को नौकरियों से जोड़ दिया। मतलब, यदि कोई बेरोजगारी की बात करे तो इसका मतलब यही होता है कि वह नौकरी की बात कर रहा है। जमीनों के महंगी होने के साथ साथ उस समय लाइसेंस राज भी था, और टाटा-बटाटा आदि भारतीय धनिक इस नीति को जारी रखना चाहते थे। अत: कोई आदमी निर्माण इकाई शुरू करने की बात सोच भी नहीं सकता था। किन्तु उस समय सरकार का आकार बहुत बड़ा था, और ताबड़ तोड़ सार्वजनिक उपक्रम खोले जा रहे थे। अत: इन संस्थाओं ने काफी युवाओं को ओक्युपाई किया।
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इस तरह उन्होंने देश की एक पूरी पीढ़ी को पढ़ने और नौकरी ढूँढने के धंधे पर लगाए रखा। आज भी आप पेड मीडिया में इस नीति को देख सकते है। उदाहरण के लिए पेड रविश कुमार जब बेरोजगारी पर 15 एपिसोड की सीरिज बनाते है तो सिर्फ नौकरियों को ही कवर करते है, स्व रोजगार को नहीं। और जमीन की कीमतों पर बात करने की तो बात ही भूल जाइए। उनका सेंटर पॉइंट एक ही रहता है -- सरकार नौकरियां नहीं दे रही है, सरकार नौकरियां नहीं दे रही है, सरकार नौकरियां नहीं दे रही है आदि।
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अब लाइसेंस राज होने और जमीन सस्ती नहीं होने के कारण नौकरियां तो मिलने वाली नहीं थी, अत: बेरोजगारी बनी रही। बाद में उन्होंने हायर सेकेंडरी में एक साल जोड़ कर 10+2 कर दिया। पहले 11 वीं क्लास के बाद कोलेज में एडमिशन मिलता था, अब 12 वीं क्लास के बाद मिलने लगा। मतलब सरकार ने मुफ्त में एक साल जोड़ दिया !!
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आगे सरकार ने युवाओं का टाइम पास करने के लिए उन्हें कम्पीटीशन एग्जाम में व्यस्त रखने की नीति पर काम करना शुरू किया। युवाओं का एक बड़ा प्रतिशत पिछले 2 दशक से सरकारी नौकरियों में अपने 5-7 साल बर्बाद करके चित होता जा रहा है। पहले वे बीए करते है, फिर एम ए करते है, फिर डबल एम ए कर लेते है, और साथ में कम्पीटीशन एक्जाम देते रहते है !!
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अब सच्चाई यह है कि यदि किसी वेकेंसी के लिए 200 पदों की भर्ती की जानी है तो अल्टीमेटली नौकरी तो 200 को ही मिलेगी, चाहे इसकी तैयारी 2 लाख लोग करें। तो 200 लोगो को नियुक्ति मिल जायेगी और शेष ( 2 लाख - 200 = ? ) बेरोजगार रह जायेंगे। फिर सरकारों ने और भी परिष्कृत नीति का इस्तेमाल करना शुरू किया। सरकार जान बुझकर भर्ती निकलने से लेकर नियुक्ति तक की प्रक्रिया को धीमा बनाए रखती है, ताकि छात्रों को 3-4 साल तक अंगेज रखा जा सके।
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पहले वे वेकेंसी निकालेंगे। फिर इसके नियमो में कोई झमेला छोड़ देंगे और इसे रिवाइज कर देंगे। इस तरह घसीटते घसीटते साल भर टाइम पास करेंगे। जो छात्र इसकी तैयारी कर रहे है, वे मानसिक रूप से इसमें अंगेज हो जायेंगे। फिर नकल वगेरह हो जायेगी और परीक्षाएं रद्द हो जायेगी। फिर मामला अदालत में जाकर लटक जाएगा। और इसी दौरान में कुछ और नयी भर्तियाँ निकाल देंगे। फिर इन नयी भर्तियों की अधिसूचना में भी कोई न कोई झमेला छोड़ देंगे और आगे चलकर यह फिर से भोट हो जायेगी !!
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कुल मिलाकर नीति का सेंटर पॉइंट यह रहता है कि - 21 से 28 साल तक बन्दे को किस चीज में बिजी रखा जाए !! तो इस आयु वर्ग के ज्यादा से ज्यादा छात्रों को नौकरियों की तलाश एवं इसकी तैयारी में अंगेज रखा जाता है, ताकि उन्हें लगे कि वे बेरोजगार नहीं है और संघर्ष कर रहे है। इसी हड़बोंग में वे छात्रों के 5-7 साल पी जाते है, और बंदा 30 पार कर जाता है। अब यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि, किताबों का यह ज्ञान उसमे कोई स्किल एड नही करता है। इनमे से कुछ लोग शेष जिन्दगी इस गलत धारणा के साथ बिताते है कि "मैं नहीं कर पाया !!"
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दुसरे शब्दों में, वह खुद को दोषी मानता है, और इस बात को नही समझ पाता कि दरअसल वह सर्विस ट्रेप का शिकार था। ऐसा ट्रेप जो 99% अनुत्पादक नस्ल का उत्पादन करता है। क्योंकि वे जिन किताबों को रटने में अपने 5–7 कीमती साल खपा देते है, उनमें लिखा गया ज्ञान व्यवहारिक जीवन में उनके कभी काम नहीं आता !!
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और आजकल एक नयी प्रवृति देखने को मिल रही है। पेड मीडिया ने छात्रों / युवाओं को मनोरंजन क्षेत्र ( गाना , बजाना , नाचना , मोडलिंग, अभिनय, खेल आदि ) में भी धकेलने की नीति बना रखी है। तो एक बड़ी खेप को वे तख़्त या तख्ता के दाव में फंसा देते है। दंगल जैसी फिल्में इसी तरह का काम करती है, और सरकार के मंत्रियो द्वारा इसीलिए इसका प्रमोशन किया जाता है।
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अब आप यह बात इस फिल्म का प्रमोशन करने वाले मंत्रियो से पूछिए कि यदि किसी शहर में 1000 लड़कियां पहलवानी करती है तो उनमे से कितनी लडकियों को तख़्त मिलेगा !! और पहलवानी में अपने 4–5 साल भोट करने बाद शेष लडकियों में ऐसी क्या स्किल एड होती है कि उन्हें कोई रोजगार मिल सके !! मतलब महिला सशक्तिकरण की कौनसी किस्म है ये, मेरे आज तक समझ नहीं आया !! पेड आमिर खान तो धंधे वाला आदमी है। तो हम उसे तो बोल नहीं सकते कि ये बना ये मत बना। और उसे बोलना भी नहीं चाहिए। पर सरकार को ऐसी फिल्मो का प्रमोशन क्यों करना चाहिए जो लडकियों को बड़े पैमाने पर खेल कूद के मैदानों में धकेले।
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दरअसल सरकार के पास नौकरियां देने का कोई सेट अप या स्त्रोत नहीं होता है। नौकरियां पैदा करने का सिर्फ यह तरीका है कि
- सरकार ऐसे क़ानून छापे जिससे जमीन सस्ती हो जाए, ताकि लोग काम काज आसानी से शुरू कर सके
- फिर सरकार ऐसे क़ानून छापे कि पुलिस एवं अदालतें इनसे हफ्ता वसूल कर इनके धंधे बंद न करवा सके।
- और सरकार ऐसे क़ानून छापें कि टेक्स अधिकारी कारोबारियों की टोह में न रहे
बस इतना करने से लोग खुद ही रोजगार बना लेंगे !!
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अभी एक विकट दौर शुरू हो गया है । मोदी साहेब ने छोटी इकाइयों को बाजार से बाहर करने के लिए काफी क़ानून गेजेट में छापे है, और उनकी नीति कुछ इस तरह काम कर रही है कि -
- FDI के कारण भारत में बड़े पैमाने पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भारत में आ रही है !!
- GST जैसे क़ानून छोटी इकाइयों को बाजार से बाहर कर रहे है !!
- वे सरकारी कम्पनियां तेजी से विदेशियों को बेच रहे है !!
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तो एक तरफ विशालकाय कंपनियों का हिस्सा बाजार में तेजी से बढेगा, और नतीजे में बेरोजगारी और भी बढ़ेगी। और जो रोजगार मिलेगा वह भी शुद्ध नौकरियां होगी। मतलब स्व रोजगार कम हो जायेगा, और ज्यादातर लोग क्लर्की / low level जॉब करेंगे। छोटी इकाइयों के बंद हो जाने से बेरोजगारी बढ़ेगी, किन्तु बड़ी कंपनियों का कारोबार बढ़ने से उन्हें और कर्मचारियों की आवश्यकता होगी। तो वास्तविक रूप से रोजगार घटेगा लेकिन आंकड़ों में यह बढ़ेगा !! और सकल रूप से रोजगार घटेगा और बेरोजगारी बढ़ेगी !! इसके अलावा अधेड़ एवं उम्र दराज रोजगार खो देंगे और बड़ी कंपनियों का कारोबार बढ़ने से वे ज्यादातर युवाओ को नौकरी पर रखेगी। इसीलिए, मध्य वय के लोगो में बेरोजगारी बढ़ जायेगी जबकि युवाओ में बेरोजगारी घटेगी !! लेकिन सकल बेरोजगारी में बढ़ोतरी होगी।
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किन्तु यदि आप पेड मीडिया के सम्पर्क में रहते है तो इसे देख नही पायेंगे। क्योंकि वे आंकड़े बाजी और उल जलूल आर्थिक सिद्धांतो द्वारा आपको यह इत्मीनान दिलाते रहेंगे कि ग्रोथ रेट लगातार इम्प्रूव हों रही है, और रोजगार की कहीं कोई कमी नही है !!
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[ टिप्पणी 3 : यह एक गलत धारणा है कि, "ऑनलाइन लेन देन बढ़ने से स्थानीय कारोबारी अपना धंधा गंवा रहे है, और इस वजह से बेरोजगारी / मंदी बढ़ रही है। " इस विषय पर मैं अलग से किसी जवाब में लिखूंगा। ]
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