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मंगलवार, 27 अगस्त 2024

भारतीयम् @ बचत का आधुनिक तरीका SIP..

.. सबसे पहले इस ट्रिक को बेहतर तरीके से समझने के लिए कुछ स्टैंडर्ड तय करते हैं. मान लीजिए कि आप 25 साल के हैं और हर महीने SIP में 10,000 रुपए जमा करना शुरू करते हैं. साथ ही रिटायरमेंट तक अपने निवेश पर औसतन 12 प्रतिशत का रिटर्न मान लें.

यह रिटर्न हम मिनिमम बता रहे हैं यह 15-20% भी हो सकता है. अगर ऐसा हुआ तो रिटर्न और बढ़ जाएगा. क्योंकि मार्केट में रिटर्न कई बार उपर-नीचे भी हो जाता है. इसलिए आप 12-15 का औसत लेकर चल सकते हैं. ध्यान रहे अगर यह 1% कम भी होता है तब भी आप आराम से 2 लाख महीने का जुगाड़ सेट कर पाएंगे. चलिए अब 555 SIP फॉर्मूला को समझते हैं.

क्या है 555 फॉर्मूला का मतलब?

ट्रिपल 5 फॉर्मूले में पहले 5 का मतलब है कि पांच साल पहले रिटायर होना. दूसरे 5 का मतलब है कि इसके लिए आपको हर साल अपनी SIP में 5 प्रतिशत की बढ़ोतरी करनी होगी. तीसरे 5 का मतलब है कि अगर आप लगातार इसी तरह निवेश करते रहेंगे, तो 55 साल की उम्र तक आपके पास 5.28 करोड़ रुपए का फंड होगा. यानी, SIP में थोड़ा बदलाव और आप समय से पहले रिटायर हो सकते हैं.

यहां समझें कैलकुलेशन

मान लीजिए कि आप हर महीने SIP में 10,000 रुपए निवेश करना शुरू करते हैं और हर साल इसमें 5 प्रतिशत की बढ़ोतरी करते हैं, जिससे आपको औसतन 12 प्रतिशत का रिटर्न मिलता है. 30 वर्षों में, 55 वर्ष की आयु तक आपका कुल निवेश लगभग 79.73 लाख रुपए होगा. कंपाउंड इंटरेस्ट की शक्ति के कारण आप लगभग 4.48 करोड़ रुपए ब्याज अर्जित करेंगे, जिसके परिणामस्वरूप कुल 5.28 करोड़ रुपए की राशि होगी.

लंबी अवधि के कैपिटल गेन टैक्स का भुगतान करने के बाद रिटायर के समय FD पर 6 प्रतिशत का भी ब्याज दर मिलता है तब भी आपको पर्याप्त पेंशन मिलेगी. 4.74 करोड़ रुपए के टैक्स पश्चात फंड पर आप 6 प्रतिशत की दर से सालाना लगभग 28.42 लाख रुपए कमाएंगे, जो प्रति माह लगभग 2.37 लाख रुपए के बराबर है.

सूचना स्रोत # डेलीहंट न्यूज ऐप

शुक्रवार, 23 अगस्त 2024

1998 में Kodak में 1,70,000 कर्मचारी काम करते थे

1998 में Kodak में 1,70,000 कर्मचारी काम करते थे और वो दुनिया का 85% फ़ोटो पेपर बेचते थे..चंद सालों में ही Digital photography ने उनको बाज़ार से बाहर कर दिया.. Kodak दिवालिया हो गयी और उनके सब कर्मचारी सड़क पे आ गए।

HMT (घडी)

BAJAJ (स्कूटर)

DYNORA (टीवी)

MURPHY (रेडियो)

NOKIA (मोबाइल)

RAJDOOT (बाईक)

AMBASDOR (कार)

DINESH (कपड़ा)

मित्रों,

इन सभी की गुणवक्ता में कोई कमी नहीं थी फिर भी बाजार से बाहर हो गए!!

कारण???

उन्होंने समय के साथ बदलाव नहीं किया.!!

आपको अंदाजा है कि आने वाले 10 सालों में दुनिया पूरी तरह बदल जायेगी और आज चलने वाले 70 से 90% उद्योग बंद हो जायेंगे।

चौथी औद्योगिक क्रान्ति में आपका स्वागत है...

Uber सिर्फ एक software है। उनकी अपनी खुद की एक भी Car नहीं इसके बावजूद वो दुनिया की सबसे बड़ी Taxi Company है।

Airbnb दुनिया की सबसे बड़ी Hotel Company है, जब कि उनके पास अपना खुद का एक भी होटल नहीं है।

Paytm, ola cabs , oyo rooms जैसे अनेक उदाहरण हैं।

US में अब युवा वकीलों के लिए कोई काम नहीं बचा है, क्यों कि IBM Watson नामक Software पल भर में ज़्यादा बेहतर Legal Advice दे देता है। अगले 10 साल में US के 90% वकील बेरोजगार हो जायेंगे... जो 10% बचेंगे... वो Super Specialists होंगे।

Watson नामक Software मनुष्य की तुलना में Cancer का Diagnosis 4 गुना ज़्यादा Accuracy से करता है। 2030 तक Computer मनुष्य से ज़्यादा Intelligent हो जाएगा।

अगले 10 सालों में दुनिया भर की सड़कों से 90% cars गायब हो जायेंगी... जो बचेंगी वो या तो Electric Cars होंगी या फिर Hybrid...सडकें खाली होंगी,Petrol की खपत 90% घट जायेगी,सारे अरब देश दिवालिया हो जायेंगे।

आप Uber जैसे एक Software से Car मंगाएंगे और कुछ ही क्षणों में एक Driverless कार आपके दरवाज़े पे खड़ी होगी...उसे यदि आप किसी के साथ शेयर कर लेंगे तो वो ride आपकी Bike से भी सस्ती पड़ेगी।

Cars के Driverless होने के कारण 99% Accidents होने बंद हो जायेंगे.. इस से Car Insurance नामक धन्धा बंद हो जाएगा।

ड्राईवर जैसा कोई रोज़गार धरती पे नहीं बचेगा। जब शहरों और सड़कों से 90% Cars गायब हो जायेंगी, तो Traffic और Parking जैसी समस्याएं स्वतः समाप्त हो जायेंगी... क्योंकि एक कार आज की 20 Cars के बराबर होगी।

आज से 5 या 10 साल पहले ऐसी कोई ऐसी जगह नहीं होती थी जहां PCO न हो। फिर जब सब की जेब में मोबाइल फोन आ गया, तो PCO बंद होने लगे.. फिर उन सब PCO वालों ने फोन का recharge बेचना शुरू कर दिया। अब तो रिचार्ज भी ऑन लाइन होने लगा है।

आपने कभी ध्यान दिया है..?

आजकल बाज़ार में हर तीसरी दुकान आजकल मोबाइल फोन की है।

sale, service, recharge , accessories, repair, maintenance की।

अब सब Paytm से हो जाता है.. अब तो लोग रेल का टिकट भी अपने फोन से ही बुक कराने लगे हैं.. अब पैसे का लेनदेन भी बदल रहा है.. Currency Note की जगह पहले Plastic Money ने ली और अब Digital हो गया है लेनदेन।

दुनिया बहुत तेज़ी से बदल रही है.. आँख कान नाक खुले रखिये वरना आप पीछे छूट जायेंगे..।

समय के साथ बदलने की तैयारी करें।

इसलिए...

व्यक्ति को समयानुसार अपने व्यापार एवं अपने स्वभाव में भी बदलाव करते रहना चाहिये।

"This is the time Update & Upgrade"

समय के साथ चलिये और सफलता पाईये!

बुधवार, 31 जुलाई 2024

जरा हंस लें

कल सैलून वाले क़ी दुकान पर एक स्लोगन पढा़ ..

"हम दिल का बोझ तो नहीं पर सिर का बोझ जरूर हल्का कर सकते हैं "..🤣

.

लाइट क़ी दुकान वाले ने बोर्ड के नीचे लिखवाया ..

"आपके दिमाग की बत्ती भले ही जले या ना जले,परंतु हमारा बल्ब ज़रूर जलेगा ".. 🤣

.

चाय के होटल वाले ने काउंटर पर लिखवाया ..

"मैं भले ही साधारण हूँ, पर चाय स्पेशल बनाता हूँ।"🤣

.

एक रेस्टोरेंट ने सबसे अलग स्लोगन लिखवाया ..

"यहाँ घऱ जैसा खाना नहीं मिलता, आप निश्चिंत होकर अंदर पधारें।" 😀

.

इलेक्ट्रॉनिक दुकान पर स्लोगन पढ़ा तो मैं भाव विभोर हो गया ..

"अगर आपका कोई फैन नहीं है तो यहाँ से ले जाइए "..😂

.

गोलगप्पे के ठेले पर एक स्लोगन लिखा था ..

"गोलगप्पे खाने के लिए दिल बड़ा हो ना हो, मुँह बड़ा रखें, पूरा खोलें" ..🤣

.

फल भंडार वाले ने तो स्लोगन लिखने की हद ही कर दी ..

"आप तो बस कर्म करिए, फल हम दे देंगे ".. 🤣

.

घड़ी वाले ने एक ग़ज़ब स्लोगन लिखा ..?

"भागते हुए समय को बस में रखें, चाहे दीवार पर टांगें, चाहे हाथ पर बांधें..."..🤣🤣

आप जैसे अभी हल्का सा मुस्करा रहे हैं या हँस रहें हैं, ऐसे ही खुश रहें।।

समय विपरीत है, जितना हँसेंगे 😂😄 उतना अधिक स्वस्थ रहेंगे

बुधवार, 10 जुलाई 2024

फकीरो

कल सैलून वाले क़ी दुकान पर एक स्लोगन पढा़ ..

"हम दिल का बोझ तो नहीं पर सिर का बोझ जरूर हल्का कर सकते हैं "..🤣

लाइट क़ी दुकान वाले ने बोर्ड के नीचे लिखवाया ..

"आपके दिमाग की बत्ती भले ही जले या ना जले,परंतु हमारा बल्ब ज़रूर जलेगा ".. 🤣

चाय के होटल वाले ने काउंटर पर लिखवाया ..

"मैं भले ही साधारण हूँ, पर चाय स्पेशल बनाता हूँ।"🤣

एक रेस्टोरेंट ने सबसे अलग स्लोगन लिखवाया ..

"यहाँ घऱ जैसा खाना नहीं मिलता, आप निश्चिंत होकर अंदर पधारें।" 😀

इलेक्ट्रॉनिक दुकान पर स्लोगन पढ़ा तो मैं भाव विभोर हो गया ..

"अगर आपका कोई फैन नहीं है तो यहाँ से ले जाइए "..😂

गोलगप्पे के ठेले पर एक स्लोगन लिखा था ..

"गोलगप्पे खाने के लिए दिल बड़ा हो ना हो, मुँह बड़ा रखें, पूरा खोलें" ..🤣

फल भंडार वाले ने तो स्लोगन लिखने की हद ही कर दी ..

"आप तो बस कर्म करिए, फल हम दे देंगे ".. 🤣

घड़ी वाले ने एक ग़ज़ब स्लोगन लिखा ..?

"भागते हुए समय को बस में रखें, चाहे दीवार पर टांगें, चाहे हाथ पर बांधें..."..🤣🤣

आप जैसे अभी हल्का सा मुस्करा रहे हैं या हँस रहें हैं, ऐसे ही खुश रहें।।

समय विपरीत है, जितना हँसेंगे 😂😄 उतना अधिक स्वस्थ रहेंगे

रविवार, 23 जून 2024

इस साल होगी भारी बारिश!

किसी मशीन ने नहीं, बल्कि इस पक्षी के अंडों ने की भविष्यवाणी.

इस साल भारत में गर्मी ने अपना रौद्र रूप दिखाया है. गर्मी का ऐसा कहर पहली बार देखने को मिला है. नौतपा के दौरान हालत और खराब हो गए. कई जगहों पर गर्मी के कारण ट्रांसफार्मर में आग लग गई. गर्मी को देखते हुए लोग मानसून का इंतजार कर रहे हैं. वैसे तो विज्ञान ने काफी तरक्की कर ली है. कई ऐसी मशीनें बन गई हैं जो मौसम की भविष्यवाणी करती हैं. लेकिन इस बार मानसून की भविष्यवाणी पक्षियों के अंडों ने की है.

जी हां, मान्यताओं की मानें तो इस साल खूब बारिश होने वाली है। पुराने जमाने में आधुनिक मशीनें नहीं थीं। ऐसे में लोग आने वाले समय में मौसम कैसा रहेगा, यह जानने के लिए प्राकृतिक तरीकों का इस्तेमाल करते थे। बारिश का अनुमान लगाने के लिए इन तरीकों का खूब इस्तेमाल किया जाता था। इस साल मानसून कैसा रहेगा, इसे लेकर प्रकृति ने खास संकेत दिए हैं। मौसम विज्ञानी भी इस भविष्यवाणी को लगभग सही मान रहे हैं।

चिड़िया के अंडे ने दिया संकेत

पहले के समय में लोग सैंडपाइपर के अंडों को देखकर अंदाजा लगाते थे कि बारिश कैसी होगी। जी हां, इस पक्षी के अंडे मानसून की चाल के बारे में बताते थे। इसके द्वारा की गई अधिकतर भविष्यवाणियां सही साबित होती थीं। सैंडपाइपर के अंडे आसानी से दिखाई नहीं देते। लेकिन इस साल दौलतपुरा के सेवापुरा रामपुरा गांव के एक खेत में सैंडपाइपर ने अंडे दिए हैं। इसे देखकर अंदाजा लगाया जा रहा है कि इस साल मानसून जबरदस्त रहने वाला है।

ऐसी बारिश होगी

ऐसा कहा जाता है कि सैंडपाइपर जितने अंडे देती है, उतने ही महीने बारिश होती है. यानी अगर यह चार अंडे देती है, तो चार महीने बारिश होगी. इसके अलावा अगर सैंडपाइपर ने कम जगह पर अंडे दिए हैं, तो इसका मतलब है कि कम बारिश होगी. ऊंची जगह का मतलब है कि ज्यादा बारिश होगी. इस कारण से पक्षी ने सुरक्षा के लिए ऊंचे स्थान पर अंडे दिए हैं. आम तौर पर सैंडपाइपर अप्रैल से जून के दूसरे हफ्ते में अंडे देती है. हालांकि विज्ञान इससे सहमत नहीं है. लेकिन पक्षियों के अंडों को लेकर ज्यादातर भविष्यवाणियां सही साबित होती हैं. ऐसे में इस साल अंडे देखकर किसानों में खुशी का माहौल है.

सोमवार, 10 जून 2024

भारत को विविधता पूर्ण राष्ट्र क्यों कहा जाता है ?

भारत विविधताओं का देश है. कहा जाता है कि यहां हर 3 कोस पर बोली और भोजन बदल जाता है. राजस्थान भी इससे अछूता नहीं है. राजस्थान के समृद्ध संस्कृति और प्रथाओं को आज यहां के स्थानीय लोगों ने जिंदा रखा है.

प्रदेश के हाड़ौती क्षेत्र भी अपनी समृद्ध परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है. हाड़ौती की लोक संस्कृति और प्रथाओं को ग्रामीणों ने आज भी जीवंत रखा है.

झालावाड़ जिले के बकानी गांव के कमलपुरा में एक ऐसी प्रथा जीवंत है, जिसे सुन और देखकर विशेष अनुभूति का आभास होता है. यहां एक गांव समरसता का उदाहरण पेश कर रहा है. इस गांव में भगवान सत्यनारायण की कथा साल में एक बार कराई जाती है और उस कथा के दौरान जो आयोजन होते है, वह अपने आप में अनूठा हैं. इस गांव में कथा से पहले भगवान की भजन संध्या होती है. ग्रामीण रातभर भगवान के भजन करते हैं, नाचते गाते हैं और खुशी मनाते हैं.

गांव के टोडरमल लोधा ने बताया कि करीब 50 साल से भी अधिक समय से यह प्रथा चली आ रही है. उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति स्वयं अपने स्तर पर भगवान सत्यनारायण की कथा नहीं करवा सकता, न ही उसके बाद भोजन और अन्य आयोजन करवा सकता है. ऐसे में गांव के एक-एक घर को शामिल करते हुए इस आयोजन को सामूहिक किया जाता है, जिसमें एक-एक घर की भागीदारी होती है.

टोडरमल लोधा ने कहा कि यह आयोजन भले ही लोधा समाज का होता हो, लेकिन इसमें सहयोग पूरा गांव करता है. टोडरमल लोधा ने बताया कि इस आयोजन को करने के लिए प्रत्येक घर पर जाया जाता है. इस मौके पर प्रत्येक व्यक्ति के हिसाब से आटा, दाल, कंडे और पैसे जमा किए जाते हैं. एक घर, एक परिवार से 3 किलो आटा, प्रति व्यक्ति 6 कंडे, प्रति व्यक्ति 50 रुपये और प्रति व्यक्ति 400 ग्राम दाल ली जाती है.

इस बार 707 व्यक्तियों ने यह सामग्री दी है. इसके अनुसार, करीब 28 क्विंटल आटा, 300 किलो दाल, 4 हजार से अधिक कंडे इसमें इस्तेमाल किया जाना है. टोडरमल ने बताया कि बाटियां बनाने के लिए 12 खाट, निवार की खाट (पलंग) का उपयोग किया जाता है. घर-घर में जहां भी खाट होती है, वहां से मंगा ली जाती है. कम पडने पर निवार की खाट का उपयोग किया जाता है. इसके बाद जब बाटियों को सेंका जाता है, तो तीन गांव के लोग बाटियों को सेंकने आते हैं. करीब 300 से 400 व्यक्ति इन बाटियों को सेंकते हैं.

यही नहीं इसमें करीब 4242 कंडे का उपयोग किया जाता है. उसके बाद बाटियों को कंडे की राख में गाड़ दिया जाता है और ऊपर से काली मिट्टी से इस तरह दबा दिया जाता है, जिससे हवा अंदर न जाए. अंदर हवा जाने से बाटियां खराब हो जाती हैं. ग्राम वासियों ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि इस दिन हम गांव के सभी मंदिरों के ध्वज बदल देते हैं, साथ ही भगवान के कपड़ों को बदलते हैं और श्रृंगार करते हैं. जहां मंदिरों की सफाई और रंग रोगन होता है.

ग्रामीणों के मुताबिक, रविवार की सुबह सत्यनारायण भगवान की कथा होगी. इसके बाद प्रसाद वितरण होगा और दोपहर बाद से भंडारे का आयोजन किया जाएगा. जिसमें 60 गांव के व्यक्ति आएंगे और प्रसादी ग्रहण करेंगे. इसके अलावा गांव की जिन बहन बेटियों की दूसरे गांव में शादी हुई है, उन्हें भी निमंत्रण भेजा जाता है और फोन से सूचना दी जाती है.

जय जोहार

शुक्रवार, 7 जून 2024

नाचने' आये हैं।

नाम में बहुत कुछ रखा है 😂👇 पढ़िए नाम के पंगे की कहानी

सीमावर्ती जिले जैसलमेर से #बीकानेर बस रुट पर ....

बीच में एक बड़ा सा गाँव आता है जिसका नाम #नाचने है

वहाँ से बस आती है तो लोग कहते है कि

"नाचने" वाली बस आ गयी 😂🚌

कंडक्टर भी बस रुकते ही चिल्लाता..

'नाचने' वाली सवारियाँ उतर जाएं बस आगे जाएगी 😂

इमरजेंसी के टाइम में रॉ RAW का एक नौजवान अधिकारी जैसलमेर आया

रात बहुत ज्यादा हो चुकी थी,

वह सीधा थाने पहुँचा और ड्यूटी पर तैनात सिपाही से पूछा -

थानेदार साहब कहाँ हैं ?

सिपाही ने जवाब दिया थानेदार साहब 'नाचने' गये हैं .😂

अफसर का माथा ठनका उसने पूछा डिप्टी साहब कहाँ हैं..?

सिपाही ने विनम्रता से जवाब दिया-

हुकुम 🙏🏻 डिप्टी साहब भी नाचने गये हैं.. 😎

अफसर को लगा सिपाही अफीम की पिन्नक में है, उसने एसपी के निवास पर फोन📞 किया।

एस.पी. साहब हैं ?

जवाब मिला 'नाचने' गये हैं..!!

लेकिन 'नाचने' कहाँ गए हैं, ये तो बताइए ?

बताया न 'नाचने' गए हैं, सुबह तक आ जायेंगे।

कलेक्टर के घर फोन लगाया वहाँ भी यही जवाब मिला, साहब तो 'नाचने' गये हैं..

अफसर का दिमाग खराब हो गया, ये हो क्या रहा है इस सीमावर्ती जिले में और वो भी इमरजेंसी में।

पास खड़ा मुंशी ध्यान से सुन रहा था तो वो बोला - हुकुम बात ऐसी है कि दिल्ली से आज कोई मिनिस्टर साहब 'नाचने' आये हैं।

इसलिये सब अफसर लोग भी 'नाचने' गये हैं..!! 😂😂

#jaisalmerdairies

#jaisalmerjourney

#jaisalmertrip

#नाचना

#rajasthantourism

बुद्धिमान होने के कुछ विशेष गुण क्या हैं?

1. वे अन्य लोगों की तुलना में दीवारों पर अधिक घूरते हैं।

2. कल्पना उन्हें कभी नहीं छोड़ती। कल्पना के बिना वे कुछ भी नहीं हैं।

3. समूह को छोड़ दें जब उन्हें लगता है कि उनमें से लोग उनके साथ असंगत हैं।

4. आम तौर पर विनम्र, परिपक्व, जीवन दर्शन के बारे में अच्छा ज्ञान।

5. नियमों का पालन करने में असहज महसूस करें।

6. अपने काम में बहुत संघर्ष करते हैं। वही उन्हें सुख देता है।

7. अपने लिए ढेर सारा स्वाभिमान।

8. मौन में, वे हमेशा खुश और शांतिपूर्ण रहते हैं।

9. उन्हें बस प्यार की जरूरत है। यह उन्हें मजबूती से आकर्षित कर सकता है।

10. जिज्ञासु लोगों की संगति से प्यार करें।

मूल स्रोत - इंटरनेट

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खटिया मे सोने का सुख

लंबा चौड़ा दहलान मे खटेहटी (बिना बिस्तर ) के

खटिया मे सोने का सुख और वो भी अगर दो चार

दोस्त या फिर मेमेरे चचेरे फुफेरे भाई बहन मिल जाए

तो क्या कहने बाहर की।

चिलचिलाती तपती धूप मे ये दहलान किसी 5 स्टार

के AC रूम से कम नहीं होता, जिसमे चुहलबाजी के

साथ साथ गप्पों का सुख.... पैसा कम था खुशियाँ

ज्यादा , गाँव में बिजली तो नहीं थी मगर सुकून बड़ा

था , परेशानियां बहुत थीं मगर इंसान आज से ज्यादा

सुखी था ।सच मे कितना इंतजार होता था रिश्तेदारों

के आने का ..

फिर शुरू होती थी मेहमानबाजी ...घर मे कुछ है या

नहीं मेहमान को खबर नहीं लगनी चाहिए ...सच मे

बड़े सुहाने दिन थे कितने बाते होती थी कि दिन और

राते कम पड़ जाती थी.......... जानें कहाँ गए खो वो

दिन 😞😞😞😞 कोई तो वापस ला दो

अब तो न किसी के पास समय न किसी के पास आने

जाने कि फुर्सत ...रिश्तेदारी मे जाने कि जगह लोग

पहाड़ या फिर कही और घूमने जाना ज्यादा पसंद

करने लगे ........

Modi 3.0

नीतीश के लिये अपने 12 सांसद बरकरार रखना मुश्किल होगा .

संजय झा जो आज तक एक भी पंचायत का चुनाव नहीं जीत सका , उसको केंद्र में मंत्री बनवाना कई लोकसभा सांसदों को अखर सकता है .

ललन बाबू के साथ अति पिछड़ा समाज के मंत्री बनवाना ही नीतीश के लिये बेहतर होगा वरना एक वैशाखी कभी भी हट सकती है .

केंद्र में ज़्यादा सांसद के लिये बिहार की सरकार को शहीद भी किया जा सकता है .

मोदी सरकार इस बार उस सरकारी बस की तरह होगी

✍️ मोदी सरकार इस बार उस सरकारी बस की तरह होगी, जिनमे मोदी साहिब ड्राइवर होंगे, तो नीतीश कुमार और नायडू इसके बस कंडक्टर।

तो बीच मैं पैसेंजर रूपी जनता बैठी रहेगी।

अब जब मोदी जी खूब मज़े से बस भगा रहें होंगे, तो नीतीश जी अपनी आदत से बाज़ नहीं आएंगे और बीच में मोदी साहिब को कंधों से हिलाते हुए डिस्टर्ब करेंगे कि,

“बहुत हो गया अब उठिए, अब बस मैं चलाता हूं, फिर देखना कैसे भगाता हूं।” 😝

उधर नायडू जी आएंगे और नीतीश जी को कहेंगे कि ठीक है, ठीक है।

अब बस तू चला और यह पैसों वाला बैग मुझे पकड़ा और धीरे से बैग लेकर राज्य की ओर रफ्फू चक्र हो जाएंगे। 🤣


खैर! यह तो थी मज़ाक की बात।

मेरे मत अनुसार मोदी साहिब इस बार मोटे भाई को सरकार के कामकाज से बिलकुल मुक्त रखेंगे और उन्हें उनके मनपसंद कार्य में लगा देंगे।

इस लिए, चिंतित होने की आवश्कता नहीं हैं..

  • एक सहयोगी जाएगा तो मोटे भाई दो को लेकर आ जाएंगे। 😄
  • ईडी सीबीआई भी किस दिन काम आएंगे, धूल लगी फाइलों को फिर बाहर निकाल ले आएंगे। 😜
  • बीजेपी के पास कौन सी पैसों की कमी है, सुना है इस बार 1–1 सीट जीतने वाले भी बहुत हैं तो 1….1 बहुत होगा। 😝

अब वो बिंदु, जिस से एनडीए की तस्वीर बदली बदली नज़र आएंगी। जब कुछ समय बाद ममता बहन भी दिल्ली में साहिब के साथ बैठी नज़र आएंगी। 🤣


बड़े दुख के साथ ये कहना पड़ रहा है

बड़े दुख के साथ ये कहना पड़ रहा है कि उत्तर प्रदेश राज्य ने ही भाजपा की लुटिया डूबा दी । या सायद मुझे कहना चाहिए इस पूरे देश का भविष्य उत्तर प्रदेश ने बर्बाद कर दिया।

मुझे बिल्कुल भी समझ मे नही आ रहा है कि यूपी के लोगो ने भला क्यों सपा कोंग्रेस को इतना बढ़ चढ़कर वोट दिया ?

ये बहुत ज्यादा हैरान करने वाला है कि यूपी में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है जी हा सपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है यूपी में जिन्होंने 37 सीट भाजपा से छीन लीया। घोर हरानी है मुझे।

मैं अगर मान भी लू की सपा को हर हाल में 10 सीट तो मीलना ही था तब भी 27 सीटे बहुत होती है । भाजपा को 27 सीटों का नुकसान अकेले यूपी से हो गया । मतलब राम मंदिर को किसी ने तवज्जो ही नही दिया। बेहद आश्चर्य है मुझे। इसलिए मैं कहता हूं की हिंदुओ का आध्यात्मिक पतन तो हो चुका है बस धार्मिक पतन होना बाकी है। एक भी मुसलमान मस्जिद को नजरंदाज नही करता लेकिन हिंदू ! और कमेंट में तरह तरह के ज्ञानी हिंदू आएंगे ज्ञान देने की रोजगार कहाँ है ? सपा तुमको रोजगार दे देगी क्या ? महंगाई से परेशान हो सपा महंगाई कम कर देगी क्या ? इस से अच्छा नोटा दबा दे देते । भाजपा से नाराजगी थी तो नोटा दबा देते बेवकूफो , सपा कोंग्रेस को वोट क्यों दिया ? समझ रहा होंगा तुम्हारे लिए पेट्रोल महंगा है मेरे लीये भी महंगा है महंगाई बढ़ी है इसलिए भाजपा से नाराजगी है लेकिन सपा को वोट क्यों दे दिए ? भूल गए मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद का समय जब वो काफिला लेकर घूमते थे और किसी की हिम्मत नही होती थी की उन से नजर मीला ले। भूल गए जब मुलायम सिंह ने मुख्तार को बचाने के लिए शैलेन्द्र नाम के डीएम तक का ट्रांसफर कर दिया था। मतलब खाली रोजगार और महंगाई मुद्दा है राष्ट्रीय सुरक्षा कानून व्यवस्था कोई मुद्दा ही नही है लोगो के लिए। वोट तो ऐसे दिया जैसे लोकसभा नही विधानसभा का चुनाव हो।मतलब कोई राष्ट्रीय सुरक्षा को कैसे भूल सकता है ? सायद लोग भूल गए है इसलिए क्योंकि अब देश मे 26/11 जैसे मुंबई हमले नही हो रहे है तो राष्ट्रीय सुरक्षा कोई मुद्दा ही नही है।

किस बात के लिए रोजगार मांगते हो कि जीवन जीना है इसलिए ना अब कोई गुंडा आकर बंदूक सटाकर मार दे तो करते रहो रोजगार की बाते । जब कानून व्यवस्था ही खराब हो तो रोजगार और महंगाई का तुम क्या आचार डालोगे ? जिंदा रहोगे तभी तो मुद्दा उठाओगे। रोजगार बिल्कुल एक मुद्दा है लेकिन सपा कौनसा रोजगार दे देगा ये अब उसे वोट देने वाले ही जाने। यूपी में सपा जैसी गुंडा पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है । बहुत हैरान हूं।

नतीजों से साफ है हिंदुओ के लीये सिर्फ दो ही मुद्दे है महंगाई और बेरोजगारी बस । आतंकवाद राष्ट्रीय सुरक्षा धारा 370 मंदिर समान नागरिक संहिता जनसंख्या नियंत्रण कानुन जैसे मुद्दों से हिंदुओ को कोई मतलब नही है। यही अगर मुस्लिमो के लिए कोंग्रेस ने बाबरी मस्जिद बनवा दिया होता तो मैं लीख कर दे रहा हु सारे मुसलमान कोंग्रेस को ही वोट देते। वैसे भी बहुत सारे मुसलमानों ने कोंग्रेस सपा को ही वोट दिया है।

आखिर यूपी के हिंदू लोगो ने सपा कोंग्रेस को वोट क्यों दिया ? ये सायद इसी मंच से जुड़े कुछ मोदी विरोधी बता पाए।

भाजपा को मीला 240 सीट अगर इस मे 27 सीट यूपी से और मील जाता तो भाजपा के लीये चिंता की कोई जरूरत नही थी। पर अब है।

लोग महंगाई से परेशान है । बेरोजगारी से परेशान है । तो क्या इन बेवकूफो को सच मे ये लगता है कि सपा कोंग्रेस इन्हें महंगाई से निजात दिला देगी और इन्हें रोजगार दे देगी ?

बिहार जैसे राज्य ने भी भाजपा को 17 में से 15 दे दिया लेकिन यूपी वालो ने गुंडागर्दी वाली पार्टी को वोट दे दिया।

मैं नतीजे देख कर बहुत हैरान हूं । मतलब सपा यूपी में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। ये कैसे हो गया बे ?

लगता है मोदी समर्थक ज्यादातर लोग गर्मियों में घरों में ही पड़े रहे । यही मुझे लग रहा है क्योंकि हर चरण में वोटिंग परसेंट भी बहुत गिरा था।

यूपी के ही कई शहरों में अगर आप 2019 से तुलना करेंगे तो पाएंगे कि कई शहरों में वोटिंग परसेंट 2% से लेकर 10% तक गिरा है और मैं टीवी पे देख रहा था की अभी भी 100 सीटे ऐसी है जहां भाजपा और विरोधी दल में बहुत थोड़ा सा ही अंतर था।

कही पर मात्र 2000 तो कही पर मात्र 500 वोटों का ही अंतर था। कही कही तो उससे भी कम वोटों का अंतर था।

अगर लोग घरों से बाहर निकले होते तो सायद आज तशवीर भी अलग होती।

मोदी विरोधी लोग मुझे तर्क से जरूर समझाने का प्रयास करे कि अगर आप ने महंगाई बेरोजगारी से परेशान होकर कोंग्रेस को वोट दिया तो क्या सच मे कोंग्रेस आपको इन मुद्दों का हल दे देगी ? जरूर बताइएगा। कोंग्रेस तो भाई 100 पार कर गई।

अब प्रधानमंत्री भले मोदी बने या जो भी बने। एक चीज स्पस्ट है

पाकिस्तान अब हमें आंख दिखायेगा और चीन भी। अमेरिका भी अब हमें आंख दिखायेगा। अब भारत के विश्वशक्ति बनने का कोई चांस नही है। क्योंकि कमजोर सरकार कड़े फैसले नही ले पाएगी।

आत्मनिर्भर भारत का सपना तो अब टूट चुका है इसी के साथ काशी मथुरा का मामला भी अब हाथ से नीकल जाएगा। क्योंकि योगी को समझ मे आ जाएगा कि हिंदू लोगो को अपने धर्म से कोई मतलब नही है। सिर्फ मुसलमान इस्लाम के प्रति वफादार होते है । हिंदुओ को बस रोटी कपड़ा मकान दे दो उसी में खुश हो जाएंगे। इनकी आंख तभी खुलेगी जब कोई सत्ता से जुड़ा आदमी पूरे शहर में खुलकर गुंडागर्दी करेगा जैसे अतीक अहमद करता था वैसे ही। तभी आंख खुलेगी वरना तो नही। और इसलिए बेहतर यही है कि भाजपा भी कोंग्रेस की तरह तुष्टिकरण की राजनीति करे क्योंकी हिंदुओ को तो राष्ट्रीय सुरक्षा से कोई मतलब ही नही है । क्या फर्क पड़ता है राष्ट्रीय सुरक्षा से हम ने तो सिर्फ एक ही मुम्बई हमला झेला है वो भी अब पुरानी बात हो गई है।

अच्छा बहुत से हिंदू बोलते है मंदिर मंदिर करने से वोट नही मीलेगा । तो भाई ये बता दे हम क्या यूरोप जैसे किसी शांतिप्रिय माहौल में रहते है ? आतंकवाद से हम कई दशकों से जूझ रहे है तुम उस मुद्दे को कैसे भूल गए ? विधानसभा चुनाव था क्या जो महंगाई रोजगार के नाम पर वोट दे दिए । और यूपी में क्या अब कोई दबंग आदमी नही है जो सपा कोंग्रेस से जुड़ा हो जो खाली महंगाई रोजगार के नाम पर वोट दे दिए

समान नागरिक संहिता का कानून अब नही आने वाला। एनआरसी जैसा कानून भी अब नही आएगा क्योंकि लोगो को तो राष्ट्रीय सुरक्षा से कोई मतलब ही नही है। कश्मीर की शांति तो अब धीरे धीरे खत्म होगी। सारे भारत और हिन्दुविरोधी लोगो को एक जोश मील चुका है कि अब भारत को झुकाना आसान है क्योंकि सरकार के पास बहुमत नही है।

उत्तर प्रदेश से भी ज्यादा हैरान मुझे पंजाब ने किया । सारे खालिस्तानियों ने चुनाव जीत लीया है और सब अब संसद में आएंगे। अमृतपाल तक चुनाव जीत गया। अब वो एक सांसद है।

लेकिन क्या भाजपा ने कोई गलती नही की ?

मेरा आकलन

मोदी ने जीतने आत्मविश्वास में भरकर कहा था कि शपथ लेते ही बहुत काम आएंगे ऐसा उन्होंने नही कहना चाहिए था। यही तो उन्होंने गलती किया । overconfidence ले डूबा वो भी बुरी तरह।

झारखंड और दिल्ली के मुख्यमंत्री को जबरन जेल नही भेजना चाहिए था क्योंकि इन का विक्टिम कार्ड चुनाव में चल गया है। हां बिल्कुल इन का विक्टिम कार्ड चुनाव में चल गया है।

मोदी ने जो जोखिम लीया अंततः भारी पड़ गया। इतना जोखिम भी नही लेना चाहिए था। सीबीआई ईडी को इस हद तक चोरों के पीछे लगा दिया कि चोर पब्लिक में जाकर बोलने लगा कि देखो क्या तानाशाही कर रहा है और बेवकूफ पब्लिक भी चोर की बातो में आ गई कि हा मोदी सच मे तानाशाह है।

मुझे बचपन में एक अंकल ने कहा था कि बेटा इस देश से कोई मतलब मत रखो। सिर्फ खुद का देखो बस । इस समाज और इस देश का कुछ नही हो सकता है । लोग हर 10 साल में बीती बातों को भूल जाते है। लेकिन मैं एक पूर्व फौजी का बेटा होने के नाते तब भी इस देश के बारे में सोचता था। एक आशा थी मुझ में की ये देश एक दिन आगे बढ़ेगा और एक दिन आयेगा जब ये देश विश्वशक्ति बनेगा। एक दिन आएगा जब हम POK पर कब्जा कर लेंगे। एक दिन आएगा जब हिंदू जात पात को भूलकर एक हो जाएंगे।

लेकिन अब

अब सब उम्मीदें खत्म सी हो गई है।

सायद किसी ने सही कहा है कि इस सिस्टम को बदलने की कोसिस मत करो जो चल रहा है चलने दो । जैसा भी ये सिस्टम है वैसा ही चलने दो।

एक आदमी आया था सिस्टम बदलने तो लोगो को अच्छा नही लगा। गुंडों की पार्टी को जीता दिया।

अब सोच रहा हु क्या जरूरत थी कृषि कानून लाने की ? क्या जरूरत थी दिल्ली में शाहीन बाग का माहौल बनाने की ? क्या हासिल किया ये सब करके अंततः बहुमत तो नही मीला । बहुमत मील जाता तो राजनीति का चाणक्य मानता। वो भी नही मीला।

हरियाणा के लोग वाकई इतने नाराज हुए भाजपा के अग्निवीर योजना से की कोंग्रेस को ही वोट दे दिया । हद है साला।

ध्रुव राठी का तानाशाही वाला प्रोपेगैंडा सच मे काम कर गया। कितने ही लोग ब्रेनवॉश हुए और कोंग्रेस सपा को वोट दे दिया। ये हाल तब है जब फेसबुक ने कहा था कि उस ने हजारों अकॉउंट्स को डिलीट किया था जो चुनाव प्रभावित करने की कोसिस कर रहे है। सोचिए फेसबुक अगर कार्रवाई ना करता तब क्या हाल होता । । तब तो मैं समझता हूं भाजपा को 200 भी ना मीलते।

इतना काम करने के बाद भी बहुमत नही मीला मतलब प्रचार में भी चूक हुई मोदी से। मैं इस सरकार के सेकड़ो काम गिनवा सकता हु इतना कि किसी की आंख खोलने के लीये काफी हो पर अब कोई फायदा नही।

अब ये देश 2029 तक के लिए अस्थिर है

लेकिन क्या सच मे 2029 तक अस्थिरता रहेगी ?

मुझे लगता है 2029 नही अब ये देश हमेसा अस्थिर रहेगा क्योंकि भाई मुस्लिमो की भी तो जनसंख्या बढ़ती जा रही है वो भी तेजी से । 2029 तक यूपी का ही जनसंख्या और बदल चुका होगा। तो अब भाजपा के लीये जीतना और मुश्किल हो जाएगा।

2019 मे मुझे आज भी याद है सीएए कानून के नाम पर दिल्ली से मुंबई तक गुजरात से असम तक मुसलमान सड़को पर नीकल गए थे क्योंकि उन का तो लक्ष्य साफ है लेकिन हिंदुओ का ?

भाजपा आईटी सेल वाले बोलते थे मोदी को जाने दो योगी आएगा तो तांडव मचा देगा । मैं तो अब सोच रहा हु 2027 में योगी आ पायेगा या नही ? अब तो योगी का भी मुश्किल लग रहा है।

इस से अच्छा होता दिसम्बर में तीनों राज्यो में चुनाव हार जाते कम से कम overconfidence तो नही आता। 2018 में यही हुआ था तीनो राज्यो में हारकर सबक सीखे थे फिर 2019 में प्रचंड बहुमत हासिल किया था।

और अब ………

तीनो राज्यो में जीतकर मुख्य चुनाव में हार गए 😞 अति आत्मविश्वास।

ये भी हो सकता है कि बजट में सरकार ने आम आदमी को जो राहत नही दिया था उसी से परेशान होकर आम आदमी ने कोंग्रेस सपा को वोट दे दिया हो। पर फिर वही सवाल क्या कोंग्रेस सपा सब समस्या का हल कर देंगे ? लोग बहुत जल्दी भूल जाते है मानना पड़ेगा।

इस देश के लीये मैं हर तरह की सारी उम्मीद खत्म मानकर चल रहा हु । अब कोई उम्मीद नही कोई आशा नही। वामपंथीयो का हाथ जोड़कर नमन करना होगा उनकी ताकत और एकजुटता के आगे हम भारतीय कुछ भी नही है । अरे इजरायल जैसे देश को उन्होंने पूरी दुनिया मे अलग थलग कर दिया । हम क्या चीज है।

मान भी लीजिये मोदी अगर फिर से प्रधानमंत्री बनकर आ भी जाये तब भी 2029 में भाजपा की हार पक्की है क्योंकि कड़े फैसले नही ले पाएंगे तो जनता में नाराजगी बढ़ेगी।

मैं अब कोरा पर कोई पोस्ट नही करूँगा। 7 बजे करना होगा तो करूँगा वरना अब नही। मेरा सफर यहां समाप्त हुआ। अब कोई राइट विंग टाइप की पोस्ट नही। फालतू में मैं यहां अपना समय बर्बाद क्यों करु मेरी भी अपनी नौकरी है। मैं अब अपनी नौकरी पर और जीवन मे तरक्की हासिल करने पर ही ध्यान दूंगा।

भाड़ में जाये ये देश ये मतलबी समाज और धर्म। भाड़ में जाये राष्ट्रवाद। मेरे अंकल सही थे इस देश का कुछ नही हो सकता। लोग अतीत को बड़ी जल्दी भूल जाते है।

अपडेट एक फैक्ट बताना चाहूंगा

उड़ीसा बंगाल यहां तक कि तेलंगाना और आंध्र प्रदेश से भी भाजपा को सीटें मीली है केरल से भी सीट मीला है । बस उत्तर प्रदेश ने मामला फंसा दिया।

शुक्रवार, 31 मई 2024

नई बातें

एक वृद्ध आदमी बैंक जाता है, और काउंटर पर एक जवान (कैशियर) को रुपये 1000/- का निकासी चेक देता है।

कैशियर: सर, इतनी छोटी रकम आपको बाहर के एटीएम से निकाल लेनी चाहिए और मेरा समय बर्बाद नहीं करना चाहिए।

वृद्ध आदमी: मुझे 1000/- रुपये नकद देने में आपको क्या परेशानी है?

कैशियर: सॉरी सर, ऐसा नहीं हो सकता। आप या तो एटीएम जाएं या निकासी राशि बढ़ा दें।

वृद्ध आदमी: ठीक है, मैं न्यूनतम अनिवार्य राशि में से शेष अपने खाते से पूरी राशि निकालना चाहता हूं।

कैशियर वृद्ध के खाते की शेष राशि की जांच करता है, और यह रु. 80 लाख होती है।

वह कहता है_ "अभी हमारे पास तिजोरी में इतना पैसा नहीं है, लेकिन अगर आप मुझे 80 लाख रुपये का चेक देते हैं, तो हम कल नकदी की व्यवस्था कर सकते हैं"

वृद्ध आदमी: आप मुझे अभी कितनी राशि दे सकते हैं?

कैशियर: (बैंक का कैश बैलेंस चेक करता है) सर, आपको मैं सीधे 10 लाख दे सकता हूं।

वृद्ध आदमी 1000/- रुपये के चेक को फाड़ देता है, 10 लाख रुपये का नया चेक लिखता है और कैशियर को देता है।

केशियर जब तिजोरी में कैश लेने जाता है तो वह वृद्ध सार्वजनिक शेल्फ से नकद जमा पर्ची निकालकर उसमें भर देता है।

केशियर अंदर बैंक तिजोरी से नगदी लेकर वापस आता है, ध्यान से 10 लाख रुपये गिनता है,

बुजुर्ग आदमी को देकर कहता है - "सर, आप यह राशि ले सकते हैं, अब आपको इस रुपए के ढेर को खुद घर ले जाना है, लेकिन काउंटर छोड़ने से पहले गिनना, बाद में कोई शिकायत नहीं हो...

बुजुर्ग ने उस ढेर से रु. 500/- के दो नोट निकालकर अपने पर्स में रखते हैं, और कहते हैं -

"मुझे आप पर भरोसा है, बेटा, मुझे गिनने की जरूरत नहीं है। अब, ये रहा कैश डिपॉजिट स्लिप, ₹9,99,000/- प्लीज" मेरे खाते में वापस जमा करें और मुझे एक मुहर लगी हस्ताक्षरित काउंटर फ़ॉइल दें।

और हाँ, आप भी मेरी उपस्थिति में नकदी गिनें।"

कैशियर बेहोश...

कहानी का नैतिक सार: वरिष्ठ नागरिकों के साथ पंगा न करें, खासकर अगर वे सेवानिवृत्त हैं क्योंकि वे अब शेर नहीं बल्कि सवा शेर हैं...

😂😂🙏🙏

शुक्रवार, 24 मई 2024

कैसे होती थी बूथ कैप्चरिंग..

आइये, सिलसिलेवार जानते है!!

90 के दशक की माया मैगजीन का यह कवर है। चेहरा आप पहचानिये। स्टोरी का शीर्षक था, यह बिहार है।

तब यह बाहुबलियों का गढ़ था। आज भी है..
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राजनीति में गुंडागर्दी सन 70 के बाद शुरू हुई। जब जेपी आंदोलन ने अपना आगाज शुरू किया। उस वक्त जेपी ने कहा था- संघ मेरे आंदोलन की "मसल पावर" है।

इस मसल पावर ने 1973 से 75 तक खूब तोड़फोड़ की, सांसदों विधायको को घेरकर इस्तीफे करवाये। निर्वाचित जनप्रतिनिधियों का चलना मुहाल कर दिया।

पटना स्टेशन पर बम फटा, केंद्रीय रेलमंत्री मारे गए। कहीं पटरी उखड़ी, कहीं सरकारी दफ्तरों में धावे हुए। सीएम आवास के पास कुछ सरकारी मंत्रियों के बंगले जले। बसें वगैरह थोक में फूंकी गई। आखिर क्योकि जनता आ रही थी, सिंहासन खाली करवाना था।

यह हालात कमोबेश पूरे उत्तर में थे। इंदिरा गांधी ने हालात देख, इमरजेंसी लगा दी। प्रशासनिक जरूरत, लेकिन यह राजनीतिक रूप से आत्मघाती कदम था।
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अब उन्हें तानाशाह, विलेन की तरह देखा गया। 19 माह बाद जब माहौल शांत हुआ, इमरजेंसी हटाकर चुनाव कराए। कांग्रेस की नैया डूब गई। सत्ता देश मे बदली, और तमाम राज्यो में भी।

बिहार उनमें एक था। लीडिंग था। एक नई पोलिटीकल जमात उभरी थी। यह छात्र नेता थे। इन्हें मसल पॉवर का फायदा दिख गया था। इसी आंदोलन से कुछ दबंग नेता भी निकले।

ये नेताओ की मदद करते, रॉबिनहुड बने रहते। धमकी, हथियारों का प्रदर्शन होने लगा।
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तो बाहुबली, दरअसल सन 80 के आसपास से शुरू हुई फिनोमिना है। पहले कुछ बरस ये लोग, नेता के दाहिने हाथ, उसकी मसल पॉवर बने। जब समझ आया कि नेता की राजनीति तो उनके ही बूते चल रही है, वे खुद राजनीति में आने लगे।

इस दौर में सामाजिक परिवर्तन की चेतना बढ़ी। सोशल क्लैश हुए, तो सामाजिक समूहों के अपने-अपने बाहुबलियों के बीच भी क्लैश हुए। कुछ लोमहर्षक घटनाएं बिहार और यूपी में हुई।

धमक की राजनीति ने जड़े जमा ली, और बाहुबली खुद विधायक सांसद चुने जाने लगे। बूथा कैप्चर, सलेक्टिव बूथो के लिए ईजाद टेक्नीक बनी।
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10 साल बाद यह बदलने वाला था।

चुनाव आयोग, लोग समझते थे कि, कि मतपत्र छपवाना, कर्मचारी लगाना, गणना कराने वाला कोई निगम है। आयोग भी वैसा ही बिहेव करता था।

चुनाव मतपत्र से होता था। कर्मचारी, राज्य सरकार देती। पुलिस, गाड़ी वाहन राज्य सरकार देती। राज्य से जितना मिलता, आयोग उसी में काम करता।

फिर आये तिरूनेल्लई नारायण अय्यर शेषन। आम अफसर न थे। धीमी शुरुआत के बाद इन्होंने ताबड़तोड़ सुधार लागू किये।
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चुनाव आयोग एक संवेधानिक, ऑल पॉवरफुल बॉडी है। उसे हाथ जोड़कर,केंद्र और राज्य से कृपा मांगने की जरूरत नही थी। बल्कि वह तो सरकार ही हाईजैक कर लेती।

याने, अचार संहिता लगते ही, चुनाव आयोग प्रशासन हथिया लेता। जिलों के अफसर उलट पलट देता। ईमानदार डीएम-एसपी लगा दिये जाते। वे किसी नेता की सुनते ही न थे।

नियमो का कड़ाई से पालन होता। मतदान दलों के साथ पुलिस भेजना, स्थानीय कर्मचारियों को उसके चुनाव क्षेत्र से बाहर ड्यूटी देना उसके हाथ मे था। इससे बाहुबलियों को प्रशासन से मिला संरक्षण खत्म हो जाता।

फर्जी वोटिंग रोकने के लिए, इलेक्शन कमीशन ने वोटर आई कार्ड देना शुरू किया। इसमे फोटो लगा हुआ होता। वोट देते समय वह नम्बर दर्ज किया जाता। वोटर रोल का नियमित पुनरीक्षण किया जाता। मरे, खपे, माइग्रेट किये लोग हटा दिए जाते।

इसके पहले एक सिपाही, एक कोटवार ही मतदान की सुरक्षा करते। शेषन ने भारी मात्रा में केंद्रीय सुरक्षा बल भेजने शुरू किए। पूरे देश मे एक साथ चुनाव कराने के लिए उतनी सेना न थी। तो चरणों मे चुनाव होने लगे।

चुनाव 2 दिन नही, महीने डेढ़ महीने का काम हो गया।
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बूथ कैप्चरिंग का स्वर्णिम दौर, 1986-87 से 1993-94 तक रहा। जब ये सुधार नही थे।

दो गाडियों में भरकर आये दस बीस बंदूकधारी, बूथ पर कब्जा कर लेते। हवाई फायर कर, वोटरों को भगा देते। अब बचे मतदान दल के 3-4 कांपते हुए कर्मचारी, एक लाठी वाला सिपाही और कोटवार, वे चुपचाप किनारे सरक जाते।

कब्जा करने वाले बाहुबली की टीम, आराम से बैठकर, मतपत्र उठाती, ठप्पा लगाती, प्रेम से मोडती, डब्बे में डालती। एक दो घण्टे में ऑपरेशन खत्म।

तब न मोबाइल था, न मीडिया, न सुनवाई। अफसर, सरकार सबई अपनी थी। बात दब जाती।

लेकिन सच को रास्ता मिल जाता है। वीडियो कैमरे आ चुके थे, और नलनी सिंह जैसी कोई जांबाज पत्रकार इसका विडियोबाजी कर न्यूजट्रैक पर चला देती। सनसनी बनती।

ऐसी जगह पुनर्मतदान होता। भारी मात्रा में सेना बल लगाकर, देश में बूथ कैप्चरिंग को इतिहास के पन्नो में दफन कर दिया।

लेकिन श्रेय ले गयी, ईवीएम।
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ईवीएम का ट्रायल, होने लगा 1984 के आसपास ही। लेकिन शेषन ने इसके इस्तेमाल को बढ़ावा देना शुरू किया। लेकिन उनके दौर में दक्षिण भारत के कुछ विधानसभा चुनावों में इस्तेमाल हुआ।

मशीन का इस्तेमाल पूर्ण रूपेण होना शुरू हुआ, 1996 के बाद, उनके अगले चुनाव आयुक्त के समय।

तब चुनाव आयुक्त थे- एम एस गिल।

उन्होंने शेषन की परम्पराओ को मजबूती दी। मशीन ने इलेक्शन रिजल्ट क्विक कर दिए। वोट इनवैलिड होना बंद हो गया, क्योकि स्याही-ठप्पे गलत लगने, या गीला ही मोड़ देने के कारण यदि दाग किसी दूसरी जगह भी लगा है, तो उसे खारिज कर दिया जाता।

मशीन में इसकी संभावना नही थी।
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आप जान गए कि बूथ कैप्चर शुरू कैसे हुआ, रुका कैसे। जो कहते है कि मशीन ने बूथ कैप्चर रोक दिया, मूर्ख, अज्ञानी और व्हाट्सप वीर हैं।

आज भी सेंट्रल फोर्स हटा दीजिए, अधिकारियों को बेलगाम छोड़ दीजिए। मतदान दल को अरक्षित छोड़ दीजिए। बाहुबली बूथ को मजे से कैप्चर करके दिखा देंगे।

बटन दबा देंगे, ठप्पा लगा देंगे। क्येाकि मशीन, बूथ कैप्चर करने वालो को गोली नही मारती, सिक्योरिटी फोर्स मारती है।
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लेकिन सच तो यह भी मोबाइल कैमरे, और सोशल मीडिया के दौर में बूथ कैप्चर छुपना असम्भव है। उस जगह पुनर्मतदान करवाना पड़ जायेगा, जो नेचुरली ज्यादा सिक्योरिटी में होगा।

इसके बनिस्पत, मशीन के भीतर, अगर डेटा फेरबदल हो रहा है, आप देख नही पाएंगे। उससे धाँय धाँय की आवाज भी नही आएगी।
और हाथी, नाक के नीचे से निकल जायेगा।

जो इस बार 400 पार तक निकलने की तैयारी करके बैठा है।

गुरुवार, 23 मई 2024

आज के 'जेट युग' में सबसे कीमती वस्तु समय है।

आज के 'जेट युग' में सबसे कीमती वस्तु समय है। सबको सब कुछ झटपट चाहिए। मोबाइल में 5G स्पीड, खाने में फ़ास्ट फ़ूड , मनोरंजन के लिए शॉर्ट फिल्म्स, 30 सेकंड की रील आज की पीढ़ी विशेषकर युवाओं की पहली पसंद बन चुका है।

गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग में संपादक डॉक्टर धनेश द्विवेदी ने समय की इसी नब्ज को परखते हुए 'मेरी इकतीस लघु कथाएं' पुस्तक लिखी है। जैसा कि शीर्षक से ही स्पष्ट है, यह किताब धनेश जी की इकतीस लघु कथाओं का संग्रह है। सभी कहानियां छोटी अवश्य हैं लेकिन संदेश बड़ा देती हैं। तमाम ज्वलंत विषयों को लेकर गागर में सागर भरने का प्रयास किया है धनेश जी ने।

समाज में व्याप्त भृष्टाचार, महंगाई, पैसा प्रेम, कुर्सी का किस्सा, स्त्रियों का दोहरा चरित्र, सास-बहू, माता-पुत्र के संबंधों से लेकर बेटा-बेटी में फर्क , दूसरे धर्म में विवाह और उसके परिणाम, समलैंगिक संबंध जैसे तमाम विषयों पर धनेश जी ने इशारों-इशारों में गंभीर कटाक्ष किया है।

'मिठाई की दुकान' शिक्षा को शुद्ध व्यापार समझने वालों पर व्यंग्य है , 'दोहरा चरित्र' नारी के कथनी और करनी में अंतर, 'पैसा' सबंधो पर भारी पड़ते धन के महत्व, 'दवाई' देश की चिकित्सा व्यवस्था पर प्रहार, 'लोभ का पत्थर' हृदय परिवर्तन, 'गुब्बारा' परहित, 'बहू का प्रेम' तथाकथित पढ़ी लिखी, कामकाजी स्त्रियों के घोर स्वार्थ, 'महंगाई' अपराध और खून की घटती कीमत, 'बेटे से बेटी भली' बेटियों के महत्व, 'गलत निर्णय' मेन विल बी मेन, 'पेट भर खाना' रक्षक के भक्षक बनने, 'सीख' तथाकथित कुत्ता प्रेमियों, ' भृष्टाचार' भृष्टाचार के अजर, अमर होने, 'रहम की भीख' राजनेताओं के यूज़ एंड थ्रो, 'मांस का लोथड़ा' दंगों की विभीषिका और परिणामों पर व्यंग्य करती है और गंभीर प्रश्न चिन्ह खड़े करती है। अन्य कहानियों में भी कुछ न कुछ संदेश , सीख या व्यंग्य छुपा हुआ है। सभी इकतीस कहानियां सच के बेहद नजदीक, हमारे समाज का दर्पण हैं।

पुस्तक लघु कहानियों के बड़े और गहरे प्रभाव के कारण तो पठनीय है ही परंतु इस पुस्तक की सबसे विशिष्ट खूबी यह है कि इसकी सभी कहानियों को चार भाषाओं - हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू और रूसी भाषा में लिखा गया है। यह विशिष्टता लेखक की उक्त चार भाषाओं में समान अधिकार को तो दर्शाता ही है, साथ ही चार भाषाओं में लिखी गई यह विश्व की पहली लघु कथा पुस्तक है। 'गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्डस' ने इस अनूठी उपलब्धि के लिए इस किताब को उत्कृष्टता प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया है।

साहित्य के सुधी पाठकों से मेरा अनुरोध है कि प्रख्यात लेखक डॉक्टर धनेश द्विवेदी द्वारा लिखित और 'हिंदुस्तानी भाषा अकादमी' द्वारा प्रकाशित इस बहुभाषी और बहुमूल्य पुस्तक को अवश्य पढ़ें और एक टिकट में चार मूवी का आनंद लें।

प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई

प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई जी के आज से लगभग 50 साल‌ पहले के रचित अलग-अलग व्यंग्य लेखों से कुछ लाइनें चुन कर आपके समक्ष रखी हैं, जो‌ आज भी ताजा हैं और मिर्ची से भी तीखी लगेंगी.... -

# दिवस कमजोर का ही मनाया जाता है, जैसे कि हिंदी दिवस, महिला दिवस, अध्यापक दिवस, मजदूर दिवस; कभी "थानेदार दिवस' नहीं मनाया जाता

# व्यस्त आदमी को अपना काम करने में जितनी अक्ल की जरूरत पड़ती है, उससे ज्यादा अक्ल बेकार आदमी को समय काटने में लगती है

# बेइज्जती में अगर दूसरे को भी शामिल कर लो तो आधी इज्जत बच जाती है;

# जिनकी हैसियत है वे एक से भी ज्यादा बाप रखते हैं, एक घर में, एक दफ्तर में, एक-दो बाजार में, एक-एक हर राजनीतिक दल में।

# आत्मविश्वास कई प्रकार का होता है, धन का, बल का, ज्ञान का, लेकिन मूर्खता का आत्मविश्वास सर्वोपरि होता है ।

# सबसे निरर्थक आंदोलन भ्रष्टाचार के विरोध का आंदोलन होता है, एक प्रकार का यह मनोरंजन है जो राजनीतिक पार्टी कभी-कभी खेल लेती है, जैसे क्रिकेट या कबड्डी के मैच,

# रोज विधानसभा के बाहर एक बोर्ड पर ‘आज का बाजार भाव’ लिखा रहे, साथ ही उन विधायकों की सूची चिपकी रहे जो बिकने को तैयार हैं, इससे खरीददार को भी सुविधा होगी और माल को भी,

# विचार जब लुप्त हो जाता है, या विचार प्रकट करने में बाधा होती है, या किसी के विरोध से भय लगने लगता है, तब तर्क का स्थान हुल्लड़ या गुंडागर्दी ले लेती है

# धन उधार देकर समाज का शोषण करने वाले धनपति को जिस दिन "महा-जन" कहा गया होगा, उस दिन ही मनुष्यता की हार हो गई ।

# हम मानसिक रूप से दोगले नहीं तिगले हैं । संस्कारों से सामन्तवादी हैं, जीवन मूल्य अर्द्ध-पूंजीवादी हैं और बातें समाजवाद की करते हैं।

# फासिस्ट संगठन की विशेषता होती है कि दिमाग सिर्फ नेता के पास होता है, बाकी सब कार्यकर्ताओं के पास सिर्फ शरीर होता है

# दुनिया में भाषा, अभिव्यक्ति के काम आती है । इस देश में दंगे के काम आती है।

# जब शर्म की बात गर्व की बात बन जाए, तब समझो कि जनतंत्र बढिय़ा चल रहा है।

# जो पानी छानकर पीते हैं, वो आदमी का खून बिना छाने पी जाते हैं।

# सोचना एक रोग है, जो इस रोग से मुक्त हैं और स्वस्थ हैं, वे धन्य हैं।

# हीनता के रोग में किसी के अहित का इंजेक्शन बड़ा कारगर होता है।

# नारी-मुक्ति के इतिहास में यह वाक्य अमर रहेगा कि ‘एक की कमाई से पूरा नहीं पड़ता;

# एक बार कचहरी चढ़ जाने के बाद सबसे बड़ा काम है, अपने ही वकील से अपनी रक्षा करना;

(एक ट्वीटर उपयोगकर्ता के ट्वीट से साभार लिया गया, उन्होंने भी कहीं और से साभार ही लिया था 😊🙏)

आदिवासी सदैव अविष्कारक रहे है

आदिवासी सदैव अविष्कारक रहे है ये हमारे छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में दाल परोसने वाला बर्तन है दिखिये ना प्रकृति पूजकों का कितना प्राकृतिक पात्र है।

बस्तर मे आदिवासी समाज दार-झोर / रसायुक्त दाल या सब्जी को परोसने के लिए बांस और पत्तो का ऐसा खूबसूरत पात्र बनाते है। रसीला पदार्थ ज़मीन मे गिरे नहीं इसलिए पत्तों की लाइनिंग महत्वपूर्ण हुनरमंदी है।

दुनिया की उत्पति हुआ तब गंजी बर्तन हंडी का विकास नहीं हुआ था तब से हमारे आदिवासी समुदाय के लोगों ने सामुहिक भोज में (* दार झोर) यानी रसा युक्त दाल या सब्जी को परोसने के लिए बांस से बने टेक्निक का अविष्कार किया ओर आज भी वो परम्परा कहीं न कहीं देखने को मिलता है।

बुधवार, 1 मई 2024

जिलाधिकारी के काम कौन-कौन से होते हैं?

आजकल जिलाधिकारी के काम…

आजकल जिले के कलेक्टर का काम सुबह उठ कर सोशल मीडिया पर पोस्ट करना है जनता का हाल जानना थोड़ी ना है।

ऑफिस जाते वक्त एक ठेले के पास रुक कर फल की फोटो खींच कर ट्वीट करना है कि "आपके यहां इसे क्या कहते हैं "।

ऑफिस पहुंचने के बाद कुर्सी में तनकर कर बैठकर कोट पैंट पहने वाली फोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट कर मोटिवेशन देना है कि

"थोड़ा और मेहनत करलो फिर यहां पहुंच जाओगे",

फिर राउंड पर निकले क्योंकि कंटेंट तो सड़क पर है ऑफिस में थोड़ी है, एक पेड़ के नीचे पहुंच कर उसकी डाली पकड़ कर कहना है कि "पेड़ गांव में रह जाता है, फल शहर चला जाता है",

शाम हो गई पहुंचे घर वहां से बस एक और स्ट्रेटजी भरा पोस्ट कि मैं रात को सोने वक्त सर के बल खड़ा होकर करता था रिवीजन, वहां साहब के जिले की प्रजा तड़प रही है, भू माफिया जमीन पर जमीन कब्जा कर रहा है, खनन माफिया बढ़ते जा रहे हैं, लोग भूख से मर रहे हैं, लोग न्याय न मिलने से खुद को जिला मुख्यालय के सामने आंदोलन कर रहे हैं, प्रदूषण और गंदगी बढ़ती जा रही है, प्राइमरी स्कूलों की बिल्डिंगे धाराशायी होने को हैं, मगर सोशल मीडिया और कागज पर कलेक्टर साहब का सब काम चमाचम है।

साहब के सोशल मीडिया पोस्ट देख कर फॉलोअर कमेंट कर रहा है कि बेस्ट IAS ऑफिसर बस और क्या चाहिए.

ये कर सको तो समझो राजा हो, राजा छोटी मोटी चीजें देखकर विचलित थोड़ी नहीं होता है, बस दिमाग में एक बात रखता है कि जब मेरे से पहले वाले ने कोई काम नहीं किए तो मैं क्यूं करू और जब सब मैं ही कर दूंगा तो मेरे बाद वाला क्या करेगा, ये होती है साहब राजा वाली मेंटेलिटी।

धन्यवाद 🙏❤️

मंगलवार, 30 अप्रैल 2024

एक जमाना था...

खुद ही स्कूल जाना पड़ता था क्योंकि साइकिल बस आदि से भेजने की रीत नहीं थी, स्कूल भेजने के बाद कुछ अच्छा बुरा होगा ऐसा हमारे मां-बाप कभी सोचते भी नहीं थे...

उनको किसी बात का डर भी नहीं होता था,

🤪 पास/नापास यही हमको मालूम था... *%* से हमारा कभी भी संबंध ही नहीं था...

😛 ट्यूशन लगाई है ऐसा बताने में भी शर्म आती थी क्योंकि हमको ढपोर शंख समझा जा सकता था...

🤣🤣🤣

किताबों में पीपल के पत्ते, विद्या के पत्ते, मोर पंख रखकर हम होशियार हो सकते हैं ऐसी हमारी धारणाएं थी...

☺️☺️ कपड़े की थैली में...बस्तों में..और बाद में एल्यूमीनियम की पेटियों में...

किताब कॉपियां बेहतरीन तरीके से जमा कर रखने में हमें महारत हासिल थी.. ..

😁 हर साल जब नई क्लास का बस्ता जमाते थे उसके पहले किताब कापी के ऊपर रद्दी पेपर की जिल्द चढ़ाते थे और यह काम...

एक वार्षिक उत्सव या त्योहार की तरह होता था.....

🤗 साल खत्म होने के बाद किताबें बेचना और अगले साल की पुरानी किताबें खरीदने में हमें किसी प्रकार की शर्म नहीं होती थी..

क्योंकि तब हर साल न किताब बदलती थी और न ही पाठ्यक्रम...

🤪 हमारे माताजी पिताजी को हमारी पढ़ाई बोझ है..

ऐसा कभी लगा ही नहीं....

😞 किसी एक दोस्त को साइकिल के अगले डंडे पर और दूसरे दोस्त को पीछे कैरियर पर बिठाकर गली-गली में घूमना हमारी दिनचर्या थी....

इस तरह हम ना जाने कितना घूमे होंगे....

🥸😎 स्कूल में मास्टर जी के हाथ से मार खाना, पैर के अंगूठे पकड़ कर खड़े रहना, और कान लाल होने तक मरोड़े जाते वक्त हमारा ईगो कभी आड़े नहीं आता था.... सही बोले तो ईगो क्या होता है यह हमें मालूम ही नहीं था...

🧐😝 घर और स्कूल में मार खाना भी हमारे दैनंदिन जीवन की एक सामान्य प्रक्रिया थी.....मारने वाला और मार खाने वाला दोनों ही खुश रहते थे... मार खाने वाला इसलिए क्योंकि कल से आज कम पिटे हैं और मारने वाला इसलिए कि आज फिर हाथ धो लिए 😀......

😜 बिना चप्पल जूते के और किसी भी गेंद के साथ लकड़ी के पटियों से कहीं पर भी नंगे पैर क्रिकेट खेलने में क्या सुख था वह हमको ही पता है...

😁 हमने पॉकेट मनी कभी भी मांगी ही नहीं और पिताजी ने भी दी नहीं....

.इसलिए हमारी आवश्यकता भी छोटी छोटी सी ही थीं....साल में कभी-कभार एक आध बार सेव मिक्सचर मुरमुरे का भेल खा लिया तो बहुत होता था......उसमें भी हम बहुत खुश हो लेते थे.....

😲 छोटी मोटी जरूरतें तो घर में ही कोई भी पूरी कर देता था क्योंकि परिवार संयुक्त होते थे ..

🥱 दिवाली में लगी पटाखों की लड़ को छुट्टा करके एक एक पटाखा फोड़ते रहने में हमको कभी अपमान नहीं लगा...

😁 हम....हमारे मां बाप को कभी बता ही नहीं पाए कि हम आपको कितना प्रेम करते हैं क्योंकि हमको आई लव यू कहना ही नहीं आता था...

😌 आज हम दुनिया के असंख्य धक्के और टाॅन्ट खाते हुए......

और संघर्ष करती हुई दुनिया का एक हिस्सा है..किसी को जो चाहिए था वह मिला और किसी को कुछ मिला कि नहीं..क्या पता..

😀 स्कूल की डबल ट्रिपल सीट पर घूमने वाले हम और स्कूल के बाहर उस हाफ पेंट मैं रहकर गोली टाॅफी बेचने वाले की दुकान पर दोस्तों द्वारा खिलाए पिलाए जाने की कृपा हमें याद है.....

वह दोस्त कहां खो गए , वह बेर वाली कहां खो गई....

वह चूरन बेचने वाली कहां खो गई...पता नहीं..

😇 हम दुनिया में कहीं भी रहे पर यह सत्य है कि हम वास्तविक दुनिया में बड़े हुए हैं हमारा वास्तविकता से सामना वास्तव में ही हुआ है...

🙃 कपड़ों में सलवटें ना पड़ने देना और रिश्तों में औपचारिकता का पालन करना हमें जमा ही नहीं......

सुबह का खाना और रात का खाना इसके सिवा टिफिन क्या था हमें मालूम ही नहीं...

😀 हम अपने नसीब को दोष नहीं देते....जो जी रहे हैं वह आनंद से जी रहे हैं और यही सोचते हैं....और यही सोच हमें जीने में मदद कर रही है.. जो जीवन हमने जिया...उसकी वर्तमान से तुलना हो ही नहीं सकती ,,,,,,,,

😌 हम अच्छे थे या बुरे थे नहीं मालूम , पर हमारा भी एक जमाना था

🙏 और Most importantly , आज संकोच से निकलकर , दिल से अपने साक्षात देवी _देवता तुल्य , प्रात स्मरणीय , माता जी _ पिता जी , भाई एवं बहन को कहना चाहता हूं कि मैं आपके अतुल्य लाड, प्यार , आशीर्वाद , लालन पालन वा दिए संस्कारो का ऋणी हूं

शुक्रवार, 22 मार्च 2024

पशु-पक्षी न तो ईश्वर की प्रार्थना करते हैं और न ही पूजा, फिर भी वो मस्त कैसे रहते हैं। उन्हें कोई कठिनाई क्यों नहीं होती है?

पशु-पक्षी न तो ईश्वर की प्रार्थना करते हैं और न ही पूजा, फिर भी वो मस्त कैसे रहते हैं। उन्हें कोई कठिनाई क्यों नहीं होती है?

पशु पक्षियों में कोई Sense of history नहीं होती।

Source:Google

उनके लिए ना Before है और ना After

मनुष्यमें Sense of history होती है। वो उसे जंजीर की तरह बांध कर रखती है। ज़्यादा सही कहे तो पीछे की तरफ़ खींचती हैं। मनुष्य Historically जीता है और जानवर Unhistorically जीते हैं।

Source:Google

इसीलिए वो परेशान रहता है।

ईश्वर की कल्पना भी उसे चैन से जीने नहीं देती क्योंकि उस कल्पना के साथ भी वो Sense of history की ज़ंजीर उसे पीछे खींचती है।

आप अल्लाह की नाम पर सर तन से ज़ुदा कर सकते हो। आप प्रभु श्रीराम का नाम लेकर हत्याएँ कर सकते हो।

आपकी Sense of History आपके अल्लाह/ईश्वर को भी अपनी लपटों में ले लेती है।

मनुष्य दुनिया का सबसे मूर्ख प्राणी है। उसे लगता है वो Past को बदल सकता है।

उसे लगता है वो Past को बदलकर Future को नियंत्रित कर सकता है। Present की वो अनदेखी करता है।

रविवार, 18 फ़रवरी 2024

भारतीयों के कुछ जुगाड़ देखकर आप कब चकित हुए?

भईया ऐसा है कि ईश्वर ने पूरे ब्रह्मांड में सिर्फ हम भारतीयों को ही जुगाड़ टेक्नालॉजी वाले दिमाग से नवाजा है।

अब हम उसमें समय समय पर कुछ अपडेशन करते रहते हैं।

जैसे किसी महाशय ने टूटी हुई टंकी को स्वच्छ भारत अभियान का हिस्सा बना दिया।

जो मजा ऊपर देखने में है वो सामने कहां ।

मिशन मंगल पर जाने की तैयारी का एक नमूना।

किसी सामान की सहीं उपयोगिता ही उसकी सार्थकता है।

इस व्यवस्था का अपना अलग ही मजा है।

ये एक शानदार व्यवस्था है।

इनको 21 तोपो की सलामी।

क्या प्यार है ? अद्भुत ।।

इनके चरण कहां है ? इनकी प्रतिभा देख कर आंखों में खूशी के आंशु आ गए।

ये सर्वश्रेष्ठ दिमाग का उत्कृष्ठ नमूना है।

पुराने समान का सही उपयोग।

ये रजनीकांत वाला स्टाईल है।

शुक्रवार, 19 जनवरी 2024

16 साल से कम उम्र के बच्चों की कोचिंग बंद,

16 साल से कम उम्र के बच्चों की कोचिंग बंद, आदेश नहीं मानने पर लगेगा 1 लाख का जुर्माना, गाइडलाइन जारी🏌️🏌️🏌️🏌️🏌️

प्राइवेट कोंचिंग सेंटर्स की मनमानी पर अब केंद्र सरकार ने लगाम कसने की तैयारी कर ली है. इन नई गाइडलाइंस के अनुसार अब कोई भी कहीं भी और कभी भी प्राइवेट कोचिंग सेंटर नहीं खोल पाएगा.

इसके लिए सबसे पहले उसे रजिस्ट्रेशन कराना होगा. यही नहीं अब कोचिंग सेंटर में 16 साल से कम उम्र के बच्चों को पढ़ाई के लिए नामांकन नहीं होगा. कोचिंग सेंटर किसी छात्र से मनमानी फीस भी नहीं वसूल सकेंगे.

केंद्र ने ये गाइलाइन देश भर में NEET या JEE की तैयारी कर रहे छात्रों के बढ़ते सुसाइड मामलों और देश में बेलगाम कोचिंग सेंटर्स की मनमानी को लेकर दिया है.

#BreakingNews #Coaching #Students #education

मंगलवार, 16 जनवरी 2024

गाँव में तो डिप्रेशन को भी डिप्रेशन हो जायेगा।

उम्र 25 से कम है और सुबह दौड़ने निकल जाओ तो गाँव वाले कहना शुरू कर देंगे कि “लग रहा सिपाही की तैयारी कर रहा है " फ़र्क़ नही पड़ता आपके पास गूगल में जॉब है।

30 से ऊपर है और थोड़ा तेजी से टहलना शुरू कर दिये तो गाँव में हल्ला हो जायेगा कि “लग रहा इनको शुगर हो गया "

कम उम्र में ठीक ठाक पैसा कमाना शुरू कर दिये तो आधा गाँव ये मान लेगा कि आप कुछ दो नंबर का काम कर रहे है।

जल्दी शादी कर लिये तो “बाहर कुछ इंटरकास्ट चक्कर चल रहा होगा इसलिये बाप जल्दी कर दिये "

शादी में देर हुईं तो “दहेज़ का चक्कर बाबू भैया, दहेज़ का चक्कर, औकात से ज्यादा मांग रहे है लोग "

बिना दहेज़ का कर लिये तो “लड़का पहले से सेट था, इज़्ज़त बचाने के चक्कर में अरेंज में कन्वर्ट कर दिये लोग"

खेत के तरफ झाँकने नही जाते तो “बाप का पैसा है "

खेत गये तो “नवाबी रंग उतरने लगा है "

बाहर से मोटे होकर आये तो गाँव का कोई खलिहर ओपिनियन रखेगा “लग रहा बियर पीना सीख गया "

दुबले होकर आये तो “लग रहा सुट्टा चल रहा "

कुलमिलाकर गाँव के माहौल में बहुत मनोरंजन है इसलिये वहाँ से निकले लड़के की चमड़ी इतनी मोटी हो जाती है कि आप उसके रूम के बाहर खडे होकर गरियाइये वो या तो कान में इयरफोन ठूंस कर सो जायेगा या फिर उठकर आपको लतिया देगा लेकिन डिप्रेशन में न जायेगा।

और ज़ब गाँव से निकला लड़का बहुत उदास दिखे तो समझना कोई बड़ी त्रासदी है।

😇😇😇😇

क्या धरिरेंद्र सास्त्री सच में कोई चमत्कार करते है?

अगर मेरे जवाब से किसी की भी आस्था को ठेस पहुंचती है तो मैं उसके लिए हाथ जोड़कर माफी मांगता हूं ।

जो भी मैं अपने जवाब में लिख रहा हूं यह मेरे व्यक्तिगत विचार हैं इनका मेरे अलावा किसी दूसरे व्यक्ति से कोई भी संबंध नहीं है ।

पूरे ब्रह्मांड में पृथ्वी की स्थिति को आप इस तरह से आकलन कर सकते हैं जैसे की पूरी पृथ्वी एक ब्रह्मांड है और पृथ्वी पर एक बैक्टीरिया पृथ्वी है । शायद ब्रह्मांड के मुकाबले हमारी पृथ्वी इससे भी छोटी हो सकती है।

पहले हम लोग कंदमूल फल खाकर अपनी जिंदगी गुजारते थे धीरे-धीरे करके हमने शिकार करना शुरू कर मांस खाना शुरू कर उसके बाद हम लोगों ने खेती करना शुरू किया । इसके बाद खेती की तरफ लोगों का ध्यान बढ़ा , मांस खाना कम हुआ फसल को उपजाना शुरू हुआ । धीरे-धीरे करके टेक्नोलॉजी आगे बढ़ती गई बिजली बनी प्लेन बने गाड़ियां बनी बाइक्स बनी, टेक्नोलॉजी आगे बड़ी, मोबाइल्स बने इंटरनेट आया ।

जो लोग भविष्य देख सकते थे उन्होंने ऐसे आविष्कार करें जो भविष्य में लोगों के काम आए ना कि उन्होंने लोगों का भविष्य बता कर उन्हें गुमराह किया अगर आज के समय में कोई भी अगर आपका भविष्य देख सकता है तो वह यह भी देख सकता है कि भविष्य में आगे क्या होने वाला है । जिन लोगों की गाड़ियों का एक्सीडेंट हो जाता है नदी में नहाने जाते हैं तो पैर फिसल के गिर जाते हैं ऐसे कितने ही वीडियो इन बाबाओ के सामने आते हैं। क्या आप लोग फिर भी यकीन करते हैं कि यह लोग हमारा भविष्य देख सकते हैं, जिन्हें अपने अगले क्षण का भी पता नहीं कि उनके साथ क्या होने वाला है । अगर यह लोग भविष्य देख सकते हैं फिर तो शेयर मार्केट की कंपनियों को इन्हें बिल्कुल अपने पास रख लेना चाहिए मुनाफा ही मुनाफा होगा ‌

मुकेश अंबानी ने भविष्य देखा कि भारत में इंटरनेट की आगे की क्षमताएं कितनी है लोग कितना आगे बढ़ सकते हैं इसमें कितनी पोटेंशियल है, यह एक साधारण सा उदाहरण है कि लोग भविष्य को किस तरह से देखते हैं लोग भविष्य का अनुमान लगा सकते हैं उसके हिसाब से वर्तमान को भविष्य के लिए तैयार कर सकते हैं लेकिन अगर कोई आपको भविष्य देखने का वादा करके आप गुमराह कर रहा है तो ऐसे लोगों से तुरंत की तुरंत दूर हो जाए यह लोग सिर्फ और सिर्फ पाखंडी है ।

यदि इस लेख से किसी की आस्था को ठेस पहुंची हो या बुरा लगे तो उसके लिए मैं क्षमा चाहता हूं । यह विचार सिर्फ मेरे अपने हैं जो मेरे द्वारा अनुभव किया गया है । मुझे खुशी होगी यदि आप अपने विचार भी कमेंट सेक्शन में रखें ।

श्री प्रेमानंद जी का यह वीडियो भी जरूर देखें


#sathiyo

जैसा कि हम सब जानते हैं जहां एक तरफ अयोध्या में प्रभु श्री राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम है, वहीं दूसरी तरफ अयोध्या प्रभु श्री राम मंदिर को दान करने का सिलसिला भी नहीं रख रहा है। आपको बता दे की हनुमान फिल्म जो की अभी कुछ दिनों पहले रिलीज हुई है, वह अब तक 60 करोड रुपए कमा चुकी है और इसके पीछे बस एक ही कारण है आम जनता जो खुद को बड़े पर्दे पर सत्य सनातन धर्म से कनेक्ट कर पाई है। इसी फिल्म की सक्सेस पर हनुमान फिल्म के मेकर्स ने 14 लाख रुपए अयोध्या राम मंदिर ट्रस्ट को दान करने की घोषणा की है।फिल्म मेकर्स के अनुसार हर टिकट में ₹5 का हिस्सा अयोध्या प्रभु श्री राम मंदिर को दान किया गया है और आगे की कमाई का भी यह हिस्सा मंदिर को दान किया जाएगा।

बगल में छोरा शहर में ढिंढोरा...🤔

दुनिया भर की ताकत का भंडार आपके बगल में है, और एक आप हैं कि दुनिया भर में तलाश कर रहे हैं...

ये कमाल का पौधा आपके आसपास, बगल में लगा हुआ है लेकिन लोग ड्राई फ्रूट, दवाओं और छायादार वृक्षो के पीछे भाग रहे हैं। ये अकेला वृक्ष कॉम्बो पैक है साहब जो अपने आपमे एक इकोसिस्टम है।

बाकी की माथा पच्ची भी होगी, तब तक आप अपना अनुभव शेयर करें, जरा गैसिंग लगाइये कि मैं क्या कहने वाला हूँ। वैसे उमर के विषय मे हमारे क्षेत्र में एक कहावत है...

आंखि देख के माखी न निगलि जाए!

सहगी ऊमर फोड़ खे न खाय!!

इस देशी कहावत के अनुसार अगर ऊमर/गूलर को फोड़ कर खाया जाये तो हवा लगते ही इसमे कीड़े पड़ जाते हैं। इसीलिये इसे बिना फोड़े ही खाया जाता है। लेकिन सच तो यह है, कि इसमें छोटे छोटे कीड़े (wasp) मौजूद रहते ही हैं। वनस्पति विज्ञान की भाषा मे गूलर का फल हायपेन्थोडीयम कहलाता है, जिसमे फूल/ पुष्पक्रम के आधारीय भाग मिलकर एक बड़े कटोरे या बॉल जैसी संरचना बना लेते हैं। और इस गोलाकार फल जैसी संरचना के भीतर कई नर और मादा पुष्प/ जननांग रहते है, जिनमें परागण और संयुग्मन के बाद बीज बन जाते हैं।

फल के परिपक्व होने के पहले उस पर विशेष प्रकार की मक्खी सहित कई कीट प्रवेश कर जाते हैं। कई बार वे अपना जीवन चक्र भी यहीं पूर्ण करते हैं। जैसे ही फल टूटकर जमीन से टकराता है, यह फट जाता है, और कीड़े मुक्त हो जाते हैं। ऐसा न भी हो तो कीट एक छिद्र करके बाहर निकल जाते हैं।

चलिये इन सबसे हटकर अब चर्चा करते हैं, इसके औषधीय महत्व की, हमारे गाँव के बुजुर्गों के अनुसार इसके फलो को खाने से गजब की ताकत मिलती है, और बुढापा थम से जाता है। मतलब अंजीर की तरह ही इसे भी प्रयोग किया जाता है।

मेरी दादी कहती थी कि ऊमर के पेड़ के नीचे से बिना इसे खाये नही गुजर सकते हैं। इसकी छाल को जलाकर राख को कंजी के तेल के साथ पाइल्स के उपचार में प्रयोग करते हैं। दूध का प्रयोग चर्म रोगों में रामवाण माना जाता है। दाद होने पर उस स्थान पर इसका ताजा दूध लगाने से आराम मिलता है। कच्चे फल मधुमेह को समाप्त करने की ताकत रखते हैं। पेट खराब हो जाने पर इसके 4 पके फल खा लेना इलाज की गारंटी माना जाता है।

वहीं एक ओर इसके पेड़ को घर पर या गाँव मे लगाना वर्जित है, शायद भूतों से इसे जोड़ते हैं, लेकिन वास्तव में यह दैत्य गुरु शुक्राचार्य का प्रतिनिधि है। वास्तु के अनुसार दूध और कांटे वाले पौधे घर पर लगाना उचित नही होता।

बुद्धिजीवियो का मानना है कि वास्तव में इसे पक्षियों और जनवरो के पोषण के लिये छोड़ने के लिए ऐसी मान्यताएँ बना दी गई होंगी, जिससे लोग इसके फलों और पेड़ का अत्यधिक दोहन न कर सकें। पक्षीयों के लिए तो यह वरदान है। और पक्षी ही इसे फैलाते भी हैं। व्यवहारिक रूप से यह पक्षियों का पसंदीदा है तो पक्षियों की स्वतंत्रता के उद्देश्य से भी इसे घर से दूर लगाना सही प्रतीत होता है।

यह शूक्र ग्रह का प्रतिनिधि पौधा है तो इस नाते अनेको तांत्रिक शक्तिओ का स्वामी भी है। कहते है, इसकी नित्य पूजन करने से सम्मोहन की शक्ति प्राप्त की जा सकती है। प्रेम और युवा शक्ति तो जैसे इस पेड़ के इर्द गिर्द ही घूमती रहती है। नव ग्रह वाटिका के पेड़ों में यह भी एक है। वृषभ राशि वालो का तो यह मित्र पौधा है। किंतु दुख की बात है, इन पेड़ों की संख्या दिन पर दिन कम होती जा रही है।

इसकी कोमल फलियों को सब्जियों के लिए भी प्रयोग किया जाता है, जो चिकित्सा का एक अनुप्रयोग है।

ऐसा कहा जाता है, कि दुनिया मे किसी ने गूलर का फूल नही देखा है, इसका कारण और जबाब मैं पहले ही बता चुका हूं।

यह जानकारी आपको कैसी लगी, बताइयेगा जरूर...

धन्यवाद 🙏