कई सारे कारण हैं (और हो सकते हैं) :
- भारतीय गांव
- हमारे भारतीय गांव का जीवन काफी अलग होता था। हालांकि अब तो काफी कुछ बदलता जा रहा है। आधुनिकता के तौर तरीके गांव के जीवन में भी काफी हद तक प्रवेश कर चुके हैं। फिर भी यह कहना गलत होगा कि गांव भली-भांति शहर बन चुके हैं।
- यहां की आबोहवा आज भी अलग है। जीवन अलग है। आपाधापी का माहौल नहीं है। शुद्ध खाना-पीना आज भी है।
- ऐसे मैं आपके पास पैसे कम भी हो तो भी भूख से नहीं मरेंगे।
- बड़े घर होते हैं। खेत खलियान होते हैं। लोग आपस में एक दूसरे को पीढ़ियों से जानते हैं। एक दूसरे की सहायता करते हैं। मुसीबत में साथ खड़े रहते हैं।
- मुझे लगता है जीवन की सारी सीख तो वहीं छुपी होती है।
- जो अनुभव सिखाता है वह कही कहावतें नहीं सिखा सकती।
- फिर भी गांव में माता-पिता का जीवन भी अलग होता है। खेती-बड़ी से लेकर यदि माता-पिता शिक्षक हैं उनके जीवन के अनुभव अलग होंगे और उसी के हिसाब से वह बच्चों को भी ढालना चाहेंगे। आगे बच्चों को क्या करवाना चाहते हैं और बच्चों का जीवन किस प्रकार चाहते हैं इस पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है कि माता-पिता बच्चों को क्या सिखाए और खुद भी किस प्रकार से जीवन को जिएं।
- खेती-बाड़ी में मौसम को लेकर काफी अनिश्चितता हमेशा ही होती है। लोग अपने जीवन में मोटा खर्च करना सीखते हैं तो पैसे को बचाने की सीख भी लेते हैं।
- गांव में लोगों के पास पैसा कम होता है लेकिन समृद्धि ज्यादा।
- ऐसे में जो बच्चे बाहर पढ़ने निकलते हैं और शहर की तरफ रुख करते हैं वे हमेशा बचा बचा कर चलते हैं क्योंकि जो पैसा गांव में बड़ा लगता है वह शहर में जाकर बहुत छोटा हो जाता है क्योंकि खर्च अलग प्रकार के होते हैं, और फिर शहर पर भी निर्भर करता है कि आप कहां रह रहे हैं, किस प्रकार खर्च कर रहे हैं और किस संगत में आपका उठना बैठना है।
- अब यह सारे ही चीजें माता-पिता नहीं सिखा सकते हैं। यह सब बच्चे जीवन के अनुभव से ही सीख सकते हैं। पैसों के मामले में गांव का जीवन अलग है और वहां की सीख भी अलग है।
- भारतीय शहर या अमूमन कोई भी शहर
- माता-पिता पेशेवर कार्य में व्यस्त रहते हैं।
- परिवार छोटे रहते हैं। दो माता-पिता एकल परिवार में बच्चों को संभालते हैं। सारा काम देखते हैं। पढ़ाई इत्यादि बाहर के सारे काम दो माता-पिता केंद्रित हो जाते हैं।
- संयुक्त परिवारों में यह चीज अच्छी होती है कि बच्चों के पास एक सपोर्ट सिस्टम होता है।
- लेकिन जो परिवार एकल परिवार होते हैं वहां दो ही माता-पिता के ऊपर बच्चों को लेकर और अपनी जीवन शैली को लेकर अत्यधिक दबाव होते हैं।
- पैसे की सीख तो बहुत दूर की बात है बच्चों के साथ अच्छा समय भी कई बार माता-पिता को नहीं मिल पाता है। आपस में एक दूसरे को समय दे पाना इतना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में कई परिवार टूटते चले जाते हैं।
- जीवन की सही नींव भी नहीं डल पाती है तो पैसे की सीख दे पाना तो बहुत दूर की बात हो जाती है।
- फिर भी मैं समझती हूं शहरों में पैसे को लेकर एक अलग ही होड़ भी है और पैसे को समझने की इच्छा भी ज्यादा होती है।
- निवेश कहां करना चाहिए, किस प्रकार करना चाहिए, लोन/इंश्योरेंस लेने चाहिए, इन सब चीजों के विषय में बच्चों को भी छोटी उम्र से ज्ञान होना चालू हो जाता है। चाहे उन्हें कम पता हो लेकिन उनका दिमाग खुला रहता है।
- दूसरी ओर एक भारतीय मनोविज्ञान को समझे तो माता-पिता बच्चों को लेकर उनकी पढ़ाई और अच्छी परवरिश को लेकर इतने चिंतित रहते हैं कि पैसा का विषय कहीं दूर खड़ा होता है। वे यही चाहते हैं कि बच्चों की सारी इच्छाएं पूरी हो जाए; जो चाहते हैं, जो बनना चाहते हैं, जो उन्होंने सपने देखे हैं वे सब पूरे होते होते ही इतना समय लग जाता है कि कई बार जीवन की अनोखी सीख जो छोटी उम्र में डाल देनी चाहिए वह नहीं मिल पाती है!
- यहां आज भी कंजरवेटिव माइंडसेट है। जमीन में पैसा लगाना, बैंक सेविंग, एफडी करवा देना उसी को हम काफी समझते हैं और देखा जाए तो यह कुछ गलत भी नहीं है। हालांकि यह बात भारतीय शहरों में रह रहे परिवारों के लिए औसतन ज्यादा सही है।
- गिरते मूल्यों की भला क्या कीमत है?
- अभी कुछ दिन पहले ही दिल्ली में मधुशालाएं खुली तो सड़कों पर लंबी कतार लग गई।
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