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सोमवार, 25 दिसंबर 2023

हमें किस से बचकर रहना चाहिए?

[math]Google [/math]गूगल के ज्ञानियों से हमेशा बचा कर रहना चाहिए ।

इनका ज्ञान हमेशा हमारे संदेह के घेरे में ही रहा था। आजकल डॉक्टर भी परेशान है क्योंकि मरीज बताता है कि मैं डॉक्टर से ज्यादा जानता हूं इसलिए बहुत सारे हॉस्पिटल डायग्नोसिस के लिए वाईफाई सेवा निशुल्क उपलब्ध करा रहे हैं ताकि अगर आपको डॉक्टर से ज्यादा ज्ञान है अथवा स्वयं की बीमारी में आप रिसर्च करना चाहते हैं, तो आप स्वयं डायग्नोसिस कर सकते हैं, सबसे बड़ा यही खतरा ज्ञान के साथ बना हुआ है इसीलिए गूगल विशेषज्ञों से सावधान रहना चाहिए जो कि इस उत्तर का मूल स्रोत भी है । चित्र सोर्स है गूगल इमेजेस।

नसीहत और वसीयत !

*इसको गौर से पढिये दोस्तों*
इन्सान फिर भी धन की लालसा नहीं छोड़ता,
भाई को भाई नहीं समझता,
इस धन के कारण भाई मां बाप सबको भूल जाता है अंधा हो जाता है!!

एक बहुत ही दौलतमंद व्‍यक्ति ने अपने बेटे को वसीयत देते हुए कहा,
कि बेटा मेरे मरने के बाद मेरे पैरों में ये फटे हुऐ मोज़े (जुराबें) पहना देना, यह मेरी इक्छा जरूर पूरी करना।

पिता के मरते ही नहलाने के बाद, बेटे ने पंडित जी से अपने पिता की आखरी इक्छा बताई।
और पंडितजी से बोला की पिताजी के पैरों में ये फटे हुये मोजे पहनाना है।
पर पंडितजी ने कहा ‘हमारे धर्म में कुछ भी पहनाने की इज़ाज़त नही है’

पर बेटे की ज़िद थी कि पिता की आखरी इक्छ पूरी हो।
बहस इतनी बढ़ गई की शहर के पंडितों को जमा किया गया,
पर कोई नतीजा नहीं निकला सका।

इसी माहौल में एक व्यक्ति आया,
और आकर बेटे के हाथ में पिता का लिखा हुआ एक खत दिया,
जिस में पिता की नसीहत लिखी थी।

“मेरे प्यारे बेटे, देख रहे हो..?
ये गाड़ी, दौलत, बंगला और बड़ी-बड़ी फैक्ट्री और फॉर्म हाउस के बाद भी, मैं एक फटा हुआ मोजा तक नहीं ले जा सकता।
एक दिन तुम्हें भी मृत्यु आएगी, बेटा अभी से आगाह हो जाओ, तुम भी एक सफ़ेद कपडे में ही जाओगे।

इसलिए कोशिश करना, कि पैसों के लिए किसी को दुःख मत देना,
ग़लत तरीको का उपयोग कर के पैसा ना कमाना, धन को हमेशा धर्म के कार्य में ही लगाना।

“क्यूँकि अर्थी में सिर्फ तुम्हारे कर्म ही जाएंगे”

मंगलवार, 12 दिसंबर 2023

मध्यप्रदेश के मुख्य मंत्री पद के लिए मोहन यादव का चयन क्यों हुआ?

बड़ी मुश्किल से अंदर की खबर निकाल कर लाया हूँ

जे पी नड्डा....मोदी जी 15-20 मिनट हैं ? वो मप का सी एम का नाम अनाउंस करना है।

मोदी: मैकसीमम 5 मिनट।

नड्डा: सर किस को बनाएं सी एम?

मोदी: वो लाऐ हो वीडीओज? मीडीया के, भोपाल दफ्तर के?

नडडा: हां जी हां

मोदी: चलाओ...

हमम... ये पांचों तो बङी उठा पटक कर रहे!

अच्छा ये सब इनके समर्थक चमचे!

आगे चलाओ

वो कौन है कोने में ?

नडडा : सर वो अपने विजय जी।

मोदी: अरे नहीं वो कोने मैं बैठा है एक चुपचाप!

नडडा: वो ? हमम एक मिनट सर मैं देखता हूं ध्यान से !

मोदी: अरे MLA ही होगा मीटिंग मैं बैठा है तो!

नड्डा: हां सर। नाम नहीं याद आ रहा शायद कोई मोहन करके नाम है।

मोदी: बना दो?

नड्डा: क्या???????

अरे उसको सी एम बना दो भाई!

नड्डा: सर पर उसको तो कोई जा...

मोदी: तुम्हारे पांच मिनट खत्म!

और इस तरह मोहन यादव बन गए मुख्य मंत्री!


Anoopchicham750 

बुधवार, 8 नवंबर 2023

परिवार

आज की जनरेशन के नसीब में अब ऐसे किचन जिसे हम रसोई घर बोलते थे देखने को नसीब नही होगा

असल में इसे रसोई घर इस लिए बोलते थे क्यों की ये अपने आप में पूरा घर था, एक घर को संपन्नता से चलाने के लिए जो भी चीज की जरूरत होती, वो इस घर में मिलती थी

लोग अलग अलग नही बल्कि एक साथ मिल कर खाना बनाते थे जिनसे मां चाची दादी सभी का सहयोग होता

और काम करने की हैरारकी डिसाइड होती जिसमे सबसे छोटे को सब मेहनत का काम दिया जाता जिसमे आटा गूंथने का काम काम चाची करती और सबको आर्डर देने का काम दादी करती थी

इस दौर की सबसे खास बात ये होती थी की इस समय घर में कोई डाइनिंग एरिया नही होता था

चूल्हे के बगल में बैठ कर बच्चे खाना खाया करते थे

और रसोई के बाहर बैठ कर घर के आदमी

वही घर के मुख्य कमरे में बैठ कर दादा लोगो को खाना परोसा जाता था

इस समय बने खाने की सबसे खास बात ये होती थी की प्रेम से बनाया गया खाना इतना टेस्टी होता था की इसके लिए कुछ अलग से खाने की जरूरत नही पड़ती थी

कुछ खाने के कॉम्बिनेशन है थे

दाल चावल के साथ प्याज या चटनी

रोटी सब्जी के साथ गुड

खिचड़ी के साथ पापड़ और अचार

पराठा सब्जी के साथ दही

हलुवा के साथ पापड़ चिप्स

चाय के साथ लाई (मुरमुरा)

आप के यहां खाने के साथ क्या परोसा जाता था हमे जरूर बताइए

बुधवार, 25 अक्टूबर 2023

ज़िंदगी से अपरिचित फिर भी जिंदगी

भाइयो और बहनों,

मेरी एक सलाह है कि कुत्तों से सावधान रहना । ये कुत्ते बड़े ताकतवर होते हैं । ऐसा मैं क्यों कह रहा हूं, इसके पीछे भी एक कारण है ।

आज सवेरे सवेरे एक बड़ा दुखद समाचार मिला । "बाघ बकरी" चाय के मालिक पराग देसाई का असामयिक निधन हो गया । वे मात्र 49 वर्ष के थे । जब समाचार विस्तार से सुना तो पता चला कि उनकी मौत का कारण ब्रेन हेमरेज था । अब आप कहेंगे कि इसका कुत्तों से क्या संबंध है जो आप खामखां कुत्तों को बदनाम कर रहे हैं । पर वास्तव में उनकी मौत का कारण आवारा कुत्ते ही हैं । मैं आपको समझाने का प्रयास करता हूं ।

15 अक्टूबर को वे सुबह सुबह घूमने निकले थे कि उन्हें मौहल्ले के कुछ कुत्तों ने घेर लिया । वैसे भी अभी कुत्तों का "सीजन" चल रहा है और ये आवारा कुत्ते अपनी लालची निगाहें गड़ाए अपने "शिकार" की फिराक में बीच चौराहे पर बैठे रहते हैं । उन्हें बस दो ही चीजों से प्यार होता है । एक तो सूखी हड्डी से जिसे वे चबा चबाकर अपना टाइम पास करते रहते हैं और दूसरी कुतिया से जिसके लिए वे अपने संगी साथियों से भी भिड़ जाते हैं । दूसरा वाला कारण तो दो पैर के कुत्तों में भी पाया जाता है क्योंकि वे छोटी छोटी बच्चियों तक को नोंच डालते हैं । पर हम अभी चार पैरों वाले कुत्तों की बात कर रहे हैं ।

तो जब कुत्ते को न तो सूखी हड्डी मिलती है और न कुतिया, तो वह हिंसक ही बनेगा , और क्या बनेगा ? इस देश में बहुत सारे लिबरल्स ने यह नैरेटिव गढ दिया है कि जब लोगों को रोजगार नहीं मिलता है , चिकन मटन नहीं मिलता है , तब वह आतंकवादी बनता है । इसमें उस व्यक्ति का कोई दोष नहीं है, सारा दोष सरकार का है । और वह भी धर्म निरपेक्ष सरकार का नहीं केवल साम्प्रदायिक सरकार का है । लिबरल्स की नजर में ये साम्प्रदायिक सरकार आतंकवादियों से भी अधिक बुरी हैं इसलिए वे इसे उखाड़ फेंकने के लिएकैसे कैसे हथकंडे अपना लेते हैं । यद्यपि जब उन्हें कहा जाता है कि बेचारे कश्मीरी पंडितों का तो सब कुछ छीन लिया गया और उन्हें मारकाट कर निर्वासित कर दिया गया पर वे तो कभी आतंकवादी नहीं बने , तब ये लिबरल्स बड़ी बेशर्मी से इसे प्रोपेगेंडा कह कर पतली गली से निकल लेते हैं । यही इनका दोगलापन है ।

तो, मौहल्ले के सभी आवारा कुत्ते आवारा लड़कों की तरह बीच चौराहे पर अपना अड्डा जमाकर बैठे हुए थे और मस्तियाँ कर रहे थे । इसी बीच में बाघ बकरी वाले पराग देसाई जी उधर से निकल रहे थे । इस देश की गजब परंपरा है कि जो उद्योगपति देश के हजारों लोगों को रोजगार देते हैं , सरकारों को करोड़ों रुपया कर के रूप में देते हैं , राजनीतिक दलों को करोड़ों का चंदा देते हैं , उन पर कुछ कुत्ते सदैव भौंकते ही रहते हैं । ये अलग बात है कि ये कुत्ते बाद में उनके मकान में जाकर उनके चरणों में लोटकर उनके तलवे चाटते रहते हैं पर पब्लिक में उनको गालियां निकालते रहते हैं । तो इसी की देखा देखी ये आवारा कुत्ते भी "सेठजी" को देखकर भौंकने लगे । कुत्तों को भौंकते देखकर सेठ जी घबरा गये और भागने लगे । कुत्तों की एक विशेषता यह भी होती है कि जब उनके भौंकने से कोई आदमी डरकर भागने लगता है तो ये कुत्ते उस पर टूट पड़ते हैं । मगर जब वह इंसान इन कुत्तों के सामने सीना तानकर खड़ा हो जाता है तो ये कुत्ते या तो दुम दबा लेते हैं या किसी कोर्ट में हलफनामा देकर माफी मांग लेते हैं ।

सेठ जी भागे तो कुत्तों में और अधिक जोश आ गया , वे भी उनके पीछे भागे । इससे सेठजी घबरा गये और घबराहट में वे वहीं पर गिर पड़े और उन्हें सिर में गंभीर चोटें आईं । ब्रेन हेमरेज से उनकी मृत्यु हो गई । उनकी मौत पर सभी कुत्तों ने ऐसे ही जश्न मनाया जैसे हमास के बर्बर हमले में महिलाओं और बच्चों की नृशंस हत्या पर कुछ कुत्तों ने जश्न मनाया था ।

कुत्तों को किसी का कोई भय नहीं है । जो बेशर्म है वह क्यों डरेगा ? डरता तो वह है जिसके पास खोने को कुछ हो । मजे की बात यह है कि देश के कानून , सुप्रीम कोर्ट के फैसले और पशु प्रेमियों के आंदोलन कुत्तों के ही पक्ष में हैं । कुत्ता चाहे तो इंसान को मार सकता है, उसका बाल भी बांका नहीं होगा क्योंकि कानून ऐसे ही हैं और कुत्ता प्रेमी भी उसके साथ खड़े नजर आते हैं । मगर इंसान कुत्ते का बाल भी बांका नहीं कर सकता है क्योंकि इंसान के साथ कोई इंसान खड़ा नजर नहीं आता है । लगता है कि सब लोग कुत्ते और कुत्ता प्रेमियों से डरते हैं ।

मजे की बात देखिये कि इस देश में पशु प्रेमी वे हैं जो रोज बीफ, चिकन, मटन खाते हैं । आतंकवाद के पैरोकार लोग मानवाधिकारों के संरक्षक बने हुए हैं । कट्टर मज़हबी लोग धर्म निरपेक्षता का चोला ओढ़कर बैठे हुए हैं । सैफई में बॉलीवुड की नचनिया बुलवाकर 300 करोड़ रुपए फूंकने वाले "समाजवादी" बने हुए हैं । "ला विटां" का पर्स जो लगभग 1.5 लाख रुपए का आता है , 50000 रुपए का स्कॉर्फ गले में डाले , 1 लाख रुपए के जूते पहनने वाली सांसद "गरीबों की राजनीति" करती पाई जाती है । सैकड़ों बार निर्वाचित सरकारों को बर्खास्त करने वाले "लोकतंत्र के रक्षक" करार दिये जाते हैं । अपने विरुद्ध एक भी शब्द नहीं सुनने वाले "अभिव्यक्ति के झंडाबरदार" समझे जाते हैं । चीन का माल खाकर पत्रकारिता करने वाले दलाल पत्रकार "निर्भीक, सच्चे और साहसी" कहे जाते हैं । और मजे की बात यह है कि इन पर उंगली उठाने वालों को "भक्त" का तमगा दे दिया जाता है ।

अब प्रश्न आता है कि इन आवारा कुत्तों का कोई क्या करे ? मेरा कहना है कि खबरदार जो इनके विरुद्ध कुछ विचार भी किया तो । हमारी कॉलोनी में भी आठ दस आवारा कुत्तों का एक "दल" बना हुआ है । जितने भी "कुत्ते" हैं वे सब "झुंड" या "दलों" में इकठ्ठे रहते हैं । उन्हें पता है कि वे अकेले जिंदा नहीं रह पायेंगे इसलिए वे झुंड में ही रहते हैं । उन आठ दस "कुत्तों" से पूरा मौहल्ला ही नहीं पूरा देश भी डरता है । इन कुत्तों को "पालने वाले" भी हमारे ही बीच में रहते हैं । एक दिन इन कुत्तों ने एक आठ दस साल की बेबी को काट लिया । इस पर जब उस बेबी के पापा ने ऐतराज जताया तो कुत्तों के बजाय उन्हें पालने वाली एक "कुत्ता प्रेमी औरत" भौंकी । पांच दिन बाद तो उन सज्जन के पास एक आदरणीया पशु प्रेमी सांसद का पत्र आ गया "खबरदार, मेरे कुत्तों को हाथ लगाया तो" । और नगर निगम जयपुर से एक नोटिस भी आ गया । बेचारे , कलेजे पर पत्थर बांधकर रह गये ।

मेरी तो आपसे एक ही सलाह है कि कुत्ते सर्वशक्तिमान होते हैं । अत: इनसे पंगा ना लें । कहने को तो संविधान "सुप्रीम" है पर इस संविधान की हमने संसद में और सुप्रीम कोर्ट में धज्जियां उड़ते देखी हैं । ये कॉलेजियम सिस्टम क्या संविधान में है ? तो फिर कौन संविधान की धज्जियां उड़ा रहा है ? इसी तरह इन कुत्तों के पक्ष में बहुत सारे लोग खड़े मिल जायेंगे पर इंसानों के पक्ष में कोई खड़ा नहीं मिलेगा । अत: कुत्तों से सदैव सावधान रहें और उनसे बचकर ही चलें । कुत्तों का कुछ नहीं बिगड़ेगा, पर आपका बहुत कुछ बिगड़ सकता है । पराग देसाई की तरह जान भी जा सकती है ।

हरिशंकर गोयल "श्री हरि"

24.10.23

शुक्रवार, 13 अक्टूबर 2023

शराब के साथ आपका रिश्ता कैसा है? 🤣

कभी शराब से गहरी दोस्ती थी आजकल मन मुटाव तो नहीं पर पूरा पूरा तलाक हो चुका है सन२००६के बाद से।नफरत भी नहीं है परन्तु दोस्ती तो करके खत्म दी ।

प्रेम भी नहीं, नाराजी भी नहीं। वह अपनी जगह खुश हैं हम अपनी जगह खुशहै ।

शुक्रवार, 6 अक्टूबर 2023

कोई ऐसी तस्वीर है जिसे कोई भी उपवोट किए बिना न जाएं?

सुबह से जब खेत में काम कर रहे हों और ऐसे घर वाले रोटियां लेकर आते दूर से दिख जाएं तब कितनी खुशी होती है ये सिर्फ वही समझ सकता है जो सुबह से खेत में मेहनत कर रहा हो। उस खुशी को शब्दों में बयान करना मुश्किल है। चाहे चटनी रोटी ही क्यों ना मिल जाएं लेकिन खेत में सुबह से काम कर रहे इंसान के लिए वो किसी मिठाई से कम नहीं होती हैं।

बच्चा पैदा करने के लिए क्या आवश्यक है..??

पुरुष का वीर्य और औरत का गर्भ.!!!

लेकिन रुकिए ...सिर्फ गर्भ ???

नहीं... नहीं...!!!

एक ऐसा शरीर जो इस क्रिया के लिए तैयार हो ।।

जबकि वीर्य के लिए 13 साल और 70 साल का

वीर्य भी चलेगा।

लेकिन गर्भाशय का मजबूत होना अति आवश्यक है,

इसलिए सेहत भी अच्छी होनी चाहिए।

एक ऐसी स्त्री का गर्भाशय

जिसको बाकायदा हर महीने समयानुसार

माहवारी (Period) आती हो।

जी हाँ.!!

वही माहवारी जिसको सभी स्त्रियाँ

हर महीने बर्दाश्त करती हैं ।।

बर्दाश्त इसलिए क्योंकि

महावारी (Period) उनका Choice नहीं है ।।

यह कुदरत के द्वारा दिया गया एक नियम है ।।

वही माहवारी जिसमें शरीर पूरा अकड़ जाता है,

कमर लगता है टूट गयी हो,

पैरों की पिण्डलियाँ फटने लगती हैं,

लगता है पेड़ू में किसी ने पत्थर ठूँस दिये हों,

दर्द की हिलोरें सिहरन पैदा करती हैं ।।

ऊपर से लोगों की घटिया मानसिकता की वजह से

इसको छुपा छुपा के रखना अपने आप में

किसी जंग से कम नहीं ।।

बच्चे को जन्म देते समय

असहनीय दर्द को बर्दाश्त करने के लिए

मानसिक और शारीरिक दोनो रूप से तैयार हों ।।

बीस हड्डियाँ एक साथ टूटने जैसा दर्द

सहन करने की क्षमता से परिपूर्ण हों ।।

गर्भधारण करने के बाद शुरू के 3 से 4 महीने

जबरदस्त शारीरिक और हार्मोनल बदलाव के चलते

उल्टियाँ, थकान, अवसाद के लिए

मानसिक रूप से तैयार हों ।।

5वें से 9वें महीने तक अपने बढ़े हुए पेट और

शरीर के साथ सभी काम यथावत करने की शक्ति हो ।।

गर्भधारण के बाद कुछ

विशेष परिस्थितियों में तरह तरह के

हर दूसरे तीसरे दिन इंजेक्शन लगवानें की

हिम्मत रखती हों ।।

(जो कभी एक इंजेक्शन लगने पर भी

घर को अपने सिर पर उठा लेती थी।)

प्रसव पीड़ा को दो-चार, छः घंटे के अलावा,

दो दिन, तीन दिन तक बर्दाश्त कर सकने की क्षमता हो । और अगर फिर भी बच्चे का आगमन ना हो तो

गर्भ को चीर कर बच्चे को बाहर निकलवाने की

हिम्मत रखती हों ।।

अपने खूबसूरत शरीर में Stretch Marks और

Operation का निशान ताउम्र अपने साथ ढोने को तैयार हों । कभी-कभी प्रसव के बाद दूध कम उतरने या ना उतरने की दशा में तरह-तरह के काढ़े और दवाई पीने का साहस

रखती हों ।।

जो अपनी नींद को दाँव पर लगा कर

दिन और रात में कोई फर्क ना करती हो।

3 साल तक सिर्फ बच्चे के लिए ही जीने की शर्त पर गर्भधारण के लिए राजी होती हैं।

एक गर्भ में आने के बाद

एक स्त्री की यही मनोदशा होती है

जिसे एक पुरुष शायद ही कभी समझ पाये।

औरत तो स्वयं अपने आप में एक शक्ति है,

बलिदान है।

इतना कुछ सहन करतें हुए भी वह

तुम्हारें अच्छे-बुरे, पसन्द-नापसन्द का ख्याल रखती है।

अरे जो पूजा करनें योग्य है जो पूजनीय है

उसे लोग बस अपनी उपभोग समझते हैं।

उसके ज़िन्दगी के हर फैसले,

खुशियों और धारणाओं पर

अपना अँकुश रख कर खुद को मर्द समझते हैं।

इस घटिया मर्दानगी पर अगर इतना ही घमण्ड है

तो बस एक दिन खुद को उनकी जगह रख कर देखें

अगर ये दो कौड़ी की मर्दानगी

बिखर कर चकनाचूर न हो जाये तो कहना।

याद रखें

जो औरतों की इज्ज़त करना नहीं जानते🙏🙏🙏

वो कभी मर्द हो ही नहीं सकतें🙏🙏🙏

शुक्रवार, 29 सितंबर 2023

आरक्षण व्यवस्था पर आपके क्या विचार हैं ?


पात्र, योग्य व सक्षम लोग हर जगह अच्छी स्थिति में मिलेंगे और मिलने भी चाहिए।

अपात्र, अयोग्य व अक्षम लोग आपको पिछड़े ही नजर आएंगे। यदि इनको शक्ति मिल भी गई तो यह उसका दुरुपयोग ही करेंगे।

लालू यादव, मुलायम सिंह और बहन जी का उदाहरण सबके सामने है।



समाज की उच्च जातियों ने जिन निम्न जातियों के लोगों को एक षड़यंत्र के तहत हजारों वर्षों तक आगे बढ़ने से रोका, तो आज ये उसी उच्च जति की सामाजिक जिम्मेदारी है की वो खुद कष्ट सहकर दलितों,वंचितों को आगे बढ़ाए .इसी व्यवस्था को दूसरे शब्दों में आरक्षण कहते हैं.आरक्षण हमारे देश में मनु स्मृति जैसे ग्रंथो के साथ ही प्रारम्भ हो गया था.ब्राम्हण को ही पुरोहित,शिक्षक,पुजारी बनने और क्षत्रिय को शासक,सैनिक बनने का १००% आरक्षण था. ये वर्ण की जन्मना प्रथा थी जिसमे शूद्र और पशु के बीच,पशु ही ज्यादा अच्छी स्थिति में था. शूद्र अगर धोखे से वेद वाक्य भी सुन ले तो उसके कानो में गरम सीसा डालने का प्रावधान था.रामायण में शम्बूक प्रसंग इस शोषण का ही एक रूप है.अछूत लोग गांव में घुसने से पहले बाजा बजाके संकेत करते थे की हम आ रहे हैं,उनके पीछे एक झाड़ू बंधी होती थी जिससे उनकी गन्दगी साफ हो सके.वो अपने कंधे में एक डब्बा टांगते थे ताकि उसमे थूक सकें.वो इसका ध्यान रखते थे की उनकी छाया किसी को अपवित्र ना करे इसीलिए केवल दोपहर को ही घर से बाहर निकलते थे जब परछाई सबसे छोटी बनती है.ये सब उनकी उन्हें जबरदस्ती करवाया जाता था.अछूतों के जीवन को जानने के लिए बाबा साहब की जीवनी पढ़के देखिये,आँखों से आंसू बहने लगता है.
आजादी के बाद हमने समानता के साथ साथ समाज के सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की जिसमे दलित और आदिवासियों को आरक्षण दिया गया.आदिवासी मुख्यधारा के समाज से अलग थे.उनके लिए भारत देश जैसी कोई चीज ना थी.उनका अपना गांव ही उनके लिए देश के सामान था या है.आदिवासियों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए आबादी के अनुपात में आरक्षण दिया गया.उस समय आरक्षण इन वर्गों की स्थिति सुधारने का एक उपकरण था एकमात्र नही.
आज समाज की उच्च जति के लोग ये तर्क देते हैं की उच्च जति में भी तो लोग गरीब हैं,हमारे पूर्वजों के कर्मो की सजा हम क्यों भोगें,हमने तो किसी का शोषण नही किया इत्यादि.आरक्षण उन लोगों के लिए है जिन्हे समाज ने आगे बढ़ने से रोका और इसके कारण वो आजतक गरीब हैं.अगर कोई उच्च जति का व्यक्ति गरीब है तो अपनी गरीबी का दोषी वो खुद है,उसका आलस्य है,उसकी अकर्मण्यता है क्योंकि समाज ने कभी उसे आगे बढ़ने से नही रोका.अगर हम अपने पूर्वजों की संपत्ति,जमीन,घर,सम्मान इत्यादि पूरे हक़ से लेते हैं और उसका आनंद उठाते हैं. तो उनके कुकर्मों का थोड़ा कष्ट हमें सहना ही होगा.ब्राम्हणो को मंदिर के पुजारी बनने या पंडित बनने के लिए लगभग १००% आरक्षण आज भी है.क्या कभी कोई दलित,आदिवासी या महिला शंकराचार्य बन सकती है?
आरक्षण प्रारम्भ में वंचित वर्गों को ऊपर उठाने का एक सामाजिक उपकरण था परन्तु अब तो ये एकमात्र राजनीतिक उपकरण बन चूका है.राजनीतिक वर्ग के लिए आरक्षण ही एकमात्र चुनावी मुद्दा है जिससे आरक्षित वर्ग का विकास हो सकता है.अगर ये सच होता तो आजादी के ६८ वर्षों बाद भी अधिकांश वंचित वर्ग दयनीय गरीबी की स्थिति में नही रहते. इन लोगों को गुणवत्ता युक्त शिक्षा देनी चाहिए,सामान्य बच्चों की तरह शैक्षणिक माहौल देना चाहिए,स्वास्थ्य की देखभाल होनी चाहिए,पौष्टिक आहार देना चाहिए. वंचित वर्गों के बच्चों को इतनी सुविधा देनी चाहिए जिससे उन्हें आरक्षण की जरूरत ही ना पड़े.
ब्राम्हणवाद एक सोच का नाम है,प्राचीन समय में योग्य ब्राम्हणों ने अपने अयोग्य बच्चों को भी अपने जैसे ही विशेषाधिकार देने के लिए जन्म आधारित वर्ण और जति व्यवस्था का सृजन किया.आज यही सोच आरक्षण प्राप्त करके सरकारी नौकरियों में आए अफसरों,नेताओं,शिक्षकों,डॉक्टरों इत्यादि के मन में भी आ गई है.आखिर उनके बच्चों को अब आरक्षण की कौन सी आवश्यकता है?क्या वे अपना आरक्षण किसी गरीब दलित,आदिवासी के लिए छोड़ नही सकते?आखिर क्यों दलित,आदिवासी आरक्षण में क्रीमी लेयर की कोई व्यवस्था नही है? एक बार जिस परिवार ने आरक्षण का लाभ ले लिया उस परिवार को दोबारा आरक्षण का लाभ नही मिलना चाहिए.ताकि इसके सही हकदारों को इसका लाभ मिल सके.आज भी हमारे गाँव के दलित,आदिवासी दिनभर मजदूरी करते हैं,शाम को उस पैसे से देशी शराब पीते हैं,अन्धविश्वास और त्योहारों में खूब खर्च करते हैं और पांच साल बाद पैसा,कपडा,दारू,जति,धर्म के नाम पर वोट दे देते हैं. ये ६८ साल पहले भी ऐसे ही थे और कुछ नई किया गया तो १००० साल तक ऐसे ही रहेंगे.पुरे भारत की यही तस्वीर है.इससे हमारे नेता भी खुश,अफसर भी खुश. इसी ब्राम्हणवादी सोच को अब ख़त्म करने की जरूरत है.
गुजरात के पटेल या हरियाणा के जाट पिछड़ा बनने की होड़ में लगे हैं, और जिस देश में पिछड़ा बनने की दौड़ लगी हो वो देश आगे कैसे बढ़ सकता है? आज की भारतीय राजनीति में वोट लेने का सबसे अच्छा साधन जति ही है और राजनेता या अभिजन वर्ग इसे और ज्यादा बढ़ाते रहना चाहते हैं. बाबा साहब अम्बेडकर ने खुद जति प्रथा को नष्ट करने की बात की थी,बढ़ने की नहीं.आज वक्त की जरूरत है की हमें आरक्षण जैसी नीतियों पर पुनर्विचार करके इसे गरीब वंचित समाज के हित में बदलना होगा. सरकार और समाज को ऐसी नीतियां बनानी होंगी जिससे आने वाली शताब्दियों में आरक्षण की जरूरत ही ना पड़े और हम इसके गुलाम होकर ना रह जाएं. शहीद भगत सिंह ने लिखा था की "जब तक समाज में एक आदमी भी भूखा है तो दोषी वो सब हैं जो खा रहे हैं.भूखे को रोटी का सहारा समाज से मिलना चाहिए". दलित,आदिवासियों के मुद्दे को भी हमें जातिगत संकीर्णताओं से ऊपर उठकर वृहत परिप्रेक्ष्य में देखना होगा. हर एक वर्ग और जति के विकास के बिना भारत विश्वशक्ति कभी नही बन सकता.

छोटे बच्चों को अंग्रेजी सिखाने के लिए क्या तरीके अपनाना चाहिए ?

अंग्रेजी वर्णमाला सिखाने का अभिनव तरीका

जितनी सुविधा JNU के छात्रों को मिलती है अगर उस सुविधा का 5% भी गांव के सरकारी स्कूलों में दे दी जाए तो सरकारी स्कूल के बच्चों का भविष्य कैसा होगा?

अध्ययन, अनुसंधान और अपने संगठित जीवन के उदाहरण और प्रभाव द्वारा ज्ञान का प्रसार तथा अभिवृद्धि करना। उन सिद्धान्तों के विकास के लिए प्रयास करना, जिनके लिए जवाहर लाल नेहरू ने जीवन-पर्यंत काम किया। जैसे - राष्‍ट्रीय एकता, सामाजिक न्याय, धर्म निरपेक्षता, जीवन की लोकतांत्रिक पद्धति, अन्तरराष्‍ट्रीय समझ और सामाजिक समस्याओं के प्रति वैज्ञानिक दॄष्‍टिकोण।

जे एन यू , नई दिल्ली के दक्षिणी भाग में स्थित केंद्रीय विश्वविद्यालय है। यह मानविक , समाजिक विज्ञान , विज्ञान अंतरराष्ट्रीय अध्ययन आदि विषयों में उच्च स्तर की शिक्षा और शोध कार्य में संलग्न भारत के अग्रणी संस्थानों में से है। जेएनयू को राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (NACC) ने जुलाई 2012 में किये गए सर्वे में भारी का सबसे अच्छा गुणवत्ता वाली विश्वविद्यालय माना है। NACC ने विश्वविद्यालय को 4 में से 3.9 ग्रेड दिया है, जो कि देश में किसी भी शैक्षणिक संस्थान को प्रदत उच्चतम ग्रेड है।

इनको स्थापना भी इसिलए किया गया था कि जो गरीब वर्ग के बच्चें हैं वह फीस, आवास,भोजन, आर्थिक, कपड़े की वजह से पढाई न छोड़े।

अब आपके सवाल पर आता हूं। गांव के सरकारी स्कूलों के लिए अपने हमने कितनी आंदोलन की हैं?

गांव के स्कूल के लिय हमने कितनी धरणा दिया?

उसके लिए सरकार को सोचने और करने पर मजबूर करना होगा।

ये देश आजाद आंदोलन, धरने के वजह से हुई।

देखिये अच्छा शिक्षक, कॉपी ,पेन सब मुफ्त हैं।

खराब है सिस्टम और जनता।

कमीशन के चक्कर मे घटिया स्कूल भवन निर्माण, घटिया सामग्री, घटिया खाना।

जनता भी तमाशबीन बनी रहती हैं जब तक बड़ा हादसा न हो।

सरकार जितना सरकारी स्कूलों का बजट रखी हैं उतने का सदुपयोग हो जाये तो भी सरकारी स्कूलों की शिक्षा सुधर जाएगी।

जरूरत ही हैं तो सरकार को बेहतर करने आंदोलन करने का। 5% मील चाहे 100% भर्स्ट सिस्टम को ठीक करना, जिम्मेदार बनना पहले जरूरी हैं।

अपने माता-पिता के सामने खुलकर बात करना क्यों महत्वपूर्ण है और इसे कैसे करें?

अपने माता-पिता के सामने खुलकर बात करना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि:

भावनात्मक समर्थन: माता-पिता एक ऐसे स्रोत होते हैं जिनसे आपको भावनात्मक समर्थन प्राप्त होता है। वे आपको बचपन से जानते हैं और आपके भले की देखभाल करने में गहराई से रुचि रखते हैं। जब आप खुलकर उनसे बातें करते हैं, तो आपको उन्हें अपनी भावनाओं को समझने और समस्याओं का समाधान प्राप्त करने का मौका मिलता है।

बंधन मजबूत करना: अपने विचारों और भावनाओं को माता-पिता के साथ साझा करने से आपके रिश्ते में मजबूती आती है। इससे आपके बीच विशेष भावनात्मक जुड़ाव बनता है और आपके रिश्ते में एक गहरा भावनात्मक संबंध बनता है।

तनाव को कम करना: भावनाओं को दबाए रखने से तनाव और चिंता हो सकती है। माता-पिता के साथ खुलकर बात करने से आपको राहत मिलती है और आपका मन हल्का होता है।

समझौतों से बचना: कभी-कभी, माता-पिता और उनके बच्चों के बीच समझौते हो सकते हैं जो भाषा में अस्पष्टता या भ्रम के कारण होते हैं। खुलकर बात करके, आप उन संबंधों को स्पष्ट करते हैं और अनावश्यक झगड़े रोकते हैं।

प्रतिस्थापन बढ़ाना: आपके माता-पिता के पास जीवन में अधिक अनुभव और ज्ञान होता है, जिससे वे आपके लिए मूल्यवान मार्गदर्शन के स्रोत होते हैं। खुलकर बात करके आप उनके साथ विचारविमर्श कर सकते हैं और अपनी परेशानियों का समाधान निकाल सकते हैं।

अब, चलिए देखें कि आप माता-पिता के साथ खुलकर बात कैसे कर सकते हैं:

सही समय और स्थान चुनें: एक ऐसे समय और स्थान का चयन करें जहां आप निजी और बिना अवरोधित बातचीत कर सकें। सुनिश्चित करें कि आपके माता-पिता एक शांत अवस्था में हैं और दूसरे कामों में व्यस्त नहीं हैं।

ईमानदार और खुले रहें: जब आप खुलकर उनसे बातें करें, तो ईमानदार और खुले होने का प्रयास करें। हृदय से बात करें और अपनी भावनाओं को सच्चाई से व्यक्त करें।

धीरे-धीरे शुरुआत करें: अगर आपको खुलकर बात करने में कठिनाई हो रही है, तो छोटे-छोटे विषयों से शुरुआत करें। जब आप आराम से बात करना सीख जाएंगे, तो धीरे-धीरे बड़े मुद्दों को साझा करने के लिए भी तैयार हो जाएंगे।

"मैं" बोलें: अपने विचारों को व्यक्त करते समय "मैं" कथन का प्रयोग करें। उदाहरण के लिए, "मैं अपने स्कूल में बहुत परेशान हूँ" या "मैं अपनी कैरियर के बारे में चिंतित हूँ।"

सुनने की कौशल सिखें: खुले बातचीत के समय, अपने माता-पिता की बातें ध्यान से सुनें। वे भी आपसे विचारविमर्श करने के लिए तैयार हो सकते हैं और उनकी सलाह और समर्थन आपके लिए मूल्यवान हो सकते हैं।

प्रतिक्रिया के प्रति सजग रहें: खुले बातचीत के बाद, आपके माता-पिता की प्रतिक्रिया पर सजग रहें। कभी-कभी, उनकी प्रतिक्रिया आपकी उम्मीदों से भिन्न हो सकती है, लेकिन धैर्य रखें और उन्हें समझने का प्रयास करें।

प्रार्थना और समर्थन का अनुरोध करें: अगर बातचीत करते समय आपको जरूरत महसूस होती है, तो धैर्य से अपने माता-पिता से प्रार्थना और समर्थन का अनुरोध करें। यह आपको और अधिक संबंधित और सुरक्षित महसूस कराएगा।

अधिक सहायता के लिए पूर्ववत पायें: कभी-कभी, कुछ विषय ऐसे होते हैं जिन्हें आप माता-पिता के साथ साझा करने में कठिनाई महसूस करते हैं। ऐसे समय में, आप किसी विशेषज्ञ या साथी द्वारा प्राथमिक सहायता प्राप्त कर सकते हैं जो आपको बातचीत के लिए तैयार कर सकते हैं और संबंधों को समझने में मदद कर सकते हैं।

खुलकर अपने माता-पिता के साथ बात करना एक प्रक्रिया है और यह जीवनभर के लिए बेहद मूल्यवान रिश्ते बनाने में मदद कर सकता है। इसे स्थायी संबंध और विशेष समर्थन का संबंधी महसूस करने के लिए दिनचर्या में शामिल करें।

सुने अनसुने किस्से कहानि!!

एक गांव में दो बुजुर्ग बातें कर रहे थे....

पहला :- मेरी एक पोती है, शादी के लायक है... BA किया है, नौकरी करती है, कद - 5"2 इंच है.. सुंदर है कोई लडका नजर मे हो तो बताइएगा..

दूसरा :- आपकी पोती को किस तरह का परिवार चाहिए...??

पहला :- कुछ खास नही.. बस लडका MA/M.TECH किया हो, अपना घर हो, कार हो, घर मे एसी हो, अपने बाग बगीचा हो, अच्छा job, अच्छी सैलरी, कोई लाख रू. तक हो...

दूसरा :- और कुछ...

पहला :- हाँ सबसे जरूरी बात.. अकेला होना चाहिए.. मां-बाप,भाई-बहन नही होने चाहिए.. वो क्या है लडाई झगड़े होते है...

दूसरे बुजुर्ग की आँखें भर आई फिर आँसू पोछते हुए बोला - मेरे एक दोस्त का पोता है उसके भाई-बहन नही है, मां बाप एक दुर्घटना मे चल बसे, अच्छी नौकरी है, डेढ़ लाख सैलरी है, गाड़ी है बंगला है, नौकर-चाकर है..

पहला :- तो करवाओ ना रिश्ता पक्का..

दूसरा :- मगर उस लड़के की भी यही शर्त है की लडकी के भी मां-बाप,भाई-बहन या कोई रिश्तेदार ना हो... कहते कहते उनका गला भर आया..

फिर बोले :- अगर आपका परिवार आत्महत्या कर ले तो बात बन सकती है.. आपकी पोती की शादी उससे हो जाएगी और वो बहुत सुखी रहेगी....

पहला :- ये क्या बकवास है, हमारा परिवार क्यों करे आत्महत्या.. कल को उसकी खुशियों मे, दुःख मे कौन उसके साथ व उसके पास होगा...

दूसरा :- वाह मेरे दोस्त, खुद का परिवार, परिवार है और दूसरे का कुछ नही... मेरे दोस्त अपने बच्चो को परिवार का महत्व समझाओ, घर के बडे ,घर के छोटे सभी अपनो के लिए जरूरी होते है...

वरना इंसान खुशियों का और गम का महत्व ही भूल जाएगा, जिंदगी नीरस बन जाएगी...

पहले वाले बुजुर्ग बेहद शर्मिंदगी के कारण कुछ नही बोल पाए.

शनिवार, 16 सितंबर 2023

क्या आपने कभी कुछ ऐसा देखा है जिसे देख कर आप स्तब्ध रह गए?

बात मेरे बचपन की है। उस समय मैं पांचवीं कक्षा में पढ़ता था। आज भी मुझे यह घटना अच्छी तरह याद है।

मेरा स्कूल बगल के गांव इंद्रा में था । और आते जाते, उस गांव की सारी गतिविधियों का पता चलता था। स्कूल से कुछ ही दूरी पर जो घर था, उसमें हमेशा किच -किच ,लड़ाई -झगड़े की आवाजे आती रहती थी। एक दिन तो हद ही हो गई ।उस घर से औरतों के रोने -धोने और चिल्लाने की काफी आवाजे आ रही थी। भीड़ भी इकट्टा हो गई। बचाओ बचाओ की आवाजें आने लगी।

हमारे मास्टर जी स्कूल गेट से ना निकलने की हिदायत देकर उस जगह पहुंचे। एक आदमी दो औरतों को मोटी रस्सी और लात -घुसा से बुरी तरह पीट रहा था,जो उनकी मां और पत्नी थी। स्कूल गेट के अंदर से ही इस भयावह दृश्य को देखकर हम सभी बच्चे काफी सहम गए। कुछ औरतें उसे छुड़ा रही थी ।किंतु, वह दानव रुपी आदमी अपनी मां और पत्नी को मारे जा रहा था।

पास ही उसका बैल बंधा था, जो घटना देखकर जोर-जोर से उछल रहा था। उसकी पत्नी बैल के आगे जा गिरी। वह आदमी फिरअपनी पत्नी को मारने बैल की तरफ दौड़ा तभी बैल ने उसे अपनी सींग से गिरा दिया। और इसके बाद गांव के कुछ लोगों ने उसे पकड़ लिया।

(फोटो सोर्स- jagran.com)

तब तक दोनों औरतों की स्थिति काफी नाजुक हो गई थी।बैल को इस तरह देख कर पास खड़ी एक औरत बोली ,यह आदमी जानवर से भी बेकार है।

उस आदमी से इस घटना का कारण पूछा गया तो पता चला कि खाना स्वादिष्ट नहीं होने के कारण ऐसा हुआ और दोनों सास बहू हमेशा बातें ही करती रहती हैं ।

इस घटना के बाद हमारे मास्टर जी गांव वालों को बुलाये और बोले जो आदमी औरतों के साथ छोटी-छोटी बात पर इस तरह का क्रूर ‌व्यवहार करते हैं, यह एक सभ्य पुरुष कि पहचान नहीं है।आप लोग इस पर पाबंदी लगाइए ।नहीं तो , हमें पुलिस की मदद लेनी होगी । ऐसे सब लोगों की वजह से गांव समाज का माहौल खराब होता है।

धन्यवाद

सोमवार, 11 सितंबर 2023

जेल के अंदर कैदी कैसे रहते हैं, क्या खाते हैं, कैसे अपने दिन गुजारते हैं?

दो प्रकार के केदी जेल में बंद होते हैं। पहला जिनको किसी अपराध में बन्द किया है और जिनका अभियोजन जारी है। दूसरे वे जिनका अभियोजन पूरा हो गया है और वे दोषी होकर सजा काट रहे हैं। पहले वाले कैदी कुछ नहीं करते हैं। दूसरे वाले कैदियों को जेल से सफेद यूनिफॉर्म पहनने को मिलती है। ये सुबह से शाम तक काम करते हैं। सुबह शाम की चाय बनाना, नाश्ता, दोपहर का भोजन फिर रात्रि भोजन बनाना व वितरित करना। जो यह नहीं कर सकते हैं उन्हें अन्य काम जैसे दरी बनाना, लकड़ी की सामग्री बनाना व अन्य घरेलू उत्पाद बनाना सिखाया जाकर यह सब बनवाया जाता है। प्रत्येक कैदी को उसके द्वारा किए गए कार्य के एवज में धन दिया जाता है जो उसके लिए एकत्रित होता रहता है और सजा पूरी होने पर यह राशि उसे मिलती है। इस प्रकार इनकी प्रतिदिन की दिनचर्या होती है। कुछ सामाजिक संगठन कभी कभी कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित करते हैं।

रविवार, 10 सितंबर 2023

क्या आप कुछ बेहतरीन साझा कर सकते हैं ?

ये कहानी सन् 1849 की है, जब अमेरिका के न्यूयॉर्क मार्टिसबर्ग में रहने वाले "वाल्टर हंट" नाम का एक आदमी बेहद गरीबी में जीवन यापन कर रहा था । लाख मेहनत करने के बावजूद भी वाल्टर अपने पूर्वजों द्वारा लिया गया भारी क़र्ज़ नहीं चुका पा रहे थे, जिसके कारण वे बेहद तनाव में अपना जीवन गुजार रहे थे।

वाल्टर बचपन से ही अपने पिता के साथ लोहे के व्यसाय से जुड़े हुए थे। उनमें कुछ नया करने का उत्साह कम उम्र से ही था । वे हमेशा कुछ नया और विचित्र कार्य करने के बारे में सोचा करते थे।

बहुत सोच-विचार के बाद वाल्टर ने महिलाओं की ज़रूरत को समझते हुए सबसे पहले सेफ्टी पिन का निर्माण किया । कहा जाता है कि वाल्टर ने मात्र तीन घंटे के अंतराल में ही सेफ़्टी पिन का अविष्कार कर दिया था। इस पिन को वाल्टर ने सबसे पहले ‘डब्लू आर एंड कम्पनी’ को बेचा।बाद में कम्पनी ने उन्हें एक बड़ी संख्या में सेफ्टी पिन बनाने का ऑर्डर दिया । अपने इस अविष्कार से वाल्टर ने 400 $ कमाएं और अपना पूरा कर्जा वापस कर दिया। सेफ्टी पिन के आविष्कार के बाद भी वाल्टर को ऐसा नहीं लगा था कि उन्होंने कुछ बड़ी खोज की है।

वाल्टर ने सबसे पहले सेफ्टी पिन को तकरीबन 8 इंच के ताम्बे के तार से बनाई थी । ये पहली पिन थी, जिसमे पिन को रीकने के लिए बक्कल लगा हुआ था ।

सेफ्टी पिन के आविष्कार के बाद वाल्टर ने सिलाई मशीन, ट्राम घंटी, स्पिनर और सड़क साफ़ करने की मशीन का भी आविष्कार किया । वैसे तो वाल्टर के अनेक अविष्कार उनके नाम पर पेटेंट है लेकिन वे अपने सिलाई मशीन के आविष्कार को कतई पेटेंट नहीं कराना चाहते थे क्योंकि उनका मानना था कि इससे मशीन की कीमत बढ़ जाएगी, जिससे ग़रीब लोगों को इसे ख़रीदने में मुश्किलें होगी जो बाद में बेरोजगारी का भी कारण बन सकती है । 62 वर्ष की उम्र में 8 जून 1859 को उनका निधन हो गया लेकिन वे अपने जीवन के माध्यम से पूरी दुनिया को बताने में सफल हुए कि परिस्थितियां चाहे कितनी भी बुरी हो, कुछ न कुछ करने की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है।

उनके हौसले और ज़ज़्बे को सलाम......!!🙏🎯

शनिवार, 9 सितंबर 2023

विज्ञान हमारे दैनिक जीवन के लिए कैसे उपयोगी है?

  1. एक बुढ़िया एक दिन हाथ मे एक रुपया लेकर सेठ की दुकान पर गयी ,और काफी देर तक आते जाते ग्राहकों को देखती रही,
  2. जब सेठ की नजर उस बुढ़िया पर पड़ी ,तो उसने पूछा तुम क्या देख रही हो I
  3. बुढ़िया बोली सेठ जी तुम कितना कमा लेते हो ,सेठ ने चश्मा ऊपर करते हुए उसे पूरी तरह निहारा ,और विश्वास जम जाने पर कहा साल मे दुगने हो जाते हैं , पर तुम यह क्यों पूछ रही हो,
  4. बुढ़िया बोली सेठ जी मै बहुत गरीब हूँ ,जैसे तैसे कर यह एक रुपया बचाकर लायी हूँ ,
  5. सोच रही हूँ ,कि यदि आप इसे अपने व्यापार मे लगा लो तो मेरा भी कुछ भला हो जाए I
  6. सेठ को दया आ गयी ,उसने अपने मुनीम को बोला इस बुढ़िया का एक रुपया बही खाते मे जमा कर लो I
  7. बुढ़िया बहुत खुश हुई ,और जाते जाते बोली सेठ जी मै 25 साल बाद आऊँगी और अपनी अमानत लाभ सहित आपसे ले लूँगी I सेठ ने भी कहा ठीक है I बात आयी गयी हो गयी I
  8. 25 साल बाद बुढ़िया सेठ से अपने रुपए वापिस लेने आई , सेठ जी ने मुनीम को बोला कि इसे 10 रूपे दे दो,
  9. बुढ़िया बोली नहीं सेठ जी ,जो मेरा हिसाब हो सो दे दो I सेठ ने बात को ख़त्म करने के अंदाज मे कहा मुनीम जी इसे 100 रूपे देकर छुट्टी करो I
  10. लेकिन बुढ़िया इस बार भी बोली कि नहीं सेठ जी, जो मेरा हिसाब बना हो सो दो I हारकर सेठ ने मुनीम को हिसाब लगाने को कहा ,
  11. हिसाब लगाने के बाद मुनीम का सिर चकराया और उसने सेठ जी के कान मे कुछ कहा ,सुनकर सेठ के होश फाख्ता हो गए

अब आप सभी के लिए यह प्रश्न है, कि मुनीम ने कितने रूपे का हिसाब बताया I हाँ आपको ईमानदारी से पोस्ट पढ़ते ही बिना हिसाब लगाए अपनी अनुमानित राशि बतानी है ,बाद मे हिसाब लगाकर सही राशि पोस्ट के उत्तर मे दे सकते हो, ताकि सभी को मनी वैल्यू पता लगे I।

1=2

2=4

3=8

4=16

5=32

6=64

7=128

8=256

9=512

10=1024

11=2048

12=4096

13=8192

14=16384

15=32768

16=65536

17=131072

18=262144

19=524288

20=1048576

21=2097152

22=4194304

23=8388608

24=16777216

25=33554432( तीन करोड़ पैतीस लाख चौवन हजार चार सौ बत्तीस) रुपया मात्र 🙏❤

मूल सोर्स है गूगल इमेज।

गाँव में एक किसान रहता था जो दूध से दही और मक्खन बनाकर बेचने का काम करता था..

एक दिन बीवी ने उसे मक्खन तैयार करके दिया वो उसे बेचने के लिए अपने गाँव से शहर की तरफ रवाना हुवा..वो मक्खन गोल पेढ़ो की शकल मे बना हुआ था और हर पेढ़े का वज़न एक kg था..

शहर मे किसान ने उस मक्खन को हमेशा की तरह एक दुकानदार को बेच दिया,और दुकानदार से चायपत्ती,चीनी,तेल और साबुन वगैरह खरीदकर वापस अपने गाँव को रवाना हो गया..

किसान के जाने के बाद -.. .दुकानदार ने मक्खन को फ्रिज़र मे रखना शुरू किया.....

उसे खयाल आया के क्यूँ ना एक पेढ़े का वज़न किया जाए, वज़न करने पर पेढ़ा सिर्फ 900 gm. का निकला, हैरत और निराशा से उसने सारे पेढ़े तोल डाले मगर किसान के लाए हुए सभी पेढ़े 900-900 gm. के ही निकले।

अगले हफ्ते फिर किसान हमेशा की तरह मक्खन लेकर जैसे ही दुकानदार की दहलीज़ पर चढ़ा..

दुकानदार ने किसान से चिल्लाते हुए कहा: दफा हो जा, किसी बे-ईमान और धोखेबाज़ शख्स से कारोबार करना.. पर मुझसे नही।900 gm.मक्खन को पूरा एक kg. कहकर बेचने वाले शख्स की वो शक्ल भी देखना गवारा नही करता..

किसान ने बड़ी ही "विनम्रता" से दुकानदार से कहा "मेरे भाई मुझसे नाराज ना हो हम तो गरीब और बेचारे लोग है, हमारी माल तोलने के लिए बाट (वज़न) खरीदने की हैसियत कहाँ" आपसे जो एक किलो चीनी लेकर जाता हूँ उसी को तराज़ू के एक पलड़े मे रखकर दूसरे पलड़े मे उतने ही वज़न का मक्खन तोलकर ले आता हूँ।

जो हम दुसरो को देंगे,

वहीं लौट कर आयेगा...

चाहे वो इज्जत,

सम्मान हो,

या फिर धोखा...

सोमवार, 4 सितंबर 2023

रोचक बातें

चाहिए सबको गाय का शुद्ध देशी घी लेकिन पालेंगे लोग घर घर पर कुत्ता !!

अब यह बताओ कि घी मिलेगा कहाँ से ??

या तो केमिकल डाल कर बनाया जाएगा नहीं तो कुत्ते से निकाला हुआ घी खाओ ।

क्यों माँग करते हो गाय का "शुध्द" घी की ??

आजकल पशु प्रेमी या Animal Lover उन्हें ही बोला जाता है जो कुत्ते के साथ जीभ से जीभ डालकर फ़ोटो खिंचायें ,उन्हीं के साथ सोएं और भोजन करें ।

मतलब पहले सब पशु हत्यारे थे मानो !!!! 😑

पहले के समय में एक गरीब से गरीब व्यक्ति के घर चार पाँच गायें आसानी से मिल जाती थी ।

आजकल के लोग शादी विवाह लड़के और लड़की की Salary देखकर और यह देखकर कि माँ बाप से अलग रह रहा हो , करते हैं ।

लेकिन पहले कोई उस व्यक्ति के दरवाजे तक नहीं जाता था जिसके घर पशु धन न हो ।

पहले के समय में यह देखकर शादी विवाह टाल दिया जाता था या नहीं करते थे कि उसके दुवारे मात्र 10 पूँछें दिखी , मतलब उसके घर मात्र 10 ही गाय भैंस हैं ।

जिसके घर कम से कम 50 गायें होती थी , उसे सम्पन्न और वैभवशाली समझा जाता था ।

पहले के समय में किसी के घर का आकलन उसके दुवारे पड़े हुए अनाज और दलान में भरे हुए अनाज की बोरियों से की जाती थी ।

तब दालें और चावल पैकेटों में दरिद्रों की तरह नहीं आते थे ।

बड़े बड़े ओसार बरामदा दालों , तिलहनों , बोरियों में भरे अनाजों से पटा रहता था ।

पहले किसी को कोई भी आवश्यकता होती थी तो Barter system चलता था ।

जैसे किसी ने चावल बोया है और किसी ने दाल । तो जिसको जो चाहिए वह चावल देकर दालें , बाजरा , जौ , ज्वार ,सरसों इत्यादि लेता था ।( गेहूँ तब इतना नहीं बोया जाता था )

मुझे याद है सुबह सुबह हम 4 बजे जब भोर में जागते थे तो हर घरों से दूर दूर तक बस बाल्टियों में दूध के छंन्नं छन्न दुहने की आवाज़ें आती थी ।

हमने वह जमाना देखा है जब भरी भरी ताजे ताजे दूध की 6 से 10 बाल्टियाँ घर के मुख्य दरवाजे पर रखी रहती थी ।

आजकल के लोग क्या जानें दूध और दही क्या होता है ।

बोरसी में आग सुलगा कर कच्चा दूध पूरे पूरे दिन भर मटके में खौलता रहता था । लाल हो जाता था पूरा । किसी के भी घर में घुस जाओ बस जलते दूध की महक , घी , दही , मट्ठे की महक से पूरा घर महकता रहता था ।

सुबह , दिन दोपहर शाम हर वक्त घी दूध दही से सब डूबे रहते थे ।

ओहहः !!! हाय !! क्या दिन थे वह । तब उस समय यह कभी नहीं सोचा था कि यह दिन गूलर के फूल के समान दूभर हो जाएगा और जब हम अपने बच्चों को यह बताएँगे कि ऐसा था तो वह यह सब बातें गप्प मानेंगे !!

जाने कहाँ गए वह दिन !!

कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन !!

हम सोच तक नहीं सकते थे कि कभी गाय के घी के आगे भी "शुद्ध" लिखने की आवश्यकता भी पडेगी ।

कभी सोचा भी नहीं था कि दूध के आगे भी "शुद्ध" लिखने की आवश्यकता पड़ेगी ।

अरे घी का मतलब ही शुद्ध होता है । दूध तो स्वयं में ही शुद्ध है ।

फिर यह "शुद्ध" लिखने की बीमारी कैसे आयी ????

और इसी को हम विकास कहते हैं !!

गज़ब हमारी मानसिकता बन गयी है ।। अरे विकसित तो हम पहले थे कि हम स्वयं आत्म निर्भर थे और वैभव धन धान्य से परिपूर्ण थे । न ज्यादा हाय हाय और न ही इतनी मानसिक विपन्नता ।

देखिएगा ज्यों ज्यों हम विकसित होते जायेंगे , कुत्ते हमारे बेड पर आते जायेंगे और गायों का विनाश होता जाएगा और वह बाहर घूमेंगी ।

यही कलियुग के विकास का द्योतक है ।

जितना हम कुत्ते के साथ हम बिस्तरी करने लगेंगे उतना हम विकसित होते जाएंगे । देखना एक दिन हम उस विकास के मुहाने पर होंगे जब अपने पालतू कुत्ते से अपना बच्चा पैदा करने को आधुनिकता की सर्वोच्च निशानी मानी जायेगी औरहम उसको सगर्व स्वीकार करेंगे ।

विदेशों में तो चल पड़ा है , लोग अपने कुत्ते के Sperms को सहेज कर रखवाते हैं ताकि उसको कभी उपयोग में ला सकें ।

सब होगा , देखते जाईयेगा ।

कलियुग अपना वर्चस्व अवश्य दिखायेगा ।

शुक्रवार, 1 सितंबर 2023

जय जोहार

उसने कहा - कौन सी जाति से हो ?

मैंने कहा :- अपनी बताओ ? वह अकड़कर बोला :- मैं ब्राह्मण हूँ।

मैंने भी सीना फुलाकर कहा :- मैं [आदिकिसान/आदिवासी] हूँ।

उसकी अकड़ ढीली हो गई बोला :- शूद्र (आदिवासी) तो जाति नहीं वर्ण है।

मैंने कहा :- तुमने भी तो अपनी जाति नहीं वर्ण बताया है।जाकर पहले अपने बाप से अपनी जाति पूछकर आओ,फिर मेरी जाति पूछना।

दूसरे दिन फिर मिला बोला :- मेरा वर्ण और जाति दोनों ब्राह्मण ही है।

मैंने कहा :- फिर मेरी जाति और वर्ण अलग कैसे हो सकते हैं ?

उसने कहा :- हम सर्वश्रेष्ठ हैं।

मैंने कहा :- कैसे समाज के लिए आपके पूर्वजों ने क्या किया आपके पूर्वजों ने हवाई जहाज बनाए रेल बनाई मिक्सी बनाई टेलीविजन बनाया रेडिओ बनाये नाव बनाई साइकिल बनाई कार बनाई कया बनाया जिससे तुम श्रेष्ठ हो गए क्या किया सामाजिक स्तर पर .

उसने कहा :- बो बोला ऐसा तो कुछ नहीं किया .

मैंने कहा :- अन्न पैदा किया हमने,पशुपालन किया हमने,घर से लेकर खुरपी फावड़ा कुदाल,बाल्टी लोटा,खटिया कुर्सी मेज कपड़ा लत्ता रजाई बिस्तर बनाया हमने और सर्वश्रेष्ठ तुम कैसे हो गए ?

समाज के लिए तुमने किया क्या है कि जो सर्वश्रेष्ठ हो गए ?

उसने कहा :- हमने सत्यनारायण कथा करवाया,रामायण महाभारत का घर-घर पाठ करवाया,जन्म से मरण तक का कर्मकांड पूजा-पाठ करवाया,मंदिरों में ईश्वर की सेवा में लगे रहते हैं,लोगों को तीर्थयात्रा के लिए प्रोत्साहित करते हैं शुभ-अशुभ मुहूर्त बताते हैं,लोगों का भविष्य बताते हैं,स्वर्ग नर्क पूर्वजन्म पुनर्जन्म मोक्ष आदि के बारे में लोगों को बताया समाज के हमीं मार्गदर्शक हैं इसलिए सर्वश्रेष्ठ हैं।

हमने कहा :- यह नहीं बताया की सूरज किसने निगल लिया था समुन्द्र पी गए धरती बगल मैं दबा लिए कहीं लिखा की खड्डी मैं छुपा दिए खड्डी कहाँ रखी थी समुन्दर पीने बाला कहाँ खड़ा था सूरज निगलने बाला कहाँ खड़ा था ये मानव हित है या जनता को डरा रखा है .आजकल भी नहीं चूक रहे बुलबुल के परों पर सावरकर को बिठा कर दुनिया भृमण करा रहे हो ?

यह नहीं बताया कि यह सब करने के लिए दक्षिणा के रूप में मोटी रकम भी वसूल करते हैं और उसी से तुम्हारा जीवन यापन होता है।तुम अपना काम बंद कर दोगे तो समाज पर क्या फरक पड़ने वाला है ?

समाज सुचारू रूप से चलता रहेगा और हम अपना काम बंद कर देंगे तो....

समाज को छोड़ो तुम्हारे लिए रोटी कपड़े के लाले पड़ जायेंगे तो श्रेष्ठ कौन हुआ जीवनावश्यक वस्तुओं का उत्पादन व निर्माण करने वाला या काल्पनिक भाग्य,भगवान,देवी-देवता,आत्मा परमात्मा,पूर्वजन्म,पुनर्जन्म,शुभ-अशुभ मुहूर्त बताकर समाज में पाखंड अंधविश्वास फैलाने वाला ?

उसके होंठ सूखने लगे फिर भी बुदबुदाया :- आप हिन्दू धर्म का अपमान कर रहे हो आप एक ब्राह्मण का अपमान कर रहे हो आपको भयंकर पाप लगेगा।

हमने कहा :- जाकर किसी कायर अंधविश्वासी को डराना

जय #आदिकिसान ....जय #जोहार.....जय #किसान

..संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं ......

..आवाज दो हम एक हैं .........

#पाखंडमिटाओशासन_करो !

#शिक्षितबनोऔरशिक्षितकरो !!

सोमवार, 14 अगस्त 2023

सरकारी नौकरी नहीं मिला तो क्या करना चाहिए?

मैं आपको वह सबसे बड़ा कारण बताना चाहूंगा जिसकी वजह से हर मेहनत करने वाले युवा को सरकारी नौकरी नहीं मिल पाती है; वह सबसे बड़ा कारण यह है कि सरकारी नौकरी कम है और उसे पाने की भीड़ बहुत ज्यादा है; नौकरी की संख्या नहीं बढ़ रही है; पर उसे हासिल करने वाले युवाओं की भीड़ दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है.

गुरुवार, 3 अगस्त 2023

पिता जी का आशीर्वाद

जब मृत्यु का समय निकट आया तो पिता ने अपने एकमात्र पुत्र धर्मपाल को बुलाकर कहा कि, 
बेटा मेरे पास धन-संपत्ति नहीं है कि मैं तुम्हें विरासत में दूं। पर मैंने जीवनभर सच्चाई और प्रामाणिकता से काम किया है। 

तो मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूं कि, तुम जीवन में बहुत सुखी रहोगे और धूल को भी हाथ लगाओगे तो वह सोना बन जायेगी।
बेटे ने सिर झुकाकर पिताजी के पैर छुए। पिता ने सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया और संतोष से अपने प्राण त्याग कर दिए।

अब घर का खर्च बेटे धर्मपाल को संभालना था। उसने एक छोटी सी ठेला गाड़ी पर अपना व्यापार शुरू किया। 
धीरे धीरे व्यापार बढ़ने लगा। एक छोटी सी दुकान ले ली। व्यापार और बढ़ा।

अब नगर के संपन्न लोगों में उसकी गिनती होने लगी। उसको विश्वास था कि यह सब मेरे पिता के आशीर्वाद का ही फल है। 

क्योंकि, उन्होंने जीवन में दु:ख उठाया, पर कभी धैर्य नहीं छोड़ा, श्रद्धा नहीं छोड़ी, प्रामाणिकता नहीं छोड़ी इसलिए उनकी वाणी में बल था। और उनके आशीर्वाद फलीभूत हुए। और मैं सुखी हुआ। उसके मुंह से बारबार यह बात निकलती थी।
 
एक दिन एक मित्र ने पूछा: तुम्हारे पिता में इतना बल था, तो वह स्वयं संपन्न क्यों नहीं हुए? सुखी क्यों नहीं हुए?
धर्मपाल ने कहा: मैं पिता की ताकत की बात नहीं कर रहा हूं। मैं उनके आशीर्वाद की ताकत की बात कर रहा हूं।

इस प्रकार वह बारबार अपने पिता के आशीर्वाद की बात करता, तो लोगों ने उसका नाम ही रख दिया बाप का आशीर्वाद! धर्मपाल को इससे बुरा नहीं लगता, वह कहता कि मैं अपने पिता के आशीर्वाद के काबिल निकलूं, यही चाहता हूं।

ऐसा करते हुए कई साल बीत गए। वह विदेशों में व्यापार करने लगा। जहां भी व्यापार करता, उससे बहुत लाभ होता। एक बार उसके मन में आया, कि मुझे लाभ ही लाभ होता है !! तो मैं एक बार नुकसान का अनुभव करूं।

तो उसने अपने एक मित्र से पूछा, कि ऐसा व्यापार बताओ कि जिसमें मुझे नुकसान हो। 

मित्र को लगा कि इसको अपनी सफलता का और पैसों का घमंड आ गया है। इसका घमंड दूर करने के लिए इसको ऐसा धंधा बताऊं कि इसको नुकसान ही नुकसान हो।

तो उसने उसको बताया कि तुम भारत में लौंग खरीदो और जहाज में भरकर अफ्रीका के जंजीबार में जाकर बेचो। धर्मपाल को यह बात ठीक लगी।

जंजीबार तो लौंग का देश है। वहां से लौंग भारत में लाते हैं और यहां 10-12 गुना भाव पर बेचते हैं। 
भारत में खरीद करके जंजीबार में बेचें, तो साफ नुकसान सामने दिख रहा है।परंतु धर्मपाल ने तय किया कि मैं भारत में लौंग खरीद कर, जंजीबार खुद लेकर जाऊंगा। देखूं कि पिता के आशीर्वाद कितना साथ देते हैं।

नुकसान का अनुभव लेने के लिए उसने भारत में लौंग खरीदे और जहाज में भरकर खुद उनके साथ जंजीबार द्वीप पहुंचा।जंजीबार में सुल्तान का राज्य था। धर्मपाल जहाज से उतरकर के और लंबे रेतीले रास्ते पर जा रहा था ! वहां के व्यापारियों से मिलने को। 

उसे सामने से सुल्तान जैसा व्यक्ति पैदल सिपाहियों के साथ आता हुआ दिखाई दिया।

उसने किसी से पूछा कि, यह कौन है?
उन्होंने कहा: यह सुल्तान हैं।

सुल्तान ने उसको सामने देखकर उसका परिचय पूछा। उसने कहा: मैं भारत के गुजरात के खंभात का व्यापारी हूं। और यहां पर व्यापार करने आया हूं।
 
सुल्तान ने उसको व्यापारी समझ कर उसका आदर किया और उससे बात करने लगा।

धर्मपाल ने देखा कि सुल्तान के साथ सैकड़ों सिपाही हैं। परंतु उनके हाथ में तलवार, बंदूक आदि कुछ भी न होकर बड़ी-बड़ी छलनियां है। 

उसको आश्चर्य हुआ। उसने विनम्रता पूर्वक सुल्तान से पूछा: आपके सैनिक इतनी छलनी लेकर के क्यों जा रहे हैं।

सुल्तान ने हंसकर कहा: बात यह है, कि आज सवेरे मैं समुद्र तट पर घूमने आया था। तब मेरी उंगली में से एक अंगूठी यहां कहीं निकल कर गिर गई। 

अब रेत में अंगूठी कहां गिरी, पता नहीं। तो इसलिए मैं इन सैनिकों को साथ लेकर आया हूं। यह रेत छानकर मेरी अंगूठी उसमें से तलाश करेंगे।

धर्मपाल ने कहा: अंगूठी बहुत महंगी होगी।
सुल्तान ने कहा: नहीं! उससे बहुत अधिक कीमत वाली अनगिनत अंगूठी मेरे पास हैं। पर वह अंगूठी एक फकीर का आशीर्वाद है। 

मैं मानता हूं कि मेरी सल्तनत इतनी मजबूत और सुखी उस फकीर के आशीर्वाद से है। इसलिए मेरे मन में उस अंगूठी का मूल्य सल्तनत से भी ज्यादा है।

इतना कह कर के सुल्तान ने फिर पूछा: बोलो सेठ,आप क्या माल ले कर आये हो।

धर्मपाल ने कहा कि: लौंग!

सुल्तान के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। यह तो लौंग का ही देश है सेठ। यहां लौंग बेचने आये हो? किसने आपको ऐसी सलाह दी।

जरूर वह कोई आपका दुश्मन होगा। यहां तो एक पैसे में मुट्ठी भर लोंग मिलते हैं। यहां लोंग को कौन खरीदेगा? और तुम क्या कमाओगे?

धर्मपाल ने कहा: मुझे यही देखना है, कि यहां भी मुनाफा होता है या नहीं। 

मेरे पिता के आशीर्वाद से आज तक मैंने जो धंधा किया, उसमें मुनाफा ही मुनाफा हुआ। तो अब मैं देखना चाहता हूं कि उनके आशीर्वाद यहां भी फलते हैं या नहीं।

सुल्तान ने पूछा: पिता के आशीर्वाद? इसका क्या मतलब?

धर्मपाल ने कहा: मेरे पिता सारे जीवन ईमानदारी और प्रामाणिकता से काम करते रहे। परंतु धन नहीं कमा सकें। 

उन्होंने मरते समय मुझे भगवान का नाम लेकर मेरे सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिए थे, कि तेरे हाथ में धूल भी सोना बन जाएगी।

ऐसा बोलते-बोलते धर्मपाल नीचे झुका और जमीन की रेत से एक मुट्ठी भरी और सम्राट सुल्तान के सामने मुट्ठी खोलकर उंगलियों के बीच में से रेत नीचे गिराई तो..

धर्मपाल और सुल्तान दोनों का आश्चर्य का पार नहीं रहा। उसके हाथ में एक हीरेजड़ित अंगूठी थी। यह वही सुल्तान की गुमी हुई अंगूठी थी।

अंगूठी देखकर सुल्तान बहुत प्रसन्न हो गया। बोला: वाह खुदा आप की करामात का पार नहीं। आप पिता के आशीर्वाद को सच्चा करते हो।

धर्मपाल ने कहा: फकीर के आशीर्वाद को भी वही परमात्मा सच्चा करता है।

सुल्तान और खुश हुआ। धर्मपाल को गले लगाया और कहा: मांग सेठ। आज तू जो मांगेगा मैं दूंगा।

धर्मपाल ने कहा: आप 100 वर्ष तक जीवित रहो और प्रजा का अच्छी तरह से पालन करो। प्रजा सुखी रहे। इसके अलावा मुझे कुछ नहीं चाहिए।

सुल्तान और अधिक प्रसन्न हो गया। उसने कहा: सेठ तुम्हारा सारा माल में आज खरीदता हूं और तुम्हारी मुंह मांगी कीमत दूंगा।

इस कहानी से शिक्षा मिलती है, कि पिता के आशीर्वाद हों, तो दुनिया की कोई ताकत कहीं भी तुम्हें पराजित नहीं होने देगी।
 
पिता और माता की सेवा का फल निश्चित रूप से मिलता है। आशीर्वाद जैसी और कोई संपत्ति नहीं।

बालक के मन को जानने वाली मां और भविष्य को संवारने वाले पिता यही दुनिया के दो महान ज्योतिषी है।

अपने बुजुर्गों का सम्मान करें! यही भगवान की सबसे बड़ी सेवा है।

शिक्षा

पत्नी के अंतिम संस्कार व तेरहवीं के बाद रिटायर्ड पोस्टमैन मनोहर गाँव छोड़कर मुम्बई में अपने पुत्र सुनील के बड़े से मकान में आये हुए हैं।

सुनील बहुत मनुहार के बाद यहाँ ला पाया है यद्यपि वह पहले भी कई बार प्रयास कर चुका था किंतु मां ही बाबूजी को यह कह कर रोक देती थी कि 'कहाँ वहाँ बेटे बहू की ज़िंदगी में दखल देने चलेंगे यहीं ठीक है 

सारी जिंदगी यहीं गुजरी है और जो थोड़ी सी बची है उसे भी यहीं रह कर काट लेंगे ठीक है न' 

बस बाबूजी की इच्छा मर जाती पर इस बार कोई साक्षात अवरोध नहीं था और पत्नी की स्मृतियों में बेटे के स्नेह से अधिक ताकत नहीं थी , इसलिए मनोहर बम्बई आ ही गए हैं

सुनील एक बड़ी कंस्ट्रक्शन कम्पनी में इंजीनियर है उसने आलीशान घर व गाड़ी ले रखी है

घर में घुसते ही मनोहर ठिठक कर रुक गए गुदगुदी मैट पर पैर रखे ही नहीं जा रहे हैं उनके दरवाजे पर उन्हें रुका देख कर सुनील बोला - "आइये बाबूजी, अंदर आइये"
"बेटा, मेरे गन्दे पैरों से यह कालीन गन्दी तो नहीं हो जाएगी"

- "बाबूजी, आप उसकी चिंता न करें। आइये यहाँ सोफे पर बैठ जाइए।"

सहमें हुए कदमों में चलते हुए मनोहर जैसे ही सोफे पर बैठे तो उनकी चीख निकल गयी - अरे रे! मर गया रे!

उनके बैठते ही नरम औऱ गुदगुदा सोफा की गद्दी अन्दर तक धँस गयी थी। इससे मनोहर चिहुँक कर चीख पड़े थे।

चाय पीने के बाद सुनील ने मनोहर से कहा - "बाबूजी, आइये आपको घर दिखा दूँ अपना।"

- "जरूर बेटा, चलो।"
- "बाबू जी, यह है लॉबी जहाँ हम लोग चाय पी रहे थे। यहाँ पर कोई भी अतिथि आता है तो चाय नाश्ता और गपशप होती है। यह डाइनिंग हाल है। यहाँ पर हम लोग खाना खाते हैं। बाबूजी, यह रसोई है और इसी से जुड़ा हुआ यह भण्डार घर है। यहाँ रसोई से सम्बंधित सामग्री रखी जाती हैं। यह बच्चों का कमरा है।"

- "तो बच्चे क्या अपने माँ बाप के साथ नहीं रहते?"

- बाबूजी, यह शहर है और शहरों में मुंबई है। यहाँ बच्चे को जन्म से ही अकेले सोने की आदत डालनी पड़ती है। माँ तो बस समय समय पर उसे दूध पिला देती है और उसके शेष कार्य आया आकर कर जाती है।"

थोड़ा ठहर कर सुनील ने आगे कहा,"बाबूजी यह आपकी बहू और मेरे सोने का कमरा है और इस कोने में यह गेस्ट रूम है। कोई अतिथि आ जाए तो यहीं ठहरता है। यह छोटा सा कमरा पालतू जानवरों के लिए है। कभी कोई कुत्ता आदि पाला गया तो उसके लिए व्यवस्था कर रखी है।"

सीढियां चढ़ कर ऊपर पहुँचे सुनील ने लम्बी चौड़ी छत के एक कोने में बने एक टीन की छत वाले कमरे को खोल कर दिखाते हुए कहा - "बाबूजी यह है घर का कबाड़खाना। घर की सब टूटी फूटी और बेकार वस्तुएं यहीं पर एकत्र कर दी जाती हैं। और दीवाली- होली पर इसकी सफाई कर दी जाती है। ऊपर ही एक बाथरूम और टॉइलट भी बना हुआ है।"

मनोहर ने देखा कि इसी कबाड़ख़ाने के अंदर एक फोल्डिंग चारपाई पर बिस्तर लगा हुआ है और उसी पर उनका झोला रखा हुआ है। मनोहर ने पलट कर सुनील की तरफ देखा किन्तु वह उन्हें वहां अकेला छोड़ सरपट नीचे जा चुका था। 

मनोहर उस चारपाई पर बैठकर सोचने लगे कि 'कैसा यह घर है जहाँ पाले जाने वाले जानवरों के लिए अलग कमरे का विधान कर लिया जाता है किंतु बूढ़े माँ बाप के लिए नहीं। इनके लिए तो कबाड़ का कमरा ही उचित आवास मान लिया गया है। नहीं.. अभी मैं कबाड़ नहीं हुआ हूँ। सुनील की माँ की सोच बिल्कुल सही था। मुझे यहाँ नहीं आना चाहिए था।'

अगली सुबह जब सुनील मनोहर के लिए चाय लेकर ऊपर गया तो कक्ष को खाली पाया। बाबू जी का झोला भी नहीं था वहाँ। उसने टॉयलेट व बाथरूम भी देख लिये किन्तु बाबूजी वहाँ भी नहीं थे वह झट से उतर कर नीचे आया तो पाया कि मेन गेट खुला हुआ है उधर मनोहर टिकट लेकर गाँव वापसी के लिए सबेरे वाली गाड़ी में बैठ चुके थे उन्होंने कुर्ते की जेब में हाथ डाल कर देखा कि उनके 'अपने घर' की चाभी मौजूद थी उन्होंने उसे कस कर मुट्ठी में पकड़ लिया चलती हुई गाड़ी में उनके चेहरे को छू रही हवा उनके इस निर्णय को और मजबूत बना रही थी और घर पहुँच कर चैन की सांस ली
💐💐#शिक्षा💐💐
दोस्तों,जीवन मे अपने बुजुर्ग माता पिता का उसी प्रकार ध्यान रखे जिस प्रकार माता पिता बचपन मे आपका ध्यान रखते थे,क्योकि एक उम्र के बाद बचपन फिर से लौट आता है इसलिए उस पड़ाव पर व्यस्त जिंदगी में से समय निकाल कर उन्हें भी थोड़ा समय दीजिये,अच्छा लगेगा।
सदैव प्रसन्न रहिये जो प्राप्त है, पर्याप्त है...🙏
अनूप चीचाम 

रविवार, 30 जुलाई 2023

खेतों में दरारें फूट रही हैं!

हमारे यहां घाघ की कहावतें बहुत प्रसिद्ध हैं खासकर मौसम को लेकर…

एक कहावत है: "जब जेठ बहे पुरवाई, तब सावन धूल उड़ाई"

और हकीकत यही है कि जेठ में खूब बारिश होने के बाद अब सावन में खेतों में दरारें फूट रही हैं!

अगर

अगर आपके पास गांव में 2-4 बीघा जमीन भी है तो कभी उसे भूलकर भी मत बेचना आपकी नौकरी या सर्विस सेक्टर कितना भी अच्छा क्यों ना हो कब ध्वस्त हो जाएगा पता नही चलेगा जिस स्पीड से टेक्नोलॉजी चेंज हो रही है Food Sector को छोड़कर किसी का भी कोई भरोसा नही

हर 15 दिन में कोई नही इनोवेशन होती है और वो हमेशा पुरानी को रिप्लेस करने ही आती है और साथ-साथ पुरानी टेक्नोलॉजी से जुड़े हुए जो लोग होते है वो या तो बेरोजगार होते है या फिर नही लाइन पकड़ने के लिए भटकते रहते है

आप सिर्फ 10-15 साल का इंतजार करो

क्योंकि जिस हिसाब से जनसंख्या बढ़ रही है उससे खाद्यान्न की डिमांड ओर बढ़ेगी और उसकी सप्लाई कम होगी एक दिन ऐसा समय आएगा जब खूब पैसा देने के बाद भी अनाज नहीं मिलेगा तब सबको किसान नजर आएगा क्योंकि जीना सबसे पहली जरूरत है इंसान की

मंगलवार, 30 मई 2023

विश्व में केले का सबसे बड़ा उत्पादक देश कौन सा है..?

आपकी बेहतर जानकारी के लिए हम आपको बता दें कि केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय की वर्ष 2020-21 की रिपोर्ट के अनुसार, हमारे देश भारत (भारत में केला उत्पादन) ने 619 करोड़ रुपये के कुल 1.91 लाख टन केले का निर्यात किया। वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान। विश्व उत्पादन में 25% की हिस्सेदारी के साथ भारत केले का सबसे बड़ा उत्पादक है।इस रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया (दुनिया में केले का उत्पादन) की बात करें तो दुनिया में हर साल 113,212,452 टन केले का उत्पादन होता है। और इसमें, भारत प्रति वर्ष 29,124,000 टन उत्पादन मात्रा के साथ! केले का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत दुनिया में केले का सबसे बड़ा उत्पादक है, जो कुल उत्पादन का लगभग 25% है।

चीन का स्थान दूसरे नंबर पर आता है। जो 13,324,337 टन सालाना उत्पादन के साथ जबकि इंडोनेशिया 7,007,125 के साथ तीसरे स्थान पर है।लगभग 30 मिलियन टन के वार्षिक उत्पादन के साथ भारत दुनिया में केले का सबसे बड़ा उत्पादक है, अधिकांश केले दक्षिण भारतीय राज्यों में उगाए जाते हैं और देश के अन्य राज्यों में भेजे जाते हैं। चीन, फिलीपींस और इक्वाडोर केले के अगले सबसे बड़े उत्पादक हैं।

महाराष्ट्र के जलगांव जिले के तंदलवाड़ी गांव के प्रगतिशील किसानों से 22 अधिकृत टन प्रामाणिक जलगांव के केले खरीदे गए। यह क्षेत्र कृषि के अधिकार नीति के तहत प्रलेखित केले के उत्पादन का प्रमुख कृषि क्षेत्र है।भारत कुल उत्पादन में लगभग 25% की हिस्सेदारी के साथ दुनिया में केले का सबसे बड़ा उत्पादक है। आंध्र प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, केरल, उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश देश के केले के उत्पादन में 70% से अधिक का योगदान करते हैंकृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद अधिकार विकास प्राधिकरण (APEDA) अपने विभिन्न उत्तरदायित्वों जैसे अवसंरचना विकास, गुणवत्ता विकास और बाज़ार विकास को समर्थन प्रदान करके कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों की ज़रूरतों को बढ़ावा देता है। इसके अलावा एपीडा कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए आयातक देशों के साथ अंतर्राष्ट्रीय क्रेता-विक्रेता बैठकें, आभासी व्यापार मेला भी आयोजित करता है।

पोस्ट पढने के लिए धन्यवाद। 🙏🏻

गुरुवार, 11 मई 2023

दक्षिणपंत kk

सेना को छूट मिली तो आतंकी समाप्त. अब ED CBI को छूट मिली है, तो भ्रष्टाचारी भी समाप्त होंगे. जब साहब पहले ही कहे थे की चार साल काम करूँगा, एक साल राजनीति, तब किसी को बात समझ नही आयी थी, हर कोई उंगली करता रहा। अब जब बात अपने भ्रष्टाचार पर action की आयी है तो बहुत बुरा लग रहा है।

अभी तो बस शुरुआत हुई है आगे आगे देखिए होता है क्या!

ऐसी कौन सी चीज है जो समय के साथ लुप्त हो चुकी है?

वो छागल‌ है जो समय के साथ लुप्त हो चुकी है।

जिसे छागल कहा जाता था वो मोटे कपड़े की थैली से बहुत कम लोग परिचित होंगे ।

छागल वो अजुबा थी जो कपड़े की थैली में पानी संग्रह करती थी ।

ये उन दिनों की बात है जब बाजार में पानी के व्यापार (बोतल बंद पानी) का कंसेप्ट नहीं आया था ।

और गर्मी में पानी पिलाना धर्म से जुड़ा था और खुद का पानी घर से लेकर निकलना अच्छा कर्म माना जाता था।

गर्मी के दिनो मे उपयोग आने वाली ये छागल एक कैनवास से बना का थैला होता था,जिसका सिरा एक और बोतल के मुंह जैसा होता था जिसे गुट्टे से बंद किया जा सकता था।

गर्मी में छागल में पानी भरकर लोग, अपने यातायात के वाहन से खुले में टांग देते थे,बाहर की हवा उस कपड़े के थैले के छिद्र से अंदर जाकर पानी को ठंडा करती थी वो प्राकृतिक ठंडक बेमिसाल हुआ करती थी

ये हमारे पूर्वजों की उस समय की पानी की ये व्यवस्था हुआ करती थी।

।््््् पते की बात ््।

रास्ते में कोइ भी राहगीर आपकी छागल का ठंडा पानी मांग सकता था, कोई मना भी नहीं करता था।क्यों कि प्यासे को पानी पिलाना ये ईश्वरीय ‌कर्म माना जाता था ।

उसके ठंडे पानी का स्वाद...तो जिसने पीया हो वो ही जाने।

आप ने छागल से ठंडा पानी पीया है क्या ?‌‌

वैसा महसूस होगा जैसे , फिल्म # जागते रहो के अंत में लम्बी प्यासी रात के बाद सुबह में राजकपूर ने मंदिर में नरगीसजी से पानी पीया था ।

टिप्पणी में बताइयेगा🤪