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बुधवार, 24 फ़रवरी 2021

भारतीय मैसेंजर "संदेस" या संदेश के बारे में क्या खास है? क्या यह WhatsApp को टक्कर दे पायेगा?

 


Sandes, जिसे पहले सरकारी इंस्टेंट मैसेजिंग सिस्टम (जीआईएमएस) नाम दिया गया था, व्हाट्सएप के विकल्प के रूप में भारत सरकार द्वारा विकसित एक त्वरित संदेश अनुप्रयोग है।

WhatsApp का भारतीय विकल्प Sandes अब ऐप के रूप में डाउनलोड के लिए उपलब्ध है। ऐप को राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) द्वारा लॉन्च किया गया है। नया प्लेटफॉर्म मौजूदा गवर्नमेंट इंस्टेंट मैसेजिंग सिस्टम (GIMS) का अपग्रेड है, जो सरकारी अधिकारियों को WhatsApp जैसे कम्युनिकेशन अनुभव देने के लिए खास विकसित किया गया था। Sandes ऐप का उपयोग सरकारी अधिकारी और व्यक्तिगत यूज़र्स दोनों कर सकते हैं। इसमें साइन-अप के लिए मोबाइल नंबर या सरकारी ईमेल आईडी की आवश्यकता होती है। एक बार साइन अप करने के बाद, यूज़र्स मैसेज भेज सकते हैं और प्राप्त कर सकते हैं और साथ ही नए ग्रुप भी बना सकते हैं। ऐप मीडिया फाइल्स के लेन-देन को भी सपोर्ट करता है।

Sandes ऐप को GIMS पोर्टल के जरिए डाउनलोड किया जा सकता है। यह Android 5.0 और इसके बाद के वर्ज़न पर चलेगा। iOS यूज़र्स के लिए ऐप App Store पर उपलब्ध है और iOS 12.0 और उससे ऊपर के वर्ज़न पर सपोर्ट करता है।

और ज्यादा जानकारी के लिए ये वीडियो देखे

क्या कारण है कि सबसे ज्यादा मध्यम वर्ग ही परेशान रहता है?

 क्योंकि सरकार गरीबों की सुनती है। गरीब सरकार का वोट बैंक है। अपनी पर आ गया तो पटरियां तक उखाड़ फेकेगा।

अमीरों के आगे सरकार नतमस्तक रहती है। इनके बिना कोई पार्टी चुनाव नही लड़ सकती है। इनका भी ध्यान सरकार रखती है।

अब बचा मध्यम वर्ग। वो मंदिर का घण्टा है। कोई भी बजा कर चला जाता है। मध्यम वर्ग केवल टैक्स देने के लिए बना है। सरकार का वोट बैंक भी नही है। इसलिए कोई ध्यान नहीं देता।

इसलिए मध्यम वर्ग हमेशा परेशान रहता है।

फोटोस्त्रोत: गूगल।

धन्यवाद

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2021

क्या बैंक के शाखा में जाए बिना किसी खाते को ऑनलाइन ट्रांसफर करना संभव है?

 अब भारतीय स्टेट बैंक के ग्राहक ऑनलाइन एसबीआई (इंटरनेट बैंकिंग पोर्टल) के माध्यम से बचत खाता स्थानांतरित कर सकते हैं । कृपया शाखा में आए बिना खाते को स्थानांतरित करने के उपायों का उपयोग करिये :

  • OnlineSBI (State Bank of India) में लॉगिन करिये उपयोगकर्ता इंटरनेट बैंकिंग क्रेडेंशियल डालिये ।
  • e-services TAB पर क्लिक करिये ।
  • वह शाखा कोड डालिये जहाँ आप खाते को स्थानांतरित करना चाहते हैं। यदि आप शाखा कोड नहीं जानते हैं, तो कृपया शाखा लोकेटर विकल्प पर क्लिक करिये और शाखा का नाम टाइप करिये ।
  • शाखा कोड दिखाया जाएगा उस शाखा कोड का उपयोग करिये ।
  • सबमिट पर क्लिक करिये , विवरण सत्यापित करिये औरउसकी पुष्टि करिये ।
  • पंजीकृत मोबाइल नंबर पर ओटीपी भेजा जाएगा। ओटीपी दर्ज करिये और एक reference no उत्पन्न होगा और खाता स्थानांतरित हो जाएगा।

क्या आप बता सकते हैं कि एक तरबूज के कारण दो रियासतों में युद्ध कब हुआ था और क्यों?

 सबसे पहले जवाब दिया गया: क्या आप बता सकते हैं कि एक तरबूज के कारण दो रियासतों युद्ध कब हुआ और क्यों?

" मतीरे की राड़ " अर्थात तरबूजे के लिए झगड़ा

वैसे तो दो रियासतों के बीच युद्ध बड़ी बड़ी वजहों से होती हैं लेकिन एक युद्ध की वजह नाचीज़ तरबूजा बना और इस नामुराद तरबूजे की वजह से हजारों लोगों की जान भी चली गई।

युद्ध का वर्णन-

1644 ई में राजस्थान में दो रियासतों के बीच तरबूजे को लेकर भयंकर युद्ध हुआ था। दरअसल मुगल साम्राज्य के अधीन बीकानेर और नागौर की रियासतें थीं। बीकानेर रियासत का सीलवां गांव और नागौर का जाखणियां गांव एक दूसरे से सटे हुए थे। उस समय बीकानेर के शासक थे करण सिंह और नागौर के शासक अमर सिंह थे। करण सिंह किसी अभियान के तहत रियासत से बाहर थे और अमर सिंह मुगल दरबार दिल्ली में थे।

बीकानेर रियासत के सीलवा गांव में एक किसान ने तरबूज की खेती के लिए बीजारोपण किया। उसके तरबूज की एक बेल बीकानेर रियासत की सीमा पार करके नागौर रियासत के जाखानिया गांव में पहुंच गई।

जब तरबूज की बेल पर फल लगा तब दोनों किसानों में विवाद होने लगा। 2 किसानों के बीच यह विवाद देखते ही देखते 2 गांव के बीच का विवाद बन गया। दोनों राजाओं ने दूतों के माध्यम से समस्या का समाधान खोजने की कोशिश की परंतु मामला हल होने के बजाय प्रतिष्ठा का प्रश्न बनता चला गया।

प्रतिष्ठा के लिए हुआ युद्ध-

एक दिन ऐसा आया जब दोनों देशों की सेनाएं एक दूसरे के सामने खड़ी थी। दोनों देशों के बीच युद्ध हुआ और दोनों तरफ से सैकड़ों सैनिक मारे गए। इस युद्ध में बीकानेर की जीत हुई। विजय प्राप्ति के बाद बीकानेर की सेना द्वारा तरबूज यानी मतीरे को हासिल किया गया और विजय के जश्न में वही तरबूज खाया गया।

मुगल बादशाह हुआ नाराज-

मुगल साम्राज्य के अधीन दो रियासतों के बीच झगड़े को सुलझाने का काम दिल्ली दरबार का था लेकिन यह झगड़ा शाहजहां तक पहुंचने से पहले ही हो गया था। इस बात पर शाहजहां काफी नाराज़ हुआ था। दरबार में दोनों रियासतों के राजाओं को बुलाकर फटकार लगाई गई थी।

क्या आप मजबूरी को व्यक्त करने वाली फोटो दिखा सकते हैं?

 सुबह सुबह आमलेट खाने वालों? ये भी एक मां है 😭

और मां की कोई मजबूरी नहीं होती वो तो बस प्यार करना जानती है। पर अंडा खाना आपकी मजबूरी है?

जीवन के सबसे कठोर सत्य दिखाने वाली तस्वीरें कौन-सी हैं?

 आज मै पहलीबार ट्विटर की साइट पर गया और जो मैंने देखा वो यहाँ भी साझा कर रहा हूँ इसमे कुछ भी मेरा व्यक्तिगत नही है आजकल ट्विटर पर मोदी रोजगार दो चल रहा है उसी से ये चित्र लिये गये है

पता नही सरकार गलत है या देश की जनता अगर कोई सरकार के विरुध बोले तो आप जानते है उसे क्या क्या उपाधि दी जाती है

आज हाल ये है कि तीन साल तक परीक्षा के परिणाम नही आते अगर आप किसी सरकारी संस्था मे जाकर देखे तो वहां कर्मचारियो की कमी मिलती है। कोई काम समय पर नही होता और फिर भी जॉब रिक्तिय नही पेट्रोल भाव तो आप सबको पता ही है कुछ लोग इस पर भी सफाई दे रहे है की शेर पालोगे तो यह सब तो सहन करना पड़ेगा ही लेकिन वह यह नहीं जानते कि जब शेर हद से ज्यादा भूखा हो जाता है तो वह अपने मालिक तक को खा जाता है। उन्हें यह नहीं पता अकेला तेल ही महंगा नहीं हुआ है इसका असर उन सब चीजों पर पड़ा है जिन्हें चलाने में बनाने में एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने में तेल का इस्तेमाल किया जाता है अब आप एक काम बताइए जिसमें तेल का इस्तेमाल ना किया जाता हो कृषि परिवहन हर जगह तो तेल का इस्तेमाल हो रहा है इसका सीधा असर किस पर पड़ रहा है गरीब जनता पर जिनके पास अपनी खुद की कार है उन पर तो पड़ ही रहा है लेकिन उससे ज्यादा गरीब जनता पर इसका असर पड़ रहा है क्यों सरकार तेल का भाव ₹15 प्रति लीटर बढ़ा है तो गाड़ी वाले किराया ₹10 प्रति सवारी बढ़ा देते हैं बताइए जेब से किसकी जा रहा है

अगर आप सरकार से कुछ मांगते है तो सरकार का रिएक्शन

किसी कवि ने कहा है भूखे पेट भक्ति नही होती लेकिन यहाँ देखे क्या बोल रहे है

ये देखो भाषण मे तो मुद्दों से भटकाते ही है अब ट्विटर पर भी देखो 👇

आज सरकारी नौकरी की तैयरी कर रहे छात्रों की कोई इज्जत नही करता सबको पता है कुछ साल बाद क्या होगा

ये dekhiye

बस जब भी चुनाव आये

इस देश का भविष्य बहुत बेकार है यह मैं नहीं कई बड़े लोग कह रहे हैं यहां शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य तक भ्रष्टाचारी है हर जगह भ्रष्टाचारी है किसी बड़े सरकारी अस्पताल में नंबर नहीं आता लेकिन अगर आपकी जेब में 20000 है तब आपका नंबर आने से कोई नहीं रोक सकता मेरे एक रिश्तेदार एम्स दिल्ली में अपना इलाज कराना चाहते थे 6 महीने का सर्जरी टाइम मिला इतने में विचारे स्वर्ग सिधार गए

और हां आज मैंने पहली बार मोदी जी का टि्वटर अकाउंट भी देखा देखने पर पता चला अधिकतर ट्वीट पश्चिम बंगाल की तरक्की के लिए थे मेरे हिसाब से जब कोई आदमी देश के प्रधानमंत्री पद को संभाल लेता है तो उसे सिर्फ प्रधानमंत्री रहना चाहिए किसी पार्टी का कार्यकर्ता बिल्कुल नहीं ना तो उसे अपनी पार्टी के लिए कभी वोट मांगना चाहिए और ना ही अपनी पार्टी का प्रचार करना चाहिए उसे सिर्फ देश का प्रधानमंत्री होना चाहिए किसी पार्टी से उसका संबंध नहीं होना चाहिए यह एक पार्टी के लिए नहीं बल्कि सभी पार्टी के प्रधानमंत्री के लिए नियम होना चाहिए ताकि वे पार्टी हित नहीं देश हित सोचे

पढ़ने के लिए धन्यवाद

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2021

सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिव्यांग से लेकर "आंदोलन जीवी" जैसे अन्य कौन से शब्द गढ़े?

 


जी, सबसे पहले स्पष्ट कर दूँ,मोदी जी ने ये शब्द 'गढ़े' नहीं हैं, सिर्फ व्यावहारिक रूप से प्रयोग किये हैं, इनमें से कुछ इस प्रकार हैं -

और ….

*राजकुमार (राहुल गाँधी के लिए)

*दीदी (ममता बैनर्जी के लिए)

इसके अलावा -

*अच्छे दिन

*सज्जन

*भाईयों और बहनों

मेरे ख्याल से ये बहुत ही सामान्य शब्द हैं और इनका बहुत ही सरल तरीके से उपयोग किया गया है. 'गढ़ा' नहीं गया है;

धन्यवाद :-)

मोदीजी द्वारा उल्लेखित शब्द आंदोलनजीवी से क्या तात्पर्य है?

 

नमस्कार ।

चित्र आभार : Google

कहते है ना, व्यक्ति के मुख से निकले शब्द उसके संस्कार,आचार - विचार के साथ साथ उसके परिपक्व अनुभव को भी दर्शाता है ।

व्यंग कसते हुए, प्रधानमंत्री जी ने अपने आलोचकों को बड़े शालीनता से राज्यसभा में देशहित में संदेश और सलाह दोनों प्रदान की ।

जैसा कि हम सभी देख पा रहे है कि वर्तमान की परिपेक्ष में राजनैतिक बिसात में मोदी जी की पार्टी को लोकतान्त्रिक चुनाव प्रक्रिया में सीधे सीधे टक्कर देने में अधिकांश पार्टियों को नाक से चने चबाने कि नौबत आ गई है । इसलिए विरोधी पार्टियां अपने अपने तरीक़े से मोदी जी की सरकार को अस्थिर और बदनाम करने के लिए विभिन्न तरह के हथकंडे अपनाते हुए नजर आते है और इसमें वे मोदी विरोध करते करते देश विरोध में उत्तर जाते है जो हमने इन दिनों काफी देखा है ।

माननीय मोदी जी ने वर्तमान में चल रहे किसान आंदोलन में, भोले भाले किसान भाइयों की कंधे पर बंदूक रखकर राजनीतिक गोलियां चला रहे,अपने एजेंडे को मजबूती देते हुए उन तथाकथित व्यक्ति विशेष और गुटों को कटाक्ष करते हुए आंदोलन जीवी और परजीवी शब्दों को उपयोग राज्यसभा में किया था ।

अपने अस्तित्व और शाख को बचाने के एवज में या फिर आप यूं कह सकते है कि अपने आप को जीवित (अपनी पार्टी,दल, संगठन) या जिंदा रखने के लिए अब इन्होने आंदोलन का सहारा लेना प्रारंभ किया है और यह आंदोलन इनका खुद का नहीं वरन देश में चलने वाले किसी भी आंदोलन में आंदोलनकर्ता के अंदर भ्रम का बीजारोपण कर आंदोलन को हाईजैक कर लेते है और अपनी दुकान चलाने लगते है । इसका जीवंत उदाहरण छात्रों का आंदोलन JNU और AMU, साहिन बाग़ और वर्तमान में किसान आंदोलन ।

आप ने अमर बेल की लता के बारे में अवश्य पढ़ा और देखा होगा जो पीले रंग की लत्तर वाली परजीवी,जिसका वनस्पति विज्ञान में खास तरह से जिक्र आता है जो अन्य पौधों और वृक्षों में अपनी वर्चस्व आहिस्ते आहिस्ते बढ़ाते हुए उस पौधे के रश का पान करते हुए अपने आप को विकसित करता है और उस पौधे के जीवन को समापन की ओर धकेल देता है ।

आप इस उदाहरण से समझ ही सकते है कि हमारे प्रधान सेवक अपने धुरविरोधी पक्षों को आखिर क्या कहना चाह रहे थे ।

धन्यवाद् ।

चीन के लोग कीड़े-मकौड़े जैसे सांप, बिच्छू इत्यादि चीजें खाते हैं, ऐसा क्यों?

 

अकाल से बदला खानपान का तरीक़ा

अकाल में लोग मरने लगे तो चीन की वामपंथी सरकार ने गाँव-गांव में मुनादी करानी शुरू कर दी कि लोग मांसाहार करें। लेकिन हालत ये थी कि जानवर पहले ही मर चुके थे। कुल मिलाकर चूहे, चमगादड़, कीड़े-मकोड़े, कॉक्रोच ही बचे थे। नतीजा हुआ कि लोगों ने इन्हें ही खाना शुरू कर दिया। कहते हैं कि कई लोग भूख से मरने वालों का मांस भी खा जाया करते थे, ताकि ज़िंदा रह सकें। कहते हैं कि हज़ारों लोगों को ज़िंदा मारकर खाने की घटनाएँ भी हुईं। चीनी पत्रकार याग जिशेंग ने इस मानवीय त्रासदी पर ‘टूमस्टोन’ (Tombstone) नाम से किताब भी लिखी है। जिसमें उन्होंने 3.6 करोड़ के मरने का अनुमान लगाया है। उनकी किताब पर चीन में इस कदर पाबंदी है कि अगर किसी के पास इसका डिजिटल एडिशन भी मिल जाए तो उसे जेल में डाल दिया जाता है।

चीन के इतिहास के सबसे बड़े अकाल में 4.5 करोड़ लोगों के मारे जाने का अनुमान।

तबाही के बाद कॉमरेड की खुली आँखें

करोड़ों लोगों की मौत के बाद चीन के सुप्रीम लीडर माओ जेडॉन्ग ने गौरैया मारने के अपने हुक्म को वापस ले लिया। हालाँकि उसने गलती नहीं मानी। बल्कि ये कहा कि गौरैया को माफ़ी दी जा रही है और अब उनकी जगह खटमल (Bed Bugs) को मारा जाए। इसके कुछ साल बाद चीन में हालात बेहतर हुए। लेकिन खान-पान की आदतें बनी रहीं। तब से अब तक चीन में चूहे, चमगादड़, कुत्ते, कीड़े और यहां तक कि चीटियां खाने में इस्तेमाल होती हैं। यही कारण है कि जानवरों से इंसानों में वायरस के संक्रमण के ज्यादातर मामले चीन से ही शुरू होते हैं और आज चीन की पहचान दुनिया के सबसे बड़े वायरस सप्लायर देश के तौर पर बन चुकी है।

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

दुनिया का ऐसा कौन सा सागर है, जिसमें कोई डूब नहीं सकता और क्यों?

सबसे पहले जवाब दिया गया: दुनिया का ऐसा कौन सा सागर है, जिसमें कोई डूब नहीं सकता ? ओर क्यों ?

दुनिया मे एक ऐसा समुद्र है जिसे डेड सी या मृत सागर कहते है जो इजरायल और जॉर्डन के बीच मे है।

यह सागर अपने उच्चतम घनत्व के कारण जाना जाता है जिसके कारण इस सागर में कोई चाहकर भी डूब नही सकता है।

मृत सागर।

चित्र स्त्रोत-गूगल।

कृपया upvote करे।🙏🙏🙏🙏🙏

https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%83%E0%A4%A4_%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%B0

नास्त्रेदमस ने 2021 के लिए क्या भविष्यवाणी की थी?

नास्त्रेदमस ने 2021 के लिए क्या भविष्यवाणी की थी?

बहुत कम लोग जानते हैं कि नास्त्रेदमस 16वीं शताब्दी के प्रसिद्ध फ्रांसीसी ज्योतिषी और चिकित्सक थे। जिन्होंने हिटलर के उदय, इराक युद्ध, वॉल स्ट्रीट के पतन और भारत के बारे में बहुत कुछ भविष्यवाणियां कीं हैं।

आइए आज हम आपको 2021 के लिए नास्त्रेदमस की कुछ चौंकाने वाली भविष्यवाणी के बारे में बताते हैं -

धर्म बाटेंगा इंसान को, काले और सफ़ेद तथा दोनों के बीच लाल और पीले अपने अपने अधिकारों के लिए भिड़ेंगे। रक्तपात, बीमारियाँ, अकाल, सूखा, युद्ध और भुखमरी से मानवता बेहाल हो जाएगी। नास्त्रेदमस ने अपनी भविष्यवाणी की किताब "The Prophecies" में भारत, हिंदू धर्म और महान राजनेता के उत्थान की बात कही है।

  • नास्त्रेदमस की 2021 की भविष्यवाणी के अनुसार 2021 में दुनिया में बहुत त्रासदी आने वाली है। तृतीय विश्व युद्ध के शुरू होने का अनुमान भी इसी में लगाया गया है।
  • 2021 भविष्यवाणी के अनुसार साल 2021 में दुनिया में नई तरह का शक्ति संतुलन बनाया जाएगा। इसमें चीन की भूमिका भी होगी। ख़ास कर अमेरिका और युरोपीयन देश चीन को काउंटर करने के लिए एशिया में भारत के साथ मित्रता और भाईचारा बढ़ाने के साथ साझा सैन्य योजना बनाकर काम करेंगे, साउथ चाइना सी के साथ हिंद महासागर में भी यह साझा सैन्य अभियान लागू किया जाएगा।
  • साल 2021 मे प्राकृतिक आपदाएँ भयानक रूप से आ सकती है। इनमे बाढ़, भूकंप, तूफ़ान के साथ कई ज्वालामुखियों की सक्रिय होने की बात भी कही गई है। 2021 के लिए भविष्यवाणी में कहा गया है कि यह साल दुनिया के लिए एक विनाश की तरह होगा। इससे 2021 में जान-माल के भारी नुक़सान का अंदेशा व्यक्त किया गया है।https://www.google.com/search?q=%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%AE%E0%A4%B8&oq=%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%AE%E0%A4%B8&aqs=chrome..69i57.423j0j7&sourceid=chrome&ie=UTF-8

सोमवार, 8 फ़रवरी 2021

ये कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है जो एक Business man था लेकिन उसका business डूब गया और वो पूरी तरह hopeless हो गया। अपनी life से बुरी तरह थक चुका था। अपनी life से frustrate चुका था।[1]

एक दिन परेशान होकर वो जंगल में गया और जंगल में काफी देर अकेले बैठा रहा। कुछ सोचकर भगवान से बोला – मैं हार चुका हूँ, मुझे कोई एक वजह बताइये कि मैं क्यों ना हताश होऊं, मेरा सब कुछ खत्म हो चुका है।

मैं क्यों ना frustrate होऊं?

Please help me God

भगवान का जवाब

तुम जंगल में इस घास और बांस के पेड़ को देखो- जब मैंने घास और इस बांस के बीज को लगाया। मैंने इन दोनों की ही बहुत अच्छे से देखभाल की। इनको बराबर पानी दिया, बराबर Light दी।

घास बहुत जल्दी बड़ी होने लगी और इसने धरती को हरा भरा कर दिया लेकिन बांस का बीज बड़ा नहीं हुआ। लेकिन मैंने बांस के लिए अपनी हिम्मत नहीं हारी। दूसरी साल, घास और घनी हो गयी उसपर झाड़ियाँ भी आने लगी लेकिन बांस के बीज में कोई growth नहीं हुई। लेकिन मैंने फिर भी बांस के बीज के लिए हिम्मत नहीं हारी।

तीसरी साल भी बांस के बीज में कोई वृद्धि नहीं हुई, लेकिन मित्र मैंने फिर भी हिम्मत नहीं हारी। चौथे साल भी बांस के बीज में कोई growth नहीं हुई लेकिन मैं फिर भी लगा रहा।

पांच साल बाद, उस बांस के बीज से एक छोटा सा पौधा अंकुरित हुआ……….. घास की तुलना में ये बहुत छोटा था और कमजोर था लेकिन केवल 6 महीने बाद ये छोटा सा पौधा 100 फ़ीट लम्बा हो गया।

मैंने इस बांस की जड़ को grow करने के लिए पांच साल का समय लगाया। इन पांच सालों में इसकी जड़ इतनी मजबूत हो गयी कि 100 फिट से ऊँचे बांस को संभाल सके।

जब भी तुम्हें life में struggle करना पड़े तो समझिए कि आपकी जड़ मजबूत हो रही है। आपका संघर्ष आपको मजबूत बना रहा है जिससे कि आप आने वाले कल को सबसे बेहतरीन बना सको।

मैंने बांस पर हार नहीं मानी, मैं तुम पर भी हार नहीं मानूंगा, किसी दूसरे से अपनी तुलना(comparison) मत करो

घास और बांस दोनों के बड़े होने का time अलग अलग है दोनों का उद्देश्य अलग अलग है।

तुम्हारा भी समय आएगा। तुम भी एक दिन बांस के पेड़ की तरह आसमान छुओगे। मैंने हिम्मत नहीं हारी, तुम भी मत हारो ! अपनी life में struggle से मत घबराओ, यही संघर्ष हमारी सफलता की जड़ों को मजबूत करेगा। लगे रहिये, आज नहीं तो कल आपका भी दिन आएगा

शनिवार, 6 फ़रवरी 2021

ग्रेटा थन्बर्ग कौन है, जो किसान आंदोलन का समर्थन कर रही है?

ग्रेटा थनबर्ग स्वीडन की एक सो कॉल्ड पर्यावरण कार्यकर्ता हैं जिनके पर्यावरण आन्दोलन को अन्तरराष्ट्रीय ख्यति मिली यहाँ तक कि नोबल प्राइज के लिए नॉमिनेट भी किया गया…क्यों भाई? क्या कभी किसी और देश में पर्यावरण आन्दोलन नहीं हुए? क्या उन्हें आवश्कता नही थी…नोबेल प्राइज़ की? क्या आप भी उन्हें जानते हैं?

अब सुनिए… याद है देश के कुछ पर्यावरण आन्दोलन - विष्णोई आंदोलन, चिपको-अपिको आंदोलन, साइलेंट घाटी आंदोलन आदि। इनका मुख्य उद्देश्य क्या था पता है - वनों को संरक्षित करना, जैव विविधता की रक्षा करना तथा वन संसाधनों में आम आदमी की भागीदारी सुनिश्चित करना है। क्या इन आंदोलन के नेतृत्व वाले मूर्ख थे.. जिन्हें कभी पहचान ही नही दी गयी.

जंगल बचाओ आंदोलन- इस आंदोलन की शुरुआत 1980 में बिहार से हुई थी. बाद में यह आंदोलन झारखंड और उड़ीसा तक फैल गया…क्या इसके नेतृत्व करने वाले नॉबेल प्राइज के हकदार नहीं है?

क्या आप पीपल फार्म के रॉबिन सिंह को जानते हैं... उन्होंने अकेले शुरुआत करी थी उन्होंने तो कोई आंदोलन नहीं किया..जागरूकता लाने के लिए...फ़िर भी एक लाख से ज्यादा लोग उनसे जुड़े हुए हैं और हज़ारों लोग वॉलेंटर के तौर पर उनका सहयोग करते हैं।

पीपल फार्म - समूह आवारा पशु आबादी, विशेष रूप से गायों और कुत्तों की जीवन स्थितियों में सुधार और पशु क्रूरता के खिलाफ सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने के लिए काम करता हैं।

हक़ीक़त ये ही है- हमारे देश के लोगों को विदेशी भाषा - चीज़े- चूज़े और गौरी मेम ज्यादा ही पसन्द है जो बस आँख मूँदकर उन्हें पकड़ने के लिए खुद को बेच देते हैं।

मूर्ख न बनें कान के साथ आंखे से भी देखें (खुली रखकर भी देखने का प्रयास ही नहीं करे इससे तो बेहतर है आप अपनी आंखें कम से कम जरूरत मन्द को ही दान दे दे…ताकि वो तो रोशनी पा सकें)

क्या आपके फोन में ऐसी कुछ तस्वीरें या स्क्रीनशॉट हैं जो प्रेरणादायक हो? साझा करें।

पेड़ बचाने की प्रेरणादायक एवं कलात्मकता की नायाब छवि दर्शाती तस्वीरें।

चित्र स्रोत: गूगल

भारत के प्रधान मंत्री कौन सा पेन इस्तेमाल करते है?

आप को बता दे कि हमारे देश पीएम जिस पैन का प्रयोग करते हैं, उसकी कीमत इतनी ज्यादा है कि अमरीका के राष्‍ट्रपति ट्रम्प के पास भी नहीं है।

पीएम मोदी अपने पास खास पैन रखते हैं। ऐसा माना जाता है कि उन्हें पैन कलैक्‍ट करने का खास शौकीन माना जाता है। पीएम के पैनकी कीमत लाखों में है। रोचक बात ये है कि इस पैन एक ही कंपनी का है।

इस कंपनी का नाम मोंटब्लैंनक है। प्रधानमंत्री के मोंटब्‍लैंक इन पर्टीकुलर पैन की कीमत 1.3 लाख है। प्रधानमंत्री बनने से पहले ही मोदी लंबे समय से फाउंटेन पैन कलैक्‍ट करते रहे हैं। मोदी की फेवरेट पैन “मोंटब्‍लैंक इन पर्टीकुलर” है। भारत में इस पैन की कीमत 1 लाख 30 हजार रुपए है।


प्रधान मंत्री "नरेन्द्र मोदी" अधिकतर विदेशी मेहमानों से "हैदराबाद हाउस" में क्यों मिलते हैं ?

एक कहावत मैने बरसों पहले सुनी थी, शायद आपने भी सुनी होगी।

पति अपने मित्र (मेहमान) को देखकर पत्नि से कहता है, ओ सुनो, पलंग के सामने कूलर के ऊपर कलर टीवी के बाजू में जो पापाजी वाली सोने की चार अंगूठी पड़ी है, उसी के बाजू में कार की चाबी पड़ी है, उसको अपने गार्डन में ला मुझे दे देना।

अब कहावत बदल भी सकती है, A.C वाले कमरे में, 36 इंच LED के सामने, लॉकर में मेहता जी वाला जो complex खरीदा उसके रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट के पास 4 करोड़ का D. D पड़ा है उसे ला दो।

सारी कहानी /कहावत में मेजबान अपने मित्र को आभास कराना चाहता है देखो मेरे पास क्या है?

नरेंद्र मोदी भी उसी मेजबान की तरह कुशल हैं जो अपने मेहमान को आभास कराना चाहते हैं, देखो भारत के पास क्या है?

हैदराबाद का निजाम कहता था यह स्वतंत्र रहेगी पर पाकिस्तान के उच्चायुक्त के खाते मे नकद राशि को जमा करा देने से यह साबित था कि वो इसको पाकिस्तान में मिलाना चाहता था। और देखो हमारे पटेल जी ने कैसे इसको ले लिया, तुम्हें पता नहीं होगा क्योंकि पटेल जी ने बिना तुमसे पूछे ही ले लिया था।

आगे से ये वार्ता कश्मीर भवन का निर्माण करके वहां भी की जा सकती है।

विशेष - मेरा उदेश्य किसी की भावना आहत करना नहीं है, तर्क सही फिट बैठता है। बाकी ये भी राष्ट्रीय स्थल है जो द्विपक्षीय सभा के लिए उपयोग में लिया जाता रहा है।

नोट - कपिल देव की कप्तानी में वर्ल्ड कप जीतने वाली क्रिकेट टीम तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से इसी भवन में मिली और मुलाकात की।

धन्यवाद

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2021

हम भारतीयों के वो कौन-कौन से सार्वजनिक व्यवहार है, जिन्हें आप तुरंत सुधारने की सलाह देंगे?

 हम भारतीयों के बहुत सारे ऐसे व्यवहार हैं , जिन्हें सुधारने की जरूरत है।

१ अपने पूर्वकृत पाप कर्मों की सजा को कम कराने या माफ़ करने के लिए पंडितों के माध्यम से देवताओं के पूजा पाठ और जप आदि के द्वारा उपाय करवाना।

२ कुछ लोग बिना गाली दिए बात नहीं कर पाते, उन्हें ये अहसास भी नहीं होता की वो अपने संवाद में कब गाली दे गए।

३ धार्मिक कर्म कांडों को फैशन की तरह बिना सोचे समझे अपना लेना। जैसे आजकल बहुत लोग पालकी निकलने लगे हैं, कांवर ले जानेवाले कितने लोग श्रद्धावश कम, दूसरों को देखकर ज्यादा उत्साहित रहते हैं।

४ हमारे यहाँ लोग अपनी हैसियत से ज्यादा खर्चीली शादियां, सिर्फ अपने झूठे वैभव प्रदर्शन के चक्कर में ज्यादा करते है।

५ हम अपने आप से कम, अपने पड़ोसियों या रिश्तेदारों में ज्यादा दिलचस्पी रखते हैं।

६ विदेशी पर्यटकों को हम घूर घूर कर ज्यादा देखते हैं और मौका मिलते ही उससे बेवजह बात करने की कोशिश करते हैं।

७ हम सब्जी वालों से एक एक पैसे के लिए मोल भाव करते हैं पर मंदिरों में हजारों रुपये दान करने में पीछे नहीं रहते।

८ हम चाहे ईमानदार बिलकुल न हों पर अपने आसपास वालों से बिलकुल हरिश्चंद्र वाले नेचर की उम्मीद रखते हैं।

९ अधिकांशतया हमारे समाज के बलवान या सार्थ्यवान व्यक्ति को दूसरों पर जुल्म ढहां कर आनंद की अनुभूति महसूस करते हैं।

१० आम आदमी सामाजिक और राजनैतिक गतिविधियों में मूक दर्शक सा उदासीन रहता है।