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शनिवार, 6 फ़रवरी 2021

ग्रेटा थन्बर्ग कौन है, जो किसान आंदोलन का समर्थन कर रही है?

ग्रेटा थनबर्ग स्वीडन की एक सो कॉल्ड पर्यावरण कार्यकर्ता हैं जिनके पर्यावरण आन्दोलन को अन्तरराष्ट्रीय ख्यति मिली यहाँ तक कि नोबल प्राइज के लिए नॉमिनेट भी किया गया…क्यों भाई? क्या कभी किसी और देश में पर्यावरण आन्दोलन नहीं हुए? क्या उन्हें आवश्कता नही थी…नोबेल प्राइज़ की? क्या आप भी उन्हें जानते हैं?

अब सुनिए… याद है देश के कुछ पर्यावरण आन्दोलन - विष्णोई आंदोलन, चिपको-अपिको आंदोलन, साइलेंट घाटी आंदोलन आदि। इनका मुख्य उद्देश्य क्या था पता है - वनों को संरक्षित करना, जैव विविधता की रक्षा करना तथा वन संसाधनों में आम आदमी की भागीदारी सुनिश्चित करना है। क्या इन आंदोलन के नेतृत्व वाले मूर्ख थे.. जिन्हें कभी पहचान ही नही दी गयी.

जंगल बचाओ आंदोलन- इस आंदोलन की शुरुआत 1980 में बिहार से हुई थी. बाद में यह आंदोलन झारखंड और उड़ीसा तक फैल गया…क्या इसके नेतृत्व करने वाले नॉबेल प्राइज के हकदार नहीं है?

क्या आप पीपल फार्म के रॉबिन सिंह को जानते हैं... उन्होंने अकेले शुरुआत करी थी उन्होंने तो कोई आंदोलन नहीं किया..जागरूकता लाने के लिए...फ़िर भी एक लाख से ज्यादा लोग उनसे जुड़े हुए हैं और हज़ारों लोग वॉलेंटर के तौर पर उनका सहयोग करते हैं।

पीपल फार्म - समूह आवारा पशु आबादी, विशेष रूप से गायों और कुत्तों की जीवन स्थितियों में सुधार और पशु क्रूरता के खिलाफ सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने के लिए काम करता हैं।

हक़ीक़त ये ही है- हमारे देश के लोगों को विदेशी भाषा - चीज़े- चूज़े और गौरी मेम ज्यादा ही पसन्द है जो बस आँख मूँदकर उन्हें पकड़ने के लिए खुद को बेच देते हैं।

मूर्ख न बनें कान के साथ आंखे से भी देखें (खुली रखकर भी देखने का प्रयास ही नहीं करे इससे तो बेहतर है आप अपनी आंखें कम से कम जरूरत मन्द को ही दान दे दे…ताकि वो तो रोशनी पा सकें)

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