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सोमवार, 10 अगस्त 2020

भारत सरकार द्वारा एज्यूकेशन सिस्टम में किये गये बदलाव के बारे में आप क्या कहना चाहते हैं? इससे किस प्रकार के बदलाव की अपेक्षा की जा सकती है?

 भारत सरकार ने नई शिक्षा नीति (NEP) को मंजूरी देते हुए मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदल कर शिक्षा मंत्रालय कर दिया है। इसका उद्देश्य है कि पूरे देश की शिक्षा में आमूलचूल बदलाव किया जाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में इसे हरी झंडी भी दे दी गई है। इसके ड्राफ्ट को इसरो प्रमुख रहे के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञों की समिति ने तैयार किया है और पीएम मोदी ने 1 मई को इसकी समीक्षा की थी। ये पहली बार है कि शिक्षा नीति को व्यापक परामर्श से तैयार कर बनाया गया है।

यह शिक्षा नीति शिक्षा को क्लास रूम से बाहर ले जाकर उसे रोज़गार से जोड़ने की पहल करती है। वोकेशनल एजुकेशन को इसी लिहाज से जोड़ा गया है। अब तक शिक्षा का मतलब फ़ॉर्मल एजुकेशन से हुआ करता था, लेकिन अब अनऔपचारिक यानी इन-फ़ॉर्मल एजुकेशन को भी शिक्षा के दायरे में लाया गाया है। कोविड के दौर में जो आर्थिक संकट नज़र आ रहा है, उसकी एक वजह है लोगों में स्व-रोज़गार की भावना और उसके प्रति सम्मान की कमी। नई शिक्षा नीति इस को दूर करने का एक बहुत बड़ा प्रयास है।

सरकार का मुख्य जोर शिक्षा में समानता पर है और साथ ही सभी को गुणवत्ता वाली शिक्षा की जद में कैसे लाया जाए, इस पर जोर दिया गया है। नए फ्रेमवर्क के जरिए 21वीं सदी में ज़रूरी स्किल्स पर जोर दिया गया है। साथ ही पर्यावरण, कला और खेल जैसे क्षेत्रों को भी प्राथमिकता दी गई है। भारत की विविध भाषाओं को ध्यान में रखते हुए इसे तैयार किया गया है। शिक्षा के आदान-प्रदान में ऊपर से नीचे तक तकनीक के इस्तेमाल को प्राथमिकता दी गई है। आइए थोड़ा विस्तार से इन बदलावों के बारे में देखते हैं:-

  • शिक्षा का यूनिवर्सल एक्सेस: जिन्होंने स्कूल-कॉलेज ड्राप कर दिया है, उन्हें भी शिक्षा की पहुँच में लाना। 3-18 उम्र समूह के सभी छात्र-छात्राओं को। 2030 तक स्कूली शिक्षा के छत तले लाना।
  • नया पाठ्यक्रम, नए तौर-तरीके: पहले 5 वर्ष तक के बच्चों को फाउंडेशन स्टेज में रखा जाएगा। उसके बाद के 3 साल के बच्चों को प्री-प्राइमरी स्टेज में रखा जाएगा। अगले 3 वर्ष वाले प्रिपेटरी या लैटर प्राइमरी में रहेंगे। मिडिल स्कूल के पहले 3 साल में छात्रों को अपर प्राइमरी समूह में रखा जाएगा। 9वीं से 12वीं तक तक छात्र सेकेंडरी स्टेज में रहेंगे।
  • आर्ट्स और साइंस के बीच न बने गैप: आर्ट्स, ह्यूमनिटीज, साइंस और स्पोर्ट्स के साथ-साथ वोकेशनल विषयों में अच्छे से पढ़ाई होगी, छात्रों को इन्हें चुनने की स्वतंत्रता मिलेगी और सब पर ध्यान दिया जाएगा।
  • स्थानीय भाषा/मातृभाषा में उपलब्ध हो शिक्षा: 8 साल तक के बच्चे किसी भी भाषा को आसानी से सीख सकते हैं और कई भाषाएँ जानने वाले छात्रों को भविष्य में करियर में भी अच्छा स्कोप मिलता है। इसीलिए, उन्हें कम से कम 3 भाषाओं की जानकारी दी जाएगी।
  • स्कूलों में त्रिभाषीय फॉर्मूला: इसे ‘थ्री लैंग्वेज फॉर्मूला’ कहा गया है। स्थानीय क्षेत्रों और वहाँ की संस्कृति को ध्यान में रखते हुए इसे पिछली शिक्षा नीतियों की तरह ही रखा जाएगा।
  • भारत की क्लासिक भाषा की जानकारी: 6 से 8 कक्षा तक छात्रों को भारत की भाषा और उसे जुड़े इतिहास व साहित्य-संसाधन से परिचित कराया जाएगा। समृद्ध भाषाओं को बनाए रखने के लिए ये ज़रूरी है।
  • शारीरिक शिक्षा: फिजिकल सक्रियता पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। खेल, योग, मार्शल आर्ट्स, व्यायाम, नृत्य और बागबानी सम्बंधित गतिविधियों में बच्चों की सक्रियता बढ़ाई जाएगी। स्थानीय शिक्षकों को इसके लिए प्रशिक्षित किया जाएगा।
  • राज्यों के लिए संस्था: सभी राज्यों में पठन-पाठन पर नज़र बनाए रखने के लिए स्वतंत्र ‘स्टेट स्कूल रेगुलेटरी बॉडी’ का गठन किया जाएगा। ये सभी राज्यों में अलग-अलग होगी।
  • नेशनल रिसर्च फाउंडेशन: प्रोपोज़ल्स की सफलता के आधार पर रिसर्च के लिए पर्याप्त फंड्स मुहैया कराए जाएँगे। सभी विषयों में रिसर्च को बढ़ावा दिया जाएगा।
  • राष्ट्रीय शिक्षा आयोग: NEP एक नया ‘नेशनल एजुकेशन कमीशन’ बनाने के लिए भी राह प्रशस्त करेगा, जिसके अध्यक्ष खुद प्रधानमंत्री होंगे। शिक्षा के परिदृश्य में समीक्षा, बदलाव और निगरानी के लिए यही संस्था कार्य करेगी।[1]

इस नई शिक्षा नीति से किस प्रकार के बदलाव की अपेक्षा की जा सकती है?

  • शुरुआती शिक्षा मातृभाषा में, शिक्षा के आरंभ में ही पंचतंत्र की कहानियों और उसके जैसे ही अन्य प्राचीन भारतीय साहित्य को पाठ्यक्रम में शामिल कर बच्चों में नैतिक मूल्यों और व्यवहारिकता का बीज डालने में एक अहम भूमिका निभाएगा।
  • डिजिटल युग में स्कूलों में पुस्तकालयों पर विशेष ध्यान देने से छात्रों में पुस्तक पढ़ने की आदत विकसित होंगी।
  • 10+2 की जगह 5+3+3+4 का पैटर्न से रटकर परीक्षा पास करने की प्रवृत्ति खत्म होगी, विद्यार्थियों के कौशल बढ़ाने के लिए ध्यान दिया जाएगा, साथ ही साथ कोचिंग संस्थानों का कल्चर भी समाप्त हो सकता है।
  • करीक्यूलर, एक्स्ट्रा करीक्यूलर और को करीक्यूलर एक्टिविटी का भेद खत्म करने तथा अकादमिक और प्रोफेशनल का अंतर खत्म करने से बच्चों को परीक्षा बोझ नहीं लगेगी तथा एग्जाम की घड़ी उसके सामने जीवन मरण का प्रश्न बनकर नहीं बल्कि अपनी गलतियों से सीखने का अवसर बनकर आएगी।
  • अंग्रेजी का वर्चस्व कम होने तथा किताबी ज्ञान को कम प्राथमिकता देने से बच्चों में व्यवहारिक ज्ञान को बढ़ाने में सहायक होगी।
  • इसमें शिक्षकों की योग्यता बढ़ाने और उन्हें काबिल बनाने पर जोर दिया गया है। इससे उन्हें हमारे समाज में एक बार फिर सम्मान और गौरवपूर्ण स्थान मिलेगा।
  • इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित करने के कदम उठाए गए हैं कि शिक्षक का अधिकांश समय अपने छात्रों के साथ ही व्यतीत हो और उनसे गैर शिक्षण कार्य कम से कम लिए जाएं। इससे शिक्षक एक सफल मार्गदर्शक साबित हो सकेंगे (इसके लिए अपने-अपने क्षेत्र में रिटायर्ड प्रोफ़ेशनल्स जो देश की प्रगति में अपना योगदान देना चाहते हैं उन्हें स्वयंसेवक के तौर पर शिक्षक बनने के लिए आमंत्रित किया जा रहा है।)।
  • शुरू के वर्षों में हर बालक को बागवानी, मिट्टी के बर्तन, लकड़ी का काम, बिजली का काम और माध्यमिक शिक्षा में हर बच्चे को किसी एक कला जैसे संगीत, नृत्य, काव्य, पेंटिंग, शिल्पकला आदि का गहन अध्ययन चाहे वो विज्ञान अथवा इंजिनियरिंग का ही विद्यार्थी क्यों ना हो, ऐसे कदमों से उसके सर्वांगीण व्यक्तित्व का विकास होगा।
  • अब 12वीं की पढ़ाई के कॉलेज की चिंता नहीं होगी, क्योंकि इस नीति में उनकी संख्या बढ़ाने पर ज़ोर है। अब दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे कई और विश्विद्यालय खोले जाएँगे, तो छात्रों के पास ज़्यादा विकल्प मौजूद होंगे।
  • उच्च शिक्षा में गुणवत्ता बढ़ाने के लिए शोध को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थान बनाने जैसे अनेक उपाय लागू करने का प्रावधान है। इससे हमारे विश्वविद्यालय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर पाएंगे।
  • इसके ज़रिए भारत का निरंतर विकास सुनिश्चित होगा साथ ही वैश्विक मंचों पर - आर्थिक विकास, सामाजिक विकास, समानता और पर्यावरण की देख - रेख, वैज्ञानिक उन्नति और सांस्कृतिक संरक्षण के नेतृत्व का समर्थन करेगा।

निष्कर्ष :- इस शिक्षा प्रणाली में बदलाव करते हुए उच्च गुणवत्ता और व्यापक शिक्षा तक सबकी पहुँच सुनिश्चित की गई है। अगर ये बदलाव वाकई अमल में आ पाते हैं तो निश्चित ही यह शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी साबित होंगे और यह नई शिक्षा नीति भारत के सुनहरे भविष्य की ओर एक मील का पत्थर सिद्ध होगी।

फुटनोट

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