विश्व आदिवासी दिवस :- * 9 अगस्त 1982 को संयुक्त राष्ट्र संघ की पहल पर मूलनिवासियों का पहला सम्मेलन हुआ था। इसकी स्मृति में विश्व आदिवासी दिवस मनाने की शुरुआत 1994 में कि गई थी ।
विश्व आदिवासी दिवस मनाने के लिए जब हम रंगमंच में विभिन्न लोकगीत, संगीत और नृत्य से लोगों के दिलों में अपनी पहचान और इतिहास को उभारने की कोशिश कर रहे हैं, तब इस गीत को भी नहीं भूलना चाहिए, जो अंग्रेजों के खिलाफ 9 जनवरी, 1900 को डोम्बारी पहाड़ पर बिरसा मुंडा के लोगों के संघर्ष को मुंडा लोकगीत में याद करते हैं- ‘डोम्बारी बुरू चेतन रे ओकोय दुमंग रूतना को सुसुन तना, डोम्बारी बुरू लतर रे कोकोय बिंगुल सड़ीतना को संगिलकदा/ डोम्बरी बुरू चतेतन रे बिरसा मुंडा दुमंग रूतना को सुसुन तना, डोम्बरी बुरू लतर रे सयोब बिंगुल सड़ीतना को संगिलाकदा.’ (डोम्बारी पहाड़ पर कौन मंदर बजा रहा है, लोग नाच रहे है, डोम्बारी पहाड़ के नीचे कौन बिगुल फूंक रहा है जो नाच रहे हैं, डोम्बारी पहाड़ पर बिरसा मुंडा मांदर बजा रहा है- लोग नाच रहे हैं. डोम्बारी पहाड़ के नीचे अंग्रेज कप्तान बिगुल फूंक रहा है- लोग पहाड़ की चोटी की ओर ताक रहे हैं).
आज विश्व आदिवासी दिवस है इस दिवस को खास तौर पर मनाया जाने भी लगा है। इस दौरान आदिवासियों की मौजूदा हालात, समस्याएं और उनकी उपलब्धियों पर चर्चा हो रही है. प्रकृति के सबसे करीब रहनेवाले आदिवासी समुदाय ने कई क्षेत्रों में अग्रणी भूमिका निभाई है. संसाधनों के आभाव में भी इस समुदाय के लोगों ने अपनी एक खास पहचान बनाई है. गीत-संगीत-नृत्य से हमेशा ही आदिवासी समुदाय का एक गहरा लगाव होता है. उनके गीतो-नृत्यों में प्रकृति से लगाव का पुट दिखता है.
लेकिन मौजूदा समय में आदिवासी समुदाय अपनी भाषा-संस्कृति से विमुख हो रही है. आदिवासियों को अपनी भाषा का संरक्षण और विकास के लिए स्वयं आगे आना होगा. दिवासी जब तक अपने परिवार, गांव, अपने लोगों के बीच अपनी भाषा में बात नहीं करेंगे, तब तक भाषा का संरक्षण एवं विकास असंभव है. मलयाली, मराठी, बंगाली भाषाओं के तर्ज पर आदिवासी भाषाओं की पढ़ाई एक माध्यम के रूप में स्कूलों में शुरू होनी चाहिए. आदिवासी समाज की लगभग 90 प्रतिशत आबादी गांवो में रहती है, जहां बच्चे हिंदी नहीं जानते. वे मातृ भाषा में पढ़ाई तेजी से सीख पाते हैं. ग्रामीण परिवेश के आदिवासी बच्चों के लिए शुरुआती दौर में हिंदी सीखना और फिर उच्च पढ़ाई के लिए अंग्रेजी में सीखना चुनौतीपूर्ण है. इसलिए धीरे-धीरे उन्हें अधिक रोजगार उन्मुख भाषा द्वारा पढ़ाया जा सकता है.
देश के विभिन्न राज्यों में आदिवासी आबादी
झारखंड 26.2 %
पश्चिम बंगाल 5.49 %
बिहार 0.99 %
शिक्किम 33.08%
मेघालय 86.01%
त्रिपुरा 31.08 %
मिजोरम 94.04 %
मनीपुर 35.01 %
नगालैंड 86.05 %
असम 12.04 %
अरूणाचल 68.08 %
उत्तर प्रदेश 0.07 %
हरियाणा 0.00 %
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