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शुक्रवार, 14 अगस्त 2020

क्या भारतीय सभ्यता ही विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता है?

 भारत में आज से 20,000 साल पहले केवल ऐसे कबीले थे जो खेती करना नहीं जानते थे और घुमंतू जीवन जीते हुए शिकार करके अपना पेट भरते हुए और गुफाओं में रहते हुए उनका काम चला…

12,000 साल पहले घुमंतू प्राणियों ने नदियों किनारे भारत की सर्वप्रथम सभ्यता बसाई और आदिवासी जीवन से खेतिहर जीवन में निवास प्रारंभ किया। इनके छोटे-छोटे गांवों का कालांतर में शहरों में परिवर्तन हुआ। इस तरह भारत की प्रारंभिक नगर-व्यवस्था विकसित हुई जिसे हम आज सिंधु घाटी सभ्यता नाम से जानते हैं।

सिंधु घाटी सभ्यता का सुमेर और अन्य सभ्यताओं से व्यापार होने लगा और फिर ईरान के आसपास पायी जाने वाली कुछ सभ्यताओं के साथ मूल निवासियों का मेलजोल 4000 साल पहले उस अवस्था में पहुंचा जहां से काफी मात्रा में यूरोपीय डीएनए लेकर लोगों की खेप आकर सिंधु घाटी के स्थापित शहरों में बस कर रहने लगी।

यूरोपीय और सिंधु घाटी के मेलजोल से उस एक सांस्कृतिक परिपाटी का विकास हुआ जिसमें संस्कृत भाषा को अपनाकर आर्य संस्कृति का निर्माण हुआ जिसका कालांतर में वर्चस्व हो गया। मूलभूत सिंधु घाटी रहवासी दक्षिण की ओर पलायन करने लगे हालांकि उत्तर और दक्षिण दोनों के बीच पर्याप्त संबंध थे और दोनों के बीच डीएनए का काफी आदान प्रदान हुआ।

[*आर्य शब्द का अर्थ श्रेष्ठ होता है कहने वालों के लिए नोट— कलेक्टर का अर्थ भी 'इकठ्ठा करने वाला' होता है पर वह एक पोस्ट भी होती है।]

इस तरह वैदिक धर्म की स्थापना हुई जिसमें उल्लिखित कर्मकांड के अनुसार तत्कालीन ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, और शूद्र अपना पृथक सामाजिक कार्य और जीविका रखते हुए जीवन यापन करने लगे।

कर्मकांड की सत्ता और ज्ञान की जातिगत सीमितता से विद्रोह की उत्पत्ति हुई। वेदांत नामक विचार में (उपनिषद् साहित्य में) वैदिक कर्मकांड से ऊपर जाकर कुछ मनीषियों ने वेदों-के-अंत सूत्रों को रचा ताकि अब उपनिषदों के दार्शनिक विचार पर लोग आ जाएं और कर्मकांड की जड़ और स्थिर परिपाटी से ऊपर उठकर, वैदिक पूजापाठ से परे, मानवीय अस्तित्व पर विचार करें और दार्शनिक महत्त्व के विषयों पर चिंतन-मनन करना प्रारम्भ करें।

उपनिषद् फिर भी वेद के प्रति श्रद्धा रखते थे और वैदिक वर्ण व्यवस्था (जातिगत श्रेष्ठतावाद) को पूरी तरह नहीं नकारते थे। उन्होने वेदों को Old Testament की तरह मान रखा था और जिस तरह ईसाई समुदाय ने ज्यू बाइबल को नकारे बिना अपना सिद्धांत देने की कोशिश की वैसा ही वेदांत में भी हुआ। इसलिए वैदिक परंपरा से पूरी तरह मुक्त और मानव से मानव में किसी भी तरह के अन्तर को नकारने वाले विचारक और उनकी धार्मिक परंपरा स्थापित हुई जिसमें श्रमण धारा के विचारक महावीर और बुद्ध सबसे प्रमुख रहे। दूसरी और साँख्य (उपनिषदिक) और चावार्क (स्वतंत्र) जैसे अन्य अनीश्वरवादी दर्शन भी परंपरा से स्वतंत्र होकर फलीभूत हुए।

कालांतर में बुद्ध के विचार का फैलाव और ख्याति बहुत तेजी से फैली और इससे स्थापित वैदिक परंपरा को स्वयं को पुनर्स्थापित करने की प्रक्रिया प्रारंभ करनी पड़ी जिसमें रामायण, महाभारत और शंकराचार्य ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

वैदिक परंपरा से भी कई जातियां, कई गोत्र, शैव, वैष्णव, शाक्त वगैरह आए, बौद्ध आगे जाकर हीनयान-महायान और जैन दिगंबर-श्वेतांबर हुए, आगे जाकर सिक्ख और साईं बाबा भी आए, संतोषी माता भी आयीं, भगवान् रजनीश ने भी धरा पर विजिट की…

अब सोचिए कि वैदिक, वेदांता, बौद्ध, जैन, सिख सारे एक साथ उपस्थित क्यूँ हैं? क्या सारे वैदिक विलुप्त हो जाने थे जैन की उत्पत्ति या बौध संस्कृति की उत्पत्ति के बाद?

नहीं… वे विलुप्त नहीं हुए बल्कि एक धारा के रूप में बह निकले जो मूल धारा के समांतर थी। ऐसे विकास में कभी-कभी मूल धारा विलुप्त हो भी जाती है जैसे सिंधु घाटी सभ्यता की भाषा और परंपरा अपने मूलरूप में लुप्त हो गयी जबकि उसका प्रभाव वैदिक हिंदू संस्कृति पर बना रहा। पर बौद्ध और जैन और सिक्ख आए, आर्य समाज, ब्रह्म समाज, के वैदिक रुझान उपजे, रामकृष्ण मिशन के वेदांत और उपनिषद आधार पर बने विचार आगे बढ़े, और आज सारे विचार हमारे सामने उपलब्ध हैं बिलकुल उसी तरह जैसे कि विकास क्रम में एक कोशिका से बहु-कोशीय जीव और तमाम जैविक तंत्र बना जिसमें कुछ विलुप्त होते गए, कुछ परिवर्तित, कुछ मिश्रित, और कुछ समांतर जीवन जीते रहे जैसे उदाहरण के लिए शार्क मछली एक तरह का जिंदा जीवाश्म है जो प्रागैतिहासिक काल से कभी विलुप्त नहीं हुआ और आज भी मानव के समांतर जीवन जी रहा है… उसकी प्राचीनता अध्ययन के लिए सर्वथा उचित है पर प्राचीन होने से वह श्रेष्ठतम और अनुकरणीय प्राणी नहीं हो जाती।


भारतीय सभ्यता इसमें से हम किसे कहें और क्यों?

  • क्या हड़प्पा और लोथल की उस भाषा को भारतीय सभ्यता कहेंगे जिसकी लिपि अब पढ़ने में नहीं आती?
  • क्या कर्मकांडी वैदिक परिपाटी को भारतीय सभ्यता कहें जिसे वेदांत के उपनिषदिक सिद्धांत ने समाप्त कहकर उससे ऊपर का दार्शनिक विचार छह उपनिषदिक दर्शनों (षडदर्शन) के रूप में दे दिया?
  • क्या वैदिक और उपनिषदिक विचार से स्वतंत्र बौद्ध और जैन धर्म का स्वरूप भारतीय सभ्यता है, क्यूंकि अगर हम सिंधु घाटी को भूलकर वैदिक को अपनाएं तो वैदिक को भूलकर बौद्ध या जैन को क्यों नहीं?
  • क्या साईं बाबा, सत्य साईं बाबा, या भगवान रजनीश भारतीय सभ्यता हैं?
  • अजंता और खजुराहो में शारीरिक छुपाव और संबंधों के प्रति निःसंकोच रहने वाला दौर भारतीय सभ्यता कहेंगे या घूँघट में छुपी स्त्रियों को?
  • सबसे पुराना ही चुनना है तो क्यों ना आदिवासी कबीलों के अंडमान में उपस्थित मूल भारतीय निवासियों की वेद-पुराण और हड़प्पा से भी प्राचीन परंपरा को भारतीय सभ्यता करार दे दें?

भारतीय सभ्यता हमारी विविधता और सौहार्द्य है। इस भूमि परअनेकानेक विचारों और परम्पराओं ने एक विकाशशील सहअस्तित्व रखा है। तर्क-वितर्क के माध्यम से ज्ञान-विज्ञान और दर्शन के प्रति जो प्रगतिवादी और प्रयोगवादी दृष्टिकोण भारतीय विचारकों ने रखा है वह ही भारतीय सभ्यता है… और आज विश्व भर में तमाम विकसित और सभ्य देशों और संस्थानों में ऐसा ही सौहार्द्य और तार्किक विचार अपनाया जा रहा है क्यूंकि विकास क्रम में मानव क्रमशः एक अक्लमंद प्राणी होने की और बढ़ा है जिसमें भारत और भारतीय विचारकों का भी अतुलनीय योगदान है।

आज भारतीय सभ्यता के पुराने होने पर नहीं उसके मूल स्वरूप के आधार और दर्शन तर्क, शास्त्रार्थ, प्रगति, प्रयोग, सहअस्तित्त्व, सौहार्द्य जैसे आधुनिक मानवीय मूल्य होने पर हमें गर्व करने की ज्यादा जरुरत है।

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