नया कृषि कानून मंडी में आय करने वालों के पेट पर लात मारकर पूंजीपतियों के पेट भरने वाला है। आप स्वयं सोच लीजिये कि सरकार का यह कदम कहां तक जायज कहलाया जा सकता है?
प्रारंभिक दौर में किसानों की फसल ऊंचे दाम पर खरीद कर मंडियों में बैठे लोगों को जिनमें आढती व मजदूर वर्ग अपनी आय करते हैं, बेकार कर दिये जायेंगे। वे अपनी आय के अन्य स्रोत तलाश करने को मजबूर हो जायेंगे। ऐसी स्थिति आ जाने के बाद मंडियां इनसे खाली हो जायेंगी। तब उद्योगपति किसानों से अपने दामों पर फसल खरीदेंगे जो बेहद कम दाम लगायेंगे और वे खरीदारों को सीधे बेचने की बजाय व्यापारियों को अपने दामों पर देगे जो बेहद अधिक होंगे। ये व्यापारी फिर जनता को बेचेंगे जो और भी मंहगा पडेगा। अभी के हालातों में बिग बाजार में गेहूं का मूल्य देख सकते हैं।…👇
इसका MSP 19.25 रुपये प्रति किलोग्राम है। उद्योगपतियों का एकछत्र राज होने पर सोच लीजिये कि गेंहू का भाव क्या होगा? अब आप स्वयं सोच लीजिये कि यह स्थिति आपको आनंद देने वाली होगी या डराने वाली होगी?
मंडी की संरचना कुछ सोमझकर ही की गई थी। यहां से जब व्यापारी खरीद सकता है तो उद्योगपति भी खरीद सकते है। बहुत से व्यापारी किसानों से उनके खेत पर ही फसल का सौदा कर लेते हैं। उद्योगपति भी यह काम कर सकते है। ऐसी स्थिति में उद्योगपतियों के पक्ष में कानून बनाने का उद्देश्यस समझ के बाहर है।