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गुरुवार, 3 दिसंबर 2020

किसानों के नेताओं को कौन भड़का रहा है?

 लोकतांत्रिक देश में अपनी मांगों के समर्थन में धरना प्रदर्शन करना लोगों का संवैधानिक अधिकार है और सरकार को ऐसे सभी धरना प्रदर्शनों को गंभीरता से लेकर बातचीत का सिलसिला शुरू करना चाहिए. इस बात को भी विस्मृत नहीं किया जाना चाहिए जो राजनीतिक दल अपनी राजनीतिक शक्ति और सामर्थ्य के आधार पर सरकार को चुनौती नहीं दे सकते हैं, उनका लोगों की भावनाएं भड़का कर उन्हें गुमराह करके धरना प्रदर्शन के लिए उकसाना नैतिकता के किसी भी पैमाने पर लोकतांत्रिक अधिकार नहीं कहा जा सकता है और इससे देश का कोई भी भला नहीं होगा बल्कि देश को पीछे का धकेलने का काम ही होगा.

मुझे लगता है कि अगर सिर्फ किसान और सरकार आपस में बात करेंगे तो बहुत सारी गलतफहमी दूर होगी और अगर किसान बिलों में किसी तरह के परिवर्तन की आवश्यकता है तो उन्हें भी जल्दी से जल्दी किया जा सकता है, बशर्ते धरना और प्रदर्शन द्वारा आर्थिक गतिविधियां रोकने और जनजीवन पंगु करने का काम न किया जाए, जिसके लिए संभवत: सभी विपक्षी राजनीतिक दल और स्वार्थ केंद्रित गैर सरकारी संगठन के सदस्य और सामाजिक कार्यकर्ता भरपूर कोशिश करेंगे.

हमारे देश में बहुत से ऐसे लोग हैं जिनमें शायद जन्मजात ऐसे लक्षण आ गए हैं जो हमेशा देश के विरुद्ध काम करते हैं. मुझे समझ में नहीं आता कि यह लोग पूरे आत्मविश्वास के साथ झूठ बातों को ऐसे कैसे बताते हैं जैसे वे कोई महाज्ञान की बात बता रहे हैं.

यह कहना अनुचित नहीं होगा कि कुछ लोग पेशेवर सामाजिक कार्यकर्ता है और तदनुसार पेशेवर आंदोलन कर्ता भी . यह लोग कांटेक्ट पर काम करते हैं चाहे वह धरना प्रदर्शन करना हो या आन्दोलन को लंबा खींचना, सब में इनकी महारत हाशिल होती है. खाने, पीने, रहने, सोने और मनोरंजन के पूरे इंतजाम धरना स्थल पर कर देते हैं. इनके पुराने और विस्तृत अनुभव को देखते हुए कई नए संगठन आंदोलन की शुरुआत करने के पहले ही इन से अनुबंध कर लेते हैं.

शाहीन बाग में आयोजित संशोधित नागरिकता कानून के धरना प्रदर्शन में कई नए कलाकारों का प्रदर्शन भी सराहनीय पाया गया और कुछ नए चेहरे जो पहली बार इस आंदोलन में उतारे गए थे वह भी अपना प्रभाव छोड़ने में कामयाब रहे इसलिए वह सब भी पेशेवर आंदोलनकारियों की बिरादरी में शामिल हो गए है.

पहचानिए कौन है ये सब और इनका किसानों के आन्दोलन में क्या काम ?

  • गुजरात में नर्मदा बांध के विरोध में सालों आन्दोलन करती रही हैं . यहाँ किसानों के आन्दोलन में भी कूद पड़ी. कॉन्ट्रैक्ट फोर्मिंग के विरुद्ध कॉन्ट्रैक्ट प्रोटेस्टर .
  • अन्ना आंदोलन में सेंध लगाकर घुसने वाले और ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल में जाति और धर्म आधारित जनसंख्या के आंकड़ो का घालमेल करने वाले पुरानी खिलाड़ी योगेंद्र यादव की आत्मा कुछ पाने की लालसा में भटकती रहती है. अरविंद केजरीवाल ने पहचानने में जरा भी भूल नहीं की और तुरंत अपनी पार्टी से बेदखल कर दिया.
  • राजनीतिक महत्वाकांक्षा दिल में संजोये देश में राजनीतिक शुचिता और ईमानदारी लाने के आडंबर के साथ अन्ना आंदोलन में कूदने वाले टीवी एंकर, जो टीवी पर बहस के दौरान भी हमेशा राजनीतिक गुणा भाग करते रहे. शेर के सामने सवा शेर का उदाहरण पेश करते हुए अरविंद केजरीवाल ने बिना कोई समय गँवाए इन्हें सड़क पर खड़ा कर दिया. अब ये टीवी पर मेहमान कलाकार की भूमिका में युद्ध लड़ते हैं .
  • शहीन बाग के आंदोलन में दादी और नानी का किरदार निभाने वाली विलकिस बानो अपने अभिनय के कारण पूरे भारतवर्ष में चर्चा का विषय बनी रही. आज फिर नए किरदार की तलाश में किसान आंदोलन में पहुंची किंतु अफसोस इन्हें कोई काम नहीं मिल सका और स्क्रीन टेस्ट में फेल होने के कारण तुरंत वापस कर दिया गया.
  • जेएनयू के चर्चित संस्कार और शाहीन बाग आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करने वाले कुछ युवा चेहरे किसान आंदोलन में शामिल होने के लिए पहुंचे और रोल पाने में कामयाब भी रहे.
  • मिथिला में बिना आमंत्रण के धनुष यज्ञ में शामिल होने वाले रावण के नाम को सार्थक करते हुए किसान आंदोलन में रावण, मेघनाथ, कुंभकरण और अन्य साथियों के साथ शामिल होने में कामयाब रहा .
  • ये हैं पप्पू यादव जो अभी ताजा ताजा बिहार चुनाव बुरी तरह से हार कर आये हैं लेकिन दिल है कि मानता नहीं . आ गये किसानों के कंधे पर बन्दूक रख कर चलाने जबकि बिहार का कोई किसान है नहीं।
  • कांग्रेश के प्रमुख थिंक टैंक और राहुल गांधी के सलाहकार जो राहुल गांधी को पैदल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. यद्दपि यह स्वयं आज तक कोई पंचायत का चुनाव भी नहीं जीत सके हैं किन्तु पूरे देश में कांग्रेश को पुनः स्थापित करने और राहुल गांधी के नेतृत्व में नई सरकार बनवाने के लिए पूरा दमखम लगा रहे हैं.
  • कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बहुत होशियारी से अपनी मुसीबत को दिल्ली के गले में डाल दिया है. उनके ऐसा करने से सिद्धू का विवाद भी कुछ समय के लिए पूरी तरह शांत हो गया है और कांग्रेस पार्टी के प्रमुख नेताओं को किसान आंदोलन में व्यस्त कर दिया है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के किसान बिलों के समर्थन में वक्तव्य देने से कैप्टन को पंजाब में तो बहुत फायदा होगा लेकिन देश के अन्य भागों में कांग्रेसका बंटाधार हो जाएगा. इनकी बाला से . बताया जाता है कि इस पटकथा की भूमिका पाकिस्तानी महिला दोस्त ने लिखी। अपनी इस उपलब्धि पर वह बहुत खुश है।
  • हमेशा राजनीतिक शिकार की तलाश में रहने वाले राजनीतिक महत्वाकांक्षा की सबसे ऊंची पतंग, जिन्होंने टी वी विज्ञापनों के सहारे अपना चेहरा दिखा कर न केवल कोरोना संक्रमण पर काबू पा लिया बल्कि प्रदूषण को भी दिल्ली से बाहर खदेड़ दिया.
  • कोरोना संक्रमण को ध्यान में रखते हुए इन्होंने सार्वजनिक रूप से छठ पूजा पर रोक लगा दी थी लेकिन उन्होंने केंद्र सरकार पर दबाव बनाया कि पंजाब के किसानों को दिल्ली में जहां कहीं वह चाहे आने दिया जाए और शाहीनबाग कई तरह विरोध प्रदर्शन करने दिया जाय. आखिर अगला चुनाव तो पंजाब में लड़ना है. शायद बिल्ली के भाग्य से छींका टूट जाए और वहांमुख्य मंत्री की कुर्सी मिल जाय ? आखिर बड़े राज्य का मुख्यमंत्री बनने की बात ही कुछ और है । दिल्ली में तो उप राज्यपाल ही चैन नही लेने देते।

ये भारत का राजनैतिक दुर्भाग्य है कि राजनीति यहाँ बड़ा उद्योग बन चुका है और राजनैतिक उद्योगपति अपने अपने धंधे के लिए भारत की गरीब और निरीह जनता को निशाना बना रहें हैं . ऐसी परस्थितियों में ये बात बिलकुल बेमानी हो जाती है कि यहाँ की अर्थव्यबस्था कैसी होगी ? भारत अपने साथ स्वतन्त्र हुए सभी देशों में ७० साल बाद भी सबसे पीछे क्यों है ?

इस देश का तो भगवान ही मालिक है .

फोटो : गूगल

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