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गुरुवार, 3 दिसंबर 2020

अगर ईमानदारी सबसे अच्छी नीति है, तो ज्यादातर ईमानदार लोग गरीब और मध्यम वर्ग के क्यों रहते हैं, लेकिन बेईमान लोग अमीर होते हैं?

 कल्पना करिए कोई फिजिक्स का स्टूडेंट हो लैंग्वेज के टीचर के पास जाकर कहे कि सर आज फिजिक्स वाले टीचर नहीं आए हैं, चलिए इलेक्ट्रोस्टेटिक्स का चैप्टर आप ही पढ़ा दीजिए ,वहां पर लैंग्वेज के टीचर स्टूडेंट्स से यही कहेंगे कि दोनों स्वतंत्र विषय हैं दोनों का एक दूसरे से संबंध नहीं हैं वह मैं नहीं पढ़ा सकता

संपूर्ण बातों का सार यह है कि ,जिस तरह फिजिक्स और लैंग्वेज स्वतंत्र विषय हैं ,दोनों का एक-दूसरे के सब्जेक्ट से कोई संबंध नहीं है, उसी प्रकार नैतिकता और ईमानदारी का आर्थिक स्थिति से कोई संबंध नहीं है

अमीर बेईमान और ईमानदार दोनों हो सकता है ,और उसी प्रकार गरीब भी ईमानदार और बेईमान दोनों हो सकता है क्योंकि हम शुरू से एक खास धारणा में रहते हैं जिसमें मान के चला जाता है कि गरीब ईमानदार होगा और अमीर बेईमान होगा इस धारणा को मजबूत बनाने में काफी योगदान बाल कथा साहित्य जो शुरुआत से ही मन में बैठ जाता है और उसके बाद फिल्मों का भी काफी योगदान होता है

बेईमानी और नैतिकता का पतन किस स्तर तक हो सकता है उसके एक उदाहरण का प्रत्यक्षदर्शी में खुद बना उसके पहले मैं भी एक उसी प्रकार के धारणा में जीता था कि ईमानदार बेईमान होंगे और गरीब तो इमानदार ही होंगे

मेरा गांव वाला घर प्रयागराज कानपुर हाईवे पर है कुछ साल पहले मेरे घर के लगभग बगल में एक परिवार रहता था आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी परिवार में एक लड़का था लगभग 20 - 22 वर्ष का गांव के किसी लड़की के साथ अफेयर चल रहा था

कुछ दिन बाद लड़की की शादी तय हो गई इस बात से बहुत डिस्टर्ब हुआ लड़की से किसी तरह संपर्क हुआ उसका उसने कहा कि भागकर कहीं शादी करने को ,लड़की तैयार नहीं वह इस बात से इतना परेशान हुआ घर आकर उसने फांसी लगा लिया घर में लोगों का रो रो कर बुरा हाल हो गया उसके बाद लेकिन जो घटना घटी वह इस दुनिया की वास्तविक सच्चाई बयां करती है

देश के गांव में एक खास प्रकार की स्थिति होती है, दिल्ली से चली कोई भी न्यूज़ गांव पहुंचते पहुंचते एक अफवाह में बदल चुकी होती है इसे कुछ ऐसे भी समझ सकते हैं कि अगर दिल्ली से बटर स्कॉच आइसक्रीम चल रहा है तो गांव पहुंचते-पहुंचते वह दही बाड़ा (दही भल्ले) में बदल चुका होगा

किसानों का कर्ज माफ हो रहा था सरकार बदल गई थी, फिर मृतक के चाचा को पता नहीं किसने समाचार दिया या अफवाह का शिकार हो कि मृतक के घर का अगर कोई यह बोल दे कि उसने सूखे के कारण खुदकुशी की है तो उसे अलग से भी मुआवजा दिया जा रहा

फिर मृतक के परिवार जो अभी तक रो रहे थे उन्होंने यह तर्क दिया जब पुलिस वाले पंचनामा करने आए तो यह उन्हीं से कहने लगे कि बारिश ठीक से नहीं हुई खेतों में सूखा पड़ा था क्या खाएंगे इसी चिंता में उसने फांसी लगा ली

इस बात से दो प्रकार की धारणाएं जो मेरे मन में थी ,वो टूट गई कि गरीब बेईमानी नहीं कर सकते और दूसरा किसी बहुत बड़ी विपदा और परेशानी में घिरा हुआ व्यक्ति भी झूठ बोल सकता है

आर्थिक आधार पर ही नहीं लोगों ने उसके अलावा भी कई धारणाएं बनाई हुई है जैसे कि शिक्षा के आधार पर बहुत सारी समस्या खत्म हो सकती हैं यह भी केवल एक कपोल कल्पना हैं

देश में एक खास वर्ग लगातार यह कहता है आतंकवाद के लिए तो अशिक्षा जिम्मेदार है याकूब मेमन चार्टर्ड अकाउंटेंट था 9/11 के जितने आतंकवादी थे [1] सब पढ़े लिखे थे सब को छोड़िए के लादेन खुद सिविल इंजीनियर था

भ्रष्टाचार के लिए भी कई बार लोग अशिक्षा को जिम्मेदार बताते हैं, कि शिक्षा जैसे जैसे समाज में बढ़ेगी वैसे यह सारी समस्याएं खत्म हो जाएंगे

,स्टेशन पर पॉकेट मारने वाला व्यक्ति जरूर अशिक्षित है लेकिन सभी ऑफिस दफ्तर में बैठे हुए क्लर्क पढ़े लिखे हैं लेकिन मौका पाकर वह अपने लेवल पर घूस मांगते हैं वह भी एक प्रकार का पॉकेट मारना ही है उसके भी बहुत ज्यादा ऊपर जो सिविल सर्विस पास करके गए हैं यूपीएससी के बड़े बड़े अधिकारी कई गुना अधिक कमीशन लेते हैं यह भी पॉकेट मारने जैसा ही है

अमेरिका 99% लिटरेसी रेट से भरा हुआ देश है [2] देखे वहां पर कैसा ब्लैक एंड वाइट गेम हो रहा है[3] और यह दोनों तरफ से हो रहा है वाइट भी रेसिस्ट थे और अब तो रिवर्स रेसिजम भी देखने को मिला है ब्लैक्स की ओर से[4]

तो अंत में संपूर्ण बातों का सार यह है की, आर्थिक स्थिति और शिक्षा का नैतिकता से कोई संबंध नहीं है, जैसे कोई इसरो का वैज्ञानिक हो तो जरूरी नहीं कि वह क्रिकेटर भी अच्छा हो और फ्रंट फुट के ऊपर से सिक्स मारता हो क्योंकि वैज्ञानिक होना और क्रिकेटर होना स्वतंत्र विषय है उसी प्रकार नैतिकता का आर्थिक स्थिति और शिक्षा से कोई संबंध नहीं है

शिक्षा आप को किसी विषय में उत्कृष्टता हासिल करवा सकती है लेकिन नैतिकता का उससे कोई संबंध नहीं जब तक नैतिक शिक्षा की अलग से शिक्षा ना दी जाए

इसलिए जरूरी है कि बचपन से ही नैतिक बल पर विशेष ध्यान दिया जाए एक बेहद मजबूत सिद्धांतवादी समाज का निर्माण करने की कोशिश की जाए जिसमें प्रत्येक को लगे कि उसके सिद्धांत की कोई कीमत लगा नहीं सकता और ना उसे कोई खरीद सकता है

फुटनोट

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