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शनिवार, 5 दिसंबर 2020

क्या कृषि बिल वास्तव में किसानों के लिए हानिकारक साबित होगा या फिर केवल विपक्षी दलों द्वारा किसानों को इस बिल के नाम पर भ्रमित किया जा रहा है?

कृषि बिल यदि पास हो जाए तो किसानो को उचित दाम मिलने की और कई सुविधाए मिल जाएंगी। आप लोगों के साथ वाक़या शेयर करना चाहता हू। मैं एक पार्ट टाइम किसान हू और किसानो की समस्या से रोज दो चार होता रहता हू।

प्रसंग 1) एक आढतिया हमारे मोसंबी के बगीचे मे आया। उसकी नागपुर मंडी मे दुकान थी। उस वक़्त बाजार मे 1200 प्रति कुंतल का भाव चल रहा था। चूंकि औरंगाबाद के पास कोई बाजार नहीं था और पास वाले बिचौलिए उचित दाम नहीं दे रहे थे तो मैंने मोसंबी को नागपुर ले जा कर बेचने की सोची। खर्चा जा कर कुछ ज्यादा पैसे बच जाते।

तो ट्रक मे माल लोड कर के मैं नागपुर मंडी पहुंचा। वहां उस दिन का बाजार खत्म हो गया था इसलिए और एक दिन रुकना प़डा। अगले दिन जब बाजार खुले तो हमारा बिचौलिया पलट गया और भाव उतर जाने के कारण 900 रुपये से पैसे ले कर आना प़डा। दूसरी कोई व्यवस्था ना होने के कारण नुकसान मुझे ही उठाना प़डा। इन बिचौलियों मे जबरदस्त सेटिंग होने के कारण दूसरा कोई भी माल को हाथ लगाने को तैयार नहीं हुआ।

प्रसंग 2) सरकारी खरीद मंडी मे मकई की खरीद हो रही थी।

मैं और मेरा बटईदार मंडी मे पहुंचे। वहां पर सॅम्पलिंग किया गया। माल मे नमी 14% से ज़्यादा होने के कारण वहा के अफसर ने माल 8 दिन बाद लाने को कहा। सरकारी मंडियों मे मार्केट से 400 रुपये ऊंचा दाम मिल रहा था इस वज़ह से हमने माल को सूखा कर ले जाने का सोचा। 8 दिन बाद गाडियों मे माल को लाद कर मंडी पहुंचे, पर क्या देखते है, अब भी नमी 17% थी। माल वापस ले आये तो किराया लगे और मंडी मे उतार दे तो उसके पास रहना पडे।

तो नीति शास्त्र पर अर्थ शास्त्र प्रभावी हुआ और फिर हमारे बटईदार ने मकई के ढेर को फैला कर वहीं दो चार दिन डेरा जमाया। आसपास के गाय सुअरों को भगा भगा कर करीब 7 दिनों तक वहीं रह कर हमारे माल का नंबर 8 वे दिन लगा। मच्छरों से छलनी हुए

हमारे खेत के आदमी ने अफसर के आगे हाथ जोड़ लिए और माल गिनती कर अंदर भेजा। 15 दिन बर्बाद कर अक्ल खरीद ली हमने।

प्रसंग 3) ऐसे प्रसंगों से सीख कर जगह पर माल बेचने की व्यवस्था हमने स्वीकार कर ली। जिस व्यापारी को माल लेना हो वो उसकी गाड़ी ले कर आए और स्पॉट पेमेंट करा कर माल ले जाए। 100-200 वो ज्यादा कमाए और हम भी खेती पर ही ध्यान केंद्रित करे।

तो अब आते है आप के प्रश्न की ओर। कृषि बिल किसानो के फायदे का है या नहीं ये विचार मैं आप पर छोड़ता हूँ। आप की सदसदविवेकबुद्धि क्या कहती है?

और किसानो को किसानो का काम करने दे। यदि आप किसान को बेवकूफ समझने लगे है तो मेरी संवेदनाएं आप के साथ है। इस देश का सबसे बडा जुआरी जो हर साल दांव पर लगाता है अपनी जिंदगी। उसे क्या भाव मिलेगा, कितनी फसल उगेगी, कितना खर्च लगेगा, क्या बीमारी पड़ेगी, क्या बेमौसम बारीश सब कुछ तबाह कर देगी, इन सब सवालों से परे हट कर अपना काम करना होता है। हमने भी कोई कच्ची गोलियां नहीं खेली है। इन बिचौलियों को हटा कर कोई नयी व्यवस्था लागू होती है तो होने दे। यदि अम्बानी अदानी हमे भाव नहीं देंगे तो हम भी उन्हें अपना माल नहीं देंगे। तो फिर आपको क्या पंचायत?

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