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शनिवार, 30 जनवरी 2021

घर के लिए कौन सा प्रिंटर अच्छा है ?

 मैं एक कॉलेज जाने वाला लड़का हूं मुझे फॉर्म भरने के लिए कभी स्कैन कि तो कभी प्रिंट की ज़रूरत पड़ती रही हैं और मेरी बहन UPSC की तैयारी कर रही हैं तो उसको खूब नोट्स भी प्रिंट करने होते हैं इसी के चलते हमने 3 महीने पहले ही एक प्रिंटर लिए था HP DeskJet ink advantage ultra 4729 यह कलर प्रिंट भी करता है स्कैन भी करता है इसमें वाईफाई भी है तो आपको बार बार प्रिंट करने के लिए तार हगने की ज़रूरत नहीं पड़ती औरआप घर में कहीं भी बैठ के इससे प्रिंट कर सकते है और यह अपनी और अपने से कम कीमत वाले प्रिंटर्स से कम लागत मे ज़्यादा पेज प्रिंट कर देता है यह हमे 8000 के आस पास का पड़ गया था इसके ब्लैक एंड व्हाइट पेज प्रिंट करने मै 50 पैसे और कलर पेज प्रिंट करने में 1 रुपया लगता है और हमे इतनी भी प्रिंटर की ज़रूरत नहीं की 15 20 हजार रूपए फुके और ना ही इतने पैसे फालतू आ रहे है कि बार बार प्रिंटर ही बदलते रहे तो यही हमे बेस्ट लगा जो सारे काम कर सके और उसके हिसाब से ज़्यादा महंगा भी ना हो और आमजन पे इसके रिव्यूज भी बोहोत अच्छे थे। इसमें प्रिंटर के साथ 4 cartridges भी मिलती है 2 ब्लैक एंड व्हाइट और 2 कलर जिनकी बाहर से कुल कीमत 3800 पड़ती है तो यह प्रिंटर आपको लगभग 5000 से कम का ही पड़ जाता है इसकी एक cartridge 850 की आती है और ब्लैक एंड व्हाइट वाली आपको 1500 पेज तक प्रिंट कर के दे देगी( मैंने घर पे खुद कर के देखी है) और कलर 750 तक( यह कंपनी का दावा है)।

ये मैं एक शीट के बंडल कि भी फोटो डाल देता हूं ये हमे 160 रूपए का पड़ता है 75gsm पेपर वाला।

धन्यवाद।

शुक्रवार, 29 जनवरी 2021

पृथ्वी के पर्यावरण पर सभ्यता का क्या प्रभाव है?

जैसे -जैसे मनुष्य मे समझदारी आने लगी ,वो अपने जरूरत के लिए विकल्प की तलाश करता रहा । ये तलाश कभी न खत्म होने वाला तलाश था । मानव ने आग की खोज की उसके बाद उसने खेती शुरू की । लकड़ियों को जलाया उनके आग से अपना भोजन पकाया ,मानव यहा तक नहीं रुका ,उसने ऊर्जा के नए -नए स्रोत का भी पता लगाया और उनका विस्तृत रूप से उपयोग भी होने लगा । ये सभी खोज मनुष्य को स्वार्थी बनाता चला गया । उसे लगा की पूरी पृथ्वी हमारी है । और पृथ्वी पर उपस्थित सभी वस्तुए का उपभोग केवल मानव के लिए बना हुआ है । इसी मत को लेकर हम पर्यावरण का अनावश्यक दोहन करते चले आ रहे । इसका स्तर वर्तमान मे इतना बढ़ गया है की ,अब ये चिंता का विषय बन चुका है । निष्कर्ष मे हम कह सकते है की मानव सभ्यता का विकास पृथ्वी पर उपस्थित प्राकृत भंडारों का दोहन करके ही हुआ है, इससे पृथ्वी के पर्यावरण पर काफी बुरा असर पड़ा है।

भारत की राजनीति में क्या खोट है?

भारतीय राजनीति में ईमानदारी और प्रभावशीलता के बीच एक समझौता होता है।

तेलुगु फिल्म "लीडर" में सीएम के अंतिम संस्कार के बाद उनके बेटे अर्जुन को पता चलता है कि उसके पिता ने भ्रष्टाचार से लगभग 20,000 करोड़ रुपये इकट्ठा किए थे। अर्जुन को आश्चर्य होता है कि उसके पिता इतने भ्रष्ट कैसे हो गए।

अर्जुन की माँ ने उसे बताया कि कैसे उसके पिता ने भ्रष्टाचार और जाति पदानुक्रम को खत्म करने के लिए कई योजनाओं के साथ महत्वाकांक्षी शुरुआत की थी। लेकिन फिर वे खुद भ्रष्ट आचरण में शामिल हो गए।

अर्जुन अपनी मां से वादा करता है कि वह अगला मुख्यमंत्री बनेगा और अपने पिता के भ्रष्टाचार के गड्ढे में गिरने से पहले के सपने को पूरा करेगा।

अर्जुन का पहला कदम काले धन वाले विधायकों को खरीदना और गठबंधन नेता को 1000 करोड़ का वादा करना होता है, ताकि वे सभी सीएम पद के लिए अर्जुन का समर्थन करें, ना कि उसके दुष्ट चचेरे भाई का।

इस प्रकार अर्जुन सीएम बन जाता है और कुछ कठोर कदम उठाता है जैसे कि एंटी करप्शन ग्रुप और अवैध धन वापस पाने के लिए अवैध संपत्ति योजना की पुष्टि। भ्रष्ट विधायक इसका विरोध करते हैं और अर्जुन के खिलाफ विद्रोह करने लगते हैं।

अपनी कुर्सी बचाने के लिए अर्जुन गठबंधन पार्टी के नेता की बेटी को प्यार में फंसा लेता है ताकि नेता का समर्थन पा सके। वह एक विधायक के बेटे और उसके दोस्तों को मुक्त करता है क्योंकि उन पर एक जवान लड़की के साथ बलात्कार और हत्या का आरोप था।

अंत में अर्जुन दोषी महसूस करता है और अपनी माँ के सामने सब कबूल करता है।

अर्जुन: मेरे पास कोई विकल्प नहीं है माँ।

माँ: तुम्हारे पिता भी यही कहते थे।

अर्जुन: नहीं माँ, ऐसा नहीं है।

माँ: ऐसा ही है। आज तुमने एक बलात्कार का मामला रद्द कर दिया। कल एक हत्या के मामले को रद्द करोगे। फिर फैक्ट्री लाइसेंस और जमीन हड़पने का मामला। तुम्हारे पास वास्तव में कोई विकल्प नहीं होगा।

आखिर अर्जुन जान जाता है कि उसके पिता इतने भ्रष्ट कैसे हो गए थे।

भारतीय राजनीति के बारे में दुख की बात यह है कि ईमानदारी और प्रभावशीलता के बीच एक समझौता है। माहौल ऐसा है कि आपको अधिक प्रभावी होने और अधिक महत्वपूर्ण चीजों को पूरा करने के लिए अपनी ईमानदारी को मारना ही पड़ेगा।

कोई भी व्यक्ति पूरी ईमानदारी और परोपकारिता के साथ लंबे समय तक नहीं टिक सकता। केवल इसलिए कि उसके आस-पास के लोग और राजनेता इसे स्वीकार नहीं करेंगे और उसे तुरंत नीचे खींचने की शक्ति रखते हैं।

इसलिए बहुमत का समर्थन रखने के लिए एक राजनेता को जाति, धर्म की राजनीति करके, अवैध योजनाओं को मंजूरी देकर, भ्रष्टाचार से सभी को खुश करना पड़ता है। फिल्म के उदाहरण में सीएम ईमानदार होता यदि विधायकों ने उन्हें पार्टी अध्यक्ष के रूप में चुनने के लिए पैसे लेने से इनकार कर दिया होता और भ्रष्टाचार विरोधी योजनाओं को पारित करने पर उन्हें सत्ता से बाहर न कर दिया होता।

अगर कोई कहता है कि वह एक राजनेता का समर्थन नहीं करता है क्योंकि राजनेता ईमानदार नहीं है, तो उस व्यक्ति का भारत के राजनीतिक तंत्र की बिलकुल समझ नहीं है। राजनीति में बहुत कुछ गलत है, लेकिन आम लोगों के साथ भी बहुत कुछ गलत है क्योंकि वे राजनीति को कभी समझ नहीं पाएंगे।



गुरुवार, 28 जनवरी 2021

जमीर बेचना किसे कहते हैं?

 जमीर एक अंतरआत्मा की आवाज़ है जो हमें सही और गलत की पहचान कराती है

सुनते आए है परिंदो का कोई मुल्क नहीं होता.. 'जो' नाम के इस कबूतर को लेकर अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया मे काफ़ी तनातनी है.. 13 हज़ार km उड़ान भरकर यह कबूतर अमेरिका से ऑस्ट्रेलिया के मेलबोर्न के किसी निवासी के छत पर उतरा है, काफ़ी थका हारा था... महामारी के इस दौर मे अब परिंदो पर भी , शहरियत का सवाल उठाया जा रहा है .इसके पैरो मे एक नीला बैंड है जिससे निष्कर्ष निकाला गया है की ये अमेरिका के ऑरेगन रेस से भागा हुआ है.. बर्ड फ़्लु के कारण ऑस्ट्रेलिया के सरकार ने इसे मारने का निर्णय लिया है..

एक रेस से भागा हुआ अमेरिका के, इस कबूतर 'जो' का क्या होगा, ये तो पता नहीं, पर सरहदों के नाम पे, परिंदो का आसमां छीन लेना, इनसानों की यह कैसी मानसिकता है..


बुधवार, 27 जनवरी 2021

सरकार सही है या किसान?

 देश आजाद हुआ उस समय आयी थी ऐसी समस्या जो की भारत में वर्तमान में आ रही है की भारत का बटवारा और आंदोलन देखने को मिले वर्तमान में देश का रूप ऐसा ही दीखता हुआ नजर आ रहा है सरकार बोलती है की किसान आंदोलन खलिस्तान के लिए किये जा रहे है

जांच के लिए नेशनल इन्वैस्टिगेशन एजेंसी को बुलाया गया और किसान नेताओ के नाम अनाउसमेंट किये गए देश में इसलिए भी उथल -पुधल हो रहा है की कोई भी सरकार हो वह अन्नदाताओ को भी नही छोड़ रही है तो आम जनता की तो बात क्या कर सकते है जैसे -साइन बाग के आंदोलन को दबाना ,जम्मू -कश्मीर के मामले को दबाना ,दिल्ली में jnu के मामले को दबाना आदि

पहली बार गणतत्र दिवस पर किसानो के ट्रेक्टर भी शामिल होंगे 26 जनवरी की परेड में किसानो का शामिल होना देश के किसानो के लिए गर्व की बात है परन्तु दुःख की बात यह की किसानो को सरकार द्वारा बनाया गया कानून पसद नहीं आया तो सरकार ने कानून को नहीं हटाया सरकार से पूछा जाये की यह कानून किसके लिए बनाये है तो देखते की सरकार भी बोलेगी की किसानो को लाभ देने के लिए कानून बनाया

परन्तु सबसे बड़ी बात यह की कानून सरकार ने किसानो के लिए बनाया था लेकिन उन किसानो को कानून पसंद नहीं आया तो उससे हटाने में सरकार को क्या परेशानी है यह तो वह ही हो गया की दुकान पर जाने पर कोई वस्तु अच्छी नहीं लगती है

फिर भी उसको जबरदस्ती खरीदनी पड़ेगी तो यहाँ पर लोकतत्र कहाँ से हुआ क्योकि लोक का अर्थ -जनता और तत्र का अर्थ -शासन होता है यानि लोकतत्र का अर्थ -जनता का शासन होना जिसमे जनता जिस सरकार को हर पांच साल में चुनते है उनको सही -गलत की पहचान नहीं होगी इस पर हमे और सरकार को विचार करने की आवश्यकता है 

कुछ गावों के विचित्र नाम क्या हैं?

 



गणतंत्र पर बाबा साहेब को अनदेखा क्यों किया जाता है?

 आपको याद होगा कि ध्वजारोहण के समय बाबासाहेब और महात्मा गांधी की फोटो विशेष रूप से लगाने की प्रथा थी चाहे वो स्कूल हो या सरकारी दफ्तर क्योंकि बाबा साहब का नाम आएगा तो संविधान की बात की जाएगी और वर्तमान राजनीति और संविधान दोनो एक दूसरे के कट्टर दुश्मन है जब सैनिक की शहादत और बच्चियों और महिलाओं के बलात्कार और उनकी हत्या पर राजनीति हो जाती है तो संविधान तो बहुत पीछे छूट जाता है

हकीकत यह है संविधान को पूरी तरह से धीरे धीरे दरकिनार किया जा रहा है क्योकि ये राजनीति के गले की हड्डी बन रहा है जबकि हर भारतीय का अस्तित्व संविधान पर टिका है न कि राजनीति पर, जब भी देश और नागरिक की बात होती है तो भारतीय संविधान की ही दुहाई दी जाती है

बोरी बाँधान बनाओ खेती में मुनाफा कमाओ

शनिवार, 23 जनवरी 2021

सहजन या मुनगा (Drumstick plant) मानव स्वास्थ्य के लिये कैसे उपयोगी है ?

 ड्रमस्टिक की फली और पत्तियां आवश्यक पोषक तत्वों का भंडार हैं ! जबकि पत्तियां पौधे का सबसे पोषक हिस्सा हैं ! और कैल्शियम, लोहा, जस्ता, सेलेनियम और मैग्नीशियम के बेहतरीन स्रोतों में से एक हैं। ताज़ी फली और बीज ओलिक एसिड oliec acid का एक बड़ा स्रोत है ! यह एक स्वस्थ फैटी एसिड है जो हृदय स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है। मोरिंगा की पत्तियां सभी सागों के बीच अद्वितीय हैं क्योंकि 100 ग्राम पतियों में 9.8 ग्राम प्रोटीन की अच्छी मात्रा आई जाती है ! सूखे चूर्ण पत्ते अच्छी गुणवत्ता वाले आवश्यक अमीनो एसिड का एक अद्भुत स्रोत होते हैं ! आयुर्वेद के अनुसार सहजन 300 से अधिक बीमारियों के लिए फायदेमंद है ! ड्रमस्टिक के कुछ विशेष फायदे निम्नलिखित है ! आयुर्वेद के अनुसार सहजन (मुंनगा)

 खाने से लगभग 300 बीमारियों में फायदा मिलता है ! मोरिंगा के आश्चर्यजनक फायदे जो निम्नलिखित हैं !

शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाएं -

ड्रमस्टिक एक अत्यधिक बेशकीमती सब्जी है जिसमें अपार पोषक तत्व हैं ! यह जीवन शक्ति और पुरुष शक्ति में सुधार करने के लिए एक परीक्षणित उपाय है ! ड्रमस्टिक में कामोत्तेजक गुण होते हैं जो कामेच्छा में सुधार और स्तंभन दोष का इलाज करने में मदद करते हैं ! अमेरिकन जर्नल ऑफ न्यूरोसाइंस में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चलता है कि ड्रमस्टिक ने अद्भुत कामोत्तेजक शक्ति का प्रदर्शन किया और टेस्टोस्टेरोन के स्तर में सुधार किया, जिसके कारण यौन पौरूष और कामेच्छा में वृद्धी हुई। इसके अलावा, आयुर्वेद में स्पर्म काउंट में सुधार और ईडी के इलाज के लिए ड्रमस्टिक फूलों को शामिल करने की सिफारिश की गई है। जीवन शक्ति, प्रजनन क्षमता और शुक्राणुओं की संख्या में सुधार करने का एक आसान तरीका यह है कि इस सब्जी को अपने आहार में शामिल करें, चाहे वह सांभर, सब्ज़ी, सूप, करी या सलाद हो !

हड्डियों को मजबूत बनाएं -

ड्रमस्टिक आवश्यक खनिज कैल्शियम, लोहा और फास्फोरस का एक अविश्वसनीय स्रोत होने के नाते, बढ़ते बच्चों में हड्डियों को मजबूत करता है ! आहार में ड्रमस्टिक के नियमित सेवन से बूढ़े लोगों में अस्थि घनत्व बढ़ता हैं ! और ऑस्टियोपोरोसिस के लक्षण कम होते हैं ड्रमस्टिक के शक्तिशाली गुण गठिया जैसी स्थितियों के इलाज में फायदेमंद होते हैं ! और हड्डी के अस्थि भंग को भी ठीक कर सकते हैं !

रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाए -

विटामिन सी और एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर ड्रमस्टिक सामान्य सर्दी, फ्लू और कई आम संक्रमणों से छुटकारा पाने में मदद करता है। ड्रमस्टिक के स्वास्थ्य और एंटी बैक्टीरियल गुण अस्थमा, खांसी, घरघराहट और अन्य श्वसन समस्याओं के लक्षणों को कम करने में सहायता करते हैं। आम खांसी और अन्य बीमारियों से त्वरित राहत के लिए मोरिंगा की पत्तियों के सूप का आनंद लिया जा सकता है ! यह सूप रक्षा प्रणाली मजबूत करके बीमारियों को दूर रखने में सक्षम है !

पाचन क्रिया मजबूत बनती है -

थाइमिन, राइबोफ्लेविन, नियासिन और विटामिन बी 12 जैसे आवश्यक बी विटामिन की समृद्धता के साथ ड्रमस्टिक पाचक रस के स्राव को उत्तेजित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ! और पाचन तंत्र के सुचारू संचालन में मदद करता है। यह कार्ब्स, प्रोटीन और वसा के सरल रूप में टूटने में मदद करके पाचन प्रक्रिया को भी प्रभावित करता है। इसके अलावा, ड्रमस्टिक में फाइबर की मात्रा अधिक होती है जो आंत्र संचालन को नियमित करती है और पेट के स्वास्थ्य को बनाए रखती है।

हाई ब्लड प्रेशर कम करें -

ड्रमस्टिक में बायोएक्टिव कंपाउंड्स नियाजिमिनिन और आइसोथियोसाइनेट पाया जाता है जो धमनियों को मोटा होने से रोकती है ! और उच्च रक्तचाप के विकास की संभावना को कम करती है। ड्रमस्टिक में समृद्ध एंटीऑक्सीडेंट हृदय और रक्त के पोषक तत्वों में सुधार करता है जिससे हृदय उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करता है !

Content source..

Drumstick in hindi- moringa, सहजन, मुंनगा खाने के बेहतरीन फायदे

क्या हवा में आलू की फसल उगाई जा सकती है?

 


हरियाणा सरकार अब तकनीक के जरिए न सिर्फ हवा में आलू उगाने की तैयारी कर रही है, बल्कि किसानों को आलू की सात गुना अधिक पैदावार देने की भी तैयारी में है।

हरियाणा सरकार की करनाल स्थित बागवानी विभाग के तहत आलू तकनीक केंद्र और पेरू की राजधानी लीमा स्थित अंतरराष्ट्रीय आलू केंद्र के बीच हाल ही में एमओयू पर हस्ताक्षर किया गया है। इसके तहत अंतरराष्ट्रीय आलू केंद्र की ओर से एयरोपॉनिक्स तकनीक को साझा किया जाएगा।एयरोपॉनिक्स तकनीक वह तकनीक है, जिसमें पौधे से बिना मिट्टी के जरिए आलू को उगाया जाता है। इस तकनीक में बड़े-बड़े बॉक्सों में आलू के पौधों को लटका दिया जाता है और हर एक बॉक्स में पोषक तत्व और पानी डाला जाता है। इस तरह की तकनीक के उपयोग से पौधों की जड़ों में नमी बनी रहती है और थोड़े समय बाद आलू की पैदावार होती है।

आमतौर पर जिस आलू के एक पौधे से सिर्फ पांच और 10 आलू पैदा होते थे, इस तकनीक की मदद से आलू के एक पौधे से 70 आलू का उत्पादन हो सकेगा। ऐसे में सात गुना ज्यादा आलू का उत्पादन संभव होगा।

आज आपने कौन सी दिलचस्प चीज पड़ी या देखी?


कहते हैं बेचने वाला कुछ भी बेच सकता है।

तस्वीरों को जरा गौर से देखिए , 249 रुपये की सूखी तुरई का छिलका बेच रहा

गांव मैं जिसको तोरई ( luffa ) कहते है जब ये पक जाती है तो छिलका उतने के बाद कुछ चित्र मैं दर्शायी हुई दिखती है इसको ये Amazon पे 249/- में बिक रहा है।

क्या किसी नेता की अंधभक्ति करना सही है?

 देखिए आपने पूछा कि, किसी नेता कि अंधभक्ति करना सही है,

यहां दो सवाल है पहला जो आपने पूछा,

दूसरा कि जी सबसे महत्वपूर्ण है , " अंधभक्ति "

हमे पहले ये समझना पड़ेगा कि अंधभक्ति होती क्या है, और अंधभक्त किसे कहते है,

"अंधभक्त"

तो अंधभक्त उसे कहते हैं की जो भक्त से भी आगे निकल जाए वो होता है अंधभक्त। अभी के इस दौर में अंधभक्तों की कमी नहीं है ये हर जगह देखने को मिल जाते हैं और अंधभक्त वो होते हैं जो किसी को अपना आदर मान लेते हैं और उनके हर बुरे कामो को भी अच्छा मानते हैं उस बुरे काम में उन्हे उनकी बुराई नहीं दिखती वो बुरे काम में भी उस इंसान की अच्छाई गिनने लगते हैं इस लिए लोग इस प्रकार के लोगो को अंधभक्त कहने लगे हैं जो अपने आँखों में पट्टी बांधकर उस इंसान को फॉलो करते हैं जो गलत काम भी करे तो उसमे वो उनकी अच्छाई ढूंढ लेते हैं, ये किसी के भी अंधभक्त बन जाते हैं, जहे वो कोई अभिनेता हो या फिर देश का नेता हो।

मेरे नजर में अगर आप उनके भक्त हैं तो ठीक हैं लेकिन उनके अंधभक्त हैं तो शायद ये बहुत गलत है क्योंकि ऐसे में आप उनके हर बुरे से बुरे कामो को भी सराहने लगेंगे, अगर आपका साथी उस इंसान का विरोध करेगा जिसे आप पसंद करते हैं तो फिर आपको अपने साथी पर गुस्सा आएगा और आप अपने साथी से दूर होने लगेंगे भले ही वो साथी आपके बचपन का यार ही क्यों ना हो। आपको ये बर्दाश्त नहीं होगा की वो उस इंसान के बारें मे गलत कैसे सोच सकता है। आप अपने साथी को ही गलत समझेंगे जबकि उसके साथ आपने अपना बचपन जिया है। ऐसी समस्या आज की दौर में होने लगी है जो लोग अंधभक्त बन जाते हैं उनके सामने उस इंसान की खराबियों को पेश करेंगे जिसे वो पसंद करते हैं तो वो आपको ही अपना दुश्मन एक तरह से समझने लगेगा जो की बहुत गलत है।

मेरा तो ऐसे लोगो से खास यही निवेदन है की आप किसी के भक्त मत बनिए, अगर आप जिसे पसंद करते हैं वो अगर अच्छा काम कर रहा है तो उसपर उसकी सराहना होनी चाहिए लेकिन अगर वो कोई गलत काम किया है तो उसपर सवाल किया जाना लाज़मी है। जिससे वो इंसान आगे चलकर कोई भी गलत कदम उठाने से पहले अच्छे से विचार करेगा।

भविष्य में आने वाली तकनीकें कौन सी हैं?

 भारत जैसी तकनीक दुनिया मे कही नही पाई जाती क्या भूत और क्या भविष्य

तो देखा आपने तकनीक का कमाल

आप और भी कई तकनीक से परिचित होंगे

जैसे

विज्ञान भी हैरान होता है ऐसी तकनीक से

चीनी उत्पादों का विरोध हो चुका है और उसी की तर्ज पर हमने

Redmi इंडिया बनाया है अब हम चीन जैसा मोबाइल बनाते भी है और विदेशो में बेचते भी है

गुरुवार, 21 जनवरी 2021

मटर को स्टोर कर के पूरे साल के लिए कैसे रह सकते हैं?

 मटर को स्टोर करके पूरे साल के लिए हर व्यक्ति रख सकता है ।

मटर को अच्छे से साफ करके उसके बीज निकाले जाते है, मटर को फ्रीजर में साल भर के लिए स्टोरेज कर सकते है, मैं हर सर्दियों में जब मटर अच्छे होते है, तब हम उन्हें छीलकर साल भर के लिए एक प्लास्टिक की थैली में पैक करके फ्रीजर के अंदर रख देते है।

जब भी काम में लेने होते है, उसमें से थोड़े से मटर निकालकर हम उसकी सब्जी बना लेते है, मटर को फ्रिजर में आराम से स्टार्ट कर सकते है, हर कोई व्यक्ति मटर को इसी तरह से स्टोर करके रखता है।

मटर को पूरे साल के लिए स्टोर करके रखने के लिए हम किसी कंटेनर या प्लास्टिक बॉक्स का इस्तेमाल कर सकते है, थैली के रबड़ लगा कर भी हम मटर को अच्छे से साल भर के लिए स्टोर करके फ्रीजर में रख सकते है।

मटर को स्टोर करने के लिए उसमें 1 किलो मटर के दानों में 1 टीस्पून सरसों का तेल लगाकर अच्छे से मसल लेना चाहिए अच्छे से पैक कर के रख देना चाहिए।

उन्हें पॉलीबैग में पैक करके फ्रीजर में रख देना चाहिए उससे मटर पर बर्फ नहीं जमती और जब आपको मटर की आवश्यकता हो तब उसे आसानी से निकाल कर आप इस्तेमाल कर सकते है।

मटर की कई प्रकार की सब्जियां बनती है, आलू मटर, मटर पनीर, आलू गोभी मटर, मटर पुलाव, कई प्रकार की सब्जियों में काम आता है,मटर सर्दियों के दिनों में ज्यादा आती है, सर्दियों में मटर सस्ते भी होते है, इसलिए मटर सर्दियों में ही फ्रिजर करके रखना चाहिए।

सामग्री।

1 : किलो मीटर

1: चम्मच सरसों का तेल

मटर को स्टोर करने के लिए अच्छे तरोताजा स्वस्थ मटर ले क्योंकि वह मटर मीठे होते है, और साल भर अच्छे से काम आते है, बहुत ज्यादा पके हुए नही लेने चाहिए।

मटर को छीलते समय मोटी मटर अलग रखनी चाहिए और बारीक छोटे-छोटे मटर अलग करके रख लेना चाहिए छोटे मटर ज्यादा कच्चे होने से खराब जल्दी हो जाते है, इसलिए मोटे दाने वाले मटर ही स्टोरेज करके रखने चाहिए।

मटर हेल्थी स्वस्थ और खाने में अच्छे होते है, जितने की ताजा मटर इसलिए साल भर मटर आराम से इस्तेमाल किए जा सकते है।

धन्यवाद।

चित्र स्त्रोत: गूगल द्वारा

बांस के फूल को अकाल और महामारी का सूचक क्यों माना जाता है ?

बांस पर फूल आने को दैवी आपदा का संकेत माना जाता है। वैसे तो बांस पर फूल आता ही नहीं या हम अपने जीवन काल में देख ही नहीं सकते क्योंकि बांस पर फूल 48 से 94 वर्ष बाद आता है।

एक कहावत है केला,बिच्छी,केकड़ा,बांस,अपने जन्मे चारो नाश"। अर्थात बांस का खिलना उसके अंत का सूचक है। बांस पर फूल अपने साथ विपत्ति, अकाल और मुसिबतों को साथ लाता है।

बांस के एक फूल से 40 से 50 तक बीज निकलते हैं, जो देखने में चावल के दाने जैसे होते हैं, लेकिन इनका रंग कत्थई होता है। बताया जाता है कि ये बीज चूहों को ज्यादा पसंद होते हैं, और इन्हें खाकर चूहों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि होती है।

बांस के बीज खाकर ये चूहे घरों में खलिहानों में खेतों में घुसने लगते हैं। लोगों का अनाज खाते हैं, पानी की सप्लाई में इन चूहों की लाशें बहने लगती हैं। जिससे लोग खाने और पीने के लिए तरस जाते हैं। पर्यावरण में गर्मी और सूखे की निशानी है बांस पर फूल आना।

वर्ष 2009 में बांस के फूल खिलने से मिजोरम के लाखों लोगों को भूखमरी के करार पर खड़ा कर दिया है। मिजोरम में लगभग आधी शताब्दी के बाद खिले बांस के फूलों को खाकर चूहों की आबादी बढ़ गई है और इन्होंने खेतों में लहलहाती फसलों को चट कर गए। और मिजोरम में अकाल की स्थिति पैदा हो गई थी।

वह कौन-कौन से क्षेत्र हैं जहां महिला सशक्तिकरण का प्रचार सिर्फ व्यक्तिगत फायदे के लिए किया जाता है?

 ऐसे में जब देश में महिलाओं का कोई वास्तविक प्रतिनिधित्व ही नहीं बचा और सरकार में नारी शक्ति की मिसाल मानी जाने वाली तथाकथित जुझारू नेता भाजपा नेताओं या समर्थकों द्वारा किए उत्पीड़न के कई मामलों पर मुंह सिलकर बैठ चुकी हैं, तो कैसे सरकार से किसी न्याय की उम्मीद लगाई जाए?

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

देश में, खासतौर पर उत्तर प्रदेश में कुछ दिनों पहले हुई और मुख्यधारा के मीडिया से जानबूझकर अनदेखा किए जाने वाली घटनाओं के बारे में सोचते हुए एक विचार बड़ी शिद्दत से मन में आया कि जिनकी बेटी, पत्नी या बहन न हों, उनमें संवेदनशीलता की कमी जाहिराना तौर पर भी दिख ही जाती है. इस सोच के पीछे कुछ और भी तथ्य हैं, जिन पर ध्यान देने से बात स्पष्ट होती है.

एक तरफ जहां देश की महिला-पुरुष जनसंख्या के अनुपात में खास सुधार नहीं दिख रहा (यह पूरे पचास प्रतिशत पर भी नहीं पहुंच स्का है), वहीं दूसरी ओर आए दिन कई तरीकों से लड़कियों और महिलाओं के मनोबल को गिराने वाले हादसे भी हो रहे हैं.

खासतौर पर उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश से अब भी रोजाना मिलने वाली खबरों में लड़कियों और महिलाओं, यहां तक कि छोटी बच्चियों पर होने वाली ज्यादतियों की घटनाएं ज्यादा संख्या में हैं.

चाहे वह गैंगरेप के वीडियो वायरल किए जाने की बात हो, बलात्कार के आरोपी को बचाने की जद्दोजहद में पीड़िता को ही निशाना बनाकर जेल में डालने की या पीड़ित लड़की को ही रास्ते से ही हटा देने की, निशाने पर महिलाएं ही हैं.

उत्तर प्रदेश के संदर्भ में बात करें तो ऐसे मुद्दों पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का न कोई बयान आता है और न ही आश्वासन. कार्यवाही होती तो है, पर न्याय के बजाय पार्टी के उन दोषी नेताओं के आरोपों को हल्का करने की दिशा में ज्यादा लगती है, चाहे वह चिन्मयानंद मामले में अब तक की कार्रवाई हो या कुलदीप सेंगर मामले में गिरफ़्तारी.

जाहिर सी बात है कि न्याय में जानबूझकर लगाई जाने वाली यह देर पीड़ित लड़की के लिए हर तरह से अवसाद या डिप्रेशन का कारण बनती चली जाती है और ऐसे में पीड़िता का आत्मविश्वास भी खत्म होने लगता है. लंबी कानूनी लड़ाई न केवल डरा देती है, बल्कि साथ देने वालों की या तो हिम्मत तोड़ देती है या उन्हें लालच अथवा भय का शिकार बना देती है.

परिवार को निरंतर धमकियों का सामना करना पड़ता है और एक तरह के सामाजिक बहिष्कार का भी. आज पहले की तरह लोग गलत का सामने आकर विरोध करने के बजाय अपनी खोह में छिप जाने और झगड़े-झंझट से बचने को प्राथमिकता देने लगे हैं.

डर और प्रोपगेंडा ने पीड़िता के आत्मसम्मान और हिम्मत को ही नहीं, समाज के ताने-बाने को भी तार-तार किया है क्योंकि पार्टी विशेष से अलग लाइन पर सोचने वालों पर लोग बड़ी ढीठता से टूट पड़ते हैं और अपमानजनक भाषा की सभी हदें पार कर जाते हैं, जिससे संभ्रात व्यक्ति खीझकर या खुद को अकेला पाकर मैदान छोड़ने को ही इज्जत बचाना मान लेता है.

उत्तर प्रदेश के इन्हीं मामलों को एक अलग नज़र से देखें तो एक ख़याल ये भी आता है कि घर में अगर बहन, पत्नी या बेटी हो, तब पुरुष आमतौर पर उनकी परेशानियां भी समझ सकते हैं और महिलाओं के प्रति संवेदना भी रखते हैं.

जबकि योगी आदित्यनाथ संन्यासी होने के कारण परिवार से तो दूर लेकिन राजनीति के केंद्र में रहे हैं और जब भी प्रदेश की कोई बेटी सरकार के सामने अपनी तबाही के बाद मदद की गुहार लगाती है, ऐसे में एक तरह की असंवेदनशीलता हर बार दिखती है.

पर इसी तरह की अव्यक्त क्रूरता तब भी दिखने लगी है जब भारत की इन बेटियों पर हुई ज़्यादतियों पर पूरा देश बात कर रहा होता है लेकिन देश के प्रधानमंत्री या उनके कार्यालय से कोई बयान या आश्वासन नहीं आता और न ही पीड़िता का हौसला बढ़ाने और उसकी लड़ाई लड़ पाने के लिए कोई सहयोग ही मिल पाता है.

ऐसा सबसे पहले कठुआ के रेप केस में दिखा था, जब प्रधानमंत्री की लंबी चुप्पी ने हैरत में डाला था. लेकिन हतप्रभ हो जाने की बात तो यह है कि समाज के विभिन्न तबकों के लोगों में इस बात पर क्षोभ या व्यथा, दोनों ही दिखाई नहीं दिए.

एक बात और बड़ी मुखर हो कर सामने आती है कि भारतीय जनता पार्टी में महिला सशक्तिकरण पर खाने के दांत अलग हैं और दिखाने के अलग. केवल सेलिब्रिटी महिलाओं को नारी सशक्तिकरण के ब्रांड एंबेसडर की तरह प्रोजेक्ट करने वाली पार्टी उनके दिखावटी कर्मकांड को हर बार भुनाती है.

अगर विश्लेषण करें, तो साफ दिखता है कि इनमें से अस्सी प्रतिशत सेलिब्रिटी महिला नेताओं ने पार्टी के हर इवेंट जैसे स्वच्छता अभियान, योग दिवस में तो बढ़-चढ़कर भाग लिया है, जिनकी तस्वीरें भी खूब वायरल हुईं या की गईं, लेकिन उनके अपने क्षेत्र में इन्होंने किसी सार्थक काम में हाथ नहीं लगाया और कोई पहल भी नहीं की.

इन्होंने केंद्र सरकार की ही देशव्यापी योजनाओं को अपने हिस्से का योगदान बताकर चुनाव में जीत हासिल की और बाकी मदद ‘मोदी फैक्टर’ ने कर दी.

ऐसे में जबकि महिलाओं का देश में कोई वास्तविक प्रतिनिधित्व बचा ही नहीं और जब सरकार में नारी शक्ति की मिसाल मानी जाने वाली निर्मला सीतारमण, स्मृति ईरानी, किरण खेर, मीनाक्षी लेखी जैसी तथाकथित जुझारू नेता, इन बच्चियों पर भाजपा के नेताओं या समर्थकों द्वारा किए शारीरिक उत्पीड़न के कई मामलों पर मुंह सिलकर बैठ चुकी हैं, तो कैसे सरकार से किसी भी तरह के न्याय की उम्मीद लगाई जाए?

एक नया ट्रेंड ये भी दिखने लगा है कि भाजपा समर्थित महिलाओं को ही प्रोजेक्ट किया जा रहा है, उन्हें ही अलग-अलग क्षेत्रों में पुरस्कार देकर नारी शक्ति के उदाहरणों के तौर पर सशक्तिकरण के ब्रांड की तरह स्थापित किया जा रहा है.

ये पुरस्कृत महिलाएं अक्सर ही आगे चलकर या तो पार्टी का हिस्सा बन जाती हैं या फिर आभार से इतना दब जाती हैं कि गलत को गलत कह सकने की बात ही इन्हें गलत लगने लगती है.

यानी कि ये महिलाएं देश की अन्य महिलाओं और बच्चियों पर होने वाले अत्याचारों को जानने के बाद भी अपने अंतर्मन में पीड़िता के प्रति संवेदना नहीं रख पातीं क्योंकि इससे स्वयं के हित को खतरा हो सकता है, जो इन्हें मंजूर नहीं है.

इनसे इतर सोच रखने वाली महिलाएं ज्यादा प्रतिभाशाली होने के बाद भी हाशिये पर रखी जा रही हैं और अगर वे आवाज उठाती भी हैं, तो वह इतनी दमदार नहीं हो पाती. अगर सुन भी ली गई, तो उन पर व्यक्तिगत प्रहार किए जाने लगते हैं और उनके चरित्र को ही ओछा या निकृष्ट बता दिया जाता है.

केवल कुछ महिलाओं और बच्चियों, जो अपने दम और परिवार के संबल के आधार पर लक्ष्य प्राप्त लेती हैं, की उपलब्धियों को हम भारत में महिला सशक्तिकरण का हस्ताक्षर नहीं मान सकते. जरूरत है कि बड़े बड़े परिष्कृत हिंदी शब्दों से अपने भाषण को समृद्ध करने वाली सरकार के आने वाले कदम इस देश की बेटियों के हौसले को समृद्ध करें.

सरकार में मंत्री पद और रसूख रखने वाले महिला नेतृत्व से भी उम्मीद है कि केवल कुर्सी बचाने के लिए काम न करें, बल्कि आज जब वे उस जगह पर पहुंच चुकी हैं, तो देश की वंचित और उत्पीड़ित महिलाओं को सुरक्षित करने और उन्हें अपनी लड़ाई के लिए मज़बूत बनाने की राह में सरकार से कड़े दंड नियम बनाने की डिमांड करें.

तब ही महिलाओं की स्थिति में सुधार आ सकेगा और वे नागरिक के तौर पर बराबरी पर आ सकेंगी, उत्पीड़नों से बच सकेंगी और अपनी लड़ाई भी मज़बूती से लड़ सकेंगी.

(अनुमा आचार्य भारतीय वायुसेना के पहले महिला लॉजिस्टिक्स बैच की रिटायर्ड विंग कमांडर हैं.)

बुधवार, 20 जनवरी 2021

सरकारी नौकरियों का आवेदन भरा जाता है, पांच सौ रुपए मांग लिए जाते हैं, परीक्षा तीन साल बाद होती है और परीक्षा होने के दो दिन बाद पता चलता है कि पेपर पहले ही लीक हो गया था। यह सब क्या है?

 ये एक अपाहिज देश की निशानी है

  • बात केवल एक परीक्षा की नहीं है
  • अभी कई चीज़ों की परीक्षा रुकी हुई है
  • ऐसा क्यों है , ये हमने कभी क्यों नहीं पूछा ?
  • बोर्ड परीक्षा तो समय से हो जाती है
  • JEE की परीक्षा भी हर साल टाइम से होती है
  • तो फिर ये नौकरी देने वाली परीक्षाएं क्यों नहीं होती है ?
  • और इस से बड़ी बात ये है की हमलोग कभी ये सवाल सरकार से पूछते क्यों नहीं हैं ?
  • नाही हम मीडिया पर इन बातों को आगे करने का ज़ोर देते हैं

मेरी समझ से कहीं न कहीं देश अपाहिज हो चूका है , और हम सबने अब हार मान लिया है

  • कहीं न कहीं हमारे अंदर ये भावना है की "भारत में तो ऐसा ही होता है , ये बड़ी बड़ी बातें इंग्लैंड में करना"
  • हम लोगों ने मान लिया है की भारत मतलब कमज़ोर देश जहां कोई काम सही से नहीं होता है।
  • और यही मानसिकता सरकार में काम करने वाले लोगों की भी है
  • उन्हें भी लगता है की काम आज हो कल हो , क्या फ़र्क़ परता है , ये भारत है यहां ऐसा ही होता है
  • मतलब हम लोगों ने अपनी छोटी सोंच से अपने देश को एक अपाहिज देश बना दिया है
  • ऐसा क्यों है की जापान में ट्रैन हमेशा समय से आती है भारत में नहीं ?
  • उनके भी 2 हाँथ 2 पैर , हमारे भी।
  • तो कहीं न कहीं भारत का कल्चर ही खराब हो चूका है
  • और अगर आप इस बारे में कुछ बोलो तो लोग आपसे ही पूछेंगे की "आपने क्या किया देश बदलने के लिए"
  • मतलब कहीं न कहीं ये मानसिकता है की कोई आकर सब बदल देगा
  • लेकिन बदलना तो हमें अपने आपको होगा

मैं केवल मैं को बदल सकता हूँ , देश को नहीं

जब हर "मैं" अपने आपको बदल ले , देश बदल जाएगा

क्या यह देश अब एक 'गैंग' है ?

 यह देश अब एक 'गैंग' है !

इस देश के लोग अब कई गैंग मे बंट चुके है। देश पीछे छूट चुका है।

इसके कई वजह है।।।।

हमारी हॉकी टीम के पूर्व कप्तान शानदार खिलाडी परगट सिंह पद्मश्री लौटा रहे हैं।

अब वे भी अवार्ड वापसी गैंग में शामिल होते हुए, खालिस्तानी हो गए हैं !! वो तो खालिस्तान की टीम के कप्तान थे ना! अब इस देश में लोग नहीं हैं, पार्टी नहीं हैं, सब कुछ 'गैंग' है ! अब यही इस देश की भाषा है। राजनीति जो लोक कल्याण का माध्यम हुआ करती थी, वह अब गैंग-वार है। देवीलाल जैसे धुर अक्खड़ और मूडी नेता भी ये कहते थे कि 'लोकराज, लोकलाज से चलता है'।मगर अब कोई लाज बचा कहाँ, सब खुले आम है, सब 'गैंग' है!कभी दाऊद गैंग, गवली गैंग के बारे में सुनते थे तो सिहर जाते थे। अब हम सब अलग-अलग 'गैंग' हैं और हमें 'गैंग' बनाने वाले , हिन्दू धर्म-रक्षक हमारे नेता हैं! जिसका सामान्य-ज्ञान औसत से नीचे है, जो अपने घर-परिवार को संभालने की नीयत और कुव्वत ना रखता हो, वह बड़ी आत्मविश्वास के साथ आपको कह सकता है - 'लाज रखने के कारण तो हिन्दू बर्बाद हो गया भाई! देखो! जवाब दो! कश्मीरी पंडितों के साथ क्या हुआ? कश्मीरी पंडित की दुखद दास्ताँ की आड़ लेकर पूरे समाज को जैसा 'पशुवत' बनाया गया है ,वह कोई 'गैंग' ही कर सकता है!सब कुछ खंड-खंड है , लेकिन ढक्कन 'हिन्दू एकता' का है। गैंग यही तो करती है , सुपारी लेकर हत्या करती है जो की गयी।

अपने बुद्धिजीवियों की हत्या (अवार्ड वापसी गैंग)

अपने राज नेताओं की हत्या (गुपकार गैंग)

अपने कलाकारों की हत्या (पाकिस्तान गैंग)

अपने युवाओं की हत्या (ड्रग वाली गैंग)

अपने पत्रकारों की हत्या (रवीश गैंग)

लिस्ट बढ़ती जा रही है

इस सब को मध्य वर्ग का पूरा समर्थन है क्योंकि वो आज सबसे बड़ा 'गैंग' है। शब्दों की अपनी संवेदना होती है, वायुमंडल होता है, जो हमारे निजी और सामूहिक मन का निर्माण करता है!

मगर ये 'गैंग' हो चुके लोग नहीं समझेंगे।

लाज' से 'गैंग' तक की यात्रा तय करने के लिए इस देश के नागरिकों को और उन्हें यहां तक लाने वाले उनके महान नेताओं को बधाई !!

मंगलवार, 19 जनवरी 2021

जीन एडिटिंग क्या है, ये मानवता के लिए वरदान है या अभिशाप?

अच्छा सवाल है आपका! असल में मैंने इसके बारे में काफी रिसर्च भी की है तो मैं इसके बारे में आपको थोड़ा विस्तार से बता सकता हूँ?

इस प्राणी को तो आप जानते ही होंगे।

ये खच्चर है। इसका जन्म गधे और घोड़े द्वारा कृत्रिम तरीके से ही किया गया है। ठीक इसी तरह होती है जीन एडिटिंग भी। चलिए देखते है कैसे?

इसे समझने से पहले कुछ ऐसी बातें समझ लेते है जिसके बगैर आपको इसके बारे में उतना अच्छे से समझ नहीं आएगा।

जीन: हमारा शरीर कोशिकाओं से मिलकर बना होता है और इन कोशिकाओं में केन्द्रक होता है और इसके भी अंदर होता है क्रोमोसोम्स और इसके अंदर होते है DNA और इस DNA पर छोटी छोटी रचना बनी होती है जिसे हम जीन कहते है।

इन्हे इतनी ज़्यादा अहमियत दी जाती है क्योंकि ये जीन ही तय करते है की आने वाले बच्चे की आदत, उसके बालों का रंग, आँखों का रंग, उसके जीवन में किस बीमारी से बीमार होने की संभावना ज़्यादा है, ये सब कुछ जीन ही तय करता है।

जीन एडिटिंग: इसी जीन में नए बनने वाले शिशु को उसकी गुणवत्ता सुधारने और उसे पहले से बेहतर बनाने के नाम पर जीन में कुछ बदलाव करना, दो या अधिक जीवों के जीन को मिलकर किसी नए शिशु को जन्म देना, जीन के कुछ हिस्सों को डिलीट करना, ये सब जीन एडिटिंग या जीनोम इंजीनियरिंग कहलाता है।

तो अब आप जीन के बारे में अच्छे से समझ ही चुके होंगे तो ऐसे में आप खुद सोच सकते है की अगर इस जीन में थोड़ा सा भी बदलाव किया जाएगा तो उससे जो नया शिशु होगा उसमे क्या क्या बदलाव आ सकते हैं। इसी के कई उदाहरण है जिन्हे दो प्राणियों के जीन से मिलाकर बनाया गया है इसीलिए उनमे दोनों के गुण पाए जाते हैं। हालाँकि ये हर बार फायदेमंद ही हो ऐसा ज़रूरी नहीं। कई बार तो चूहों के साथ ऐसे प्रयोग में बड़े ही अजीबो गरीब परिणाम सामने आ चुके है।

अभी कुछ समय पहले ही चाइना ने सिर्फ दो सामान लिंगों[1] के जीन से कुछ चूहों के बच्चों का जन्म कराया था जिसमे जिन दो पिता के जीन से मिलाकर जिस बच्चे को बनाया गया था वो तो सिर्फ 24 घंटों में ही मर गया लेकिन जीन दो फीमेल के जीन से एक बच्चे को बनाया गया था वो अपनी यौवनावस्था तक भी ज़िंदा रह पाया था और बच्चे भी पैदा कर पाया था। वैसे इसकी कोई साफ़ साफ़ वजह तो मुझे कही नहीं मिली लेकिन जहाँ तक मुझे इस बारे में लगता है की किसी बच्चे के बनने में एक ऑटोसोम माँ और एक पिता से आता है। क्योंकि भ्रूण के बनने में माँ के सिर्फ XX -type के क्रोमोसोम्स ही हिस्सा ले सकते है जबकि पिता के भ्रूण के बनने में हिस्सा लेने वाले XY- type के क्रोमोसोम्स होते है।

तो अब आप खुद ही सोच लीजिये जब दो फीमेल के जीन से एक बच्चे का जन्म हुआ तो उस बच्चे में अगले भ्रूण को बनने वाले में देने के लिए सिर्फ XX -type के क्रोमोसोम्स ही रहे होंगे जबकि हो सकता है की दो पिताओं के जीन से बनने वाले शिशु में शायद YY-type के क्रोमोसोम्स हो। और आप जानते ही हैं की YY-type के क्रोमोसोम्स का कोई मतलब ही नहीं होता है तो शायद इसीलिए वो 24 घंटों में ही मर गया। यहाँ इस प्रयोग को करने का तर्क ये दिया गया था की एक बार ये चूहों में सफल हो गया तो फिर इस प्रयोग को इंसानो में भी किया जायेगा जिससे समलैंगिक भी प्रजनन कर पाए।

तो ये सब भी जीन एडिटिंग के अंदर ही आता है जिससे आपको थोड़ा अंदाजा लग गया होगा की जीन इंजीनियरिंग में क्या क्या होता है। वैसे जीन इंजीनियरिंग से हम ऐसे प्राणियों के गुणों को भी इंसानो में लाने पर अध्ययन कर सकते है जो सिर्फ कुछ ख़ास जानवरो में ही पायी जाती है। जैसे की छिपकली में अपनी पूछ को दुबारा उगाने वाला गुण अगर इंसानो में आ जाए तो फिर शायद कोई इंसान हाथ पैरों से अपाहिज नहीं रह पायेगा लेकिन अगर इसके कोई साइडएफेक्ट ना हो तब।

जीव विज्ञान की इस शाखा के बारे में कई लोग अपनी अपनी अलग राय रखते है। कोई इसे कुदरत में दखलंदाज़ी कहता है तो कोई मानवता के विकास में उठाये गए कदम कहता है लेकिन मैं जहाँ तक समझता हूँ की अभी इसे कुछ भी कहना बहुत जल्दबाज़ी होगी। अभी इसमें शायद और परिणाम देखकर ही कुछ कहाँ जा सकता है क्योंकि अभी तक तो मुझे इसमें कोई उतना बड़ा फायदा मानव जाति को नज़र नहीं आया या हो सकता है की ये अभी अपने शुरूआती दिनों में है शायद। इसीलिए अभी कुछ कहाँ नहीं जा सकता। अभी फिलहाल आप ये सोच सकते है की इंसानो के हाथ एक ऐसी तरकीब लगी है जिसमे वो नए नए प्राणियों की उत्पत्ति खुद कर सकते है या चाहे तो किन्ही दो या ज़्यादा जीवों के जीन की एडिटिंग करके या फिर उसे पूरी ही तरह से नया बनाकर। लेकिन जैसा की हर वैज्ञानिक उपलब्धि में होता है की ये हर बार फायदेमंद ही होगा इसके बारे में तो खुद वो भी नहीं जानते।

शुक्रिया

फुटनोट

सोमवार, 18 जनवरी 2021

जिंदगी कैसे जिए?

एक छोटी सी कहानी के माध्यम से अपनी बात आरंभ करता हूं।

कहते हैं एक व्यक्ति बड़ा उदास था, रोने लगा। उसके मित्र ने पूछा, "भाई ! क्या बात है? रोते क्यों हो?" वह बोला, "क्या बताऊँ पिछले महीने मेरा चाचा मर गया।" दोस्त ने कहा, "चाचा मर गया तो क्या हुआ? जाते-जाते तुम्हारे लिए बहुत सारी जायदाद भी तो छोड़कर गया है।" उसने कहा, " दो महीने पहले मेरे दादा भी मर गये।" दोस्त बोला, " यह भी अच्छा हुआ। दादाजी के बहुत सारे खेत-खलिहान थे। सब तुम्हें मिल गये। इतना सारा माल मिल गया फिर भी तुम रोते हो " ' वह बोला , "रोता इसलिए हूँ क्योंकि इस महीने अभी तक कोई नहीं मरा।" कहीं यही दुर्दशा तो हमारी नहीं है? सामान इकठ्ठा हो रहा है, धन - दौलत बटोरते चले जा रहे हैं और बटोरने वाला निरन्तर खंडहर हो रहा है। जिंदगी के गलाघोंट संघर्ष में जीवन के मूल्य चुकते चले जा रहे हैं।

(चित्र स्रोत: hamarisafalta.com)

क्या यही जिंदगी है? और जिंदगी का उद्देश्य बस यही है?जिंदगी अद्भुत, अद्वितीय और अनमोल उपहार है, इसके रहस्य को समझते हैं।

🔹️जिंदगी एक बांसुरी है। उसमें दुख रूपी छेद तो बहुत सारे हैं पर जिसको बाँसुरी बजानी आ जाती है वह उन छेदों में से भी मीठा संगीत पैदा कर लेता है।

🔹️जिंदगी के आयाम निर्धारित कीजिए, अगर आप सांवले हैं तो हमेशा इतनी सुंदर कार्य कीजिए कि लोग आपके कार्यों के कारण आपको पसंद करें और अगर आप सुंदर हैं तो ऐसे कार्य करने से बचे जो आपकी सुंदरता को कलंकित करें।

🔹️जिंदगी जलेबी की तरह होती है। यह टेढ़ी - मेढ़ी जरूर होती है पर मुस्कान की चासनी अगर हम लगाते रहेंगे तो यह भी सबको मधुर लगेगी।

🔹️जिंदगी में बड़ों की सलाह को अनदेखा मत कीजिए, उनके अनुभवों की ताकत और दुआओं की दौलत दोनों मिलेगी।

🔹️जिंदगी में सुख शांति चाहिए है तो शांत और शालीन बनने का प्रयास कीजिए। अगर आप शांत हैं तो सचमुच में संत है, चाहे गृहस्थ जीवन ही क्यों आपने ना अपना रखा हो।

🔹️जिंदगी मैं हर किसी को अहमियत दीजिए, बंद घड़ी भी दिन में एक बार सही समय बताती है। विश्वास रखिए , जो अच्छे होंगे वे आपका साथ देंगे और जो बुरे होंगे वे आपको सबक देंगे ।

🔹️जिंदगी में सदा खुश रहिए, गम को भुला दीजिए। न खुद रूठिए , न दूसरों को रूठने का अवसर दीजिए। खुद भी हँसकर जीने की कोशिश कीजिये और दूसरों को भी हँसकर जीना सिखा दीजिये। रोने से तो आंसू भी पराए हो जाते हैं पर खुश रहने से पराए भी अपने हो जाया करते हैं। हम दूसरों को इतनी खुशियां बांटे कि हमारे जीवन का फूल मुरझा भी जाए तब भी उन्हें अपनी खुशबू का अहसास करवाता रहे।

🔹️जिंदगी की सार्थकता जीवन के पूर्ण होने में नहीं है अपितु जिंदगी पूरी होने के पूर्व बेहतर जीवन जीने की है।

🔹️जिंदगी में आलस्य को दूर रख दीजिए ,पानी से कभी तस्वीर नहीं बनती और ख्वाबों से कभी तक़दीर नहीं बनती। हमेशा औरों के प्रति करुणा भाव रखिए, आप जितनी अधिक सहानुभूति दूसरों के प्रति रखेंगे, जिंदगी में उतनी ही कम आपको अपने लिए जरूरत पड़ेगी।

🔹️जिंदगी में कुछ अच्छे सिद्धांत बनाइए और यथासंभव उनका पालन कीजिए पर ऐसा ना हो कि सिद्धांत बने रहे और हम टूट जाए। मनुष्य और सिद्धांत अगर सहचर हो जाए तो जीवन में साधना सफल हो जाती है।

🔹️हमारी जिंदगी तस्वीर भी है और तकदीर भी। अगर इसमें अच्छे रंग मिलाओगे, तो तस्वीर सुन्दर बन जाएगी और अच्छे कर्म करोगे तो आपकी तकदीर संवर जाएगी।

🔹️जिंदगी मिलजुल कर जीने का नाम है, हमेशा जोड़ने की कोशिश कीजिए, तोड़ने की नहीं। संसार में सूई बनकर रहिए, कैंची बनकर नहीं। सूई 2 को 1 कर देती है और कैंची 1 को 2 कर देती है।

🔹️जिंदगी में किसी को अपना मानो तो उसे ज्यादा मत परखना क्योंकि ज्यादा परखना भी अविश्वास करने जैसा ही होता है।

🔹️जिंदगी में चार चीजें कभी मत तोड़िए 1.विश्वास, 2. रिश्ता, 3.दिल और 4. वचन। जब ये टूटते हैं तो कोई आवाज तो नहीं होती लेकिन दर्द बहुत होता है। किसी को अपना माने तो से ज्यादा मत परखना, ज्यादा परखना भी अविश्वास करना ही होता है।

🔹️रंगोली कुछ समय के लिए शोभा पाती है फिर भी उसे हम खूब सजाते हैं। ठीक वैसे ही जिंदगी भी कुछ वर्षों की है, इसे श्रेष्ठ कर्मों से खूब सजाने की कोशिश कीजिए।

🔹️केवल धागा लम्बा होने से कोई पतंग आसमान तक नहीं पहुँचती, पतंग को आसमान तक पहुँचाने के लिए उड़ाने का तरीका आना जरूरी है। केवल ज्यादा धन होने से जिंदगी में खुशियाँ नहीं आती, जिंदगी में खुशियाँ भरने के लिए प्रेम और मिठास का रंग घोलना जरूरी है।

मित्रों, अच्छी जिंदगी कैसे जिए इस बात पर रिसर्च करने की आवश्यकता नहीं है बस अच्छी जिंदगी जीना शुरु कर दीजिए।