जैसे -जैसे मनुष्य मे समझदारी आने लगी ,वो अपने जरूरत के लिए विकल्प की तलाश करता रहा । ये तलाश कभी न खत्म होने वाला तलाश था । मानव ने आग की खोज की उसके बाद उसने खेती शुरू की । लकड़ियों को जलाया उनके आग से अपना भोजन पकाया ,मानव यहा तक नहीं रुका ,उसने ऊर्जा के नए -नए स्रोत का भी पता लगाया और उनका विस्तृत रूप से उपयोग भी होने लगा । ये सभी खोज मनुष्य को स्वार्थी बनाता चला गया । उसे लगा की पूरी पृथ्वी हमारी है । और पृथ्वी पर उपस्थित सभी वस्तुए का उपभोग केवल मानव के लिए बना हुआ है । इसी मत को लेकर हम पर्यावरण का अनावश्यक दोहन करते चले आ रहे । इसका स्तर वर्तमान मे इतना बढ़ गया है की ,अब ये चिंता का विषय बन चुका है । निष्कर्ष मे हम कह सकते है की मानव सभ्यता का विकास पृथ्वी पर उपस्थित प्राकृत भंडारों का दोहन करके ही हुआ है, इससे पृथ्वी के पर्यावरण पर काफी बुरा असर पड़ा है।
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