G नहीं एसी तो कोई बात नहीं है
आज उन्ही की वजह से ही आज सब लोगो का हक़ बराबर है वरना तो आज़ादी के पहले वाले इंडिया और अभी के इंडिया में रात दिन का frq है
भारत रत्न से सम्मानित डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर को एक विश्वस्तरीय विधिवेत्ता, भारतीय संविधान के निर्माता (Chief architect of Indian Constitution ) और करोड़ों शोषितों, वंचितों दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों को सम्मानीय जीवन देने के लिए हमेशा याद किया जायेगा. भीमराव अम्बेडकर तीनों गोलमेज सम्मलेन में भाग लेने वाले गैर कांग्रेसी नेता थे.
एक सर्वे में कोलंबिया यूनिवर्सिटी ने डॉक्टर आंबेडकर को विश्व का नंबर वन स्कॉलर घोषित किया था. ( 32 डिग्रियां थी Dr Ambedkar के पास).
डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर विदेश जाकर अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट (PhD) की डिग्री हासिल करने वाले पहले भारतीय थे।
. डॉ. अम्बेडकर ही एकमात्र भारतीय हैं जिनकी प्रतिमा लन्दन संग्रहालय में कार्ल मार्क्स के साथ लगी हुई है।
. डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर कुल 64 विषयों में मास्टर थे| वे हिन्दी, पाली, संस्कृत, अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, मराठी, पर्शियन और गुजराती जैसे 9 भाषाओँ के जानकार थे| इसके अलावा उन्होंने लगभग 21 साल तक विश्व के सभी धर्मों की तुलनात्मक रूप से पढाई की थी|
. बाबासाहेब ने लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स में 8 वर्ष में समाप्त होनेवाली पढाई केवल 2 वर्ष 3 महीने में पूरी की थी| इसके लिए उन्होंने प्रतिदिन 21-21 घंटे पढ़ाई की थी|
. . लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स से “डॉक्टर ऑल सायन्स” नामक अनमोल डॉक्टरेट पदवी प्राप्त करनेवाले बाबासाहेब विश्व के पहले और एकमात्र महापुरूष हैं। कई बुद्धिमान छात्रों ने इसके लिए प्रयास किये परन्तु वे अब तक सफल नहीं हो सके हैं|
. दुनिया में सबसे अधिक स्टेच्यु (Statue) बाबासाहेब के ही हैं। उनकी जयंती भी पूरे विश्व में मनाई जाती है।
. ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा किए गए “The Makers of the Universe” नामक जागतिक सर्वेक्षण के आधार पर पिछले 10 हजार वर्षो के शीर्ष 100 मानवतावादी विश्वमानवों की सूची बनाई गई थी जिसमें चौथा नाम डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर का था|
80 फीसदी दलित सामाजिक व आर्थिक तौर से अभिशप्त थे, उन्हें अभिशाप से मुक्ति दिलाना ही डॉ. आंबेडकर का जीवन का मकसद था
अमेरिका में कोलंबिया विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र, मानव विज्ञान, दर्शन और अर्थ नीति का गहन अध्ययन बाबा साहेब ने किया। वहां पर भारतीय समाज का अभिशाप और जन्मसूत्र से प्राप्त अस्पृश्यता की कालिख नहीं थी। इसलिए उन्होंने अमेरिका में एक नई दुनिया के दर्शन किए।
भीमराव अम्बेडकर एक समाज सुधारक, एक दलित राजनेता होने के साथ ही विश्व स्तर के विधिवेत्ता व भारतीय संविधान के मुख्य शिल्पकार थे।
वे हिंदू महार जाति के थे जो अछूत कहे जाते थे( इंडिया में ) उनकी जाति के साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव किया जाता था (बहुत ही ज़्यादा )एक अस्पृश्य परिवार में जन्म लेने के कारण उनको बचपन कष्टों में बिताना पड़ा।
अम्बेडकर ने छुआछूत के खिलाफ एक व्यापक आंदोलन शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने सार्वजनिक आन्दोलनों और जुलूसों के द्वारा पेयजल के सार्वजनिक संसाधन समाज के सभी लोगों के लिये खुलवाने के साथ ही अछूतों को भी हिंदू मंदिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिये संघर्ष किया।
डॉ. अम्बेडकर की बढ़ती लोकप्रियता और जन समर्थन के चलते उनको 1931 में लंदन में आयोजित दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया। 1936 में उन्होंने स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना की
1951 में संसद में अपने हिन्दू कोड बिल के मसौदे को रोके जाने के बाद अम्बेडकर ने केन्द्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था। इस मसौदे में उत्तराधिकार, विवाह और अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता की मांग की गयी थी।
भारतीय संविधान के रचयिता डॉ. भीमराव अम्बेडकर के कई सपने थे। भारत जाति-मुक्त हो, औद्योगिक राष्ट्र बने, सदैव लोकतांत्रिक बना रहे। अम्बेडकर विपुल प्रतिभाशाली छात्र थे। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लन्दन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स दोनों ही विश्वविद्यालयों से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने विधि, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान के शोध कार्य में ख्याति प्राप्त की थी। जीवन के प्रारम्भिक कॅरियर में वह अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे एवं वकालत की। वो देश के एक बहुत बड़े अर्थशास्त्री थे। मगर देश उनके अर्थशास्त्री होने का उतना लाभ नहीं उठा पाया जितना उठाना चाहिये था। लोग अम्बेडकर को एक दलित नेता के रूप में जानते हैं जबकि उन्होंने बचपन से ही जाति प्रथा का खुलकर विरोध किया था। उन्होंने जातिवाद से मुक्त आर्थिक दृष्टि से सुदृढ़ भारत का सपना देखा था मगर देश की गन्दी राजनीति ने उन्हें सर्वसमाज के नेता की बजाय दलित समाज के नेता के रूप में स्थापित कर दिया।( अफसोस)
डॉ. अम्बेडकर का एक और सपना भी था कि दलित धनवान बनें। वे हमेशा नौकरी मांगने वाले ही न बने रहें अपितु नौकरी देने वाले भी बनें। अम्बेडकर के दलित धनवान बनने के सपने को साकार कर सके
तो इस लिहाज से हम keh सकते है कि वो बहुत अच्छे इंसान भी थे जो देश को आगे ले जाने की चाह रखते थे
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