बांस पर फूल आने को दैवी आपदा का संकेत माना जाता है। वैसे तो बांस पर फूल आता ही नहीं या हम अपने जीवन काल में देख ही नहीं सकते क्योंकि बांस पर फूल 48 से 94 वर्ष बाद आता है।
एक कहावत है केला,बिच्छी,केकड़ा,बांस,अपने जन्मे चारो नाश"। अर्थात बांस का खिलना उसके अंत का सूचक है। बांस पर फूल अपने साथ विपत्ति, अकाल और मुसिबतों को साथ लाता है।
बांस के एक फूल से 40 से 50 तक बीज निकलते हैं, जो देखने में चावल के दाने जैसे होते हैं, लेकिन इनका रंग कत्थई होता है। बताया जाता है कि ये बीज चूहों को ज्यादा पसंद होते हैं, और इन्हें खाकर चूहों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि होती है।
बांस के बीज खाकर ये चूहे घरों में खलिहानों में खेतों में घुसने लगते हैं। लोगों का अनाज खाते हैं, पानी की सप्लाई में इन चूहों की लाशें बहने लगती हैं। जिससे लोग खाने और पीने के लिए तरस जाते हैं। पर्यावरण में गर्मी और सूखे की निशानी है बांस पर फूल आना।
वर्ष 2009 में बांस के फूल खिलने से मिजोरम के लाखों लोगों को भूखमरी के करार पर खड़ा कर दिया है। मिजोरम में लगभग आधी शताब्दी के बाद खिले बांस के फूलों को खाकर चूहों की आबादी बढ़ गई है और इन्होंने खेतों में लहलहाती फसलों को चट कर गए। और मिजोरम में अकाल की स्थिति पैदा हो गई थी।
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